Wednesday, April 1, 2009

गीत बंदिनी के‍-भाग १



आज की पोस्ट है मुफलिस जी के नाम..! वो मुफलिस जो असल मे लोगो पैसे देने का काम करते हैं। मतलब ये बैंक में सर्विस करते हैं और यहाँ खुद को मुफलिस बताते हैं..! खैर ये तो उनका बड़प्पन है।

रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मोरा मोल

तो इन मुफलिस जी से यूँ तो ब्लॉग जगत में इनकी रचनाओं से ही परिचय है, मगर एक दिन इनकी बहुत प्यारी सी पोस्ट आई, जिसमें इन्होने कुछ गीत सुनवाने की बात कही। हम झट गाना ढूँढ़ लाये। साथ ही याद आये इन गानो से जुड़ी बातें।

बंदिनी फिल्म शायद १९६३ में रिलीज़ हुई थी। (शायद इस लिये लगा देती हूँ कि इन सब जानकारियों का आधार गूगल देवता ही हैं, अब जो वो बतायें वही सच)....! स्वनामधन्य निदेशक विमल रॉय द्वारा निदेशित यह फिल्म मैने देखी थी दूरदर्शन पर, जब सभी काम धाम छोड़ कर चटाई बिछा कर पूरा घर फिल्म देखता था। भाभियाँ सब्जी तैयार कर लेती थीं और जब साढ़े सात बजे न्यूज़ आती थी तब आँटा सान कर दाल छौंकने जैसे बचे काम करती थीं। उस समय देखी गई इस फिल्म की बड़ी हलकी सी छवि है अब। शायद इतनी अच्छी फिल्म को समझने का बौद्धिक स्तर भी नही था। मगर ये याद है कि मेरे बगल में रहने वाले विनोद भईया इस फिल्म को बड़े ध्यान से देख रहे थे और ओ रे माँझी गीत का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। बाद में इसी फिल्म के गीत जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे मैने विनोद भईया की पत्नी से ही सुना। जब वो हल्के से घूँघट के साथ बीच बीच में अपनी मुस्कुराहट को दबाते हुए, कनखियों से इधर उधर देखते हुए ये गीत गा रहीं थी, वो छवि अभी भी मुझे इस गीत के बजते ही दिखाई देने लगती है। और दूसरा गीत जो मुफलिस जी ने सुनना चाहा है, वो है मेरा गोरा रंग लइ ले..! ये गाना जितना अच्छा सुनने में लगता है उतना ही अच्छा देखने में। लजाती, बलखाती नूतन ने अपने हाव भाव से मन मोह लिया है और बहुत कुछ जो गीत कह रहा है उससे भी अतिरिक्त कह गईं है। इस फिल्म के सभी गीतों को संगीत दिया था स्व० श्री एस०डी० वर्मनने, जिनका संगीत तो सभी को पसंद ही है, मगर मुझे उनकी आवाज़ भी बड़ी अच्छी लगती है। उनका गाया शायद ही कोई गीत हो जो मुझे पसंद ना हो। इस फिल्म के गीतकार के विषय में अभी अभी मेरे ब्लॉगर मित्र किशोर जी ने बताया कि पहले गीत के गीतकार गुलज़ार और दूसरे के शैलेंद्र जी हैं।
तो लीजिये सुनिये आज मुफलिस जी की पसंद के ये दो गीत और इंतज़ार कीजिये इसी फिल्म के मेरी पसंद के दो गीतों का, जो कि आयेंगे अगली पोस्ट में

पहले सुनिये लता मंगेशकर की आवाज़ में ये गीत

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मोरा गोरा रंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे
छुप जाऊँगी रात ही में, मोहे पी का संग दई दे

एक लाज़ रोके पईयाँ, एक मोह रोके बईयाँ
जाऊँ किधर ना जानू, हमका कोई बताई दे
हो ऽऽऽऽऽऽऽऽ

मोरा गोरा रंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे
छुप जाऊँगी रात ही में, मोहे पी का संग दई दे

बदली हटा के चंदा, चुप के से झाँके चंदा
तोहे राहु लागे बैरी मुसकाए तू लजाई के
हो ऽऽऽऽऽऽऽऽ

मोरा गोरा रंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे
छुप जाऊँगी रात ही में, मोहे पी का संग दई दे

