Wednesday, February 17, 2010

एक मुक्तक




बहरे मुतकारिब सालिम मक़बूज असलम (१६ रुक्नी) जिस पर इस बार की तरही भी है और गुरु जी ने ढेरों गीत इस बहर पर बता रखे हैं। इसी बहर पर ये ताज़ा ताज़ा मुक्तक गुरु जी के आशीष से....


मिलो किसी से तो अपना दिल तुम,
ना पूरा पूरा उठा के रखना।
वो जैसा दिखता है, हो कि ना हो,
ये मन को अपने बता के रखना।
जो ज्यादा समझा किसी को तुमने,

तो दाग फितरत के सब दिखेंगे,
ज़रा सी दूरी बना के रखना,

ज़रा सा खुद को बचा के रखना।

34 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया!! सही लिखा...

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

ghughutibasuti said...

सही कह रही हैं।
घुघूती बासूती

पारुल "पुखराज" said...

ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना

ekdum durust baat kahi tumne..thx

Mithilesh dubey said...

बिल्कुल सही और सच कह रही हैं आप ।

neera said...

बहूत खूब!..

Razi Shahab said...

sahi kaha aapne

Udan Tashtari said...

बढ़िया रहा.

डॉ .अनुराग said...

nice!

Manish Kumar said...

ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना

हाँलाकि इस फिलॉसफी पे पहले नहीं चला करते थे। पर इंटरनेट के अनुभवों ने बहुत कुछ ऐसा सोचने पर विवश कर दिया।

"अर्श" said...

ह्म्म्मम्म इस विषय में भी पारंगत !!!!!! कम शब्द मगर खयालात खूब दर्जे की , की है आपने ...


बधाई कुबूलें...

अर्श

गौतम राजऋषि said...

क्या बात है...बहुत अच्छे!

कुमार विश्वास की याद आयी तो उन्हीं के अंदाज में "बहुत अच्छे" कहने की कोशिश की है। अब टिप्पणी में कहने का अंदाज कैसे दिखाऊं?

Amrendra Nath Tripathi said...

अच्छा है कुमार विश्वास याद आ रहे हैं !
.
शायद भारत के सबसे प्रतिभावान कवि वही हैं इस वक़्त के ...:)
उनका अंदाज भी तो ! :)
.
महान गुरुओं का गजल - मंत्र भी महान होता है ! आभार !

स्वप्न मञ्जूषा said...

sabne itni tareef kar di hai..ab ham ka kahein bhai..
bahut hi sundar rachna..
aabhaar..

मनोज कुमार said...

बहुत-बहुत धन्यवाद

रंजना said...

WAAH....EKDAM SAHI BAAT....

KHOOBSOORAT ANDAAZE BAYAN....WAAH !!!

निर्मला कपिला said...

बिलकुल सही बात है दूर के ढोल ही सुहावने लगते हैं असलीयत पो पास आ कर ही पता चलती है
कंचन बहुत अच्छा लिखती हो बहुत बहुत आशीर्वाद्

वीनस केसरी said...

वाह कंचन जी मुझे तो आपकी लम्बी पोस्ट और गजलें पढ़ने की आदत है इतने कम शब्दों में पूरे भाव समेट कर हमारी आदत ना खराब करिये नही तो इसका अंजाम ऋणात्मक भी हो सकता है :)

आपको आगे भी यही फार्मेट लिखने के लिए मजबूर किया जा सकता है :)

वीनस केशरी

लता 'हया' said...

SHUKRIA ,
BAHUT ACCHA KUCH ALAG HAT KAR LAGA AAPKA MUKTAK AUR ISHQ,BABUJI KA BHI JAWAB NAHIN.

राकेश जैन said...

मुक्तक बहुत अच्छा है,पर भाव से मैं सहमत नहीं, क्यूंकि...

लुट के पाते हैं,तब नाम होता है मोहब्बत.
क्या पाएंगे, ये सोच कर किसी से मिला नहीं करते...

नीरज गोस्वामी said...

ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना

वाह बहुत अच्छी रचना...बशीर बद्र की पंक्तियाँ..."कोई हाथ भी न बढ़ाएगा जो गले मिलोगे तपाक से...." याद आ गयीं...

नीरज

सुशील छौक्कर said...

जो ज्यादा समझा किसी को तुमने,
तो दाग फितरत के सब दिखेंगे,
ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना।

बहुत खूब।

सुशीला पुरी said...

जरा स खुद को बचा कर रखना ,बहुत खूब !!!!!!!

Himanshu Pandey said...

"ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना।" -
सहमत हूँ, पर कैसे -

"समझते थे मगर फिर भी न रखीं दूरियाँ हमने
चिरागों को जलाने में जला लीं उंगलियाँ हमने !"

पुनीत ओमर said...

सबने तारीफ़ कर दी पंक्तियों की..
पर मुझे तो फलसफा ज्यादा पसंद आया. क्या पता जिंदगी में सचमुच कोई ऐसा मोड आ भी जाए..

शरद कोकास said...

अनारकली का मुजस्समा याद आ गया ।

दिगम्बर नासवा said...

एक ग़ज़ल सुनी थी कभी ... आपकी लाइने पढ़ कर अचानक याद आ गयी ...

हर हँसी मंज़र से यारों, फंसला कायम रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो खुद से गुम हो जाओगे ....

देवेन्द्र पाण्डेय said...

ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना।
...बेहतरीन पंक्तियाँ ...बधाई हो.

रविकांत पाण्डेय said...

बात तो पते की कही आपने पर मुश्किल ये है कि जब-जब दिल और दिमाग में ठनती है हमेंशा बाजी दिल के पक्ष में जाती है। कहते हैं ना-

जो अक्ल का गुलाम हो वो दिल न कर कुबूल
गुजर जा अक्ल से आगे कि ये नूर चरागे राह है मंज़िल नहीं

ललितमोहन त्रिवेदी said...

कंचन जी ! रचना बहुत सुन्दर बन पड़ी है !तार्किकता और स्वभावगत भावुकता दोनो को साथ साथ लेकर चलती हुई !

Pushpendra Singh "Pushp" said...

sundar bhavpurn rachna
badhai.......

Ankit said...

पूरे मुक्तक में जादू तो आखिरी ही पंक्ति ला रही है, उम्मीद है आगे भी ऐसे ही मुक्तकों से रूबरू होते रहेंगे

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

क्या बात है...
ज़रा सी दूरी बना के रखना,
ज़रा सा खुद को बचा के रखना।

वाह ये नया अंदाज है. ग़ज़ल तो खूब पढ़ा है आपका.
गीत गाना मेरे बस का नहीं है.

प्रकाश पाखी said...

जरा सी दूरी बना के रखना ,जरा सा खुद को बचा के रखना...क्या बात कही है !मुक्तक जबरदस्त है...इसपर गजल ही लिख देते...पर मुझे ठीक ठाक पता नहीं कि क्या अच्छा होगा...फिलहाल मुक्तक का आनंद ले रहा हूँ!