नित्य समय की आग में जलना, नित्य सिद्ध सच्चा होना है। माँ ने दिया नाम जब कंचन, मुझको और खरा होना है...!
Wednesday, April 6, 2011
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
गुरू जी की पोस्ट पर टिप्पणी करने गयी, तो यादों के गलियारे में ऐसी भटकी कि टिप्पणी बन गयी पोस्ट... तो वो ही सही !!
१९८३ पता नही याद है या बार बार याद दिलाने के कारण याद रहता है। पड़ोस की टी०वी० पर सब के साथ मुझे भी ले जाया गया था। ये जून की बात है और हमारे यहाँ उसी साल सितंबर में टी०वी० आया था। थोड़ा थोड़ा है ज़ेहन मे । कपिल देव का ट्रॉफी लेना..एक गाड़ी पर बारह खिलाड़ियों का सवार होना, शैंपेन खुलना.... तब ये भी नही पता था कि शैंपेन क्या बला है, खुद ही समझ लिया था कि कोई मँहगी सी कोल्ड ड्रिंक है जो बड़े लोग ही पीने के साथ साथ बहा भी सकते हैं।
और फिर ८७ और ९२ के विश्व कप तो नही याद हाँ मगर ये याद है कि क्रिकेट देखा जाता था। कभी कभी गायत्री माता को पाँच रुपये का प्रसाद भी माना जाता था और कभी गायत्री मंत्र पढ़ के भारत को जिताया जाता था। गवास्कर के १०,००० पूरे होने पर सबने उल्लास के साथ स्वागत किया था। सचिन वाला प्रेम तब गवास्कर से था और फिर वो हमारे जीजा जी भी तो थे :P ( कानपुर में उनकी ससुराल जो ठहरी)
१९९१ में, जब टीन एज का समय था। मुझे याद है कि तब ४ खिलाड़ी आये थे। सचिन, कांबली, कुंबले,सलिल अंकोला। सभी लड़कियों को अपना फेवरिट चुनना था। बड़ी समस्या थी कि रिकॉर्ड सचिन के अच्छे थे और शक्ल सलिल अंकोला की। आखिरकार दिमाग पर दिल की जीत और पसंदीदा क्रिकेटर सलिल अंकोला....!! बच्चे अब भी चिढ़ाते हैं " अच्छा किया सचिन को नही चुना, वर्ना उसका भी कैरियर चौपट हो जाता। जिसको चुना वो तो खाली एक्टिंग ही कर पाया, क्रिकेट तो खेल नही पाया।"
१९९२ का विश्वकप भी उतना याद नही। असल में तब तक याद घर वालों के उत्साह पर निर्भर करती थी। मगर अगले विश्व कप में कांबली का क्रिकेट फील्ड पर ही बैठ जाना और रोना हमेशा याद रहा। बुद्धि अब शकल की जगह मन देखने लगी थी। रोने का मतलब भावुक होना, क्या हुआ कि कांबली देखने में अच्छा नही लगता, है तो कितना सेंसिटिव। फेवरिट क्रिकेटर चेंज... कांबली हो गये हमारे फेवरिट क्रिकेटर। ग़ोया हमारी पसंद क्या चेंज हुई हम उसका भी क्रिकेट कैरियर ले बीते।
१९९९ में प्रारंभ में उम्मीद और फिर ना उम्मीद होना। तब तक फोन आ चुका था। और मित्रों सखियों से बात करने का अच्छा मुद्दा था क्रिकेट। सचिन को नापसंद करने के लिये कोई विकल्प नही था अब। मगर अनेकों विवादों के बावज़ूद सौरभ गांगुली मुझे कभी बुरे नही लगे। हमेशा लगा कि सिंसियर बंदा बहसों और दुर्भाग्य की भेंट चढ़ रहा है।
२००३ ने मुझे बहुत ज्यादा निराश नही किया चक्रव्यूह के सारे दरवाजे तोड़ के आ जाने के बाद हार और जीत के मध्य सिर्फ एक पतली सी रेखा होती है। उसे पार ना करने से हम दुर्भाग्यशाली भले कहे जायें मगर असफल नही। फिर भी सुपर एट में अच्छा प्रदर्शन ना कर पाने के कारण मीडिया में टीम की छीछालेदर और लोगों का क्रिकेटर्स के घरों के सामने प्रदर्शन, उनके घरों को, घर वालों को नुकसान पहुँचाना, भारतीयों के नकारात्मक रूप से भावुक होने का द्योतक लगा मुझे और लगा कि हमें अपना बौद्धिक स्तर थोड़ा और बढ़ाना होगा।
२००७ में सबके साथ मैं भी बहुत निराश थी।
