एक धागे का साथ देने को,
मोम का रोम रोम जलता है....!
बस गुलजार का ये एक शेर कहने का मन हो रहा है आज..ये शेर जो कभी पुराना नही पड़ता मेरे लिये। और कुछ-कुछ दिनों पर इसकी धार कुछ ज्यादा तेज हो जाती है... नश्तर की तरह चुभता है ये...! आज कल धार फिर तेज हो गई है इसकी...!
23 comments:
सुभान अल्लाह!एक हमारी ओर से ...
हाथ की लकीरों में लिखा सब सच होता नही
कुछ किस्मते भी कभी थक जाया करती है
न जाने क्या था जो कहना था
आज मिल कर तुझे
तुझ से मिला था मगर ...
जाने क्या कहा मैनें
शमा पर एक शेर याद आगया...सुनिए( पढिये )
"ऐ शमा तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह
मैंने तमाम उम्र गुज़ारी है उस तरह "
नीरज
आपकी तरह हम भी पुराने मुरीद हैं इस शेर के...
माहौल का जायजा लेते हुये
..
kya baat hai
मार्मिक! कौन किसके लिये जलता है कहना मुश्किल है! धागा मोम का दीदार पाने के लिये या मोम धागे के लिये! स्थिति कुछ ऐसी ही है-
रूतबा तेरे दर को मेरे सर से मिला है
हालांकि ये सर भी तेरे दर से मिला है
बहुत ही सुन्दर शेर है यह याद दिलाने के लिये शुक्रिया कंचन जी...
आइए याद करें आधुनिक हिन्दी कविता के पुरोधा दद्दा मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों को -
"प्रेम दोनो ओर पलता है .
सखि ! दीपक भी जलता है, पतंग भी जलता है. "
पूरी कविता किसी दिन जल्द ही ' कर्मनाशा' पर...
अभी तो यही कहना है - बहुत खूब !
हिन्दी में क्यों नहीं खुलता हृदय गवाक्ष ?
bahut khub kuch yaad taja huyi.
क्या बात है ! बहुत खूब शेर बाँटा आपने
बहुत खूब !
दील अपना और प्रीत पराई
किसने है ये रीत बनाई /
बहुत सुँदर कँचन बेटे
- लावण्या
सही कहा-यह शेर कभी पुराना नहीं पड़ता.
कुछ रचनाएं हमेशा तरो ताजा रहती हैं ! जैसे अभी अभी शायर के दिल से निकली हो !
लाजवाब !
राम राम !
गुलज़ार साहिब बहुत सटीक बात कह गए /लेकिन में यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ ""जब रोम जल रहा था तब नीग्रो बंशी बजा रहा था ""
behad khoobsurat sher.. jaane kaha se gulzaar saheb dhoond late hai aisi chizen
New Post :- एहसास अनजाना सा.....
kya kahaa jaaye:)anaayaas aisa kuch saamney aaye to ..:)
good one really
बहुत ही सुन्दर शेर है । आपने इसे फिर से जला दिया है । धन्यवाद
अच्छा लगा शेर। हमेशा बनी रहे यह धार। आमीन!
Is sher ko phir se roshan karne ke liye dhanyawad.
बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई हो
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