कुछ खो दिया है पाइ के, कुछ पा लिया गँवाई के
कहाँ ले चला है मनवा मोहे बाँवरी बनाइ के
होऽऽऽऽऽऽऽ

मोरा गोरा रंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे
छुप जाऊँगी रात ही में, मोहे पी का संग दई दे

और लता जी की ही आवाज़ में ये दूसरा गीत, जो अब भी रात में आधी सोती जागी नींद में जब रेडियो पर बजता है, तो नींद अच्छी आती है।



जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे, मेरे रंग गये साँझ सकारे
तू तो बिन कहे जाने जी की बतियाँ, तोसे मिलना ही जुलम भवा रे

देखी साँवली सूरत ये नैना जुड़ाये,
देखी साँवली सूरत
तेरी छब देखी जब से रे
तेरी छब देखी जब से रे
नैना जुड़ाये गये दिन कजरारे कजरारे
जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे, मेरे रंग गये साँझ सकारे

जा के पनघट पे बैठूँ मैं राधा दीवानी
जा के पनघट पे बैठूँ
बिना जल लिये चली आऊँ राधा दीवानी
मोहे अजब ये रोग लगा रे
जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे, मेरे रंग गये साँझ सकारे

मीठी मीठी अगन ये सह ये
मीठी मीठी अगन
मै तो सह ना सकूँ रे
मैं तो छुई मुई अबला रे सह ना सकूँगी
मोरे और निकट मत आ रे
जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे, मेरे रंग गये साँझ सकारे

36 comments:

के सी said...

ये संगीतमय पोस्ट सिर्फ मनभावन ही नहीं आत्मीयता से पूर्ण है. ऐसा लग रहा है जैसे आल इंडिया रेडियो का कंचन सिंह चौहान केंद्र सुन रहा हूँ जिसमे ज्ञान भी और संगीत भी.

Manish Kumar said...

Mora gora ang lai le.. Gulzar ke likhepehle geeton mein shumar hota hai. R D Burman likh kar April Fool banane ka vichar to nahin :)
Ye sangit mujhe to yaad padta hai ise S D burman ne diya hai.

daanish said...

यूँ लगा...
जैसे फ़ज़ा में इक आवाज़ सी उभरी हो ...
झट से ब्लॉग के किवाड़ पर दस्तक दी .....

इक-दम प्यारा-सा , पाकीजा-सा माहौल
जैसे इस्तकबाल करने को आतुर था

"शुक्रिया" कहूं..तो महज़ एक लफ्ज़ लगता है ..
और शब्दों में बता भी नहीं सकता कि कितना सुकून मिला है ,
ये दोनों सुरीले और सदा-बहार गीत सुन कर ....

फिल्म 'बंदिनी' के सारे गीत 'शैलेन्द्रजी' ने लिखे थे ...सिर्फ एक गीत को छोड़ कर ....
"मोरा गोरा अंग लायिले ...", ये गीत जनाब 'गुलज़ार साहब' का लिखा हुआ है ....
और फिल्म कि मुसिकी तैयार कि थी
श्री सचिन देव बर्मन जी ने .......

इस फिल्म का आशाजी का गया हुआ गीत भी सुनिए तो !! ( ओ पंछी प्यारे सांझ सकारे ..) और
(अब के बरस भेज भैया को बाबु ...)

खैर !! आपकी पारखी नज़र और
इंतेखाब (selection) को सलाम करता हूँ

और फिर.... उसी एक लफ्ज़ का इस्तेमाल करता हूँ ...शुक्रिया...SHUKRIYA..SHUKRIYA

फरमाईश भेजता रहूँगा .....
खैर-ख्वाह . . . . .
---मुफलिस---

पंकज सुबीर said...

ये तो बेइमानी है आपने महिला होने के कारण महिला स्‍वर के दोनों गीत सुना दिये और पुरुष स्‍वर के दोनों अद्भुत गीत मुकेश जी का ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना तथा बर्मन दादा का जादुई गीत ओ रे मांझी मेरे साजन हैं उस पार को भुला दिया । एक रोचक तथ्‍य ये कि गुलजार साहब का लिखा हुआ पहला फिल्‍मी गीत था मोरा गोरा रंग लइ ले । सच बात तो ये है कि मुझे भी इससे जियादह पसंद है वो गीत ओ जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे मेरे रंग गये सांझ सकारे । ऐसा ही एक गीत नींद हमारी ख्‍वाब तुम्‍हारे में भी था अभी याद नहीं आ रहा । ओ पंछी प्‍सारे गीत में सूपा चलाने की बहुत सुंदर प्रयोग है उसे भी सुनवाइये कभी ।

कंचन सिंह चौहान said...

