Wednesday, December 10, 2008

एक शेर


एक धागे का साथ देने को,

मोम का रोम रोम जलता है....!

बस गुलजार का ये एक शेर कहने का मन हो रहा है आज..ये शेर जो कभी पुराना नही पड़ता मेरे लिये। और कुछ-कुछ दिनों पर इसकी धार कुछ ज्यादा तेज हो जाती है... नश्तर की तरह चुभता है ये...! आज कल धार फिर तेज हो गई है इसकी...!

23 comments:

डॉ .अनुराग said...

सुभान अल्लाह!एक हमारी ओर से ...

हाथ की लकीरों में लिखा सब सच होता नही
कुछ किस्मते भी कभी थक जाया करती है

MANVINDER BHIMBER said...

न जाने क्या था जो कहना था
आज मिल कर तुझे
तुझ से मिला था मगर ...
जाने क्या कहा मैनें

नीरज गोस्वामी said...

शमा पर एक शेर याद आगया...सुनिए( पढिये )
"ऐ शमा तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह
मैंने तमाम उम्र गुज़ारी है उस तरह "
नीरज

गौतम राजऋषि said...

आपकी तरह हम भी पुराने मुरीद हैं इस शेर के...

माहौल का जायजा लेते हुये
..

प्रशांत मलिक said...

kya baat hai

रविकांत पाण्डेय said...

मार्मिक! कौन किसके लिये जलता है कहना मुश्किल है! धागा मोम का दीदार पाने के लिये या मोम धागे के लिये! स्थिति कुछ ऐसी ही है-
रूतबा तेरे दर को मेरे सर से मिला है
हालांकि ये सर भी तेरे दर से मिला है

सुनीता शानू said...

बहुत ही सुन्दर शेर है यह याद दिलाने के लिये शुक्रिया कंचन जी...

siddheshwar singh said...

आइए याद करें आधुनिक हिन्दी कविता के पुरोधा दद्दा मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों को -

"प्रेम दोनो ओर पलता है .
सखि ! दीपक भी जलता है, पतंग भी जलता है. "

पूरी कविता किसी दिन जल्द ही ' कर्मनाशा' पर...

अभी तो यही कहना है - बहुत खूब !

"SHUBHDA" said...

हिन्दी में क्यों नहीं खुलता हृदय गवाक्ष ?

Anonymous said...

bahut khub kuch yaad taja huyi.

Manish Kumar said...

क्या बात है ! बहुत खूब शेर बाँटा आपने

Abhishek Ojha said...

बहुत खूब !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दील अपना और प्रीत पराई
किसने है ये रीत बनाई /
बहुत सुँदर कँचन बेटे
- लावण्या

Udan Tashtari said...

सही कहा-यह शेर कभी पुराना नहीं पड़ता.

ताऊ रामपुरिया said...

कुछ रचनाएं हमेशा तरो ताजा रहती हैं ! जैसे अभी अभी शायर के दिल से निकली हो !
लाजवाब !

राम राम !

BrijmohanShrivastava said...

गुलज़ार साहिब बहुत सटीक बात कह गए /लेकिन में यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ ""जब रोम जल रहा था तब नीग्रो बंशी बजा रहा था ""

travel30 said...

behad khoobsurat sher.. jaane kaha se gulzaar saheb dhoond late hai aisi chizen

New Post :- एहसास अनजाना सा.....

पारुल "पुखराज" said...

kya kahaa jaaye:)anaayaas aisa kuch saamney aaye to ..:)

Doobe ji said...

good one really

kumar Dheeraj said...

बहुत ही सुन्दर शेर है । आपने इसे फिर से जला दिया है । धन्यवाद

Unknown said...

अच्छा लगा शेर। हमेशा बनी रहे यह धार। आमीन!

sandhyagupta said...

Is sher ko phir se roshan karne ke liye dhanyawad.

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई हो