Tuesday, September 22, 2009

मिलना अजीज़ों का

पिछले दिनो मौका मिला दिल्ली जाने का जिस सुबह ९ बजे पहुँची और रात नौ बजे चल दी। मिलना तो बहुत लोगो से था मगर मिल पाई कुछ ही लोगो से। मगर हाँ जिन से मिली उनका मिलना जीवन भर ना भुला पाऊँगी।

वरुण की तबीयत के चलते मीनाक्षी दीदी से अक्सर मिलने की बात हुआ करती ही थी। कई बार मन हुआ कि बस शनिवार रविवार का कर्यक्रम बना कर पहुँच जाया जाये। मीनू दी माँ का असल रूप हैं। मैं लखनऊ से कानपुर शायद उतनी जल्दी नही पहुँच पाती होऊँगी, जितनी जल्दी वो दुबई से दिल्ली पहुँच जाती हैं। कई बार दीदी का भी प्रोग्राम कानपुर तक आने का बन कर रद्द हुआ। ऐसे में जब ये खबर लगी की हमें दिल्ली जाना है तो उन्हे खबर देना अपना पहला कर्तव्य था। यूँ मिलने की उम्मीदे शुरू से अंत तक नही ही थी। मगर लोकेशन मैं देती रह रही थी उन्हें।

दूसरा व्यक्ति था अर्श.. जिससे रोज चैट पर एक बार बुज़ हो ही जाती है और साथ तो उसे भी बतान ही था।

और तीसरा था राकेश... जिससे मिलना नही था.. बस मिल गई..... अपनी किस्मत और उसकी पता नही किस चीज़ से

तो मेरी ये यात्रा शुरु हुई ३ सितंबर की रात से। अच्छी बात ये है कि हम खुद चाहे कुछ कर पाये या नही मगर हमारे ५-६ साल ही बाद पैदा हुए बाल बच्चे बहुत कुछ कर गये है। तो अब हमें करना बस इतना होता है कि हम अपने मातृत्व की दुहाई दे कर उन्हे कहीं भी बुला लेते हैं और ऐश करते हैं। तो जाते समय इसी प्रकार का मेरा सुपुत्र अमित अपनी आइटन लेकर पहुँच गया था और दिल्ली स्टेशन पर मेरा दूसरा सुपुत्र (भांजा) एस्टिलो ले कर खड़ा पाया गया। फिर उसने अपना पुत्र धर्म निभाते हुए मुझे मेरी कज़िन (दीदी)के घर सरोजिनी नगर छोड़ा,कार और एक दिन के लिये एक्सप्लोर किये गये ड्राइवर को मेरी सेवा में छोड़ा और खुद बस पकड़ कर कैसे गया ये उसकी अपनी समस्या रही।

यहाँ से मैं विजू (विजित)को तो अपने साथ ले ही गई थी, जो मेरा छोटा भांजा है और मेरे साथ ही रहता है वर्तमान में। स्टेशन से सरोजिनी नगर के बीच मैं हर फोन पर अपना डायलॉग दोहराती रही " मुझे इतने बजे यहाँ, इतने बजे यहाँ और इतने बजे यहाँ पहुँचना है तो मुझे जहाँ कैच कर सको कर लेना" जिस का अब तक मजाक उड़ाया जाता है घर में लड़कों द्वारा।

मैने लखनऊ से राकेश को अपने प्रोग्राम के विषय मे बताया था, तो उसने बेचारगी के साथ कहा कि "दीदी जाना तो दिल्ली मुझे भी है, मगर आपके दिल्ली से लोट आने के बाद। मगर जब मैने जाने के दो दिन पहले बात की तो पता चला कि उसका कार्यक्रम अचानक बदल गया और वो दिल्ली पहुँच गया है।

तो मेरा काम मालवीय नगर के आस पास कहीं था। जो कि उम्मीद से अधिक जल्दी निपट गया। मीनू दीदी के हाथ से तो मैं छूट ही चुकी थी। मुझे लगा कि अब तो मुझे वो कैच कर नही पाएंगी। मैने अर्श को फोन किया कि हम यहाँ से अक्षरधाम मंदिर जा रहे हैं तो तुम मुझे वहीं पर कैच कर लो। वो बेचारा तुरंत अक्षरधाम के मंदिर की तरफ चल दिया। इधर मैं जब लगभग २० मिनट की यात्रा कर चुकी तो मुझे लगा कि ये तो वही गलियाँ हैं जहाँ से हम अभी गुज़रे थे। मैने ड्राइवर भाई से पूछा तो उसने बताया कि सही समझा आप सरोजिनी नगर के पास हैं। यह पूछने पर कि अभी कितनी देर लगेगी अक्षरधाम मंदिर पहुँचने में उसने बताया ४५ मिनट..... हमे लगा कि इतना भागने दौड़ने से अच्छा है कि घर चल कर चाय पी जाये और थोड़ी पीठ सीधी की जाये। तो तुरंत हमने अक्षरधाम की ओर अग्रसर अर्श को फोन किया कि हमने अपना इरादा बदल दिया है और वो अपना रास्ता बदल दे। उसने तुरंत एक आज्ञाकारी अनुज की तरह बिना शिकायत अपना रास्ता बदल दिया।

