बहरे मुतकारिब सालिम मक़बूज असलम (१६ रुक्नी) जिस पर इस बार की तरही भी है और
गुरु जी ने ढेरों गीत इस बहर पर बता रखे हैं। इसी बहर पर ये ताज़ा ताज़ा मुक्तक गुरु जी के आशीष से....
मिलो किसी से तो अपना दिल तुम,ना पूरा पूरा उठा के रखना।वो जैसा दिखता है, हो कि ना हो,ये मन को अपने बता के रखना।
जो ज्यादा समझा किसी को तुमने,तो दाग फितरत के सब दिखेंगे,
ज़रा सी दूरी बना के रखना, ज़रा सा खुद को बचा के रखना।
34 comments:
बहुत बढ़िया!! सही लिखा...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
सही कह रही हैं।
घुघूती बासूती
ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना
ekdum durust baat kahi tumne..thx
बिल्कुल सही और सच कह रही हैं आप ।
बहूत खूब!..
sahi kaha aapne
बढ़िया रहा.
nice!
ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना
हाँलाकि इस फिलॉसफी पे पहले नहीं चला करते थे। पर इंटरनेट के अनुभवों ने बहुत कुछ ऐसा सोचने पर विवश कर दिया।
ह्म्म्मम्म इस विषय में भी पारंगत !!!!!! कम शब्द मगर खयालात खूब दर्जे की , की है आपने ...
बधाई कुबूलें...
अर्श
क्या बात है...बहुत अच्छे!
कुमार विश्वास की याद आयी तो उन्हीं के अंदाज में "बहुत अच्छे" कहने की कोशिश की है। अब टिप्पणी में कहने का अंदाज कैसे दिखाऊं?
अच्छा है कुमार विश्वास याद आ रहे हैं !
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शायद भारत के सबसे प्रतिभावान कवि वही हैं इस वक़्त के ...:)
उनका अंदाज भी तो ! :)
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महान गुरुओं का गजल - मंत्र भी महान होता है ! आभार !
sabne itni tareef kar di hai..ab ham ka kahein bhai..
bahut hi sundar rachna..
aabhaar..
बहुत-बहुत धन्यवाद
WAAH....EKDAM SAHI BAAT....
KHOOBSOORAT ANDAAZE BAYAN....WAAH !!!
बिलकुल सही बात है दूर के ढोल ही सुहावने लगते हैं असलीयत पो पास आ कर ही पता चलती है
कंचन बहुत अच्छा लिखती हो बहुत बहुत आशीर्वाद्
वाह कंचन जी मुझे तो आपकी लम्बी पोस्ट और गजलें पढ़ने की आदत है इतने कम शब्दों में पूरे भाव समेट कर हमारी आदत ना खराब करिये नही तो इसका अंजाम ऋणात्मक भी हो सकता है :)
आपको आगे भी यही फार्मेट लिखने के लिए मजबूर किया जा सकता है :)
वीनस केशरी
SHUKRIA ,
BAHUT ACCHA KUCH ALAG HAT KAR LAGA AAPKA MUKTAK AUR ISHQ,BABUJI KA BHI JAWAB NAHIN.
मुक्तक बहुत अच्छा है,पर भाव से मैं सहमत नहीं, क्यूंकि...
लुट के पाते हैं,तब नाम होता है मोहब्बत.
क्या पाएंगे, ये सोच कर किसी से मिला नहीं करते...
ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना
वाह बहुत अच्छी रचना...बशीर बद्र की पंक्तियाँ..."कोई हाथ भी न बढ़ाएगा जो गले मिलोगे तपाक से...." याद आ गयीं...
नीरज
जो ज्यादा समझा किसी को तुमने,
तो दाग फितरत के सब दिखेंगे,
ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना।
बहुत खूब।
जरा स खुद को बचा कर रखना ,बहुत खूब !!!!!!!
"ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना।" -
सहमत हूँ, पर कैसे -
"समझते थे मगर फिर भी न रखीं दूरियाँ हमने
चिरागों को जलाने में जला लीं उंगलियाँ हमने !"
सबने तारीफ़ कर दी पंक्तियों की..
पर मुझे तो फलसफा ज्यादा पसंद आया. क्या पता जिंदगी में सचमुच कोई ऐसा मोड आ भी जाए..
अनारकली का मुजस्समा याद आ गया ।
एक ग़ज़ल सुनी थी कभी ... आपकी लाइने पढ़ कर अचानक याद आ गयी ...
हर हँसी मंज़र से यारों, फंसला कायम रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो खुद से गुम हो जाओगे ....
ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना।
...बेहतरीन पंक्तियाँ ...बधाई हो.
बात तो पते की कही आपने पर मुश्किल ये है कि जब-जब दिल और दिमाग में ठनती है हमेंशा बाजी दिल के पक्ष में जाती है। कहते हैं ना-
जो अक्ल का गुलाम हो वो दिल न कर कुबूल
गुजर जा अक्ल से आगे कि ये नूर चरागे राह है मंज़िल नहीं
कंचन जी ! रचना बहुत सुन्दर बन पड़ी है !तार्किकता और स्वभावगत भावुकता दोनो को साथ साथ लेकर चलती हुई !
sundar bhavpurn rachna
badhai.......
पूरे मुक्तक में जादू तो आखिरी ही पंक्ति ला रही है, उम्मीद है आगे भी ऐसे ही मुक्तकों से रूबरू होते रहेंगे
क्या बात है...
ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना।
वाह ये नया अंदाज है. ग़ज़ल तो खूब पढ़ा है आपका.
गीत गाना मेरे बस का नहीं है.
जरा सी दूरी बना के रखना ,जरा सा खुद को बचा के रखना...क्या बात कही है !मुक्तक जबरदस्त है...इसपर गजल ही लिख देते...पर मुझे ठीक ठाक पता नहीं कि क्या अच्छा होगा...फिलहाल मुक्तक का आनंद ले रहा हूँ!
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