Friday, October 30, 2009

यूँ ही



सुबह से रोक रही हूँ खुद को, मगर नही रुक पाई आख़िर....! बस लिखती चली जा रही हूँ जुनून में...यहाँ क्यों लिख रही हूँ ? पता नही.... सुबह से कई जगह दिमाग लगाना चाहा मगर नही.... यही आ कर लग जता है।

बार बार प्रश्न आ रहे हैं। क्या जिंदगी का कोई फॉर्मूला भी होता है ? क्या जिंदगी के shortcut भी होते हैं ? अगर होते हैं तो क्या long lasting होते हैं ?? क्या हर चीज के करने के पहले कोई कारण होता है ??? क्या हम रिश्ते बनाने के पहले ओहदे देखते हैं ???? ये सोच कर किसी से जुड़ते हैं कि इससे रिश्ता बनाना भविष्य में ये फल दे सकता है और क्या रिश्ते इतने सुविचारित हों सकते हैं?????

नही..नही ...नही... नही...!!! फिर...??फिर ऐसा क्यों लगा ?????

पता नही...! पता नही कि मैं आखिर लिखना क्या चाह रही हूँ। मगर बस इतना जानती हूँ, कि जिंदगी जैसी दिखती है वैसी ही नही है। हर होने के पीछे कितनी बार का ना होना होता है उसका ज़िक्र नही होता...नही किया जाता...!! और नही किया जाता इसका मतलब ये नही कि जो हुआ वो दूसरे के साथ आसानी से हो गया। उसे भी वो चीज़ उतनी ही कठिनाई से मिली है जितनी आपको। बस उसने ढिंढोरा नही पीटना चाहा। उसने नही चाहा कि असफलता पर लोगो की संवेदनाएं मिले। क्यों कि संवेदनाएं १०० में सिर्फ २ ही सच्ची होती है। बाकि औपचारिकता और पीछे उपहास..बस यही होती हैं...!

लोग कहते हैं कि मैं अक्सर रोने धोने वाली बात लिखती हूँ...! सब कहते हैं तो सच ही कहते हैं। मगर जहाँ तक मुझे याद है मैने कभी अपनी किसी व्यक्तिगत त्रासदी का ज़िक्र नही किया होगा। कुछ अपनो की पुण्यतिथि के अलावा, क्योंकि उस दिन इतना तो अधिकार है कि अपने पन्ने को अपने रंग में रंग सकूँ। मगर जिंदगी के फलसफे इतने आसाँ भी नही थे। मगर क्या करना है उन बातों का ज़िक्र करके....! ज़िक्र तो ये है कि आप सब हैं आज। आप सब का साथ है। कुछ सच्चे मित्र हैं। उनका प्रोत्साहन है ...!! मगर ज़िक्र ना होने का अर्थ घटित ना होना नही, ये सबको समझना चाहिये। कोई भी हो.. वो जिस स्थान पर है वो उसकी अपनी मेहनत है। वैसे तो सीढ़ियों तक आने के रास्ते ही बहुत कठिन होते है...मगर फिर भी अगर मान लीजिये एक बार कोई सीढ़ी तक पहुँचा भी देगा तो उन्हे चढ़ने की ऊर्जा तो खुद ही लगानी होगी..! और बुलंदी पर पहुँच कर फिर उसी जगह पर बने रहने का कोई शॉर्टकट नही है। वैसे तो जहाँ तक मुझे पता है न सीढ़ियाँ आसानी से मिली, ना उन तक के रास्ते....!!!

सब को मेरा रहन सहन और खाना पीना दिखता है,
हमने कितने कच्चे पक्के सपने बेंचे उनका क्या...?


सब सिर से ऊपर गुज़र रहा है ना आप लोगों के..?? जाइये कहाँ फँस गये मुझ झक्की के चक्कर में..! मैं भी जा रही हूँ कुछ दिनो को ब्लॉगजगत से दूर...! बिटिया (भाजी) की शादी है तैयारी करनी है भाई....! मगर कहीं कहीं झाँकती मिलूंगी बीच बीच में...! :)

29 comments:

कुश said...

बाते तो बहुत गहरी कर डाली... सब समझ ले तो अच्छा है.. वैसे स्वार्थ के लिए किसी से दोस्ती करने पर करने वाले का उतना बुरा नहीं होता है जितना की जिससे दोस्ती की गयी है उसका..
वैसे ये बताओ ये झक्की क्या होता है.. ?

