२२ सितं० और आज ०७ अक्टूबर... बीच मे बहुत कुछ गुज़रा... जाने क्या क्या... ठीक से दर्ज़ भी नही है..याद करूँ तो कहीं से कुछ और कहीं से कुछ उग आता है।
बहुत कुछ २२ सितंबर से भी पहले का..लगता है कि ये जो उस दिन हुआ था.... वो जो उस दिन कहा था क्या सब इस २२ सितंबर की भूमिका थी उस सूत्रधार द्वारा। या जो २२ सितंबर को हुआ वो सब कहीं आगे कहानी बढ़ने का एक अंक है ..... कुछ समझ में नही आता...! जिंदगी अजब हादसे कराती है खुद में। जब ये होना था उसी के कुछ दिन पहले अचानक ये क्यों हुआ ? और उस दिन भी ... उसके पहले भी बार बार मन को बुरा भला कहा..नकरात्मक क्यों सोचता है ये ..?? अचानक फोन कर के कहना "देखो इस दिन ये ना करना...ये ठीक नहीं।" और दूसरी तरफ ठहाका लगना.... दो चार बार पागल कहना और फिर अगले दिन वो काम बिना मुझे बताये ही छोड़ देना क्योंकि बात अपने नही उस दूसरे पागल के विश्वास की है...!! अचानक दुआओं मे किसी का नाम आ जाना...! उस दिन भी कितनी चीजें करना या ना करना सिर्फ अपने शुभ अशुभ के वहमों के चलते और सब के बावज़ूद अचानक ये हो जाना....!
समझ नहीं आ रहा कि मेरे बार बार विपरीत सोचने से ये हुआ या ये होना था इसलिये मैने विपरीत सोचा या बस इतना ही हो कर रह जाये इसके लिये पहले से मन में शंकाएं आईं और प्रार्थना की मात्रा बढ़ा दी गई......! पता नहीं..मुझे कुछ पता नहीं...!
मैं उनकी बात नही कर रही...उनके विषय में तो सबने खूब लिखा...सबने दुआएं की.... सबने प्रेम दिया..! वाक़ई अच्छा भी लगा और गर्व भी हुआ कि जिससे रक्षा का वचन लिया वो इस क़ाबिल है-
दिलवर के लिये दिलदार हैं वो
दुश्मन के लिये तलवार हैं वो
बात उनकी करूँगी जिस का इस समर में नाम भी नही और योद्धा भी महान है जो...जिसके हाथ में तलवार भी नही मगर लड़ाई जीतने का जज़्बा जिससे होकर जाता है।
उस दिन जब ये सब हुआ जो आप सब को पता है, तब..बार बार ये अफसोस हुआ कि वीर जी के दो तीन बार ज़िक्र के बावज़ूद संजीता भाभी का नं० लिया क्यों नही ?? बात उनसे हुई थी कई बार और वीर जी के माध्यम से संदेशे अब भी इधर उधर भेजे जाते थे..मगर फोन नं देहरादून का नही था। खबर जो मेरे पास थी यूँ तो पता था कि विश्वसनीय है, मगर जिसने बताई थी वो हमेशा हर बड़ी बात को बहुत हलका कर के बताता है। (असल चोट तो अभी दो दिन पहले पता चली है) वरना बस ठीक है, ज्यादा नही लगा है।
तो लग रहा था कि भाभी को फोन करने से सही स्थिति पता चल जायेगी... दिमाग को शांत कर के राह ढूँढ़ी तो राह ये मिली कि गुरु जी से संजय चतुर्वेदी जी का नं० माँगा और संजय जी से भाभी का। फोन पर
"हाँ भाभी मै कंचन बोल रही हूँ।"
"हाय कंचन ..कैसी हो ??"
"ठीक हूँ भाभी आप कैसी है..?"
"मै ठीक हूँ..." के साथ शायद उनके दिमाग में कुछ आया और उन्होने पूँछा
"भईया से तुम्हारी बात हुई ?"
"कहाँ भाभी"
"ओह..तभी तुम ऐसे बात कर रही हो...! कुछ नही हुआ भईया को कंचन। he is very fine.बस हलका सा छिल गया है। उन्हे आई०सी०यू० मे रखा है ना इसलिये बात नही हो पा रही उनसे। तुम बिलकुल चिंता ना करो बच्चे..!"
