
किसी ने दिया जवाब ....!!!!!!
नित्य समय की आग में जलना, नित्य सिद्ध सच्चा होना है। माँ ने दिया नाम जब कंचन, मुझको और खरा होना है...!
नेट आज बहुत स्लो होने के कारण गीत अटैच्ड नही हो पा रहा....! शब्दो में मेरी प्रार्थना..!
इतनी शक्ति हमें देना दाता.,
मन का विश्वास कमजोर ना।
हम चलें नेक रस्ते पे हम से
भूल कर भी कोई भूल हो ना।
हर तरफ ज़ुल्म है, बेबसी है,
सहमा सहमा सा हर आदमी है
पाप का बोझ बढ़ता ही जाये,
जाने कैसे ये धरती थमी है,
बोझ ममता से तू ये उठा ले,
तेरी रचना का ही अंत हो ना।
हम अंधेरे में हैं रोशनी में दे,
खो न दें खुद को ही दुश्मनी से,
हम सज़ा पायें अपने किये की,
मौत भी हो तो सह लें खुशी से,
कल जो गुज़रा है, फिर से न गुज़रे
आने वाला वो कल ऐसा हो ना।
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और फिर मो० रफी की आवाज में
jab jab bahar aaye
और साथ ही ये गीत भी सुनिये जो भईया के दूसरे परम प्रिय मित्र अनुराग भईया द्वारा गाया गया है
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चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला,
मेरी आवारगी ने मुझको आवारा बना डाला।
बड़ा दिलकश बड़ा रंगीन है ये शहर कहते हैं,
यहाँ पर हैं हजारों घर, घरों में लोग रहते हैं,
मुझे इस शहर ने गलियो का बंजारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला,
मेरी आवारगी ने मुझको आवारा बना डाला।
मै इस दुनिया को अक्सर देख कर हैरान होता हूँ,
न मुझसे बन सका छोटा सा घर दिन रात रोता हूँ,
खुदा या कैसे तूने ये जहाँ सारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला,
मेरी आवारगी ने मुझको आवारा बना डाला।
ना ले के जाओ, मेरे दोस्त का जनाजा है,
अभी तो गर्म है मिट्ती ये जिस्म ताज़ा है,
उलझ गई है कहीं साँस खोल दो इसकी,
लबों पे आई है जो बात पूरी करने दो,
अभी उमीद भी जिंदा है, ग़म भी ताज़ा है
ना ले के जाओ, मेरे दोस्त का जनाजा है,
अभी तो गर्म है मिट्ती ये जिस्म ताज़ा है,
जगाओ इसको गले लग के अलविदा तो कहूँ,
ये कैसी रुखसती, ये क्या सलीका है,
अभी तो जीने का हर एक ज़ख्म ताजा है
ना ले के जाओ, मेरे दोस्त का जनाजा है,
अभी तो गर्म है मिट्ती ये जिस्म ताज़ा है,
उपन्यास के सर्ग पात्रों के नाम पर हैं, बीच में तीन बार अंतराल आता है..४१६ पृष्ठ की इस पुस्तक के पत्र आपको निश्चय ही उस जमाने में ले के चले जाएंगे जब पत्रों की प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री सेहम करते थे और लिखने में अपना मन सजा देते थे।
उपन्यास के कुछ अन्य उद्धरण जो मुझे पसंद आये
उसके जन्मदिन पर जो पता नही कहाँ है, लेकिन जहाँ भी है मेरी बहुत सारी दुआएं आज भी उसी तरह वहाँ पहुँचती होंगी जैसे तब, जब टीका लगा के मैं सामने आशीर्वाद देती थी....! उसकी बहुत सारी भूलों को क्षमा करने की प्रार्थना तब भी करती थी और अब भी..जब ६ साल हो गए उसने शकल नही दिखाई..!
तुम जहाँ भी हो वहाँ पहुँचे मेरी शुभकामना..!
काश ईश्वर मान लें अबकी मेरी ये प्रार्थना...!
जन्म जन्मों तक तुम्हें विधि दे हृदय की शांति
अब ग्रसित ना करने पाये तुमको कोई भ्रांति!
पूर्व सा भावुक हृदय हो, प्रेम स्वजनो के लिये,
खुद पे हो विश्वास अद्भुत, साहसी मन में लिये।
किंतु अबकी मानना मानव धरम का मर्म तुम,
धैर्य धारण करके प्यारे, करना अपना कर्म तुम
तेरी भूलों को भुला दे वो पतित पावन प्रभू,
दीनबंधु ये है मेरी दीन सी इक आरजू।
वो जहाँ भी है, अकेला है उसे तुम देखना,
बद्दुआओं से बचा लेना, ये है मेरी दुआ।
माँ के आँखों की नमी तुमसे सही जाती नही,
कैसे सहते हो मेरे आँखों की ये बहती नदी
आसुओं के अर्घ्य मेरे, दिल की मेरी प्रार्थना,
शेष अब कुछ भी नही है, शेष है ये चाहना,
तुम जहाँ भी हो वहाँ पहुँचे मेरी शुभकामना..!
काश ईश्वर मान लें अबकी मेरी ये प्रार्थना....!