अजित गुप्ता का कोना said...

आज ऐसा ही अनमना मन था, फिर यह पोस्‍ट देखकर लगा कि कोई और भी है जो आज अनमना है। संवेदनाएं जताना हृदय की बात है जिनके हृदय व्‍यापारी हैं वे भला संवेदना को कैसे बयान कर सकेंगे। आज मेरी पोस्‍ट भी पढ़ ही डालिए।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

kam shabdon mein bahut hi gahri baaten kahin hain aapne.........

बार बार प्रश्न आ रहे हैं। क्या जिंदगी का कोई फॉर्मूला भी होता है ? क्या जिंदगी के shortcut भी होते हैं ? zindagi ka koi bhi formula nahi hai.... shortcut to bilkul bhi nahin........

bahut achchi lagi yeh post...

भंगार said...

अलग कुछ सोचना अपने में एक अलग बात है ...और कुछ आप ऐसा कर रहीं है

vandana gupta said...

aaj lagta hai sab ek jaisi soch aur ek jaise halat walon ka hi din hai...........zindagi shayad aisi hi hai............bahut hi sahi baat kahi hai ........iske baare mein kuch nhi kah sakte.

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

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जय ब्लोगिग-विजय ब्लोगिग
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कंचन सिंहजी चौहान
shortcut कभी भी long lasting नही होते है। कुछ पल खुशिया सम्भव है किन्तु स्थाई नही।
आपने भावात्मक सोच को अपने पन्नो पर उकेरा है। अमुमन हर प्राणी की मानसिक हाल को दर्शाती
हुई आपकी लेखनी मे दुर-दृष्टीता का असहास हुआ। सुन्दर बाते, उपयोगी सन्देश।

आप तो बिटिया (भाजी) की शादी कि तैयारीया करे, हमारी शुभकामनाऍ कंचनजी आपको और आपके परिवार को।
♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥


मगलभावनाओ सहीत

हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION
द फोटू गैलेरी
महाप्रेम
माई ब्लोग

रंजना said...

Gahan chintan ????? lekin kyon ?????

नीरज गोस्वामी said...

सही कहा है आपने जो भी कहा है लेकिन क्यूँ और किस सन्दर्भ में कहा है ये मालूम नहीं पड़ा...चलिए आपको अधिक नहीं पूछते...भांजी की शादी को को खूब एन्जॉय कीजिये और अगर मिठाई बच जाये तो हम जैसों को पार्सल कर दीजिये...खुश रहिये...क्यूँ की ये आपके बस में है...
नीरज

गौतम राजऋषि said...

तुम भी ना...!!!

मत सोचा करो इतना। जो है, सो है...उसका कोई और विकल्प नहीं। लोगों को सच में सिर्फ सफलतायें दिखती हैं। अभी देखो ना धोनी ने शतक बनाया तो सबको दिखा, लेकिन उसके पीछे उसकी कितनी नेट-प्रैक्टिस, कितने बहाये गये पसीने, कितना डाई-कंट्रोल, कितना समर्पण...ये सब किसको दिखता है।
गुरूजी को ही देख लो, कितना संघर्ष किया है उन्होंने। हमें आज उनकी ज्ञानपीठ से छपी कहानी संकलन दिख रही है, लेकिन उनकी कितनी मेहनत, कितना परिश्रम इन्वाल्व होगा हम कल्पना भी नहीं कर सकते...मेरी वागर्थ में छपी ग़ज़लों को लो, छः बार रिजेक्ट किया था इससे पहले संपादक महोदय ने मेरी भेजी रचनाओं को। लेकिन मैं भेजता रहा...और आखिरकार दो ग़ज़लें छप गयीं....
grow up dear sis...dont pay heed to all these sentiments....come on cheer up now and give attention to neha!
god bless you!

संगीता पुरी said...

'हे प्रभु ये तेरा पंथ' द्वारा कही गयी सारी बातों से अक्षरश: सहमत .. मेरी भी वही टिप्‍पणी समझें !!

सुशील छौक्कर said...

बहुत गहरी गहरी बातें यूँ ही लिख डाली। पढकर ऐसा लगा जैसे मेरे मन की बात ही लिख डाली हो। पर जिदंगी को समझा नही जीया जाता है। कुछ ऐसी बातों यूँ ही बहा देना चाहिए। इतनी गहराई में जाके मत सोचा कीजिए आप जिदंगी को। गौतम जी ने सही कहा। और हाँ नीरज जी की बात का ध्यान रखना जी।

डॉ .अनुराग said...

