कभी कभी ही लिखती हैं लेकिन जब लिखती हैं मन को छू जाता है। आपके लिये लाई हूँ उनकी दो कविताएं
आँसू
डोल रहे आँसू नयनों में, और अश्रु पर आशा,
मिट्टी के जीवन की, छौटी नपी तुली परिभाषा।
रंग नही होते आँसू के पर होते सतरंगी,
भाव रंग हैं अलग अलग, एकाकीपन के संगी।
शिलाखण्ड सा बिझ उठाए, हृदय अतीत की यादें,
मिले नेह का मेह तो बरसें नैनों की बरसातें।
फूलो पर शबनम है आँसू, सीपी में मोती भी आँसू,
मरीचिका का भ्रम भी आँसू, आँसू मन की भाषा।
सजल नयन में तैर रही है, जीवन की प्रत्याशा।।
मेरी गुड़िया
मेरी गुड़िया.....!
चाय का कप छू कर
चिल्ला उठती है,
और सारा घर सर पर उठा लेती है।
अपनी उँगलियाँ घर भर को दिखाती है,
दिन भर सबकी सहानुभूति बटोरती है।
पूरे दिन किसी काम को
हाथ भी नही लगाती है।
शाम को हाथ जलने का हर्जाना माँगती है,
पिता के कार में आइसक्रीम खाने जाती।
लौटती बार टैडी बियर और चिप्स लेकर आती है,
गर्म कप छू जाने भर से इतना शोर मचाती है।
मेरी गुड़िया ब्याही जाती है,
ससुराल में जलती सिगरेट,
और प्रेस से हर रोज दागी जाती है,
पर खामोश रहती है।
मेरी गुड़िया अब सयानी हो गई है,
दोनो कुलों की लाज बचाती है,
अस्सी प्रतशत जली अस्पताल पहुँचाई जाती है,
और विकृत कंठ से पूरे प्रकरण को महज़ हादसा बताती है
मेरी गुड़िया गर्म कप छू कर चिल्ला उठती थी,
और आज....
दहेज़ की चिता में जलकर,
सदा के लिये खामोश हो जाती है...