अरे मनीष जी आप के पोस्ट को जब पढ़ा तब तक किशोर जी के कहने पर त्रुटि सुधार चुकी थी...! आप का कमेंट बाद मे पढ़ा...! शुक्रिया

और गुरुवर सुबीर जी पिक्चर अभी बाकी है.......! सब इसी बार देना होता तो पोस्ट को दो भागों में क्यों बाँटती .......:) :) बड़े दिनो बाद पधारे ज़ह-ए-नसीब..!

पंकज सुबीर said...

अरे ये तो मैं देखना ही भूल गया था कि आपने गीत बंदिनी के भाग एक लिखा है । क्षमा और प्रतीक्षा है दूसरे अंक की ।

नीरज गोस्वामी said...

हम भी पंकज जी के सुर में सुर मिलाते हैं....बंदिनी के सारे गीत ही अनूठे थे...जब सुनते हैं तो जी चाहता है सुनते ही चले जाएँ...अब न ऐसे बोल रहे और ना ही ऐसी मीठी धुनें...."ये कहाँ आ गए हम....." आपका शुक्रिया इन गीतों को सुनवाने का...हमारी लिस्ट बहुत लम्बी होती लेकिन जब से वर्ल्ड स्पेस रेडियो लगवाया है उसके फ़रिश्ता चेनल ने हमारी पुराने गाने सुनने की सारी प्यास बुझा दी है...चौबीसों घंटे सुरीली नदी सी बहती रहती है घर में...
नीरज

Udan Tashtari said...

बढ़िया संगीतमय वातावरण हो लिया, अब दूसरे हिस्से का इन्तजार है.

रंजू भाटिया said...

बेहतरीन संगीत मय पोस्ट ..

कुछ खो दिया है पाइ के, कुछ पा लिया गँवाई के
कहाँ ले चला है मनवा मोहे बाँवरी बनाइ के

यह गाना तो दिल से पसंद है ...शुक्रिया

Akanksha Yadav said...

Bahut sundar...pasand aya !!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bahut achcha laga, sd burman sahab ka gaya huya geet "o mere maanjhi" mujhe bahut pasand hai. dharmendra bhi naye naye the, bahut sukomal khud bhi aur film bhi.

डॉ .अनुराग said...

बंदिनी को पसंद करने के कई कारण है ....विमल राय का शुक्रिया जो उन्होंने गुलज़ार साहब को मौका दिया ओर हमें उसके बाद एक ऐसा शायर मिला जिसने बरसो हमें ढेरो लोरिया सुनाकर सुलाया ..मासूम से लफ्ज़ फेंके ....शैलेन्द्र जी की प्रतिभा से किसी को इनकार नहीं....उनका मिजाज़ भी अलग है ....दूसरा कारण धर्मेन्द्र है...मेरे पसंदीदा कलाकार जिन्हें उनकी प्रतिभा के अनुरूप पहचान नहीं मिली ...बाकी हर मामले में सर्वश्रेष्ट मूवी होनी ही थी विमल राय की जो थी ...वैसे इस फिल्म में ऋषिकेश मुखर्जी भी असिस्टेंट थे....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

"बँदिनी" का अँत कई दर्शकोँ को पसँद आया कुछ लोगोँ को नहीँ भी आया था और सारे गीत कथा को आगे लेकर चलते थे
आपके ब्लोग से कई नई प्रविष्टी पर चली जाती हूँ - बहुत सुँदर है हमारी कँचन बितिया का ह्र्दय कँवल सा ये ब्लोग !
- लावण्या

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही सुमुधुर और कर्नप्रिय गीत हैं बंदिनी फ़िल्म के. आपने बहुत अच्छा किया इनको यहां लगाकर. बहुत धन्यवाद आपका.

रामराम.

रविकांत पाण्डेय said...

