Thursday, February 7, 2008

बाबूजी....!



बाबूजी....!
आप बहुत याद आते हो...! आज १८ साल बाद भी वो रिक्तता भरी नही जो आज के दिन हुई थी ......! आप वैसे ही याद आते हो...और हमेशा ऐसे ही याद आते रहना क्योंकि आप की याद के साथ याद आते हैं वो सपने जो मेरे लिये आपने देखे थे..वो आँखें जो मेरी असफलता पर सूनी हो जाती..और सफलता पर चमक जातीं....अब भी जब असफल होती हूँ तो लगता है कि आप उदास हो और आपकी आँखों की चमक के लिये फिर से प्रयास करने लगती हूँ...! अपनी हर उपलब्धि वाले दिन ..जब अम्मा की मिठाई खाती हूँ...दोस्तों के साथ पार्टी में शामिल होती हूँ... तो आप देखे लेते हो न...कि मन के अंदर कोई उदासी होती है....कि निगाह आपको ढूँढ़ रही होती है...!..कि कान सुनना चाहते हैं कि आप होते तो क्या कहते....!


तो आप ऐसे ही हमेशा याद आते रहना....मेरे अंदर की जिजीविषा बनी रहेगी

आपकी
गुड्डन

11 comments:

Anonymous said...

http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/02/blog-post_05.html
join the movement

mamta said...

माता-पिता का जाना कभी भी कोई नही भूल सकता है।
आपके पिता को हमारी श्रधांजलि ।

Dr Parveen Chopra said...

निःसंदेह आप के बाबू जी ऊपर से सब कुछ देख रहे हैं और आप के हर दुःख सुख में अदृश्य रूप में शरीक होते होंगे....अगर आप उन के द्वारा स्थापित किये गये आदर्शों पर चलेंगी तो यह उन को और भी ज्यादा सुकून देगा। आप के बाबू जी को याद करते करते मुझे आज अपने पापा जी की भी याद आ गई जो 12साल पहले स्वर्ग-सिधार गये थे...जब कभी यह याद आता है कि छठी कक्षा में जब स्कूल से लौटते हुए पांच-दस मिनट की भी देरी हो जाती थी तो झट से ढूंढने निकल पड़ते थे, थोडा़ सा जब भी मुझे बुखार होता था तो बस सारा दिन उन का उदासी में ही बीतता था,,, उस समय तो ये बारे शायद इतनी समझ में नहीं आती, लेकिन अब चूंकि मैं खुद पिता हूं,,,,अब सब कुछ अच्छा सा समझ में आता है और बहुत ज्यादा परेशान करता है।
god bless you, always!!

अमिताभ मीत said...

तो आप ऐसे ही हमेशा याद आते रहना....मेरे अंदर की जिजीविषा बनी रहेगी
क्या कहूँ ? किसी का हाथ हर पल सर पे होता है और फिर भी ये खालीपन ताउम्र रहता है. क्या कहूँ ?

पारुल "पुखराज" said...

VO JAHAAN BHI HONGEY ITNI PYAARI AUR SAMJHDAAR BITIYAA KO DEKH HAMESHAA KHUSH HOTEY HONGEY..KHUSH KHUSH TUM BHI UNHEY YAAD KARO

Unknown said...

आपकी ये चंद पंक्तियां बेहद भावुक कर गईं। जो चला गया वह वापस तो नहीं आ सकता लेकिन उसकी याद हमेशा उसके अपने आसपास होने का अहसास कराती रहती है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप अपने बाबूजी को सदैव याद करती रहें। वे अभी भी हैं। आप उन की और आप की माता जी का पुनर्जन्म हैं। मैं ने अपने बाबूजी को स्मरण करते रहने का तरीका अपनाया है। उन के बाद से चाय ग्रहण करना बन्द कर दिया। सोलह साल होने को हैं। हर बार चाय सामने होने पर पहले वे याद आते हैं और मैं चाय ग्रहण नहीं करता।

पंकज सुबीर said...

कंचन जी आपके अंदर एक जो भावप्रवणता है वही आपको कवि बनाए हुए है । आप के लिखने में भावों का जो सागर हिलोर मारता है वो सबको अंदर तक भिगो जाता है आप ऐसे ही लिखती रहें यही प्रभु से कामना है । 26 फरवरी को मेरे कवि मित्र श्री मोहन राय की पुण्‍यतिथि है और मैं क्‍या करूं मुझे समझ नहीं आ रहा कि उनको आत्‍म हत्‍या किये हुए एकवर्ष भी हे गया ।

राकेश खंडेलवाल said...

सांझ आई आ घिरे फिर याद के बादल

राह हैं सूनी पड़ीं ज्यों मांग विधवा की
जेहरों पर पनघटों की गागरें प्यासी
चुप खड़े सारंगियों के साथ अलगोजे
अलगनी पर है टँगी घनघोर खामोशी
और अटकी द्वार पर जाकर नजर पागल

सांझ आई आ घिरे फिर याद के बादल

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ये कभी न भरने वाली रिक्तता

अंतर्मन रहेगा, यूँ ही, सदा प्यासा

आपके भावुक स्मृति पुष्प सहित

..सादर श्र्ध्धा सुमन ..

Yunus Khan said...

मार्मिक है । हमारी ओर से भी उन्‍हें श्रद्धांजली