बाप रे... खुद पे शर्म आने लगी। जो बात मैं जान रही हूँ, वो ये भी जान रही हैं। जिनसे मैं ६ माह से जुड़ी हूँ उनसे वो १४ साल से जुड़ी हैं। जो बात मुझे लग रही है उससे १०-२० गुना ज्यादा इन्हे लग रही है। फिर भी बस एक बात कि जिस शख्स से बात रही हैं वो उस से जुड़ा है जिससे वो जुड़ी हैं। बस इस बात के चलते अपनी बात किनारे और ऐसा सामान्य और प्रेम भरा व्यवहार।
मैने कितनी बार प्रणाम किया उन्हे..!क्या इन्ही महिलाओं की कहानी सुनी है मैने इतिहास में। जिनके बारे में कल्पना करती हूँ, कि वो कैसी होंगी..??
सच बहुत शर्म आई खुद पर। अभी विचार ही कर रही थी कि दूसरा फोन। "तुम ने कुछ खाया कि नही बच्चे..! देखो अपना खयाल रखो वरना भईया को अच्छा नही लगेगा ना..! अभी राज ने खुद अपने हाथ से मुझे मैसेज किया है कि साब ठीक है।"
मुझे सच में समझ नही आ रहा था कि क्या कहूं,क्या करूँ..मैं बस यंत्रवत कह रही थी "हाँ भाभी अब आफिस जा रही हूँ। मैने खा लिया।
दो दिन बाद मैने फोन किया तो.."अभी भईया ज्यादा बात नही कर पा रहे ना कंचन..! सब से कम बात तो मुझसे होती है। तुम्हारा जब जी घबराये तो मुझसे बात किया करो। तुम मेरी ननद हो, अपने को सिर्फ ब्लॉगर कभी न समझना।"
हम सब के लिये जो घटना सिर्फ गौतम राजरिशी के ठीक हो जाने से ठीक हो जाती है। गौतम राजरिशी के लिये वो बहुत सारे झंझावत ले के आती है। जिसने अपनी आँख के सामने सूरी को शहीद होते देखा और दो जवानो को भी। अपने जिंदा रहने और आपरेशन सफल होने की बधाई उन्हें व्यथित करती है..! सूरी चला गया और मुझे बधाई.... ये बात ना वो कह पा रहे हैं और न सुन पा रहे हैं। उनका ये रूप पत्नी संजीता ने तो देखा है मगर उनकी जिंदगी मे नई आई उनकी बहन कहीं इसस बात से परेशान न हो इसका खयाल पत्नी को है। वो मैसेज कर के इस नये शेड के प्रति आश्वस्त करती रहती है।
मैं फिर से एक बार उन्हे प्रणाम करती हूँ " आप बहुत अच्छी हैं भाभी..! and truely brave lady."
"बस बस..चुप्प्प्प..! I'm saying bye..!पिटोगी तुम मुझसे। भईया सच कहते हैं तुम्हारे, तुम बहुत बाते करती हो।"
वो अपनी प्रशंसा सुनना नही चाहतीं।
वो असल में बहुत भावुक हैं। बस मेरी तरह उत्सव नही मनाती हर दुख का। वीर जी से ढेरों किस्से सुने हैं उनकी भावुकता के। वे कविताएं भी कहती हैं।मगर सिर्फ वीर जी के लिये। वो सुने और वो सुनायें। मैने माँगी थी। मगर फौजौ की बीवी की ना का मतलब ना। :)
एक अच्छी बहू जिसे खयाल है कि मेरे कहने से कुछ नही होगा जब तक उनका बेटा खुद फोन नही करता अपने घर वो वीर जी से खुद बात करने को कहती हैं। जिससे सहरसा माँ,पिता जी को संतुष्टि मिले। बड़ी दीदियों को समझाती हैं, वो अपने भाई के लिये चिंता ना करे। एक अच्छी माँ, जिसकी घड़ी पिहू (तनया)के हिसाब से फिट है। और सबके पीछे एक समर्पित पत्नी। जिसने पति के साथ उसका सब कुछ अंगीकार कर लिया है। उनका जॉब, उनके सपने, उनके रिश्ते..सब
आज करवाचौथ के दिन..जबकि पता है कि बिहार में करवाचौथ नही होती, उनको नमन करती हूँ, क्योंकि वो जो कर रही हैं, वो बहुत बड़ा व्रत है अपने पति के लिये। एक दिन नही..साल दर साल..उम्र भर..जन्मो तक के लिये..! भारत के लिये समर्पित एक सपूत की इस पत्नी का हार्डवेयर हो सकता है दिखने पश्चिमी लगे मगर सॉफ्टवेयर पक्का हिंदुस्तानी है..समर्पित भारतीय नारी..ट्रैडीशनल व्यू..!
