Friday, May 16, 2008

लेकिन खाना खाया नही गया हमसे


आज लंच करते समय में अपनी सखी शिवानी सक्सेना से नासिरा शर्मा की किताब औरत के लिये औरत में पुरुष बदलेगा तभी बदलेगा समाज विषय पर उनके लेख की चर्चा कर रही थी और उन्हे बता रही थी कि १९७१ में स्कॉटलैंड से इलाहाबाद लौटने पर नासिरा जी को मिनिस्टर के०डी० मालवीया की आधी कोठी मिली थी। उनसे मिलने जिस दिन नासिरा जी गईं उस दिन करवा चौथ था। ये जानने पर श्रीमती मालवीया ने हँसते हुए कहा कि "मै तो अपनी बहू को मना करती हूँ कि उस मर्द को अगले जन्म में पति के रूप में क्या माँगना जिसको इसी जन्म में सहन करना मुश्किल है।" नासिरा जी को उनकी बात नैतिक प्रश्न लगी। उनका कहना था कि जहाँ स्वयं की विशेष निष्ठा पति के प्रति हो वो अलग बात है मगर सिर्फ दिखावे के लिये ऐसा करना उन्हे समझ नही आता। उनका कहना है कि इन बातों से यह तात्पर्य हरगिज नही कि करवा चौथ मनाया ना जाये जरूर मनाया जाए, पर बाजार की दृष्टि से नही बल्कि पारस्परिक विश्वास को माध्यम बना कर।
इसी संदर्भ में चर्चा करते हुए उन्होने बताया कि एक बार सरित साहित्य संगम संस्था में आये अशोक चक्रधर एवं उनकी पत्नी की कविता के बाद वार्तालाप में जब बात करवाचौथ की आई तो अशोक जी ने कहा कि मैं भी करवाचौथ ब्रत रहता हूँ। मजाक समझने पर पत्नी वागेश्वरी देवी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि हम दोनो ही एक दूसरे के लिये करवा्चौथ व्रत रहते हैं, मेरी तरह चलनी में चाँद ये देखते है। नासिरा जी का कूतुहल से भरा प्रश्न आया कि उस दिन आपका श्रृंगार क्या होता है तो अशोक जी ने उत्तर दिया सादगी ही पुरुषों का श्रृगार है अतः मैं उस दिन अपना झक मँहगा कुरता पहन कर मित्रों की कृपा से प्राप्त विदेशी पर्फ्यूम लगा कर खड़ा हो जाता हूँ।

इस पर शिवानी जी ने हँसते हुए कहा "यार मेरे पतिदेव का तो फंडा है कि न तुम रहो न मैं..! " लेकिन इसी के साथ उन्होने अपने घर में बर्तन माँजने वाली औरत माधुरी का वृतांत बताया कि उसके पति ने उसे चार छोटे बच्चों के साथ छोड़ दिया था और वो किसी तरह लोगो के घर बर्तन माँज कर गुजारा कर रही है। एक करवाचौथ पर जब वो सुबह आई तो शिवानी जीने उससे पूँछा " अरे आप आ गईं...ब्रत है न आपका" तो उसने बर्तन माँजते हुए कहा " अरे भाभी चार साल हो जिस आदमी ने कभी अपने लड़के बच्चों की भी खबर नही ली उसके लिये कौन सा ब्रत" और शिवानी जी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा "हाँ और क्या..." लेकिन दूसरे दिन जब माधुरी आई तो शिवानी जी को देखते ही उसने कहा " भाभी ब्रत तो नही रहे लेकिन खाना खाया नही गया हमसे कल..."

शिवानी मैम के मुँह से ये घटना सुन कर थोड़ी देर के लिये उस महिला को महसूस करने लगी मैं...यही है भारतीय नारी ...जिसके लिये मैं श्रद्धावनत हो जाती हूँ... प्रतिशोध की भावना यदि उसमें भी आ जाये... बुरे का बदल यदि बुरा वो भी देने लगे तो धरती संभलेगी कैसे..? वो चाह कर भी बुरी नही बन पाती। उस औरत को मेरा सलाम......!

Wednesday, May 14, 2008

सुनो आतंकवादियों


आजकल नासिरा शर्मा की नारी विमर्श पर लिखी किताब औरत के लिये औरत पढ़ रही हूँ। नासिरा शर्मा आधुनिक कथाकारों में विशेष स्थान रखती हैं एवं देश विदेश के कई सम्मानों से अलंकृत हो चुकी हैं, जिसके विषय में हम फिर विस्तार से चर्चा करेंगे...

