Wednesday, April 7, 2010

जेठ और बैसाख की ये दोपहर


जेठ और बैसाख की ये दोपहर,
तुमको अपने साथ अब भी खींच लाती है।

सामने अंबर तले धरती जले,
और हम तुम शांत थे महुआ तले।
प्रेम की शीतल छवि वह याद कर
ये धरा अब भी स्वयं का जी जलाती है।

लू हुई थी साँझ की मलयज पवन,
ताप यूँ पावन कि ज्यों दहका हवन,
पांव जलते, ले प्रतीक्षा की घड़ी,
घास की नर्मी का मन में सुख जगाती है।

झील के काई लगे उस कूल पे,
झाड़ का वो इक अजूबा फूल ले,
मेरी चोटी में सजाने की ललक,
आज भी मुझमें अजब सिहरन जगाती है।

तेरा आ पाना नही होता था जब,
दोपहर होती थी वो कितनी गजब,
तब जला करती थी खस की टांटियां,
अब भी वे यादें पसीना आ बहाती है।

श्रद्धेय श्री राकेश खंडेलवाल जी के संशोधन एवं आशीष के साथ।

Tuesday, April 6, 2010

ये प्यार नहीं है।


किसी खूबसूरत परों वाली चिड़िया को
चुगाओ हीरे के दाने,
पिलाओ झरनों का पानी,
उसके लिये बनाओ,
सोने का एक विशाल महल,
जड़ो,
शीशे के दरवाजे खड़कियाँ
सजाओ उसमें,
जन्नत के फूल, कलियाँ, हरियाली।

और उसके उड़ने के लिये आसमान
तुम करो निर्धारित


ये प्यार नहीं है।

Thursday, April 1, 2010

शहीद को श्रद्धांजली में ना पसंद क्या ?

अभी दो दिन पहले मेजर गौतम राजरिशी ने एक पोस्ट लगाई, जो कि एक मेजर की शहादत पर थी। एक साथी फौजी का अचानक जाने से शायर फौजी का दुखी होना लाज़मी था। ब्लॉग जगत के टिप्पणी व्यवहार से हम सभी परिचित हैं। इसी के चलते मेजर राजरिशी ने इस संवेदनशील पोस्ट पर टिप्पणी का विकल्प नही रखा। जिसका हर संवेदनशील व्यक्ति ने स्वागत भी किया। मगर आज जब यूँ ही ब्लॉगवाणी की सैर कर रही थी तो पाया कि इस पोस्ट को १० लोगो ने पसंद किया और दो लोगो ने नापसंद भी।





अपनी इस पोस्ट से मैं पूँछना चाहती हूँ उन किसी भी अतिसक्रिय महोदय/महोदया से कि इस साधारण संवेदनशीलता में ना पसंद सा क्या लगा ?


साथी मेजर की शहादत पर भावुक होना ?
या
टिप्पणी का विकल्प ना रखना ?


या
किसी "nice" या "वाह, अच्छी रचना" जैसे शब्दों से बचने का प्रयास करना ?



विरोध किसका



मेजर राजरिशी का
या
मेजर जोगेंदर की शहादत का


व्यथित हूँ। आक्रोशित हूँ।

अपने स्वार्थ में हम क़लम के पुजारी कितना गिर सकते हैं ? देश के लिये हुई शहादत को ब्लॉग के व्यक्तिगत विरोध में शामिल करना ?? आह॥! कितना घृणित और ओछा है हमारा व्यवहार।


पोस्ट लिखने का ध्येय गौतम राजरिशी के पक्ष विपक्ष में बैठना नही। मेजर जोगेंद्र शेखावत जैसे शहीदों से क्षमा माँगना है। वो ब्लॉगर नही थे। वो सैनिक थे। हमारी पसंद ना पसंद की राजनीति से ऊपर था उनका लक्ष्य....!



गौतम राजरिशी की गज़ल को जितना मन चाहे नापसंद कीजिये। देश के लिये शहीद किसी फौजी को श्रद्धांजली ना दे कर उस लेख पर नापसंद का चटका लगा कर आपने अपमानित किया है। लज्जित किया है।

शर्मसार हूँ कि मैं इस ब्लॉगजगत का हिस्सा हूँ।