बंदिनी के सारे ही गाने मुझे अतिशय प्रिय हैं।
"बदली हटा के चंदा, चुप के से झाँके चंदा
तोहे राहु लागे बैरी मुसकाए तू लजाई के"

पता नहीं पर मुझे लगता है-

"बदली हटा के चंदा, चुप के से झाँके चंदा
तोहे राहु लागे बैरी मुसकाए जी जलाई के"

अगले भाग की प्रतीक्षा में...
रविकांत पाण्डेय

"अर्श" said...

CHUKI MAIN FILM NAHI DEKHTA ISLIYE SAARE IS FILM KE KAUN KAUN SE HAI NAHI PATA MAGAR HO SAKTA HAI MAIN ISKE SAARE GEET SUN CHUKA HUN... YE DONO HI GEET BAHOT PASAND HAI MUJHE BACHAPAN SE HI... BAHOT BADHAEE AAPKO..


ARSH

RAJ SINH said...

BANDINI JAISEE PARIPOORN FILM MUSHKIL SE KAHEEN AUR HAI. BIMAL DA US KE ANTIM DAUR ME BED PE HEE THE AUR MAUT SE JOOJH RAHE THE.FIR BHEE YAH FILM MAN PAR ATAL HAI .ISKE SABHEE GANE MEEL KE PATTHAR HAIN AUR FILM VIDHA KE HISAB SE 'SITUATION' PAR 100% SAHEE.

ISKE SABHEE GEETON KEE CHARCHA AUR UNHEN SUNANE KA AAGRAH HO CHUKA HAI BAS EK KO CHOD KAR.

" MAT RO MAATA LAL TERE BAHUTERE ,
JANM BHOOMI KE KAM AAYA MAIN BADE BHAGYA HAIN MERE ......MAT RO."

YEH MANNADEY NE GAYA THA ,SHAILENDRA JEE KA LIKHA. EK KRANTIKAREE FANSEE KE FANDE KEE TARAF BADHTE GA RAHA HAI.

IS KE SAATH AUR BHEE EK GHATNA JUDEE HAI. USEE SAAL KE FILMFARE AWARD KE JALSE KEE. USEE SAAL 'GUMRAH' BHEE RELEASE HUYEE THEE. USEE KE GANE 'CHALO EK BAR FIR SE AJNABEE.......' KO SARV SHRESTH GEET FILMFARE AWARD MILA 'SAHIR' LUDHIYANVEE KO.

'SAHIR' NE KAHA KI " UNHEN KHUSHEE HOTEE LEKIN IS SAAL NAHEEN. IS SAAL ISKA HAQ SIRF 'MAT RO MATA' KO HEE HO SAKTA HAI "........ AUR SHAILENDRA KO BHARE HAAL ME GALE LAGA PRATEEK CHINH THAMA DIYA THA. AISE THE VO LOG .

AAPKEE AGLEE KISHT KEE PRATIKCHA HAI .

संगीता पुरी said...

वाह !! आज पूरा पोस्‍ट ही संगीतमय है ... गीत सुनाने का धन्‍यवाद।

मीनाक्षी said...

सच में यहाँ तो सब कुछ संगीतमय सा लग रहा है.. संयोग की बात कि आज ही हम लगभग बीस साल पुरानी कैसेटस निकाल कर चैक कर रहे थे और सुन भी रहे थे..

daanish said...

geet baar-baar sun`ne haiN...
kuchh jaadu hi aisa hai...

"ik laaj roke paeeyaaN ,
ik moh (kheenche baneeyaaN).."

"tohe rahu laage bairi ,
muskaae (ji jalaai ke).."

inheiN aise kar leiN.
---MUFLIS---

rajkumari said...

आपने कितना मीठा संगीत सुनाया साथ ही मुफलिस जी की पसंद भी अच्छी लगी.

दिगम्बर नासवा said...

पूरी की पूरी फिल्म परदे की तरह सामने से गुज़र गयी.......इसके गीत, कहानी, क्या बताएं.....देखने के बाद कितने दिनों तक नींद नहीं आयी थी..........आपने गीत बोलों के साथ सुनाये मज़ा आ गया. अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा

कुश said...

कुछ दिनों पहले अनुराग जी से इस फिल्म पर चर्चा हो रही थी.. फिल्म तो जबरदस्त थी ही पर इसका संगीत वाकई मोहक था.. गुलज़ार साहब ने पहली बार इस फिल्म के लिए गीत लिखे थे.. कितनी सुन्दर कल्पना है .. मोरा गोरा अंग लेई ले.. मोहे श्याम रंग देई दे..

