Monday, December 24, 2007

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,



२१ दिसंबर, २००७ को तेजी बच्चन ने दुनिया छोड़ दी..... तेजी बच्चन...वो तेजी बच्चन जो मुझे इसलिये नही पसंद थी क्योंकि वो महानायक अमिताभ की माँ थीं बल्कि इसलिये पसंद थी क्योंकि उन्होने न सिर्फ भारत को बल्कि विश्व को अमिताभ सा सपूत दिया था..!

वो तेजी बच्चन जो मुझे इसलिये नही पसंद थी क्योंकि वो मधुशाला के कवि डॉ० हरिवंशराय बच्चन की पत्नी थी, बल्कि इसलिये पसंद थीं क्योंकि मधुशाला के कवि की क़लम के निराश कवि ने जब उनसे पूँछा कि "क्या करूँ संवेदना ले कर तुम्हारी क्या करूँ मैं?" तो द्रवित होकर उन्होने उसे गले लगा लिया और जीवन साथी बन कर ऐसी प्रेरणा दी कि आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि पाकर उन्होने दशद्वार से सोपान तक का सफल सफर तय किया।

डॉक्टरेट की उपाधि पाकर लौटे बच्चन जी को जब पता चला कि तेजी ने क्या क्या न बता कर उनका शोध पूर्ण कराया तो वे अभिभूत हो गये ...और माना कि अगर उन्हे ये सब पता चल जाता तो वे शोध अधूरा छोड़ कर लौट आठे होते! यहाँ सरकार की मदद बंद हो गई थी और तेजी ने अपने जेवर बेंच कर उनकी फीस का इंतजाम किया था और कहा था कि

एक जुआँ के दाँव पर हम सब दीन्हि लगाय
दाँव बचे, इज्जत रहे जो राम देय जितवाय।


कितनी बार बच्चन जी ने कहा कि मेरे अंदर की स्त्री तेजी के पुरुषत्व से आकर्षित रहती है भारत कोकिला से लेकर इंदिरा गाँधी तक को तेजी ने ही मोह रखा था.....!
ऐसी पत्नी...ऐसी माँ...ऐसी स्त्री को मेरी श्रद्धांजली उन्ही के नायक के शब्दों में.....!


इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!
यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,
बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,
तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,
उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,उस पार न जाने क्या होगा!

जग में रस की नदियाँ बहती, रसना दो बूंदें पाती है,
जीवन की झिलमिलसी झाँकी नयनों के आगे आती है,
स्वरतालमयी वीणा बजती, मिलती है बस झंकार मुझे,
मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है;
ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये, ये साधन भी छिन जाएँगे;
तब मानव की चेतनता का आधार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

प्याला है पर पी पाएँगे, है ज्ञात नहीं इतना हमको,
इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थबना कितना हमको,
कहने वाले, पर कहते है, हम कर्मों में स्वाधीन सदा,
करने वालों की परवशताहै ज्ञात किसे, जितनी हमको?
कह तो सकते हैं, कहकर ही कुछ दिल हलका कर लेते हैं,
उस पार अभागे मानव का अधिकार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

कुछ भी न किया था जब उसका, उसने पथ में काँटे बोये,
वे भार दिए धर कंधों पर, जो रो-रोकर हमने ढोए;
महलों के सपनों के भीतर जर्जर खँडहर का सत्य भरा,
उर में ऐसी हलचल भर दी, दो रात न हम सुख से सोए;
अब तो हम अपने जीवन भर उस क्रूर कठिन को कोस चुके;
उस पार नियति का मानव से व्यवहार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

संसृति के जीवन में, सुभगे ऐसी भी घड़ियाँ आएँगी,
जब दिनकर की तमहर किरणे तम के अन्दर छिप जाएँगी,
जब निज प्रियतम का शव, रजनी तम की चादर से ढक देगी,
तब रवि-शशि-पोषित यह पृथ्वी कितने दिन खैर मनाएगी!
जब इस लंबे-चौड़े जग का अस्तित्व न रहने पाएगा,
तब हम दोनो का नन्हा-सा संसार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