तो भाभी ने तो मना कर दिया अपनी कविता देने को मगर लीजिये पढ़िये वीर जी के ये कविता जो उन्होने दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान तब लिखा था जब इनकी good morning होती थीऔर उनकी good evening ....!
बहुत कुछ २२ सितंबर से भी पहले का..लगता है कि ये जो उस दिन हुआ था.... वो जो उस दिन कहा था क्या सब इस २२ सितंबर की भूमिका थी उस सूत्रधार द्वारा। या जो २२ सितंबर को हुआ वो सब कहीं आगे कहानी बढ़ने का एक अंक है ..... कुछ समझ में नही आता...! जिंदगी अजब हादसे कराती है खुद में। जब ये होना था उसी के कुछ दिन पहले अचानक ये क्यों हुआ ? और उस दिन भी ... उसके पहले भी बार बार मन को बुरा भला कहा..नकरात्मक क्यों सोचता है ये ..?? अचानक फोन कर के कहना "देखो इस दिन ये ना करना...ये ठीक नहीं।" और दूसरी तरफ ठहाका लगना.... दो चार बार पागल कहना और फिर अगले दिन वो काम बिना मुझे बताये ही छोड़ देना क्योंकि बात अपने नही उस दूसरे पागल के विश्वास की है...!! अचानक दुआओं मे किसी का नाम आ जाना...! उस दिन भी कितनी चीजें करना या ना करना सिर्फ अपने शुभ अशुभ के वहमों के चलते और सब के बावज़ूद अचानक ये हो जाना....!
समझ नहीं आ रहा कि मेरे बार बार विपरीत सोचने से ये हुआ या ये होना था इसलिये मैने विपरीत सोचा या बस इतना ही हो कर रह जाये इसके लिये पहले से मन में शंकाएं आईं और प्रार्थना की मात्रा बढ़ा दी गई......! पता नहीं..मुझे कुछ पता नहीं...!
मैं उनकी बात नही कर रही...उनके विषय में तो सबने खूब लिखा...सबने दुआएं की.... सबने प्रेम दिया..! वाक़ई अच्छा भी लगा और गर्व भी हुआ कि जिससे रक्षा का वचन लिया वो इस क़ाबिल है-
दिलवर के लिये दिलदार हैं वो
दुश्मन के लिये तलवार हैं वो
बात उनकी करूँगी जिस का इस समर में नाम भी नही और योद्धा भी महान है जो...जिसके हाथ में तलवार भी नही मगर लड़ाई जीतने का जज़्बा जिससे होकर जाता है।
उस दिन जब ये सब हुआ जो आप सब को पता है, तब..बार बार ये अफसोस हुआ कि वीर जी के दो तीन बार ज़िक्र के बावज़ूद संजीता भाभी का नं० लिया क्यों नही ?? बात उनसे हुई थी कई बार और वीर जी के माध्यम से संदेशे अब भी इधर उधर भेजे जाते थे..मगर फोन नं देहरादून का नही था। खबर जो मेरे पास थी यूँ तो पता था कि विश्वसनीय है, मगर जिसने बताई थी वो हमेशा हर बड़ी बात को बहुत हलका कर के बताता है। (असल चोट तो अभी दो दिन पहले पता चली है) वरना बस ठीक है, ज्यादा नही लगा है।
तो लग रहा था कि भाभी को फोन करने से सही स्थिति पता चल जायेगी... दिमाग को शांत कर के राह ढूँढ़ी तो राह ये मिली कि गुरु जी से संजय चतुर्वेदी जी का नं० माँगा और संजय जी से भाभी का। फोन पर
"हाँ भाभी मै कंचन बोल रही हूँ।"
"हाय कंचन ..कैसी हो ??"
"ठीक हूँ भाभी आप कैसी है..?"
"मै ठीक हूँ..." के साथ शायद उनके दिमाग में कुछ आया और उन्होने पूँछा
"भईया से तुम्हारी बात हुई ?"
"कहाँ भाभी"
"ओह..तभी तुम ऐसे बात कर रही हो...! कुछ नही हुआ भईया को कंचन। he is very fine.बस हलका सा छिल गया है। उन्हे आई०सी०यू० मे रखा है ना इसलिये बात नही हो पा रही उनसे। तुम बिलकुल चिंता ना करो बच्चे..!"