आपका आभार इन यादो में ले जाने के लिए

पारुल "पुखराज" said...

..film aur sangeet dono jaanleva..saare adaakaar ..laajavaab..

ललितमोहन त्रिवेदी said...

मेरे गीत पर आपकी टिप्पणी ने तो अभिभूत ही कर दिया मुझे ,बहुत बहुत धन्यवाद !आपकी सभी रचनाएँ बहुत मनोयोग से पढ़ता हूँ ,पर जबतक टिप्पणी लिखने की सोचता हूँ तब तक एक नयी पोस्ट आजाती है आपकी !क्या करुँ आलस्य स्वभावगत दोष है मेरा ही !महिला दिवस पर तो अपने खेल ही खेल में बड़े ज्वलंत प्रश्न उठा दिए थे !ईश्वर आपके लेखन की तीव्रता और एहसासों की गहराई को दिन दूनी वृद्धि दे ! बंदिनी -भाग १ बहुत सुन्दर है ,भाग -दो और भी सुन्दर होगा !......(.अबके बरस भेज ............)प्रतीक्षा है !

प्रकाश पाखी said...

बंदिनी के गीतों की मधुरता का अहसास कराने के लिए आभार

गौतम राजऋषि said...

मुफ़लिस जी के दिल से आभार व्यक्त करते हैं कि उनकी फरमाइश के चलते हमें कंचन तुम्हारा इतना प्यारा पोस्ट पढ़ने को मिला....
सब गुरूवरॊं ने इतना सब कह दिया कि अब ्कुछ शेष कहाँ रहा कहने को....हाँ मोरा गोरा रंग लई ले के हर पंक्ति के बाद बर्मन दादा की वो अनोखी "टिक-टिक-टिक" का कोई जोड़ नहीं.....

Vinay said...

आपने तो मेरी पसंदीदा अदाकारा के बारे में चरचा कर दी, टिपियाते कैसे नहीं!

योगेन्द्र मौदगिल said...

शानदार प्रस्तुति और सच्ची बात ये कि मैं बंदिनी के बारे में इतना नहीं जानता था जितना आज जान लिया.. बधाई कंचन जी.

pallavi trivedi said...

maine abhi tak bandini nahi dekhi hai...kai baar dekhna chaha par ab itna sab padhne ke baad is weekend mein bandini dekhna pakka...

Dev said...

कंचन जी बहुत धन्यवाद , आपकी सभी रचनाएँ कितनी सुन्दर है .

Kavi Kulwant said...

very nice...

रंजना said...

Waah !! Aanand aagaya kanchan...

Bahut bahut dhanyawaad...

Mumukshh Ki Rachanain said...

बंदिनी के सारे गीत ही अनूठे थे...अनूठे ऐसे कि आज भी लोग-बाग उन गीतों के बंदिनी है.................अब तो ऐसे बंदियों को कुछ तो सकूं मिला होगा.............
चन्द्र मोहन गुप्त

सुशील छौक्कर said...

बेहतरीन संगीतमय पोस्ट। मुझे ये फिल्म बहुत ही अच्छी लगती है। इसके सारे गाने बहुत ही सुन्दर मीठे है। आनंद आ गया।

SUNIL KUMAR SONU said...

KYA NARI KE PAS SHEEL HOTI HE PURUSH KE PAS NAHI?meri ray niche& APPKI RAY >INTEZAR RAHEGA>>>>>>>>>>>


sheel to istri-purush dono ki hoti he magar hamne yani ki samaj ne kabhi samjha hi nahi,thik buniyad ki tarah jamin me dava hota koi iski taraf dekhta bhi nahi .najar aata he to bas mahlen jo niche ki foundation pe tiki hoti he.hamare parivar ne purush ko maan -samman dene ki jaruri nahi samjha.ladko ka apmaan mahaj ek jaadu he jo turant khatam ho jata he .kisi mahila ya ladki ne kabhi ladko ya purush ko uchit samman nahi dete paya.vo to bas yahi samajhti he ladke ek aisa patthar he jise baar-baar uchhalo use chot nahi lagti aur lagti he to dard nahi hota aur hota he to ho iski parvah koi naari kyon kre kyonki emotional atyachaar-balatkar karna jaise ladki ka param kartav heaur janmsidhdh adhikaar bhi