मेरे दीदी के घर पहुँचने के मुश्किल से १० मिनट बाद ही अर्श ने ढेर सारे गुलाबों से सजे बुके के साथ प्रवेश
किया और जुमला फेंका " Lots of rose for a for a rose" हमने उसे समझाया कि भईया हम लड़कियों का बड़ा प्राबलम ये है कि हम लोग जानते हैं कि अगला झूठ बोल रहा है और फिर भी खुश हो जाते हैं। तो उसने तुरंत मेरी गलतफहमी दूर करते हुए कहा " आप इसे खूबसूरती से क्यों ले रहीं हैं ? मेरा मतलब है कि जो काँटो मे भी खिला रहे और अपनी खुशबू बिखेरता रहे" तो हम जितना चढ़े थे उससे दोगुना नीचे उतर आये।


खैर अर्श के आने के साथ ही साथ मेरा विजू जो थोड़ी देर को नीचे चल गया था वो भी आया और आते ही अपनी नान स्टाप कॉमेडी शुरु कर दी। अर्श ने आश्चर्य से मुझे देखते हुए कहा " आप से भी ज्यादा कोई बोल सकता है क्या.....?" मैने उससे कहा "भईया जिस घर मे भगवान ने मुझे जन्म दिया है वहाँ खेती होती है बातों की।"
अभी वो इस विषय पर सोच ही रहा था कि मेरा दिल्ली निवासी एमबीए रत भतीजा आशीष भी पहुँच गया वहाँ और उस बालक की खास बात ये है कि जिस खेती की बात मैं कर रही थी वो उस फसल का सर्वश्रेष्ठ खेत है। अर्श फिर आश्चर्य में आ गया "आप दोनो से भी ज्यादा कोई बोलता है क्या...?????" अब कौन समझाये उस शख्स को हम लोग खानदानी मितभाषी लोग हैं।

चलिये मैं अर्श के साथ कम बोलने की कोशिश कर ही रही थी कि तभी मीनू दी का फोन आ गया...! "तुम तो बाउंड्री लाइन पार कर गई, अब तुम्हे कहाँ कैच किया जाये ?" हमने कहा "हम दर्शक दीर्घा मे है, जो चाहे कैच कर सकता है अब.. अब हम उड़ नही रहे।"

बस थोड़ी ही देर में मीनू दीदी भी एक उधार के ड्राइवर के साथ पधार गईं। ढेर सारे मातृत्व की धनी मीनू दी भी मेरी मितभाषिता की शिकायत करती रहीं...! कह रहीं थीं कि कभी कभी तो हम फोन लिये बैठे रहते हैं कंचन बोलने का कोई मौका ही नही देती। अब मतलब कि हम कुछ बोलेगे तभी ना अगला कुछ जवाब देगा।हम कुछ बोलते ही नही हैं किसी से अपनी मितभाषिता के चलते।


खैर मिलते मिलाते वक़्त कैसे फुर्र हुआ कुछ पता ही नही चला। मीनू दीदी सीमित समय के लिये आई थीं चली गईं और मैं स्टेशन जाने को तैयार होने लगी।

उधर राकेश का फोन आ गया था कि वो गुड़गाँव से दिल्ली स्टेशन के लिये कूच कर चुका है। और उधर हम जब स्टेशन को निकलने लगे तो पता चला कि ट्रेन पुरानी दिल्ली आयेगी। राकेश बस नई दिल्ली पहुँचा ही था कि हमने फोन पर उसे निदेश दिया पुरानी दिल्ली पहुँचने का। बेचारा करता ही क्या ? तुरंत ड्राइवर को इन्स्ट्रक्शन दिया पुरानी दिल्ली पहुँचने का।

