Monday, December 22, 2008

कि तुम हो मेरे गिर्द...


दिल के किसी कोने से आई आवाज़


"काश कि तुम होते "


तो बोल उठी ज़ुबाँ...


"तो..?.....तो क्या होता...????"


"कुछ नही......! बस ये अहसास .....!

कि तुम हो मेरे गिर्द....!"
किसी ने दिया जवाब ....!!!!!!

Thursday, December 18, 2008

वो भला कौन है किसकी तलाश बाकी है?


पिछली पोस्ट के शेर पर अनुराग जी ने कमेंट में एक शेर लिखा था

हाथ की लकीरों में लिखा सब सच होता नही,
कुछ किस्मते भी कभी थक जाया करती है

और उस शेर से ही याद आई अपनी एक कविता, जो कि मैने २०‍‍-9-२००७ को लिखी थी...! लीजिये आप भी शामिल हो जाइये उस कविता में

अपने हाथों की लकीरों में ढूँढ़ती हूँ जिसे,
वो भला कौन है किसकी तलाश बाकी है?
सुबह होने को है दीयों में तेल भरती हूँ,
तमन्ना तुझको अभी किसकी आस बाकी है।

किया जितनी भी बार ऐतबार है सच्चा,
हुए है उतनी बार अपनी नज़र में झूठे।
न जाने कितने गलासों को चख के देखा है,
हुए हैं हर दफा अपने ही होंठ फिर जूठे।
मगर सूखे हुए, पपड़ी पड़े इन होंठों को,
न जाने चाहिये क्या, अब भी प्यास बाकी है।

गिरे हैं इस कदर उठने को जी नही करता,
बहुत हताश कर रही है मेरी साँस मुझे।
बहुत थके हैं कि चलने को जी नही करता,
मगर तलाश मेरी रुकने नही देती मुझे।
गुज़र चुका है सबी कुछ भला बुरा क्या क्या
बड़ी हूँ ढीठ कि अब भी तलाश बाकी है।

सितारे सो चुके है साथ मेरे जग के मगर,
मैं अब भी चाँद की आहट पे कान रखे हूँ।
वो धीमे कदमों से आ कर मुझे चौकायेगा,
संभलना है मुझे धड़कन का ध्यान रखे हूँ।
बढ़ा दो लौ-ए-शमा की ज़रा सी और उमर,
वो आ भी सकता है, थोड़ी सी रात बाकी है!

Wednesday, December 10, 2008

एक शेर


एक धागे का साथ देने को,

मोम का रोम रोम जलता है....!

बस गुलजार का ये एक शेर कहने का मन हो रहा है आज..ये शेर जो कभी पुराना नही पड़ता मेरे लिये। और कुछ-कुछ दिनों पर इसकी धार कुछ ज्यादा तेज हो जाती है... नश्तर की तरह चुभता है ये...! आज कल धार फिर तेज हो गई है इसकी...!

Wednesday, December 3, 2008

विश्व विकलांग दिवस पर



टाईम्स आफ इण्डिया के लखनऊ संस्करण में आज महिला विद्यालय की शिक्षाशास्त्र की विभागाध्यक्ष रानी जेस्वानी जी के विषय में लिखा गया है। रानी एक पैर पर जिंदगी बिता रही हैं। जिंदगी के विषय में पूंछे जाने पर वे कहती हैं

I feel normal but....

और इस लेकिन के बाद वो बात जो आना लाज़मी है कि

ज़ब्त करती हूँ, तो हर ज़ख़्म लहू देता है,
बोलती हूँ तो अंदेशा-ए-रुस्वाई है।

सच है कि अगर कभी अपनी समस्या डिसकस करने की कोशिश करो तो, लोग जिंदगी से हारा समझने लगते हैं, जो कि नाकाबिल-ए-बर्दाश्त होती है।

और उन लोगो के लिये जो घूर घूर के देखते रहते हैं जैसे सामने वाला एलिएन्स प्रजाति का हो.. "ओह...ऐसे जीवन से मरना अच्छा" कहते हुए, जो सुनाई तो देता है, लेकिन आप सुनते नही...बहुत दिनो से हर रोज़ ये सब सुनते देखते आपको आदत हो गई है..कुछ असमान्य नही लगता...! उनके लिये उन्होने कहा....!