बाप रे... खुद पे शर्म आने लगी। जो बात मैं जान रही हूँ, वो ये भी जान रही हैं। जिनसे मैं ६ माह से जुड़ी हूँ उनसे वो १४ साल से जुड़ी हैं। जो बात मुझे लग रही है उससे १०-२० गुना ज्यादा इन्हे लग रही है। फिर भी बस एक बात कि जिस शख्स से बात रही हैं वो उस से जुड़ा है जिससे वो जुड़ी हैं। बस इस बात के चलते अपनी बात किनारे और ऐसा सामान्य और प्रेम भरा व्यवहार।
मैने कितनी बार प्रणाम किया उन्हे..!क्या इन्ही महिलाओं की कहानी सुनी है मैने इतिहास में। जिनके बारे में कल्पना करती हूँ, कि वो कैसी होंगी..??
सच बहुत शर्म आई खुद पर। अभी विचार ही कर रही थी कि दूसरा फोन। "तुम ने कुछ खाया कि नही बच्चे..! देखो अपना खयाल रखो वरना भईया को अच्छा नही लगेगा ना..! अभी राज ने खुद अपने हाथ से मुझे मैसेज किया है कि साब ठीक है।"
मुझे सच में समझ नही आ रहा था कि क्या कहूं,क्या करूँ..मैं बस यंत्रवत कह रही थी "हाँ भाभी अब आफिस जा रही हूँ। मैने खा लिया।
दो दिन बाद मैने फोन किया तो.."अभी भईया ज्यादा बात नही कर पा रहे ना कंचन..! सब से कम बात तो मुझसे होती है। तुम्हारा जब जी घबराये तो मुझसे बात किया करो। तुम मेरी ननद हो, अपने को सिर्फ ब्लॉगर कभी न समझना।"
हम सब के लिये जो घटना सिर्फ गौतम राजरिशी के ठीक हो जाने से ठीक हो जाती है। गौतम राजरिशी के लिये वो बहुत सारे झंझावत ले के आती है। जिसने अपनी आँख के सामने सूरी को शहीद होते देखा और दो जवानो को भी। अपने जिंदा रहने और आपरेशन सफल होने की बधाई उन्हें व्यथित करती है..! सूरी चला गया और मुझे बधाई.... ये बात ना वो कह पा रहे हैं और न सुन पा रहे हैं। उनका ये रूप पत्नी संजीता ने तो देखा है मगर उनकी जिंदगी मे नई आई उनकी बहन कहीं इसस बात से परेशान न हो इसका खयाल पत्नी को है। वो मैसेज कर के इस नये शेड के प्रति आश्वस्त करती रहती है।
मैं फिर से एक बार उन्हे प्रणाम करती हूँ " आप बहुत अच्छी हैं भाभी..! and truely brave lady."
"बस बस..चुप्प्प्प..! I'm saying bye..!पिटोगी तुम मुझसे। भईया सच कहते हैं तुम्हारे, तुम बहुत बाते करती हो।"
वो अपनी प्रशंसा सुनना नही चाहतीं।
वो असल में बहुत भावुक हैं। बस मेरी तरह उत्सव नही मनाती हर दुख का। वीर जी से ढेरों किस्से सुने हैं उनकी भावुकता के। वे कविताएं भी कहती हैं।मगर सिर्फ वीर जी के लिये। वो सुने और वो सुनायें। मैने माँगी थी। मगर फौजौ की बीवी की ना का मतलब ना। :)
एक अच्छी बहू जिसे खयाल है कि मेरे कहने से कुछ नही होगा जब तक उनका बेटा खुद फोन नही करता अपने घर वो वीर जी से खुद बात करने को कहती हैं। जिससे सहरसा माँ,पिता जी को संतुष्टि मिले। बड़ी दीदियों को समझाती हैं, वो अपने भाई के लिये चिंता ना करे। एक अच्छी माँ, जिसकी घड़ी पिहू (तनया)के हिसाब से फिट है। और सबके पीछे एक समर्पित पत्नी। जिसने पति के साथ उसका सब कुछ अंगीकार कर लिया है। उनका जॉब, उनके सपने, उनके रिश्ते..सब
आज करवाचौथ के दिन..जबकि पता है कि बिहार में करवाचौथ नही होती, उनको नमन करती हूँ, क्योंकि वो जो कर रही हैं, वो बहुत बड़ा व्रत है अपने पति के लिये। एक दिन नही..साल दर साल..उम्र भर..जन्मो तक के लिये..! भारत के लिये समर्पित एक सपूत की इस पत्नी का हार्डवेयर हो सकता है दिखने पश्चिमी लगे मगर सॉफ्टवेयर पक्का हिंदुस्तानी है..समर्पित भारतीय नारी..ट्रैडीशनल व्यू..!