दिल्ली स्टेशन हम दोनो के लिये नया ही था। हम दोनो कम से कम १५ मिनट तो एक ही जगह पर एक सरे को ढूँढ़ते रहे। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मेरी ट्रेन का समय हो गया था और वो नज़र ही नही आ रहा था। मैने झुँझला कर कहा "तुम लौट जाओ, मेरी तुमसे मुलाकात लिखी ही नही है।" तो ज़ाहिर सी बात है कि किसी को भी बहुत खराब लगेगा ये सुनकर। राकेश ने कहा कि "मैं आपका तो कुछ नही कर सकता था, मगर मेरा मन हुआ कि मैं इस फोन को उठा के फेंक दूं जहाँ से ये सुनने को मिल रहा है।"और अँत में अर्श ने ही राकेश को पहचाना और आखिर दो मिनट के लिये हम स्टेशन पर मिले।

मुझे वहाँ से सिद्धार्थनगर अपनी बड़ी दीदी के घर निकलना था। मेरे साथ मेरा भांजा विपुल भी आ रहा था। वो आफिस से सीधे स्टेशन पहुँच चुका था। मुझे लेकर दोनो भांजे (विपुल और विजू)प्लेटफॉर्म पर पहुँचे दोनो अनुज साथ थे...! हम ट्रेन छूटने के अंतिम समय पर ही पहुँचे थे राकेश के लिये मैं समझ ही नही पा रही थी कि मिली हूँ या बिछड़ रही हूँ...!

अभी सब बैठे ही थे मैने विपुल से अपने दोनो अनुजों का परिचय कराया ही था कि ट्रेन हिल पड़ी...! और दोनो अनुजों को उतरना पड़ गया.. ! शहीद एक्सप्रेस की हालत भी शहीदों की समाधि जैसी ही है कुछ। अँधेरा बहुत था वहाँ। जाते जाते राकैश जो कह गया वो ठीक से तो उसे भी नही याद है...!तरंत जो मन में आया वो..! मगर था कुछ इस तरह...



ये माना कि उस तरफ अँधेरा बहुत है,
मगर जितनी हमे चाहिये थी,
रोशनी इस तरफ मिलती रही
और दोनो चले गये..! मैं मन से दोनो को आशीष देती रही बस...!

और ये प्रिय और प्यारे जूनियर्स से मिलने का दौर अभी शायद खतम नही होना था।

जाने के बहुत पहले एक दिन अर्श ने बताया था कि अंकित आपके शहर में पहुँचे है, मिले कि नही?? मुझे लगा कि वो आ कर चला गया होगा...! मगर फिर जब उसके ब्लॉग पर गई तो पता चला कि वो तो लंबे समय के लिये आया है और बहुत से लोगो ने मेरे लिये उनसे सलाम भी भेज रखा था..! तो मैने तुरंत गुरुकुल की सीनियर होने की धौंस देते हूए कहा कि थोड़ा डरा करो..सीनियर हैं तुम से रैगिंग वैगिंग ले लेगे तो लेने के देने पड़ जायेंगे बिना मतलब..! घर आने पर उसने एक बार दबी ज़ुबान से कहना चाहा कि " गुरु जी से शिकायत हो जायेगी..!" तो हमने तुरंत हड़का लिया...!"ये बातें गुरु जी तक नही पहुँचनी चाहिये..! वर्ना.....!!!!

खैर दिल्ली से आने के बाद अंकित से मिलने की तारीख तय हुई और मैने उसे अपनी दीदी के घर बुला लिया चूँकि उस दिन अचानक हमे दीदी ने अपने घर बुला लिया था।

अंकित से मिलने के पहले उससे कोई भी कम्युनिकेशन नही था। मगर मिलने के बाद लगा ही नही..! बहुत अच्छा बच्चा है..!संस्कारी.. जैसा कि मैने उसके ब्लॉग पर भी लिखा " ऐसा बच्चा जिसके अंदर पहाड़ी भोलापन अब भी बरकरार है।

अंकित के साथ घर में अकित की शेर ओ शायरी का भी दौर चला जो कि काफी रोचक था..!


लीजिये सब से पहले बालक की खिंचाई अंदाज़ देखिये



और फिर ये शेर



अजीब हालातों से गुज़र रहा हूँ,
अपनी ही बातों से मुकर रहा हूँ,
मेरी बातें मेरी बदमिजाज़ी नही
खाली बरतन हूँ अभी भर रहा हूँ

और कैट की तैयारी कर रहे विजू और आईआईटी की तैयारी कर रही सौम्या के लिये उसने कहा




जो बीता है भुला उसको, जो आगे है सुनहरा है,
नया जज़्बा नसों मे भर, नया आया सवेरा है,
भरोसा ही है इंसाँ का, खुदा को खींच लाया जो,
कहीं वो दूध पीता है,कहीं पत्थर पे उभरा है।

और फिर रिश्तों पर शेर के ठहाकों के बाद सुनाये गये दीदी को समर्पित ये शेर




मैं ग़लत था ये बात उसे काट रही थी,
इसलिये मेरी माँ मुझको डाँट रही थी

और ये जो विजू की ज़ुबाँ पर आज भी है


चाँद खिलौना तकते थे,
जब यारों हम बच्चे थे.
रिश्तों मे एक बंदिश है,
हम आवारा अच्छे थे...!