फिलहाल किताब में संघर्ष के बीच निकलेगी सफलता की राह शीर्षक के अंतर्गत उल्लिखित एक कविता आपसे बाँटने का मन है जो कि अशोक 'लव' द्वारा लिखित कविता 'अधिकार' की पंक्तियाँ हैं। लिखा तो ये आज की नारी के ऊपर गया है लेकिन जयपुर बमकांड के बाद आतंकवादियों से भी मुझे यही कहना है।

बाजों के पंजों में

चिड़ियों का मांस देख

नही छोड़ देती चिड़िया

खुले आकाश की सीमाएं नापना

उड़ती है चिड़िया

खुले आकाश की सीमाएं नापने

उड़ती है चिड़िया

गुँजा देती है आकाश का कोना कोना

बाज चाहे जिस भी गलतफहमी मे रहे

चिड़िया नही छोड़ती

आकाश पर अपना अधिकार


Monday, May 12, 2008

मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में

कल मातृदिवस बीत गया ...शनिवार की रात देर से सोई और सुबह रविवार होने के कारण जगने की कोई जल्दी भी नही थी...९.०० बजे मोबाईल की ट्यून से नींद खुली, उठाते ही सौम्या (छोटी दी की बेटी) बोली "happy mother's Day मौसी.." ओह आज mother's Day है..? Thanks my doll..? मैं तो अभी सो ही रही थी।"

"हाँ इसीलिये तो हम लोग बिगड़ रहे हैं..जैसी माँ वैसे बच्चे..!" तुरंत तर्क दिया मेरी लाड़ली ने। मुझे थोड़ी शर्म आई..! वो बोल रही थी "मैने first wish किया ना मौसी" हाँ बोलते हुए मैं सोच रही थी " ओह.. तभी पिंटू का फोन सुबह बज रहा था और मैने सोचा अबी जगूँगी तो कॉल कर लूँगी.." और तब तक उससे फोन लेकर नेहा (बड़ी दी की बेटी) बोली "happy mother's Day मौसी..मैं second..!" ये सब कानपुर गए हुए हैं आजकल। मै मन में सोच रही थी कि यार अगर अबी तुरंत माँ को विश किया जाता है तो mother's Day धरा रह जाएगा डाँट सुबह सुबह ज़रूर मिल जाएगी मेरी उनींदी आवाज को सुन कर..!

मैने नेहा से पूँछा " अम्मा क्या कर रही हैं..?" उसने बताया पूजा कर रही हैं। सुबह जब मौसी ने उनसे कहा कि अम्मा आज mother's Day है तो कहने लगी कि हाँ अबी कंचन फोन करेंगी, उन्ही को ये सब ज्याद याद रहता है, आज पता नही कैसे पिछड़ गईं" सुन कर मुझे हँसी आ गई, ये सोच कर कि जब भी मैँ अम्मा को विश करत हूँ mother's Day का वो कहती हैं कि खुश रहो लेकिन ये नया नया रिवाज अंग्रेजी सभ्यता का ...माँ का कोई एक दिन नही होता ... मैं हँसती रहती हूँ और अगली बार फिर विश करती हूँ..लेकिन अम्मा मुँह से चाहे जो कहें मन से इंतजार करती हैं मेरे फोन का ये मैं यूँ भी जानती हूँ...!मैने तुरंत मुँह धो कर अपनी आवाज फ्रेश की..और उन्हे फोन किया। आज उन्होने कुथ नही कहा बल्कि बोलीं "Thank you" इसके साथ ही मैने दोनो दीदियों को फोन किया जो मैं हमेशा करती हूँ, क्योंकि वो मेरी यशोदा माँए हैं...वहाँ बी वही बात आज तो तुम बहुत पिछड़ गई..! खुद पर शर्म आ रही थी..! लेकिन क्या करती..!