दृग देख जहाँ तक पाते हैं, तम का सागर लहराता है,
फिर भी उस पार खड़ा कोई हम सब को खींच बुलाता है;
मैं आज चला तुम आओगी कल, परसों सब संगीसाथी,
दुनिया रोती-धोती रहती, जिसको जाना है, जाता है;
मेरा तो होता मन डगडग, तट पर ही के हलकोरों से!
जब मैं एकाकी पहुँचूँगा मँझधार, न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

Friday, December 7, 2007

आज हाथ थाम लो, एक हाथ की कमी खली।

लीजिये सुनिये वो गीत जिसने आज सुबह से ही मुझे अपनी गिरफ्त में ले रखा है।
गीत है कल से अखिल भारतीय स्तर पर प्रदर्शित होने वाली सुधीर मिश्रा द्वारा निर्देशित फिल्म खोया खोया चाँद। अब फिल्म कैसी होगी ये तो कल ही पता चलेगा, लेकिन गीत ने मुझको बाँध लिया है।

चाँद से आगे जाने की ख्वाहिश और सितारों के फेर में पीछे रह जाने का ग़म.... एक आम सी बात लेकिन खुद के लिये खास महत्व रखती है और हर एसे पल में ज़रूरत महसूस होती है उस शख्स की जिससे हम कह सकें कि

आज हाथ थाम लो, एक हाथ की कमी खली।





हम सब जो बाहर से बहुत बहादुर दिखते हैं कहीं न कहीं बहुत कमज़ोर होते हैं, लेकिन बहुत ताकत मिल जाती है अगर अपने अंदर अहसास हो कि जब हम गिरने लगेंगे तो एक हाथ है जो हमें सम्हाल लेगा। और बस यही अहसास है जो हमें दुःखी होने पर सबसे बड़ा सहारा देता है। फिर वो हाथ चाहे जिस रूप में हो।
खैर फिलहाल तो सुनिये मेरे साथ ये गीत

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आज शब जो चाँद ने है है रूठने की ठान ली,
गर्दिशों में है सितारे बात हमने मान ली!

अंधेरी स्याह जिंदगी को सूझती नही गली,
कि आज हाथ थाम लो इक हाथ की कमी खली

क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
क्यूँ अपने अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल

ये माजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल

क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,


जिंदगी सवालों के जवाब ढूँढ़ने चली,
जवाब में सवालों की इक लंबी सी लड़ी मिली।
सवाल ही सवाल हैं सूझती नही गली,
कि आज हाथ थाम लो इक हाथ की कमी खली!

जी में आता है, मुर्दा सितारे नोच लूँ
इधर भी नोच लूँ, उधर भी नोच लूँ !

एक दो का ज़िक्र क्या मैं सारे नोच लूँ !

इधर भी नोच लूँ, उधर भी नोच लूँ !
सितारे नोच लूँ मैं सारे नोच लूँ


क्यूँ तू आज इतना वहशी है, मिज़ाज में मज़ाज़ है ऐ गम ए दिल
क्यूँ अपने अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल

ये माजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल

दिल को समझाना कह दो क्या आसान है,
दिल तो फितरत से सुन लो न बेइमान है
ये खुश नही है जो मिला, बस माँगता ही है चला

जानता है हर लगी का, दर्द ही है बस इक सिला।

जब कभी ये दिल लगा, दर्द ही हमें मिला,
दिल की हर लगी का सुन लो दर्द ही है इक सिला !

क्यूँ नये नये से दर्द की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
क्यूँ अपने अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल

ये माजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल

क्यूँ खोये कोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
कयूँ अपने अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल

ये माजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल

Monday, December 3, 2007

तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो

एक गीत जो बचपन में ही जब से सुना तब से बहुत सहारा देता है और आज के मेरे जीवन का शायद सबसे बड़ा दर्शन है, मुझे निराशा के क्षणों से बहुत जल्दी उबारता है ये गीत। आप के साथ साथ बाँटना चाहूँगी, ये गीत मैने सिर्फ गुनगुनाया नही है, बल्कि जिया है।

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