आज लंच करते समय में अपनी सखी शिवानी सक्सेना से नासिरा शर्मा की किताब औरत के लिये औरत में पुरुष बदलेगा तभी बदलेगा समाज विषय पर उनके लेख की चर्चा कर रही थी और उन्हे बता रही थी कि १९७१ में स्कॉटलैंड से इलाहाबाद लौटने पर नासिरा जी को मिनिस्टर के०डी० मालवीया की आधी कोठी मिली थी। उनसे मिलने जिस दिन नासिरा जी गईं उस दिन करवा चौथ था। ये जानने पर श्रीमती मालवीया ने हँसते हुए कहा कि "मै तो अपनी बहू को मना करती हूँ कि उस मर्द को अगले जन्म में पति के रूप में क्या माँगना जिसको इसी जन्म में सहन करना मुश्किल है।" नासिरा जी को उनकी बात नैतिक प्रश्न लगी। उनका कहना था कि जहाँ स्वयं की विशेष निष्ठा पति के प्रति हो वो अलग बात है मगर सिर्फ दिखावे के लिये ऐसा करना उन्हे समझ नही आता। उनका कहना है कि इन बातों से यह तात्पर्य हरगिज नही कि करवा चौथ मनाया ना जाये जरूर मनाया जाए, पर बाजार की दृष्टि से नही बल्कि पारस्परिक विश्वास को माध्यम बना कर।
इसी संदर्भ में चर्चा करते हुए उन्होने बताया कि एक बार सरित साहित्य संगम संस्था में आये अशोक चक्रधर एवं उनकी पत्नी की कविता के बाद वार्तालाप में जब बात करवाचौथ की आई तो अशोक जी ने कहा कि मैं भी करवाचौथ ब्रत रहता हूँ। मजाक समझने पर पत्नी वागेश्वरी देवी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि हम दोनो ही एक दूसरे के लिये करवा्चौथ व्रत रहते हैं, मेरी तरह चलनी में चाँद ये देखते है। नासिरा जी का कूतुहल से भरा प्रश्न आया कि उस दिन आपका श्रृंगार क्या होता है तो अशोक जी ने उत्तर दिया सादगी ही पुरुषों का श्रृगार है अतः मैं उस दिन अपना झक मँहगा कुरता पहन कर मित्रों की कृपा से प्राप्त विदेशी पर्फ्यूम लगा कर खड़ा हो जाता हूँ।
इसी संदर्भ में चर्चा करते हुए उन्होने बताया कि एक बार सरित साहित्य संगम संस्था में आये अशोक चक्रधर एवं उनकी पत्नी की कविता के बाद वार्तालाप में जब बात करवाचौथ की आई तो अशोक जी ने कहा कि मैं भी करवाचौथ ब्रत रहता हूँ। मजाक समझने पर पत्नी वागेश्वरी देवी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि हम दोनो ही एक दूसरे के लिये करवा्चौथ व्रत रहते हैं, मेरी तरह चलनी में चाँद ये देखते है। नासिरा जी का कूतुहल से भरा प्रश्न आया कि उस दिन आपका श्रृंगार क्या होता है तो अशोक जी ने उत्तर दिया सादगी ही पुरुषों का श्रृगार है अतः मैं उस दिन अपना झक मँहगा कुरता पहन कर मित्रों की कृपा से प्राप्त विदेशी पर्फ्यूम लगा कर खड़ा हो जाता हूँ।
इस पर शिवानी जी ने हँसते हुए कहा "यार मेरे पतिदेव का तो फंडा है कि न तुम रहो न मैं..! " लेकिन इसी के साथ उन्होने अपने घर में बर्तन माँजने वाली औरत माधुरी का वृतांत बताया कि उसके पति ने उसे चार छोटे बच्चों के साथ छोड़ दिया था और वो किसी तरह लोगो के घर बर्तन माँज कर गुजारा कर रही है। एक करवाचौथ पर जब वो सुबह आई तो शिवानी जीने उससे पूँछा " अरे आप आ गईं...ब्रत है न आपका" तो उसने बर्तन माँजते हुए कहा " अरे भाभी चार साल हो जिस आदमी ने कभी अपने लड़के बच्चों की भी खबर नही ली उसके लिये कौन सा ब्रत" और शिवानी जी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा "हाँ और क्या..." लेकिन दूसरे दिन जब माधुरी आई तो शिवानी जी को देखते ही उसने कहा " भाभी ब्रत तो नही रहे लेकिन खाना खाया नही गया हमसे कल..."
शिवानी मैम के मुँह से ये घटना सुन कर थोड़ी देर के लिये उस महिला को महसूस करने लगी मैं...यही है भारतीय नारी ...जिसके लिये मैं श्रद्धावनत हो जाती हूँ... प्रतिशोध की भावना यदि उसमें भी आ जाये... बुरे का बदल यदि बुरा वो भी देने लगे तो धरती संभलेगी कैसे..? वो चाह कर भी बुरी नही बन पाती। उस औरत को मेरा सलाम......!