इस बीच आया आईपीएल। जिसने क्रिकेट से मेरी रुचि पूरी तरह भंग कर दी। सौरव के खिलाफ सचिन जीते या हारें क्या फरक पड़ता है ? बस ऐसे जैसे सामने के मैदान में दो भतीजों की टीम, जो भी जीते खुश हो लेंगे और दूसरे को पुचकार देंगे। दक्षिण जीते या महाराष्ट्र हमारे लिये तो भारत ही है। विजू, पिंकू के देर रात तक मैच देखने में मुझे ब्लाग पढ़ना या कोई किताब पढ़ना ज्यादा भला लगता। जबर्दस्ती बैठा लेने पर मुझे प्रीती जिंटा और शिल्पा शेट्ठी के मेक अप के अलावा कुछ भी देखने लायक नही लगता।
ऐसे में अचानक मेरा क्रिकेट के प्रति फिर से जागरुक हो जाना, आफिस से जल्दी घर आ जाना, एक एक बॉल का हिसाब रखना। घर के दोनो प्राणियों के लिये आश्चर्यजनक था। अम्मा से जब बताया गया कि " अम्मा पता है, आस्ट्रेलिया ३ साल से विश्व कप ले जा रहा था। और भारत ने उसे ऐसा हराया है कि वो सेमी फाइनल में भी नही पहुँच पाया।" तो अम्मा ने कहा " मतलब धूल चटा दी।" और हमने एक स्वर में कहा "हाँ... जियो खिलाड़ी वाहे वाहे।
और फिर वो दिन खुशी के छक्के के साथ घर में एक दुखद खबर भी आयी मगर, वो यहाँ नही यहाँ तो ये गीत....!
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
ऐदे पैदे (दे घुमा के)
आरे पारे (दे दे घुमा के)
गुत्थीगुत्थम (दे घुमा के)
अड़चन खड़चन (दे दे घुमा के)
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
हम्म्म.... ऐदे पैदे (दे घुमा के)
आरे पारे (दे दे घुमा के)
गुत्थीगुत्थम (दे घुमा के)
अड़चन खड़चन (दे दे घुमा के)
जुटा हौसला, बदल फैसला,
बदले तू बिंदास काफिला
खेल जमा ले, कसम उठा ले,
बजा के चुटकी धूल चटा दे
दे घुमा के, घुमा के, घुमा के,घुमा के
दे घुमा के, घुमा के,
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
दे घुमा के, घुमा के, घुमा के,घुमा के
दे घुमा के, घुमा के,
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
आसमान में मार के डुबकी,
उड़ा दे जा सूरज की झपकी,
सर से चीर हवा का पर्दा,
बदले पटटे जम के गर्दा
मार के सुर्री सागर में तू,
छाँग बटोर लगा घर में,
फाड़ के छप्पर मस्ती मौज की,
बारिश होगी घर घर में
दे घुमा के, घुमा के, घुमा के,घुमा के
दे घुमा के, घुमा के,
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
दे घुमा के, घुमा के, घुमा के,घुमा के
दे घुमा के, घुमा के,
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
अटकी साँस सुई की नोक पर,
खेल बड़ा ही गहरा है,
मजा भी है रोमंचदार सा,
रंगा, रंगी ये चेहरा है,
इटटी शिट्टी, हो हल्ला सब,
हुल्लम धूम धड़ाका है,
खेल, खिलाड़ी, तड़क, भड़क सब,
जलता भड़का है
दे घुमा के, घुमा के, घुमा के,घुमा के
दे घुमा के, घुमा के,
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
दे घुमा के, घुमा के, घुमा के,घुमा के
दे घुमा के, घुमा के,
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
ऐदे पैदे (दे घुमा के)
आरे पारे (दे दे घुमा के)
गुत्थीगुत्थम (दे घुमा के)
अड़चन खड़चन (दे दे घुमा के)
जुटा हौसला, बदल फैसला,
बदले तू बिंदास काफिला
खेल जमा ले, कसम उठा ले,
बजा के चुटकी धूल चटा दे
दे घुमा के, घुमा के, घुमा के,घुमा के
दे घुमा के, घुमा के,
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
दे घुमा के, घुमा के, घुमा के,घुमा के
दे घुमा के, घुमा के,
जियो खिलाड़ी वाहे वाहे
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