नित्य समय की आग में जलना, नित्य सिद्ध सच्चा होना है। माँ ने दिया नाम जब कंचन, मुझको और खरा होना है...!
Monday, December 1, 2008
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
इस पर क्रोध बढ़ाए कोई या फिर आये लाज,
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
जीवन पा कर जीवन देते मौत दिखाने वालों,
हाहाकार रहित करते कुछ धरती को दुनिया को,
ताकत पा कर कैसा कायर काज किया ये आज।
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
देने वाले ने ताकत दी और उम्र तरुणाई,
और मिटाने खातिर तूने वह उपलब्धि गँवाई,
कैसे तांडव से भर डाला मधुर पखावज साज
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
बाल वृद्ध न देखे तूने, ना भगिनी, ना माता,
क्या पल भर की खातिर भी सोचा होगा ये नाता,
सभी चिरैया जैसे दुबके और तुम जैसे बाज।
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
शस्त्र चलाएं शस्त्रों पर, वो वीर कहे जाते हैं,
डटें रहें जो सीमा पर रणधीर कहे जाते हैं,
जयद्रथ सा जो वार करे वो कौन कहावे आज,
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
कौन जन्म देने वाला था, जिसकी कोख लजाई,
छुप छुप कर रोती तो होगी आज तेरी भी माई,
किसको अश्रु दिखाए, किस से कहे कहानी आज
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
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15 comments:
किसको अश्रु दिखाए, किस से कहे कहानी आज
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
इस ताज की महिमा को बनाए रखे वही आतंकवाद के मुहं पर तमाचा है
इसे दोबारा खड़ा करना होगा ....कंचन ...ओर अपनी इस हताशा को,बैचनी को ....गुस्से को जिलाये रखना होगा ...
किसको अश्रु दिखाए, किस से कहे कहानी आज...kavitaa ki ye panktiyaan pasand aai
आगरा के ताजमहल के लिए कवि कह गया है-
'काल के गाल पर ठहरा एक अश्रु बिन्दु'
इस ताज के लिए क्या कहूँ-
'आह ताज !'
Aadarneeya kanchan jee aapkee pooree kavita bahut gahre dard (jo har hindustaanee ke dil men tees paida kar raha hai)ko abhivyakt kar rahi hain. Aankh bhar aane ke liye kaafee hain. Lekin ye baat bhee ekdum durust farmaai aapne ke दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
"कौन जन्म देने वाला था, जिसकी कोख लजाई" क्या कहें नालायक इनके लिए बहुत छोटा शब्द है !
कौन जन्म देने वाला था, जिसकी कोख लजाई,
छुप छुप कर रोती तो होगी आज तेरी भी माई
http://chitthacharcha.blogspot.com/2008/12/blog-post_01.html
ऐसी ही हैँ स्त्रियाँ जो ऐसे कायरोँ के साथ हैँ -
कँचन,
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी -
bahut badhiya soch achchi rachana . dhnyawad.
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा !
हिन्दी हैं हम, वतन है हिंदुस्तान हमारा :
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा !!
कौन जन्म देने वाला था, जिसकी कोख लजाई,
छुप छुप कर रोती तो होगी आज तेरी भी माई,
किसको अश्रु दिखाए, किस से कहे कहानी आज
दुनिया भर में अचरज बन फिर ताज खड़ा है आज।
क्या कोई माँ ऎसी हो सकती है? जो सोचेगी उसका बेटा आतंकवादी कहलाये या आतंक के भेंट चढ़ जाये...शायद नही
कंचन जी आपने अपने शब्दों से नतमस्तक कर दिया हमें...बहुत सुंदर रचना
और उधर जो आप मेरे पोस्ट पर कह गयीं इतना सारा कुछ कि समझ नहीं आ रहा क्या कहूं
आप जब कमेंट लिखती हैं,तो इ-मेल क्यों नहीं आता आपका?
कंचन, आपकी कविता बहुत अच्छी लगी।
बाल वृद्ध न देखे तूने, ना भगिनी, ना माता,
क्या पल भर की खातिर भी सोचा होगा ये नाता,...
कौन जन्म देने वाला था, जिसकी कोख लजाई,
छुप छुप कर रोती तो होगी आज तेरी भी माई,
कायरों से और क्या आशा कर सकते हैं, वे तो केवल अपनी माताओं के दूध को लजा सकते हैं।
achcha likha hai aapne. dil ko chooti guzri ye rachna
कंचन जी ,
पहले तो मेरे ब्लोग पे पधारने और टिप्पणी करने के लिये आभारी हूं .
यही स्नेह आगे भी बनाये रखेंगी , इसी विश्वास के साथ
डा. उदय ’ मणि ’
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