ऐसे ही बहुत से शेर ....रात के ११.०० बज चुके थे मुझे अपने घर निकलना था और अंकित को अपने होटल..! मैं और विजू उसे आटो तक छोड़ने गये...! जाते समय अंकित का पैर छूना ...बहुत सारा स्नेह उमड़ पड़ा और जाते जाते एक रिश्ता बना उससे...!

अनोखे लोग अनोखा अंदाज़..! राकेश ने जो विदा दी आपने सुनी..! अर्श ने जो कहा वो यूँ था

मैं खुश हूँ के तुने मुझे हाशिये पे रक्खा है
कम-से-कम वो जगह तो पूरी की पूरी मेरी है ...

और अंकित ने आटो मे ही लिखा

झूठे रिश्ते सच्चे लोग,
मिल जाते हैं अच्छे लोग
रिश्ते शायद तब हो ना हों,
जब समझेंगे रिश्ते लोग

दुआएं...दुआएं..दुआएं..जाने कितनी बार दुआएं निकल रही हैं इन प्यारे प्यारे अनुजों के लिये...सो आप भी शामिल हो जाइये मेरी दआ में

Friday, September 11, 2009

अपील एक माँ की


ज़रा सोचिये....! एक बार अपनी जिंदगी पर नज़र डालिये...! आपकी जिंदगी में भी कोई ना कोई तो ऐसा होगा ही ना जो हर मंदिर में जा कर आपके लिये प्रार्थना करता होगा, हर दरगाह पर आपके लिये धागा बाँधता होगा, हर मज़ार पर आपकी लंबी उम्र के लिये चराग जलाता होगा। दुनिया के सारे व्रत सारे टोटके इस उम्मीद पर कर रखे होंगे कि एक दिन सारी तपस्या रंग लायेगी, हर दुआ काम आयेगी और आप उन रास्तो को छोड़ कर लौट आयेंगे उस जिंदगी की तरफ जहाँ हर पल एक खटका सा नही लगा होगा....!

फिर उस रिश्ते का चाहे जो नाम हो... वो आपकी माँ हो, पिता हों, भाई हो, बहन हो, पत्नी हो, दोस्त हो या कोई भी पवित्र सा प्यारा सा रिश्ता....! कोई ना कोई तो होगा ही ना आपके जीवन में भी, जो चाहता होगा कि आप चलें तो आपके सिर पर कड़ी धूप भी न हो...! और आप..?? आप भी तो चाहते होंगे कि उसे धूप भी छुए तो शीतल बन कर। आप भी तो चाहे दुनिया के लिये कितने ही कठोर क्यों न हों, एक शख़्स है जिसका नाम आते ही कुछ भीग जाता है आपके अंदर। ज़रा गंभीरता से उसके बारे में सोच कर देखिये ना। आप जानते हैं....?? जब आप जेल में होते हैं ना, तो वो अपना बिस्तर ज़मीन पर डाल लेता है, क्योंकि वो सुख उसके लिये किसी काम का नही, जो आपको ना मिल रहा हो। वो जानता है, कि आप बहुत बुरे आदमी हैं, लेकिन फिर भी आप उसके लिये दुनिया में सबसे खास शख़्स हैं। वो आपकी हर हक़ीकत जानता है, लेकिन फिर भी वो आपके हर झूठे वादे को हक़ीकत ही मानता है। वो जानता है कि आपकी किसी भी बात का विश्वास नही करना चाहिये, लेकिन वो चाहता आपकी हर बात पर विश्वास करना। वो जानता है कि वो भ्रमों मे जी रहा है, लेकिन उसने मान लिया है कि उसका ये भ्रम कभी नही टूटेगा.....