तो भाभी ने तो मना कर दिया अपनी कविता देने को मगर लीजिये पढ़िये वीर जी के ये कविता जो उन्होने दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान तब लिखा था जब इनकी good morning होती थीऔर उनकी good evening ....!
हर लम्हा इस मन में इक तस्वीर यही तो सजती है
तू बैठी है सीढ़ी पर, छज्जे से धूप उतरती है
इक तन्हा तकिये पर आँखें मलता है एक सवेरा
मीलों दूर कहीं छत पर इक सूनी शाम टहलती है
एक हवा अक्सर कंधे को छूती रहती "तू" बनकर
बारिश भी तेरी गंध लिये जब-तब आन बरसती है
अक्सर देखा है हमने हर पेड़ की ऊँची फुनगी पर
हिलती शाख तेरी नजरों से हमको देखा करती है
यादें तेरी, तेरी बातें संग हैं अपने हर पल यूँ
इस दूरी से लेकिन अब तो इक इक साँस बिखरती है
सात समंदर पार इधर इस अनजानी-सी धरती पर
तेरे जिक्र से मेरी ग़ज़ल थोड़ी-सी और निखरती है
नोटः मेजर सूरी के लिये भी लिखना चाह रही थी..मगर लिख नही पा रही। वीर जी की पोस्ट का वाक्य "वो ज़िद अगर न होती तो क्या मैं यहाँ ये पोस्ट लिख रहा होता" मुझे मेजर सूरी का लोगो से अधिक ऋणी बनाता है। अचानक पल्लवी जी का चेहरा सामने आता है और दिल काँप जाता है।
वो दोनो जवान भी किसी के पति थे जिनका नाम मैं नही जानती। टी०वी० पर किसी के पिता कह रहे थे कि मेरे और बेटे होते तो मैं उन्हे भी देश की सेवा मे लगाता। क्या कलेजा है पिताओं का..इन माताओं का, इन पत्नियों का, इन बहनों का...!
ज़िक्र करूँगी मेजर कमलेश का भी जो वीर जी के साथ वाले बेड पर हैं। उन्हे दाहिने हाथ और कमर में गोली लगी है। आप सब उन्हे भी अपनी शुभकामनाएं भेजें। किसी अखबार में किसी चैनेल पर, किसी ब्लॉग पर उनका जिक्र नहीं हुआ..!
और एक धन्यवाद वीर जी आप अपने बड्डी को पहुँचाइयेगा जिसने ५.३० से ११.०० बजे तक उम्मीद बँधाये रखी। आपको भी शायद पता नही कि "जब मैने ५.३० बजे आपको मैसेज किया कि अगर आप ठीक हैं तो एक मिस कॉल करिये" तो एक मिस काल मेरे पास आ गई थी। फिर बहुत देर तक फोन ना उठने और कश्मीर से विपरीत खबर के फ्लैश आने पर कई मैसेज के जवाब ना आने पर जब मैने झल्ला कर लिखा था कि "आप एक मिनट में फौजी बन जाते हैं। पीछे भी कुछ है।" तो मेरे पास एक मैसेज आया "सब ठीक है।" और थोड़ी निश्चिंतता फिर हुई। ये तो तब पता चला जब आप ने बताया कि आप तो तीन बजे से १० बजे तक होश मे ही नही थे
38 comments:
सुबह सुबह इस प्यार ने आँखें नाम करदी , इस पोस्ट पे कुछ कहने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है , भाभी जी को सलाम करता हूँ , आपके यहाँ बातो की फसल लहलहाती है तो गौतम भाई के यहाँ बहादुरों की, पिहू पे क्या गुजारी होगी वो किस मानसिकता से रही होगी जब भाभी खुद परेशान होंगी और दूसरों को संभालने में लगी होंगी ,.. जब मेरी बात गौतम भाई से हुई तो मैंने कहा के परिवार का कोई क्यूँ नहीं है अभी तक वो फौजी इंसान मग दिल कितना नर्म के क्या कहूँ कहा के पिहू परेशान हो जायेगी ,.. मैं रोने लगा उस वक्त .. मगर कही कहीं लगता है के भाभी भी उर्मिला की तरह पूरी क्रताब्यानिश्ता से अपना काम कर रही है गौतम जी के माता पिता जी को भी मेरा सादर प्रणाम,
ग़ज़ल के सारे ही शे'र पसंद आये खास तौर से आखिरी शे'र ने मुझे आज बिछाने पे मजबूर कर दिया... बहुत ही मुकम्मल ग़ज़ल कही है गौतम भाई ने...
