होठों पर जिह्वा पर छाले,
टेर टेर कर हम तो हारे,
सब लौटे पर वो ना लौटे,
ऐसे छूटे छूटने वाले।
भीड़ भरी लंबी सड़कों पर, दूर तलक नज़रें हैं जातीं,
सब मिलते बस तुम ना मिलते, हूक भरी रह जाती छाती
लाखों लाखों मान मनौव्वल, सुबह शाम निशिदिन हर क्षण पल,
सब माने बस वो ना माने,
ऐसे रूठे रूठने वाले।
सारे सुख पर इक दुख भारी, जीवन की बस ये लाचारी,
सब रिश्ते नाते हैं झूठे, सच्ची है बस लगन तुम्हारी,
सीने सब कुछ है जर्जर, जोड़ रहे यादों के खण्डहर,
अब तक खुद को जोड़ ना पाये,
ऐसे टूटे टूटने वाले।
सूखी सूखी आँखों वाली, हँसती हँसती बातों वाली,
अंदर से कितनी सूखी है, ये बगिया हरियाली वाली,
बाहर की लकदक ना देखो,ऊपर की ये चमक ना देखो,
अंदर खाली वीराना है,
लूट गये सब लूटने वाले।
१३-०८-२००७
७ साल....!!! साथ भी तो इतना ही था....!!!! बल्कि विछोह ३६५ दिन का, साथ के दिनो मे तो साथ भी बस दिनो तक सीमित था.....!!!! हाँ मगर अहसास था, कोई है मेरी ताकत....
............................................................................................................................
यही तीज और गणेश चतुर्थी भी तो थी.......!!
गुनगुना रही हूँ ये गीत
फिल्म - साथी
गीतकार मज़रूह - सुल्तानपुरी
संगीतकार - नौशाद
गायक - मुकेश
७ साल....!!! साथ भी तो इतना ही था....!!!! बल्कि विछोह ३६५ दिन का, साथ के दिनो मे तो साथ भी बस दिनो तक सीमित था.....!!!! हाँ मगर अहसास था, कोई है मेरी ताकत....
............................................................................................................................
यही तीज और गणेश चतुर्थी भी तो थी.......!!
गुनगुना रही हूँ ये गीत
फिल्म - साथी
गीतकार मज़रूह - सुल्तानपुरी
संगीतकार - नौशाद
गायक - मुकेश
23 comments:
सारे सुख पर इक दुख भारी, जीवन की बस ये लाचारी,
सब रिश्ते नाते हैं झूठे, सच्ची है बस लगन तुम्हारी,
सीने सब कुछ है जर्जर, जोड़ रहे यादों के खण्डहर,
अब तक खुद को जोड़ ना पाये,
ऐसे टूटे टूटने वाले।
बहुत अच्छा लिखा है...बधाई
नौ साल!!!!!
मुझे पता है कि आप मेरे कमेन्ट का मतलब नहीं समझ पायेंगे, सो परेशान ना हों आप..
यहाँ आकर मैं अक्सर कुछ नहीं कह पाता हूँ... :-।
कुछ रिश्ते भीतर भीतर पलते है ....लहू की खाद पे
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (13/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
Vedna ka ras... khat-mitttha hota hai.. Jante hai nuksaan karega par peene ka man hota hai..
किसी कि याद में सुंदर कविता.
हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए
यही केवन का सत्य है ...आपने शब्द दिए हैं ...भावुक करने वाली रचना ..
विछोह की स्मृतियों की दंश बहुत गहरे होते हैं ! एक लम्बे अंतराल के बाद भी टीस जाती नहीं है! गहन संवेदनशीलता को उजागर करती है आपकी यह रचना !
bahut hi sunder likha hai aapne.....man ko choone wale bhav..... badhai
बहुत से ब्लॉग छानने के बाद इनती छन्दबद्ध और उत्तम रचना पढ़ने को मिली है ... छूटने वाले के प्रति अपने साथ मेरी श्रद्धांजलि भी जोड़ लें ....
उदास कर गयी तुम्हारी पोस्ट...पता नहीं क्यूँ...कुछ दुःख सांझे होते हैं शायद...
नीरज
कितना भी रोंक लो आ ही जाती है..
तेरी याद भी जिद्दी है.. तेरी तरह
छंद वाली कवितायेँ ब्लॉग पर तो कम से कम बहुत कम देखने को मिलती हैं... अगर मिलती भी है तो सामान्यतया स्तरीय नहीं होती... यहाँ अच्छा बन पड़ा है जो बहुत अच्छा होते - होते रह गया है.... उम्मीद करूँगा कि अगली बार और बेहतर कविता के साथ आएँगी...
रही साल कि बात तो सही कहा नौ साल ! धुंधली सीलन और बचने कि कवायद... बुरी बात कि याद रखने कि कोशिश करनी पड़ रही है.
हाँ नौ साल वाली बात प्रशांत कि बात को आगे बढाया गया है ... आपके भी सात नौ में बदलेंगे कभी
सीने (में) सब कुछ है जर्जर, जोड़ रहे यादों के खण्डहर...
यहाँ 'में' जोड़ देने से कैसा रहेगा ?????
बाकी, रचना के भाव सौंदर्य और प्रवाहमयता पर कुछ नहीं मेरे पास कहने को...
बस... मुग्ध भाव से आशीष !!!
सूखी सूखी आँखों वाली, हँसती हँसती बातों वाली,
अंदर से कितनी सूखी है, ये बगिया हरियाली वाली,
बाहर की लकदक ना देखो,ऊपर की ये चमक ना देखो,
अंदर खाली वीराना है,
लूट गये सब लूटने वाले।
बहुत दर्द समेटे है.................
बारहां पढ़ रहा हूँ.
आभार!!आपका गीत यहाँ सुन सकती हैं आप --- ....http://archanachaoji.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
अब जबकि रिलेट कर पा रहा हूँ खुद को तो गीत का एक-एक शब्द का दर्द भीतर तक उतरता जाता है।
मेरा मानना है कि दुख के क्षणों में हर कवि अपना सर्वश्रेष्ठ देता है। तुम्हारे ये और ऐसे तमाम नज़्म तुम्हारी बेहतरीन रचनायें हैं...
गीत सुन्दर है इसका दर्द बांध लेता है ।
भावुक कर दिया आपने...
बहुत ही बढ़िया लगी आपकी कविता। दिल बाग-बाग हो गया।
कंचन जी गाना भी बहुत अच्छा सुनवाया आपपने आपने।
'आँखें खुली थी आए थे वो भी नजर मुझे'
आपकी रचना में चार चाँद लग गए हैं इससे।
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