ये गाना सुनो
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कुछ याद आया... नहीं तुम्हे कहाँ कुछ याद रहता है.... तुम तो बस आपको तो याद होगा ना... कह कर छूट जाते हो..लेकिन मैं...मुझे तो सब याद रहता है..... हाँ मुझे दिखने लगा है वो लॉन जहाँ मैं तुम्हारी तरफ पीठ कर के नाराज़ हो कर बैठी हूँ...... आज फिर झगड़ा.... कितना समझाया, ये सब मत किया करो...लेकिन सुना कभी.... हर जगह से शिकायत....और मेरे सामने आते ही ऐसे सीधे बन जाते हो जैसे कुछ जानते ही नही जैसे दुनिया का सबसे भोला भाला व्यक्ति.....नहीं करनी मुझे तुमसे बात...! और तुम
"मौसी...मौसी इधर देखिये तो, मेरी गलती नही थी" कह कर बुला रहे हो।
"वो तो कभी नही होती"
"इस बार सच में नही थी।"
"चलो आज एक बात clear हुई ना..कि पिछली बार थी, पिछली बार भी तो तुम यही कह रहे थे।"
"च् आप तो बातों में फँसा लेती हैं।....... मौसी.... अब नही होगी ऐसी गलती....pl.....इस बार माफ कर
दीजिये"
और मैं चुप, जबकि मुझे भी पता है कि अभी तुम मना लोगे, जब तक बुलवा नही लोगे तब तक हिलोगे नही, लेकिन अपना विरोध भी तो मुझे दर्ज़ करना है....! और तब तक पीछे से मेज के तबले के साथ आवाज आती है....
"आवारा हवा का झोंका हूँ, आ निकला हूँ, पल दो पल के लिये,
तुम आज तो पत्थर बरसा लो, कल रोओगे मुझ पागल के लिये।"
मैं अब भी तटस्थ, मन में सोचते हुए, कि नया नाटक......!
और फिर आवाज आवाज आती है....
" दौलत ना कोई ताज़महल छोड़ जाएंगे, हम अपनी यादगार गज़ल छोड़ जाएंगे,
तुम आज चाहे जितनी हमरी हँसी उड़ाओ, रोता हुआ लेकिन तुम्हे कल छोड़ जाएंगे"
और तुम सच में मुझे रोता हुआ छोड़ गए...मुझसे बदला ले रहे हो तुम मेरी नाराज़गी से इतने नाराज़
और फिर आवाज आती है,
“पहचान अपनी दूर तलक छोड़ जाऊँगा,
खामोशियों की मौत गँवारा नही मुझे, शीशा हूँ टूट कर भी खनक छोड़ जाऊँगा।“
हाँ सच कहा तुम्हारे टूटने की खनक बहुत दूर तक गई और मुझे तो अपने साथ तोड़ ही गई!
और फिर मुस्कुराते हुए आती है तुम्हारी आवाज़
“फूल के साथ साथ गुलशन में सोचता हूँ बबूल भी होंगे,
क्या हुआ उसने बेवफाई की, उसके अपने उसूल भी होंगे।“
धत् हँसी है कि रुक ही नही रही, इस दुष्टता पर, लाख चाहने पर भी होंठ पर आई जा रही है, और तुम्हें तो बस शायद इसी का इंतज़ार था, पीछे से उठ के सीधे मेरे बगल में...
" एक बात पता है,
ये आइने जो तुम्हे कम पसंद करते हैं,
इनको मालुम है, तुम्हे हम पसंद करते हैं।"
अब भला किसे हँसी ना आ जायेगी वो व्यक्ति जो कभी बड़ा भाई बन जाता है, कभी बेटा और कभी सबसे अच्छा दोस्त वो कुछ भी कर के आया हो बाहर मेरे पास तो यही रूप लेकर आया है, और दुनियाँ भर का दुलार लियेमुँह से निकलता है
" अच्छा हटो यहाँ से तुम मुझे आँसू के शिवा दे दे भी क्या सकते हो?"
और तुम पूरी अदा के साथ जवाब देते हो
"खुशबू नही सही रंगत न सही, फिर भी है वफा का नज़राना,
सेहरा से चुरा के लाया हूँ, दो फूल तेरे आँचल के लिये।"
और मैं उसी सेहरा के फूल से खुश थी, लेकिन कहाँ...वो फूल भी तो छिन गया मुझसे.....!
"जिंदगी भर के लिये रूठ के जाने वाले मैं अभी तक तेरी तस्वीर लिये बैठी हूँ।
तुम बहुत बुरे थे, लेकिन मैं अब तक तुम्हे नही भूल पाई, और प्रार्थना करती हूँ ईश्वर से कि वो तुम्हे मेरी नज़र से देखे, नाराज़ हो, बिगड़े, लेकिन अंत में अपना सारा स्नेह देते हुए तुम्हें क्षमा कर दे.....!
मेरा आशीर्वाद