जाते जाते मन हो रहा है आपके साथ ये गीत सुनने का जो कि जिंदगी जिंदगी फिल्म का है और एस०डी० वर्मन साहब की आवाज़ में है ..,मुझे पता नही क्यों उनकी आवाज सुफियानी सी लगती है। वर्मन साहब द्वारा ही संगीतबद्ध और आनंदबक्षी के बोलो से सजा ये गीत मेरे मन के बहुत क़रीब है

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मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में
शीतल छाया तू, दुख के जंगल में।

मेरी राहों के दिये, तेरी दो अँखियाँ,तेरी दो अँखियाँ
मुझे गीता सी कहीं, तेरी जो बतियाँ,तेरी जो बतियाँ
युग में मिलता जो वो मिला इक पल में।
मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में

मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में
शीतल छाया तू, दुख के जंगल में।


मैने आँसू भी दिये पर तू रोई ना, पर तू रोई ना
मेरी निंदिया के लिये बरसों सोई ना, बरसों सोई ना
ममता गाती रही, मन की हल चल में।

मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में
शीतल छाया तू, दुख के जंगल में।


काहें न धो के तरें, ये चरन तेरे माँ,
देवता प्याला लिये, दर पे खड़े माँ
अमृत सबका है इस गंगाजल में।

मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में
शीतल छाया तू, दुख के जंगल में।

Friday, May 2, 2008

हमें तुम से प्यार कितना

१९८१ में प्रदर्शित क़ुदरत फिल्म का एक सर्वकालीन हिट गीत है,

हमें तुम से प्यार कितना ये हम नही जानते,
मगर जी नही सकते, तुम्हारे बिना।
मज़रूह सुल्तानपुरी
द्वारा लिखे गये और आर० डी० वर्मन साहब द्वारा स्वरबद्ध किये गये इस गीत के फिल्म में दो वर्ज़न है किशोर कुमार द्वारा गाया गया गीत लोगों की ज़ुबान पर अधिक चढ़ा हुआ है। चूँकि सहजता से गाये गये सहज भाव है। जो प्रेम के शाश्वत गुणों का बखान करते हैं कि हम में से कोई इस बात का पैमाना नही रख पाता कि हम अपने प्रिय को कितना चाहते है... हाँ बस इतना पता होता है कि उसके बिना जिंदा रहना जिंदगी नही कहलाता। और दो अंतरों मे कही गई बातें भी प्रेम के मूल सिद्धांतों की है, जिसमें एक प्रेम जन्य ईर्ष्या की बात है और दूसरी जुदाई की कल्पना।

लेकिन मैं आज आप सब के साथ सुनना चाहती हूँ दूसरा वर्ज़न, जिसे गाया है आसाम में जन्मी भारती शास्त्रीय गायिका परवीन सुल्ताना ने जो कि पटियाला घराने से संबंध रखती हैं। इस गीत के लिये उन्हे १९८१ में बेस्ट महिला पार्श्वगायिका का सम्मान मिला था ।

२००२ में आंध्रा प्रवास के दौरान शुरुआती दिनो मे ही जब मैं गेस्टहाउस की गेस्ट हुआ करती थी उसी समय की बात है कि मैं लंच पर आई हुई थी और लंच कर के मैं और मेरा भतीजा लवली दोनो विविध भारती सुन रहे थे... तभी ये गीत अचानक बज उठा हम दोनो एकदम शांत हो गए ३ मिनट के लिये..किशोर कुमार वर्ज़न हम दोनो का प्रिय गीत था लेकिन इस गीत को सुनने के बाद ये उस पर हावी हो गया..और हम अब जब भी फैमिली गैदरिंग में गीत संगीत के माहौल में होते हैं इस गीत को जरूर याद करते है।
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हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नही जानते,
मगर जी नही सकते, तुम्हारे बिना !

मैं तो सदा कि तुम्हरी दीवानी,
भूल गए सईंया प्रीत पुरानी,
क़दर न जानी, क़दर ना जानी

हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नही जानते,
मगर जी नही सकते, तुम्हारे बिना


कोई जो डारे तुमपे नयनवा,
देखा न जाये हमसे सजनवा,
जले मोरा मनवा, जले मोरा मनवा

हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नही जानते,
मगर जी नही सकते, तुम्हारे बिना


नोटः यह पोस्ट मैने २ मई, शुक्रवार को ही लिख ली थी इस उम्मीद के साथ कि गीत तुरंत इंटरनेट पर मिल जायेगा परंतु यह मेरी भूल थी, गाने का यू ट्यूब तो मिल रहा था आडियो नही... अब हमारे पास एक ही साधन था कि हम यूनुस जी से संपर्क करें और हमने वही किया...! यूनुस जी ने हमें उसी दिन गीत उपलब्ध करा दिया, परंतु शनिवार, रविवार अवकाश और सोम, मंगल नेट मे समस्या के कारण आज यूनुस जी की आभारी होते हुए गीत बाँट रही हूँ।