तुम अपनी परिभाषा दे लो, वो अपनी परिभाषा दें लें,
मेरे लिये नेह का मतलब केवल नेह हुआ करता है।
वही नेह जो गंगा जल सा सारे कलुष मिटा जाता है,
वही नेह जो आता है तो सारे द्वेष मिटा जाता है।
वही नेह जो देना जाने लेना कहाँ उसे भाता है,
वही नेह जो बिना सिखाए खुद ही त्याग सिखा जाता है।
वही नेह जो बिन दस्तक के चुपके से मन में आता है,
वही नेह जो साधारण नर में देवत्व जगा जाता है।
शबरी के जूठे बेरों को, जो मिष्ठान्न बना देता है,
केवट की टूटी नैय्या को जो जलयान बना देता है,
मूक भले हो बधिर नही है, धड़कन तक को गिन लेता है,
जन्मों की खातिर जुड़ जाता, जुड़ने मे एक दिन लेता है।
झूठ न मानो तो मै बोलूँ..........?
झूठ न मानो तो मै बोलूँ..........वही नेह है तुमसे मुझको,
और मुझे ये नहीं पूछ्ना मुझसे है या नही है तुमको,
मुझको तो अपनी करनी है तुमसे मुझको क्या लेना है,
मै अपने मे बहुत मगन हूँ मेरी एक अलग दुनिया है,
उस दुनिया की कड़ी धूप मे तू ही मेह हुआ करता है
मेरे लिये नेह का मतलब केवल नेह हुआ करता है।
6 comments:
भावनाओं से ओत-प्रोत बड़ी सुंदर रचना है जिसमें 'नेह' के चित्रण में निर्विकार आनन्द की पथ-प्रदर्शिका का रूप दिखाई देता है। बहुत अच्छा लिखती हो।
महावीर जी! वो जिनके हम स्वयं प्रशंसक हों, जिनकी कविता पढ़ कर लगता हो कि कैसे कोई भावों को इतना सहज कलेवर पहना सकता है, उनकी तरफ से यदि मन रखने के लिये भी प्रशंसा मिल जाए तो उत्साह आ जाता है, ऐसा ही कुछ हुआ है मेरे साथ आपकी टिप्पणी पढ़ के..... बहुत, बहुत धन्यवाद
bahut saral sahaj sundar abhivyakti.it simply expresses ur true persona.
सरल और सुन्दर शब्दों में आपने इतनी गहरी बात कह दी कंचन जी. प्रवाह, सौन्दर्य और सत्य, सब कुछ ही तो है आपकी इस रचना में. कविता का अंत भी बेहद खूबसूरत तरीके से किया गया है.
आपके इस चिट्ठे से मेरा परिचय आपकी एक टिप्पणी के माध्यम से हुआ जो आपने मेरे चिट्ठे पर की थी. आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में स्वागत है!
आशा है भावों की इसी गहराई की झलक आपकी आगामी रचनाओं में मिलेगी.
सरल शब्दों में बहुत सुंदर बात कही है आप ने ....
तुम्हारा पहला पोस्ट...और देखो ना इस सुंदर कविता को उधर फ़ुरस्तिया वाले पन्ने पर पहले पढ़ा था....आज फिर इतनी देर रात गये इसे पढ़ना...
काश मैं जादूगर होता..!
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