लोग कहते हैं कि
अब मेरे लिखने में नही रही वो बात जो पहले थी।
कैसे बताऊँ उन्हे,
कि लिखना तो दर्द से होता है।
और मेरा दर्द तो बहुत पुराना हो गया है अब,
इतना ....
कि अब ये दर्द हो गया है साँसों की तरह सहज और अनायास।
चाहे जितनी भी असह्य पीड़ा हो,
आप कितनी देर तक चिल्ला सकते हैं उस पीड़ा से ?
कितनी तरह से कराह सकते हैं ?
अपनी पीड़ा व्यक्त करने के सारे के सारे तरीके तो कर चुकी हूँ इस्तेमाल।
कराहने के लिये प्रयुक्त हर शब्द तो चुकी हूँ उचार।
कितनी कितनी बार......!
कितनी कितनी तरह......!
और अब दर्द पहुँच गया है उस मुकाम पर,
जहाँ कुछ कहने से बेहतर चुप रहना लगता है !
या शायद कहूँ तो क्या ?
कुछ है भी तो नही नया......!!
सुनो....!!
अब मेरे लिखने में नही रही वो बात जो पहले थी।
कैसे बताऊँ उन्हे,
कि लिखना तो दर्द से होता है।
और मेरा दर्द तो बहुत पुराना हो गया है अब,
इतना ....
कि अब ये दर्द हो गया है साँसों की तरह सहज और अनायास।
चाहे जितनी भी असह्य पीड़ा हो,
आप कितनी देर तक चिल्ला सकते हैं उस पीड़ा से ?
कितनी तरह से कराह सकते हैं ?
अपनी पीड़ा व्यक्त करने के सारे के सारे तरीके तो कर चुकी हूँ इस्तेमाल।
कराहने के लिये प्रयुक्त हर शब्द तो चुकी हूँ उचार।
कितनी कितनी बार......!
कितनी कितनी तरह......!
और अब दर्द पहुँच गया है उस मुकाम पर,
जहाँ कुछ कहने से बेहतर चुप रहना लगता है !
या शायद कहूँ तो क्या ?
कुछ है भी तो नही नया......!!
सुनो....!!
अगर सुन रहे हो,
तो तुम्ही से कह रही हूँ
नया तो तब हो "गर तुम लौट आओ.....!!"
नया तो तब हो "गर तुम लौट आओ.....!!"
तमन्ना फिर मचल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