Friday, November 13, 2009

कल फिर.....


अरे नही भाई....! अभी शादी निपटी थोड़े ना है बिटिया की। वो तो २७ नवंबर को है। इतने पहले से छुट्टी ले ली है कि आप लोगों को पता लग सके कि हम बिटिया की शादी ऐसे ही नही कर ले रहे, हमें भी टेशन है। लड़की की शादी कोई आसान बात थोड़े ना है। हाँ ऽऽऽऽऽ नही तो। अफिलहाल तो जल्दी से आई हूँ क्योंकि तलब लगी थी ब्लॉग की। लीजिये झट से सुनिये हमारी टीन एज पार करते ही लिखी गई किसी जमाने की ये कविता-

कल फिर करना इंतज़ार है उस मनचाहे दिलवर का,
जिसकी आँखें ढूँढ़ ना पाई, रस्ता कभी मेरे घर का।

कल फिर सुबह सुबह ही धो आएंगे अपने दरवाजे,
कल फिर रख आएंगे कलशे दरवाजे पर भरवा के,
कल फिर महक उठेगा आँगन फूलों से मेरे घर का

कल फिर हर आहट पे लगेगा, लो वो आया, अब आया,
कल फिर यूँ ही ये शक होगा द्वार किसी ने खटकाया,
कल फिर शायद खुला रहेगा दरवाजा मेरे दर का।

कल फिर कुछ चीजें ढूँढ़ेगे अपना दिल बहलाने की,
कल फिर होंगी असफल कोशिश अपना समय बिताने की,
कल फिर पत्थर दिल रोकेगा रस्ता नैना निर्झर का

बीता जाता कल्प है तेरा कल क्यों कर ना आता है,
कल के इंतज़ार में मेरा पल पल कल्प1 सा जाता है
कलप कलप के बीता मेरा कल्प कल्प इक इक पल का

(१७..०८.१९९६, दिन शनिवार, रात्रि ९.३० बजे (एक फटी हुई डायरी के अनुसार)
1 शास्त्रों के अनुसार चारों युग को मिला कर बनी अवधि को कल्प कहते हैं, है जिसके बाद प्रलय आती है।
(दिसंबर -२०१२ में आने वाली है ना :)
)



चलिये फिर मिलूँगी शायद बिटिया की शादी के ही दिन आप लोग आशीष देने अवश्य आइयेगा............