लोग कहते हैं कि
अब मेरे लिखने में नही रही वो बात जो पहले थी।
कैसे बताऊँ उन्हे,
कि लिखना तो दर्द से होता है।
और मेरा दर्द तो बहुत पुराना हो गया है अब,
इतना ....
कि अब ये दर्द हो गया है साँसों की तरह सहज और अनायास।
चाहे जितनी भी असह्य पीड़ा हो,
आप कितनी देर तक चिल्ला सकते हैं उस पीड़ा से ?
कितनी तरह से कराह सकते हैं ?
अपनी पीड़ा व्यक्त करने के सारे के सारे तरीके तो कर चुकी हूँ इस्तेमाल।
कराहने के लिये प्रयुक्त हर शब्द तो चुकी हूँ उचार।
कितनी कितनी बार......!
कितनी कितनी तरह......!
और अब दर्द पहुँच गया है उस मुकाम पर,
जहाँ कुछ कहने से बेहतर चुप रहना लगता है !
या शायद कहूँ तो क्या ?
कुछ है भी तो नही नया......!!
सुनो....!!
अब मेरे लिखने में नही रही वो बात जो पहले थी।
कैसे बताऊँ उन्हे,
कि लिखना तो दर्द से होता है।
और मेरा दर्द तो बहुत पुराना हो गया है अब,
इतना ....
कि अब ये दर्द हो गया है साँसों की तरह सहज और अनायास।
चाहे जितनी भी असह्य पीड़ा हो,
आप कितनी देर तक चिल्ला सकते हैं उस पीड़ा से ?
कितनी तरह से कराह सकते हैं ?
अपनी पीड़ा व्यक्त करने के सारे के सारे तरीके तो कर चुकी हूँ इस्तेमाल।
कराहने के लिये प्रयुक्त हर शब्द तो चुकी हूँ उचार।
कितनी कितनी बार......!
कितनी कितनी तरह......!
और अब दर्द पहुँच गया है उस मुकाम पर,
जहाँ कुछ कहने से बेहतर चुप रहना लगता है !
या शायद कहूँ तो क्या ?
कुछ है भी तो नही नया......!!
सुनो....!!
अगर सुन रहे हो,
तो तुम्ही से कह रही हूँ
नया तो तब हो "गर तुम लौट आओ.....!!"
नया तो तब हो "गर तुम लौट आओ.....!!"
तमन्ना फिर मचल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ
33 comments:
bahut pyaree chanchal see kavita....
कंचन सिंह जी
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली........ गजब का लिखा है
दिल को छू गयी आप की कविता...
सहसा यह भी टीस सी उठी -जाग दर्दे इश्क जाग दिल को बेकरार कर !
क्या बात है...फिर वो गज़ल!! ओह!
वाकई .नया तो तब हो जब तुम लौट आओ ...खूबसूरत रचना ..
सुंदर भाव ..... खूबसूरत रचना ..
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने .......
पढ़िए और मुस्कुराइए :-
आप ही बताये कैसे पार की जाये नदी ?
ये मौसम भी बदल जाये ....
ग़ज़ब
नया तो तब हो "गर तुम लौट आओ.....!!"
क्या बात कह दी………………और उतनी ही सहजता से कह दी……………बहुत सुन्दर्।
अंत में आते-आते भीतरी मन को इस तरह स्पर्श कर जाती है कविता ...कि...
और अब दर्द पहुँच गया है उस मुकाम पर,
जहाँ कुछ कहने से बेहतर चुप रहना लगता है !
...........
अब
क्या कहूँ....
मैं चुप हूँ...
तो तुम्ही से कह रही हूँ
नया तो तब हो "गर तुम लौट आओ.....!!"
बस यही तो मुश्किल है--- कुछ लोग लौट आने के लिये नही जाते उनका क्या करें। मार्मिक अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
ग़ज़ल तो मेरी पसंदीदा है ही कविता में व्यक्त विचारों से भी सहमति है..दर्द के बिना सृजन वो असर नहीं ला पाता लेखन में..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
"और अब दर्द पहुँच गया है उस मुकाम पर,
जहाँ कुछ कहने से बेहतर चुप रहना लगता है "
बहुत सुन्दर ....
इसमे कुछ बात तो है ।
कुछ कहने को नहीं बन रहा है.............
behad sunder.wah.
भावनाओं की अतिवृष्टि कराती कविता। बधाई।
................
…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
दर्द बस एक ही तरह का हो सकता है क्या ?
क्यॊं न एक "निरपेक्ष दर्द" की संकल्पना करें !!!!!!!!!
बहुत ही भावपूर्ण रचना .... प्रस्तुति के लिए बधाई
मजा आ गया पढ़कर
achchhi kavitaa likhi hai...
jaane kaise likh di...?
achchhi kavitaa likhi hai...
jaane kaise likh di......?
5.5/10
एक ऐसी सहज और साधारण कविता जिसकी
गूँज गहरी है. अच्छी पोस्ट.
नोट : पीड़ा भरे स्वर की निरंतरता अक्सर सामने वाले के एहसास और संवेदना को ख़त्म कर देती है. चुप रहने से जो पीड़ा व्यक्त होती है उसका असर बहुत ज्यादा समय के लिए होता है.
very nice
kanchanji,nam kevanuroop hi kavita me bavon ki chamak hai.
santosh pandey
sarerang.blogspot.com
और अब दर्द पहुँच गया है उस मुकाम पर,
जहाँ कुछ कहने से बेहतर चुप रहना लगता है !
कितनी कितनी बार......!
कितनी कितनी तरह......!
इन शब्दों में अभिव्यक्ति के सामर्थ्य कि सीमा साफ़ दिखाई पद रही है ...
...aap toh hamesha hi achha likhti ho Di!....hoping to meet u soon ...at this time @ ur aashiyana :)
Bahut Sundar...
ये पोस्ट जाने कैसे छूट गयी थी...पढ़ा तो लगा कि ऐसा ही कुछ तो मैं भी लिखना चाहता था।
लेबल में "अकविता" की घोषणा क्यों मगर? आजकल तो यही कविता है, सिस ।
..........यह कवित्व ही है जो घने अन्धकार में भी प्रकाश का विश्वास बनाए रखता है...और शांत होकर, प्रकाश की प्रतीक्षा कर सकता है.इसलिए कवि की सत्ता सार्वभौम एवं सर्वोच्च है......
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