साहिल के तमाशाई हर डूबने वाले पर,
अफसोस तो करते हैं, इम्दाद नही करते।

कोई गलत नही है ये सोच, ये हक़ीकत है। लेकिन इसका मतलब ये नही कि इस अफसोस को उनकी हार का तर्ज़ुमा समझ लिया जाये। ये सिक्के का एक पहलू है। हर कदम पर संघर्ष जैसा वाक्य जिनके कदमो से जुड़ा हो और उन्होने एक भी कदम उठने से रोका ना हो, उन्हे आप निराश की श्रेणी में नही ला सकते।

पिछली बार विकलांग दिवस पर इस विषय में लिखने से पहले बहुत संकोच हुआ था , कहीं लोग गलत अर्थ ना लगा लें, कहीं लोग जिंदगी से हारा ना समझ लें, कहीं लोग उदास न समझ लें, लेकिन आज सुबह सुबह रानी जी को पढ़ने के बाद मन में आया कि अपनी बातें हम नही खुल कर बतायेंगे तो कौन बतायेगा ? जनता बुरी नही है..असल में हम उन्हे समझा ही नही पाते कि हमें क्या व्यवहार चाहिये। हम कहीं न कहीं रोज गिरते हैं, ये सच है, लेकिन हम हर रोज जितनी शिद्दत से बिना पिछली चोट की परवाह के खड़े होते हैं वो भी सच है।

जो सच रानी जी का है, वो मेरा भी सच है....लेकिन कुछ अपने सच बाँटती हूँ... जो रानी जी का भी सच होगा, ये मुझे विश्वास है....!!!!

पहली बात जो माँ कहती थी जब मैं अपनी बीमारी से लड़ रही थी...जो अब भी बहुत बहुत बल देती है



वो देखो उठ बैठी मुन्नी, सारी चींटी मार के,
गिर कर उठ जाने वाले ही, बड़े लोग संसार के...!

और दो शेर जो मेरी वर्किंग टेबल के ऊपर लगे है... जिन्हे मै लगभग रोज याद करती हूँ...

इरादे हों अटल तो मोज़दा ऐसा भी होता है,
दिये को पालती है, खुद हवा ऐसा भी होता है

और दूसरा

बढ़ते पग कब सोचते मंजिल कितनी मील,
घोर अंधेरे से लड़े, छोटी सी कंदील

रानी जी का फोटो मुझे टाईम्स आफ इण्डिया की साईट पर नही मिला, वरना मैं आपसे ज़रूर बाँटती़। एक बात और the person like Rani Ji is not physically disabled... they are in the daily battle of proving there ability.... actually they are highly chalanged by nature ... physically chalanged.


इम्दाद- मदद
मोज़दा -पराकाष्ठा

Monday, December 1, 2008

दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।


इस पर क्रोध बढ़ाए कोई या फिर आये लाज,
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।

जीवन पा कर जीवन देते मौत दिखाने वालों,
हाहाकार रहित करते कुछ धरती को दुनिया को,
ताकत पा कर कैसा कायर काज किया ये आज।
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।

देने वाले ने ताकत दी और उम्र तरुणाई,
और मिटाने खातिर तूने वह उपलब्धि गँवाई,
कैसे तांडव से भर डाला मधुर पखावज साज
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।

बाल वृद्ध न देखे तूने, ना भगिनी, ना माता,
क्या पल भर की खातिर भी सोचा होगा ये नाता,
सभी चिरैया जैसे दुबके और तुम जैसे बाज।
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।


शस्त्र चलाएं शस्त्रों पर, वो वीर कहे जाते हैं,
डटें रहें जो सीमा पर रणधीर कहे जाते हैं,
जयद्रथ सा जो वार करे वो कौन कहावे आज,
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।

कौन जन्म देने वाला था, जिसकी कोख लजाई,
छुप छुप कर रोती तो होगी आज तेरी भी माई,
किसको अश्रु दिखाए, किस से कहे कहानी आज
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।