शहीद सूरी के बारे में भी कुछ कहना मेरे बस की बात नहीं है , सच में वो इंसान महान है सलाम मेरा उन्हें , और पल्लवी जी में भी मेरा सलाम उपार वाला उनको इस सदमे से निकालने में उनकी मदद करे और हौसला दे उनके परिवार को ...
मेजर कमलेश को क्या कहा जा सकता है वो भी तो अपने गौतम भाई के जैसे ही है इन वीर सपूतों के लिए कुछ भी कहना कम से कम मेरे बस की बात तो नहीं है बहन...
और वो बड्डी जिसने गौतम भाई की हर जगह पर मदद की और सभी को उनके सन्देश से निश्चिन्तता की खबर देता रहा सच में फ़रिश्ता है हम सभी के लिए...
और आखिर में आपकी लेखनी की धार को सलाम , संजीत भाभी को भी सलाम और बिटिया पिहू को बहुत सारा प्यार ...
अर्श
मन को भिगो गयी ये बातें
और कुछ कहने का मन नहीं है !
...
abhi abhi mann mein bahut sare khayal aa rahe the per jab likhne baithi to bas sabdon ne saath hi chhorr diya.... gautam se savi sneh karte hain,uske liye sochte hain per sanjeeta ke liye aapne likh kar bahut achha kiya ...definately wo bahut strong hogi tavi bhagwan ne v use chuna as mrs rajrishi.. kisi aur se sambhav na hota ye sab.. major bahut lucky hain..
naina
परिवारजनों का यह प्रेम और समर्पण ही तो हमारे सैनिकों की ताकत है ...!!
speechless....
संजीता भाभी को प्रणाम, वाकई उनके साहस को सलाम.
गौतम जी, कमलेश जी और साथ के अन्य वीरों को सलाम, जो अपनी बहादुरी से हम सब पे आने वाले खतरों अपने ऊपर ले रहे हैं.
मेजर सूरी को शत शत नमन.
गौतम जी की ग़ज़ल बेहतरीन है पहले की तरह, इसमें कुछ अलग ही निखार आ गया है क्योंकि ये भाभी के लिए लिखी गयी है.
और आखिरी में कंचन दीदी आपका आभार, आपने नम लफ्जों से बहुत ही सुन्दर लिखा है.
....क्या कहे इस पोस्ट के लिए ..दिल को छु गयी इस की हर बात ..
बहुत ही मार्मिक पोस्ट ,संवेदनाओं से भरपूर....अपने दुःख को भुलाकर सबको सांत्वना देने वाली संजीता ही गौतम के मनोबल के पीछे चट्टान सी खडी हैं...ईश्वर उन्हें ऐसा ही धैर्यवान और साहसी बनाए रखे.
गौतम जी और मेजर कमलेश दोनों के जल्दी स्वस्थ होने की अनेक शुभकामनाएं
मन को भिगोती पोस्ट है कंचन जी.
बस यही कहूंगी न केवल गौतम जी के लिए बल्कि मेजर कमलेश के साथ उन जवानों के लिए भी जो इस घटना में घायल हुए थे और जिनका अभी इलाज चल रहा है..वे सभी फोजी भाई जल्द स्वस्थ हों ऐसी प्रार्थना है.
apno ka pyar aur hasla hi is samy sab se badi takat hoti hai.
कंचन जी, आपकी सभी पोस्ट मन को छू जाने वाली होती हैं।
करवाचौथ और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
----------
बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
Shabd nahi hain mere pass kuchh kahne ke liye!!