जब बीस की उम्र मर मेडिकल कॉलेज में गए तो बड़े फोर्मुले बनाये ...पर जिंदगी के एक्साम में कई फेल हो गए .कई रिश्ते बने .... कई हाथ से फिसले .......८ साल बाद ये तय हो गया के कोई फार्मूला नहीं होता....कई शोर्टकट वालो को देखा .......कई प्लान वालो को देखा ....कोई कामयाब ओर कोई ओंधे मुह ....चित्रगुप्त का हिसाब कभी अपनी समझ नहीं आया .....शायद भगवान् भी ओवर लोड के शिकार है .....
रिश्ते तय करते है ओहदे ....बरसो से ये ज़माने की रीत है .....हमने अपनी आँखों से देखा ....महसूस किया है ....यूं सोचो के रिश्तो की एक रेंक बनायीं ....सबको उसमे करीने से रखा...कभी किसी का असल चेहरा दिखा .तो अफ़सोस किया ...ये भी गया ...पर अच्छा है ना ...असल चेहरा सामने आया ...
अभी श्रीलाल शुक्ल जी को सम्मान मिला ..जानकार हैरान होगी उनके राग दरबारी को उस वक़्त के बड़े आलोचक श्रीपत राय ने "यह बहुत बड़ी उब का महाग्रंथ "व् अतिशय उबाने वाली कुरुचिपूर्ण ओर कुरिचित क्रति" कहकर खारिज कर दिया था .....ओर देखिये ज़माना आज उन्हें इसके नाम से ही जानता है ......लाब्बे लुआब ये के ..उन जुमलो उन वाक्यों को तरजीह दो जो मायने रखते है .......बाकी सब मिटटी
कभी कभी यूं भी लिख देना चाहिए ...क्यूंकि वही तो खालिस प्योर जज़्बात है ... है ना.......गुलज़ार की एक नज़्म है ......





मेरे कपड़ो में टंगा है तेरा खुशरंग लिबास
घर पे धोता हूँ मै हर बार उसे
ओर सुखा के फिर से
अपने हाथो से इस्त्री करता हूं मगर
इस्त्री करने से जाती नहीं शिकने उसकी
ओर धोने से गिले शिकवो के चकत्ते नहीं मिटते
जिंदगी किस कदर आसां होती
रिश्ते गर होते लिबास -
ओर बदल लेते कमीजों की तरह

दर्पण साह said...

:)

Or...

:(

or...

??

Maybe, Definitely.

दर्पण साह said...

@Anurag Sir....
"कभी किसी का असल चेहरा दिखा .तो अफ़सोस किया ...ये भी गया ..."

Anurag sir out of context comment kar raha hoon aapke is comment par...
Pats nahi kyun gulzar sa'ab ki uple yaad gayi.

राकेश जैन said...

sab upar se guzar gaya par dil me ghare utar gaya..

पुनीत ओमर said...

अगर सब कुछ प्लान कर सकते तो जीने में मजा ही क्या होता.. आज यूँही बहुत कुछ कह दिया आपने. अगली बार सच में कहना चाहेंगी तो क्या होगा..
वैसे ज्यादा क्या होगा.. दो चार और फलसफे और खुलेंगे और जिंदगी का कोई नया मतलब समझ आएगा जिसको समझने की समझ अब तक नहीं समझ में आई थी. :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरे आज कंचन बिटिया कोइ उलझन में डूबी हुईं हैं ऐसा महसूस हो रहा है
आनेवाली शादी में मज़े करना और तस्वीरें भी दीखलाना - अब मुस्कुरा भी दो :)
बहुत स्नेह के साथ
- लावण्या

पंकज सुबीर said...

सफलता का कोई शार्ट कट नहीं होता । यदि आप किसी क्षेत्र को अपना शतप्रतिशत समर्पण नहीं दे सकते तो मैदान को दूसरों के लिये खाली कर दें, भीड़ न बढ़ायें । ये सफलता का एक क्रूर सिद्धांत है । सफलता का एक और क्रूर सिद्धांत ये है कि पक्ष्‍पात अनुराग द्वेष से जुगनू की चमक को छिपाया जा सकता है किन्‍तु सूरज की चमक को नहीं । खुदी को कर बुलंद इतना.......
अभी नाम तो याद नहीं आ रहा लेकिन किसी का शेर है
बुलंदियों पे पहुंचना कोई कमाल नहीं
वहां पहुंच के ठहरना कमाल होता है

"अर्श" said...

