Saturday, September 11, 2010

वो छोड़ कर गये थे, इसी मोड़ पर हमें




होठों पर जिह्वा पर छाले,
टेर टेर कर हम तो हारे,
सब लौटे पर वो ना लौटे,
ऐसे छूटे छूटने वाले।

भीड़ भरी लंबी सड़कों पर, दूर तलक नज़रें हैं जातीं,
सब मिलते बस तुम ना मिलते, हूक भरी रह जाती छाती
लाखों लाखों मान मनौव्वल, सुबह शाम निशिदिन हर क्षण पल,
सब माने बस वो ना माने,
ऐसे रूठे रूठने वाले।

सारे सुख पर इक दुख भारी, जीवन की बस ये लाचारी,
सब रिश्ते नाते हैं झूठे, सच्ची है बस लगन तुम्हारी,
सीने सब कुछ है जर्जर, जोड़ रहे यादों के खण्डहर,
अब तक खुद को जोड़ ना पाये,
ऐसे टूटे टूटने वाले।

सूखी सूखी आँखों वाली, हँसती हँसती बातों वाली,
अंदर से कितनी सूखी है, ये बगिया हरियाली वाली,
बाहर की लकदक ना देखो,ऊपर की ये चमक ना देखो,
अंदर खाली वीराना है,
लूट गये सब लूटने वाले।

१३-०८-२००७


७ साल....!!! साथ भी तो इतना ही था....!!!! बल्कि विछोह ३६५ दिन का, साथ के दिनो मे तो साथ भी बस दिनो तक सीमित था.....!!!! हाँ मगर अहसास था, कोई है मेरी ताकत....


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यही तीज और गणेश चतुर्थी भी तो थी.......!!


गुनगुना रही हूँ ये गीत



फिल्म - साथी
गीतकार मज़रूह - सुल्तानपुरी
संगीतकार - नौशाद
गायक - मुकेश

23 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

सारे सुख पर इक दुख भारी, जीवन की बस ये लाचारी,
सब रिश्ते नाते हैं झूठे, सच्ची है बस लगन तुम्हारी,
सीने सब कुछ है जर्जर, जोड़ रहे यादों के खण्डहर,
अब तक खुद को जोड़ ना पाये,
ऐसे टूटे टूटने वाले।

बहुत अच्छा लिखा है...बधाई

PD said...

नौ साल!!!!!

मुझे पता है कि आप मेरे कमेन्ट का मतलब नहीं समझ पायेंगे, सो परेशान ना हों आप..

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

यहाँ आकर मैं अक्सर कुछ नहीं कह पाता हूँ... :-।

डॉ .अनुराग said...

कुछ रिश्ते भीतर भीतर पलते है ....लहू की खाद पे

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (13/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

rakesh said...

Vedna ka ras... khat-mitttha hota hai.. Jante hai nuksaan karega par peene ka man hota hai..

अनामिका की सदायें ...... said...

किसी कि याद में सुंदर कविता.

हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यही केवन का सत्य है ...आपने शब्द दिए हैं ...भावुक करने वाली रचना ..

ललितमोहन त्रिवेदी said...

विछोह की स्मृतियों की दंश बहुत गहरे होते हैं ! एक लम्बे अंतराल के बाद भी टीस जाती नहीं है! गहन संवेदनशीलता को उजागर करती है आपकी यह रचना !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

bahut hi sunder likha hai aapne.....man ko choone wale bhav..... badhai

पद्म सिंह said...

बहुत से ब्लॉग छानने के बाद इनती छन्दबद्ध और उत्तम रचना पढ़ने को मिली है ... छूटने वाले के प्रति अपने साथ मेरी श्रद्धांजलि भी जोड़ लें ....

नीरज गोस्वामी said...

उदास कर गयी तुम्हारी पोस्ट...पता नहीं क्यूँ...कुछ दुःख सांझे होते हैं शायद...

नीरज

कुश said...

कितना भी रोंक लो आ ही जाती है..
तेरी याद भी जिद्दी है.. तेरी तरह

सागर said...

छंद वाली कवितायेँ ब्लॉग पर तो कम से कम बहुत कम देखने को मिलती हैं... अगर मिलती भी है तो सामान्यतया स्तरीय नहीं होती... यहाँ अच्छा बन पड़ा है जो बहुत अच्छा होते - होते रह गया है.... उम्मीद करूँगा कि अगली बार और बेहतर कविता के साथ आएँगी...

रही साल कि बात तो सही कहा नौ साल ! धुंधली सीलन और बचने कि कवायद... बुरी बात कि याद रखने कि कोशिश करनी पड़ रही है.

सागर said...

हाँ नौ साल वाली बात प्रशांत कि बात को आगे बढाया गया है ... आपके भी सात नौ में बदलेंगे कभी

रंजना said...

सीने (में) सब कुछ है जर्जर, जोड़ रहे यादों के खण्डहर...

यहाँ 'में' जोड़ देने से कैसा रहेगा ?????

बाकी, रचना के भाव सौंदर्य और प्रवाहमयता पर कुछ नहीं मेरे पास कहने को...
बस... मुग्ध भाव से आशीष !!!

Ankit said...

सूखी सूखी आँखों वाली, हँसती हँसती बातों वाली,
अंदर से कितनी सूखी है, ये बगिया हरियाली वाली,
बाहर की लकदक ना देखो,ऊपर की ये चमक ना देखो,
अंदर खाली वीराना है,
लूट गये सब लूटने वाले।

बहुत दर्द समेटे है.................
बारहां पढ़ रहा हूँ.

Archana Chaoji said...

आभार!!आपका गीत यहाँ सुन सकती हैं आप --- ....http://archanachaoji.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html

गौतम राजऋषि said...

अब जबकि रिलेट कर पा रहा हूँ खुद को तो गीत का एक-एक शब्द का दर्द भीतर तक उतरता जाता है।

मेरा मानना है कि दुख के क्षणों में हर कवि अपना सर्वश्रेष्ठ देता है। तुम्हारे ये और ऐसे तमाम नज़्म तुम्हारी बेहतरीन रचनायें हैं...

शरद कोकास said...

गीत सुन्दर है इसका दर्द बांध लेता है ।

ZEAL said...

भावुक कर दिया आपने...

Unknown said...

बहुत ही बढ़िया लगी आपकी कविता। दिल बाग-बाग हो गया।

Unknown said...

कंचन जी गाना भी बहुत अच्छा सुनवाया आपपने आपने।

'आँखें खुली थी आए थे वो भी नजर मुझे'
आपकी रचना में चार चाँद लग गए हैं इससे।