पिछली दीपावली पर गुरू जी के ब्लॉग पर एक कविता दी थी... इस बार अपने ब्लॉग पर वही कविता लगा रही हूँ....!
आप सभी को दीपावली की जगमग जगमग शुभकामनाएं
आँसु की लौ दिप-दिप कर के, सारी रजनी दमकायेगी,
तुम दीपमालिका बन कर के जब लौटोगे इस मावस में,
वो कोई भी हो रात सजन, वो दीवाली बन जायेगी।
आँखों के आगे तुम होगे, तन मन में इक सिहरन होगी,
मेरी उस पल की गतिविधियाँ, क्या फूलझड़ी से कम होंगी?
तेरी बाहों में आने को इकदम बढ़ कर रुक जाऊँगी,
मैं दीपशिखा जैसी साजन बस मचल मचल रह जाऊँगी
वाणी तो बोल ना पाएगी, आँखें वाणी बन जायेगी
वो कोई भी हो रात सजन, वो दीवाली बन जायेगी।
तुम एक राम बन कर आओ, मैं पुर्ण अयोध्या बन जाऊँ,
तुम अगर अमावस रात बनो, मैं दीपमालिका बन जाऊँ।
तुम को आँखों से देखूँ मैं, मेरा श्री पूजन हो जाये,
हर अश्रु आचमन हो जाये, हर भाव समर्पण हो जाये।
लेकिन तुम बिन पूनम भी तो मावस काली बन जायेगी
वो कोई भी हो रात सजन, वो दीवाली बन जायेगी।
36 comments:
तुम एक राम बन कर आओ, मैं पुर्ण अयोध्या बन जाऊँ,
तुम अगर अमावस रात बनो, मैं दीपमालिका बन जाऊँ।
खूब सुंदर !!
इस दीवाली तुम्हारी सभी कामनायें पूरी हों--
सुन्दर गीत है।
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीवाली आप के लिए समृद्धि लाए।
बहुत बढ़िया कंचन. बहुत ही सुंदर.
दिवाली मंगलमय हो.
बहुत सुंदर !
दीपमालिके का आना मंगलमय हो !
तुम एक राम बन कर आओ, मैं पुर्ण अयोध्या बन जाऊँ,
तुम अगर अमावस रात बनो, मैं दीपमालिका बन जाऊँ।
तुम को आँखों से देखूँ मैं, मेरा श्री पूजन हो जाये,
हर अश्रु आचमन हो जाये, हर भाव समर्पण हो जाये
अगाध प्रेम समर्पण होता है इसमें इतना डूबकर लिखना बहुत गहरी अनुभूति मांगता है !आप खुशकिस्मत हैं कि ईश्वर ने आपको इससे नवाजा है कंचन जी !भावनाओं कि ऐसी तीब्रता उद्वेलित कर देती है मन को , और यही कवि की सार्थकता है !
बहुत बढ़िया=बहुत उम्दा!!
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
बहुत बढिया, आपको भी सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये।
एक एक शब्द से भाव बह रहा है
प्रेम जब समर्पण लिये हो
तब पवित्रता की हद्देँ पार कर जाता है इसी तरह लिखो
और दीपमालिका - सी
उज्ज्वलित हो !
बहुत स्नेह सहित ,
दीपावली पर शुभकामना
- लावण्या
& aah...I loved the Picture on your Pst :)
कंचन जी, इतनी प्यारी रचना पर इतनी देर से टिप्पणी देने का क्षमाप्रार्थी हूँ। कुछ दिनों से बहुत व्यस्त था। कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिये उतने ही कोमल शब्द और उतना ही सुंदर संयोजन! बहुत पसंद आई। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
दिपावली की शूभकामनाऎं!!
शूभ दिपावली!!
- कुन्नू सिंह
सत्य वचन। जब अपने प्रिय पास हों, तो हर दिन दीवाली सा ही होता है।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
दीपावली की अनन्त शुभकामनाओं सहित
सुनील आर.करमेले, इन्दौर
पाठक को आत्मीयता देने वाली रचना /अमावस की रात्रि में दीपमालिका बन जाना /अनुपस्थिति में पूनम का अमावास बन जन /फुलझडी की उपमा एक ऐसे अलंकार की ओर इंगित करता है जो अब तक अछूता रहा एक ऐसी अभिव्यक्ति का प्रयास जो अंतर्मन को छूले /सरल किंतु गंभीर ,/अश्रु का आचमन और दर्शन से पूजा =काव्य साधना और वाक्य साधना का आह्साद कराती रचना /बधाई /दीपावली शुभ हो /
तुम एक राम बन कर आओ, मैं पुर्ण अयोध्या बन जाऊँ,
तुम अगर अमावस रात बनो, मैं दीपमालिका बन जाऊँ।
तुम को आँखों से देखूँ मैं, मेरा श्री पूजन हो जाये,
हर अश्रु आचमन हो जाये, हर भाव समर्पण हो जाये।
लेकिन तुम बिन पूनम भी तो मावस काली बन जायेगी
वो कोई भी हो रात सजन, वो दीवाली बन जायेगी।
बहुत खूब कंचन तुम्हारे ब्लॉग पर आता हूँ तो माँ के साथ तुम्हे देखकर लगता है मां की प्यारी बेटी हो तुम ......