इशारे इशारे में गुरु वर ने बहुत कुछ कह डाला है ... आपकी आज की पोस्ट से एक बात तो साफ़ है के जो लगन और भूक आपके पास है वो आपको इंसा अल्लाह और आगे लेकर जायेगा ... मुझे याद है गुरु जी ने एक बात कही थी मुझे के जहाँ रहो अपना सर्वश्रेष्ठ दो अगर नहीं देते मतलब हारे हुए हो मतलब सर्वश्रेष्ठ की बात होती है अगर देते हो तो सही है अगर नहीं दे रहे तो हट जावो ....हमारे पास म्हणत के अलावा और कुछ नहीं ,... मुन्नवर साहिब का एक शे'र है ..
खुदकुशी करने पे आमादा थी नाकामियां मेरी
दिवार पे चढ़ती हुई मुझको छुटी मिल गयी ...

निरंतर प्रयास ही सफलता की कुंजी है ... और हराना हमारे डिक्शनरी में नहीं है बहन जी ... जब लोग जीत जाते हैं तभी लोग उसे पूछते हैं और पूजते भी है और तब जाकर उस इंसान को ख़ुशी से ज्यादा इस बात से दुःख होता है के कल तक यही लोग कहाँ पे थे... और शायद वो दुःख असल का होता है ...
आपकी आज की लेख से यह तो सभी हो चुका है के कितनी बारीक नज़र रखती हैं आप हर चीज पर और यही असलियत होतीहै श्रेष्ठ लेखक की .... तमाम उम्मिदिया हमारे पास है और है और हद है जिसे हम पार कर जाते हैं....
जल्द लौट कर आईये इंतज़ार रहेगा आपका गुरुकूल में.....
जब भी बुरा लगे मुझे से बात करलेना ... बेवजह की मसरूफियत है मगर आपके लिए हमेशा ही समय है मेरे पास...

आपका
अर्श

Arshia Ali said...

दुनिया जो कहती है कहती रहे, आप अपने मन का लिखती रहें। जिसे पढना होगा पढेगा, नहीं तो पतली गली से निकल लेगा।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं

शरद कोकास said...

विवाह की तैयारियाँ कीजिये .. ज़िन्दगी यही है ।

Dr. Sudha Om Dhingra said...

कंचन आप में अपनी बात कहने की ताकत है--लिखती रहें --आप के दोस्त पढ़ेंगे. हर मूड को उजागर करना भी एक कला है.
अनुज सुबीर हर पोस्ट में कुछ न कुछ ऐसा कह जाते हैं -कि समझ दार के लिए इशारा काफी है. बहुत अच्छे मार्गदर्शक हैं वे.
ख़ुशी -कुशी शादी की तैयारी करो --बधाई..

Unknown said...

शायद पहली बार लिखते वक्त आप इतनी कन्फ्यूज नजर आ रही हैं

निर्मला कपिला said...

aaj sirf do blogs par aayee hoon ek tumhare bhai ke blog par aur ek tumhare blog par bas aisa hi kuch mera man ho raha hai shayad is liye adhik nahin kahoongi bhagavan tumhen bulandiyon par le jaye. bahut bahut asheervaad. bas 5-10 min computer par baithhane ki izazat milati hai is liye adhik nahin likh sakee

Neha Dev said...

कंचन,

उलझनों के महीन परदे से छन के आती है उम्मीदें अक्सर. आप बहुत सुंदर लिखती हैं.

Ankit said...

नमस्ते कंचन दीदी
कुछ ज्यादा ही परेशां दिखाई दे रही हैं, ज्यादा टेंशन लेने का नहीं मांगता.
बहुत सोचती हैं आप ना जाने कौन सी उधेढ़ बुन में ये सब लिख डाला है मगर कोई ना कोई बात तो ज़रूर है मगर उसका इलाज भी आपके पास ही है बस उसे ढूँढने की ज़रुरत है, (मैं कुछ ज्यादा दार्शनिक हो रहा हूँ).
शादी में मस्त मिठाई खाना और खूब बातें करना मन प्रसन्न हो जायेगा.

!!अक्षय-मन!! said...

बहुत गहराई से लिखती हैं आप शब्दों मे डूबकर
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....

अक्षय-मन "मन दर्पण" से

manu said...

??????
????

Unknown said...

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन् ।