आप जानते हैं ? कि जब जब आप अपना वादा तोड़ते हैं, उसका दिल तिड़ते हैं, उसका विश्वास तोड़ते हैं, तो वो भी अपने आप में टूट जाता है,लेकिन फिर से वो जुड़ने की कोशिश करता है हर बार..! नई उम्मीद जोड़ कर, आपके वादों से फिर से जुड़ कर, अपने टूटे विश्वास जोड़ कर, अपना दिल संभालता है, लेकिन उस दिन, जिस दिन उसका वो भरम टूटता है,जिसके लिये उसने मान रखा है कि कभी नही टूटेगा, उस दिन वो बिखर जाता है...बिलकुल बिखर जाता है। और आप जानते हैं ना..टूटी चीज जुड़ सकती है, बिखरी चीज कहाँ...?? फिर वो जुड़ने की स्थिति में होता ही नही और सम्हल पाता ही नही

हाँ, हाँ पता है मुझे...! पता है आपको मौत से डर नही लगता। मौत तो एक दिन सबको आनी है। तो क्या होगा ..? कल ना सही आज सही, लकिन सोचिये ज़रा मेरे जैसे उस शख़्स के बारे में, जिसे आप रोज़ मरने के लिये छोड़ जाते हैं। जिसके एक आँसू पर आप खून बहा सकते हैं, वो जिंदगी भर खून के आँसू रोता रह जाता है।

कोई भी शख़्स बुरा नही बनना चाहता, परिस्थितियाँ उसे बुरा बना देती हैं। आप भी शायद खुशी से किसी निर्दोष का घर ना उजाड़ते हों।...हाथ तो आपके भी काँपते ही होंगे, मन तो आपका भी मसोसता ही होगा....!

लेकिन मैं ये भी जानती हूँ कि दुनिया का कोई काम आपके लिये कठिन नही है, तो ये काम इतना कठिन क्यों..??? ये काम जिसका वास्ता दूसरों से नही बल्कि आपके अपनो की खुशी से है।

मैं आपको उनका वास्ता नही देती जिन्हे आप किन्ही कारणों से कष्ट देते हैं। जिनका जीवन आपने जीने काबिल नही रखा। जिन्हे कई बार आप ऐसे मोड़ पर छोड़ आते हैं, कि आप जैसा एक और शख़्स अपने को, अपनों को और दुनिया को तबाह करने को तैयार हो जाता है।

मैं तो वास्ता देती हूँ आपको उनका जिन्हे आप हमेशा खुश देखना चाहते हैं। जिनके आँसू आप जैसे पत्थर को भी रुला देते हैं। आप चाहे खुद पे गोलियाँ झेल लें लेकिन उसके पैर में काँटा भी चुभे तो दर्द आपको होता है...! उसके आँसू पर आप अपना खून बहा देना चाहते है...! उसकी हँसी के लिये आप खजाने लुटा देना चाहते हैं...! मैं उन लोगों का वास्ता देती हूँ आपको। उन्हे मेरी तरह अकेला मत छोड़िये... दुनिया के लिये आप एक शख्स होंगे, लेकिन एक शख़्स के लिये आप सारी दुनियाँ हैं। उस शख्स की दुनिया मत सूनी कीजिये। आपके बाद जीना वो चाहता नही और मर वो पाता नही। मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, मुझे वो आख़िरी शख्स बन जाने दीजिये। अब किसी और को ये दुख झेलने के लिये मात छोड़ जाइये आप....! ये दुःख सहा नही जाता... ये दुःख कहा नही जाता...!!!!!


नोट : बहुत पहले एक कहानी लिखी थी....! ११ साल पहले...! कहानी क्या लघु उपन्यास था। मेरे दिल के बहुत करीब....! मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट था वो...! कभी कोई छपने को भेजने के लिये कहता भी तो मैं नही देती। मुझे उस पर फिल्म बनानी थी। या फिर जेलों में जा कर प्ले करवाना था। और कहानी के अंत में ये मोनोलॉग नायक की माँ से बुलवाना था। मैने तो बहुत हिफाज़त से रखा था उसे.....जाने कैसे मेरी शेल्फ में अब नही है वो...! मैने कहाँ कहाँ नही ढूँढ़ा...! मन्नत भी मानी...मगर मैं जिस के लिये मन्नत मान लूँ, वो तो पक्का नही पूरा होना है। ये मानी बात है। हँसी तो तब आई जब किसी ने मुझसे कहा कि अगर कोई चीज खो जाये तो दुपट्टे में गाँठ बाँध कर छोड़ दो..चीज मिल जायेगी। मैने अपने प्रिय सूट को छोड़ ही दिया तब तक के लिये जब तक वो मिल ना जाये...! थोड़े दिन बाद ढूँढ़ा तो वो दुपट्टा ही गायब था, जिस में गाँठ डाली थी....!
आज जब लिखने बैठी तो कई बार लगा कि इस वाक्य को बदल दूँ तो ज्यादा असर पड़ेगा...मगर फिर हिम्मत नही हुई। ये तब की बात है जब मैं सिर्फ अपने लिये लिखती थी....!