आपको व् परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली की शुभकामनाये
सुंदर कविता, अच्छा लगा पढ़ कर । अब तो दीपावली आ ही गई सो आपको भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
दीपावली पर दीपशिखा सा गीत पढ़ कर मजा चौगुना हो गया
बधाईईईईईईईईईई
RAMESH SINGH (LONDON)
very very happy DIWALI
TUMHARI JINDAGI ME DIWALI JAISI JAGMAGAHAT BANI RAHE HAI, AHI HAMARI SUBHKAMANA HAI, TUMHARI KABITA BAHUT BAHUT SUNDAR HAI, ISE ACHHA MAIN TO SOCHI NAHI SAKTA
EXECELLENT.
दीवाली की हार्दिक बधाईयाँ कंचन...और इतनी सुंदर रचना की प्र्स्तुती के लिये आभार
di bahut sundar bhav....
shubh deepotsava
कंचनजी,
एक सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये साधुवाद.
हर अश्रु आचमन हो जाये, हर भाव समर्पण हो जाये।
सादर
तुम एक राम बन कर आओ, मैं पुर्ण अयोध्या बन जाऊँ,
तुम अगर अमावस रात बनो, मैं दीपमालिका बन जाऊँ।
क्या खूब लिखा है आपने. शुभकामनाएं. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
कंचन जी को गज़ल पसंद आयी,और हम आभार से नतमस्तक
सही कहा आपने, पिया साथ हों तो हर दिन दीवाली है।
कंचन दीवाली कुछ लंबी नहीं हो गयी..
कुछ लिखो अब..
कहां फंसी हो...?
शेर पसंद आया और हम फिर से आभारी.दो शिकायतें आपसे....
आप टिप्पणी हिंदी में नहीं लिखती और दूजा योगेन्द्र जी वाली कि इतने दिनों से कुछ लिखा क्यों नहीं
जिस रात नयन के दीवट में, भावों का तेल भरा होगा,
आँसु की लौ दिप-दिप कर के, सारी रजनी दमकायेगी...
सरस, सुन्दर...
भावो को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी है आपने इस कविता में ! बहुत शुभकामनाएं !
पिछले साल इस ब्लॉग का पता नहीं था गुडिया...
अभी भी बस..दिवाली की बधाई देने आया था...
पहले तो खूब मन से कविता पढ़ी...खूब मन से...
कमाल के लेखन पर हक्का बक्का सा कमेंट्स देने आया तो फिर हैरान रह गया......
भीतर कमेंट्स बोक्स में मेजर साब को उसी पुराने गिटार के साथ देखा और थोडी देर को उन दिनों में खो गया जब हम सिर्फ एक दुसरे को कमेंट्स देते थे .....
:)
देर बाद जब उन कमेंट्स पर नवम्बर २००८ की तारीख पर नजर पड़ी ...तो अपनी अक्ल पे तरस आया....
लगा जैसे दिवाली के दिन अप्रैल-फूल बन गए हैं हम....
:)
:)
बहुत खूब लिखा है गुडिया....
आपको और सभी पाठकों को दिवाली मुबारक हो...
आज पहली बार मुझे जलन हो रही है जब मनुजी आपको गुडिया पे गुडिया कह के संबोधित कर रहे है ... वेसे मैं जलता नहीं हूँ मगर क्या करूँ आपको मेरे से ज्यादा पार कोई कैसे कर सकता है ... हा हा हा ... आपकी इस कविता तक मैं पिछली बात नहीं पहुँच पाया था इस बारी आपकी ही मेहरबानी कहूँगा इसे फिर से लगाया आपने और मुझे इत्तालाह भी दी .... बेमिशाल कविता है बहुत बहुत बधाई इसकेलिए अगाध प्रेम में डूबी हुई कविता ... नतमस्तक हूँ ...
अर्श
wese manu jise koi shikayat nahi hai wo hain hi itane badhiya insaan ke milne ke baad kataee nahi lagtaa ke pahali mulaakat ho rahi hai .... manu ji anyathaa naa len.. aap mere bhi bade bhaee hain...
arsh
अमा ...........
अर्श भाई...
आपके पहले वाले कमेन्ट का 'लुत्फ़' उठाने आये थे हम तो...
आपके एक और कमेन्ट चिपका दिया...
हमारा सारा मजा ..( बस ज़रा सा...किरकिरा कर दिया )
जोर से ठहाके लगाने का मन हो रहा है..
"कंचन जी"...लगता है सदियों पुरानी बात हो गयी।
अच्छा किया तुमने इस पोस्ट को वापस लगा कर...तो इस दिन से तुम रोमन में टिप्पणी करने लगी हो बहना और ब्लौगवालों का उद्धार हो गया।
हें हें हें..
और ये मनु जी और प्रकाश का क्या चल रहा है? तुम क्यों सब में झगड़ा लगाती रहती हो?
...और हाँ, कविता भी अच्छी है :-)
आज भाई दूज है ....सारे भाई झगड़ा कर लेना तो बताना... टीका लगाना है, उसके बाद....!
यार अर्श ...! अपनी बात पर स्टैंड ना ले पाया करो तो शुरु ही ना किया करो...! हड़क गये मनु भाई से और वहाँ भी मक्खन लगाने लगे...:)
oye main sirf aapko jyada pyaar karta hun sabse jyada...thik hai koi makhkhan waali baat nahi hai ... samje... aur jaldi se kaju ki barfi bhi mujhe hi milni chahiye... okie...
arsh
aapki sari raaten diwali ban jayen, yahi shubhkamnAyen
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