दौड़ती,भागती,
हाथ से छूटती उम्र के व्यस्ततम पलों में,
अचानक आता है तुम्हारा ज़िक्र...!
और मैं हो जाती हूँ 20 साल की युवती।
मन में उठती है इच्छा,
"काश ! तुम फिर से आ जाते ज़िन्दगी में,
अपनी सारी दीवानगी के साथ "
और इस तपते कमरे के चारों ओर
लग जाती है यकबयक खस की टाट।
और उससे हो कर आने लगते हैं,
सुगन्धित ठंढे छीटे।
तमाम सफेद षडयन्त्रों के बीच,
तुम्हारी याद का काला साया...
आह !
कितनी स्वच्छ है ये मलिनता।
हाथ से छूटती उम्र के व्यस्ततम पलों में,
अचानक आता है तुम्हारा ज़िक्र...!
और मैं हो जाती हूँ 20 साल की युवती।
मन में उठती है इच्छा,
"काश ! तुम फिर से आ जाते ज़िन्दगी में,
अपनी सारी दीवानगी के साथ "
और इस तपते कमरे के चारों ओर
लग जाती है यकबयक खस की टाट।
और उससे हो कर आने लगते हैं,
सुगन्धित ठंढे छीटे।
तमाम सफेद षडयन्त्रों के बीच,
तुम्हारी याद का काला साया...
आह !
कितनी स्वच्छ है ये मलिनता।