Tuesday, June 1, 2010

पाज़ के बटन

उन्होने मुझसे कहा था " दो शेरों की बहन किसी चीज की चिंता नही करती"

उस सड़क छाप बैद्य ने जब जाने कौन कौन सी दवा बता कर कहा था कि ये ६ महीने में दौड़ने लगेगी तो मैने रो कर विरोध किया था कि "मुझे तमाशा मत बनाओ, ये कुछ नही कर पायेगा।" और उन्होने समझा के कहा था। " बच्ची पता तो हमें भी है कि ये कुछ नही कर पायेगा पर बस इस लिये खा लो कि रात को जब हम सोये तो ये सोच कर नींद ना उड़े कि शायद वो बैद्य सही कह रहा हो...."

उन फक़ीर से जब उन्होने कहा था " बाबाजी मैं बादशाह-ए-हिंदुस्तान हो जाऊँ मगर जैसे मोर अपने पैर की तरफ देख कर खुश नही रह सकता उसी तरह जब तक ये खुश नही रहती मैं खुश नही रह सकता। बाबा जी इसे इज्जत की रोटी ......" और आँसुओं ने उनका वाक्य पूरा नही होने दिया था।

उस दिन मैं बहुत रोई थी। मुझे लगा कि मेरे वो भईया जो ४०० लोगो के हुज़ूम के बीच दहाड़ के कहते हैं कि "मै निहत्था खड़ा हूँ आपके सामने जिसे जो करना हो करे। मैं भाग नही रहा.....!! मेरी माँ ने शेर पैदा किया है।" जिसके ऊपर गोली चल जाती है और वो शाम को मेरे रोने पर कहते है " ये देखो बस छिला है।" वो मेरे कारण यूँ किसी के सामने ऐसे बिलख रहे हैं। मैं शायद लोगो को रुला ही सकती हूँ।

और एक साल के अंदर ही जब मैने उन्हे बताया कि मेरा सेलेक्शन हो गया है तो फिर वैसे ही आँसू बह चले उनकी आँख से ...... बार बार वो कहते जा रहे थे " बेटा हम तुम्हे बहुत चाहते हैं।" और मैं बार बार जवाब दे रही थी " हम जानते हैं भईया "

तब जब सबको लगा कि ये नही जा पायेगी इतनी दूर अकेले। तब वो साथ खड़े हुए और कहा मैं तुम्हे ले के चलूँगा।

आप ने ही तो बताय था मुझे कितनी ही गज़लो के मानी.... सुनाये थे कितने सूफी गीत.....

सबके साजन साँझ भये लौटे घर की ओर
लेकिन तुम्हरी आज तलक साँझ भई ना भोर
मोरे रो रो के बहि गये नयनवा
बलम हाय॥तुम तो होई गये गुलरी के फुलवा.....


आज एक माह हो गया
























हम कैसे
करे विश्वास कि हाँ तुम चले गये

नोटः अनुराग जी कि पोस्ट को जाने कितनी बार देखा और खुद पॉज़ हुई ....... और बार बार सुना हिमांशु जी का ये गीत.... मेरे सामने जो था उसमे राम और लखन की भुमिका बदल गई थी। लखन की गोद मे राम और असहाय लखन का कथन हाय दईया करूँ का उपाय विरन तन राखे बदे