ऐसे हिन्दुस्तानी सॉफ्टवेयर की वजह से ही ये देश अपने कंधो पे खडा है ...सूरी .कमलेश .गौतम .बस .नाम बदल कर नीचे वर्दी में वही धड़कते दिल है .....मेरी कालोनी में रोज एक छह साल का प्यारा सा बच्चा साइकिल चलाता है ... जब वो तीन महीने का था उसके पिता इस देश को समर्पित हो गए थे ...उसने अपने पिता को नहीं देखा....पर स्कूल की फेंसी ड्रेस में फौजी बनके जाता है या भगत सिंह......अजीब बात है ना....
ये तो गौतम है जिसकी वजह से हम वाकिफ हुए मेजर सूरी से भी.....मेजर कमलेश से भी.....रोज कितनी गोलिया निकल कर कितने सीनों में धंसती होगी .......
पल्लाविया ...संजीता जैसे हजारो लोग यूं ही खामोशी से अपना काम करते रहते है .....बिना कोई शिकायत किये ....
काश ऐसे सॉफ्टवेयर की लाखो जीरोक्स निकले ....
ये पहली पोस्ट है जो बहुत लम्बी होने के बाद भी लग रहा था कि अभी ये खत्म न हो चलती रहे । कंचन तुम तो डोंगरी कवियित्री पद्मा सचदेव जी और दीदी साहब लावण्य शाह की तरह बहुत अच्छा संस्मरण लिखती हो । सचमुच । संस्मरण लिखना हर किसी के बूते की बात नहीं होती है । मैं खुद भी जब लिखने बैठता हूं तो आधे में ही छोड़ देता हू। संजीता से मेरी भी कई बार बात हुई, वो एक धैर्यवान और दृढ़ महिला है । मुझे तो आश्चर्य है कि मेरे छोटे भाई को उसने पसंद कैसे किया ? खैर ये तो हंसी की बात है । लेकिन वास्तव में संजीता से बात कर के मुझे भी वही अहसास हुआ था जो कि तुमको हुआ । संयम बनाये रखने की एक अजब सी ताकत है संजीता के पास । गौतम के पीछे संजीता की दुआएं हैं और उसका निश्चय है । ईश्वर इस जोड़ी को सलामत रखे । गौतम जैसे छोटे भाईयों को पाकर कोई भी धन्य होगा और मैं भी हूं लेकिन संजीता जैसी बहू को पाकर ये धन्य होना सौ गुना बढ़ जाता है ।
ईश्वर अच्छे लोगों को ज़्यादा परखता है…कंचन
निशब्द हूँ.....
yah bilkul satya bat mujhe bhi lagati hai ki ishawar sachche logo ko jyada parakhata hai .........dil ko chhoo gayi aapaki rachana.
कंचन जी,
आपने तो बहुत ही पोस्ट लिखी, गौतम जी से मेरी कभी बात तो नही हो पायी, एक मौका उनके साथ दिल्ली में दर्पण जी के यहाँ आयोजित गोष्ठी में चूक गया। फिर भी ना जाने क्यों बड़े अपने से लगते है।
सबसे पहले उसि बाईस तारीख की खबर मैंने श्री पंकज सुबीर साहब के ब्लॉग से पढ़ी थी और फिर आगे के समाचार भी।
लेकिन आपने तो जैसे आज उनसे मेरी बात करा दी। बहुत अच्छा लगा जानकर।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कंचन जी शब्द नही मिल रहे है। बाते बहुत है जो कहना चाहता हूँ पर शायद ही कह पाऊँ। सच इन जांबाज फोजियों की वजह से हम यहाँ चैन से है। और इनकी कुर्बानियों की जानकारी भी हमें इन्ही फोजियों से मिलती है। गौतम जी से ही सूरी जी के बारें में पता चला। ये लोग किस मिट्टी के बने होते है जो कुर्बानी पर कुर्बानी दिए जाते है और हम .....। जिस दिन खबर मिली थी तो उस दिन बैचेन हो गया था और फिर अनुराग जी से बात करके तसल्ली मिली थी। और हाँ उसके बाद एक दिन सपने में गौतम जी आए ..................
संजीता जी को प्रणाम.
बस.................
गौतम जी और मेजर कमलेश दोनों के जल्दी स्वस्थ होने की शुभकामनाएँ.
भाव और शैली दोनों भारी हैं। भावुकता से भर दिया।
क्या कहें?
वीरों की पत्नियाँ भी वीरांगनाएँ होती हैं, वीरों का हौंसला होती हैं। ऐसी वीरांगनाओं को नमन।
घायल वीरों के लिए जल्दी ठीक होने और दीर्घायु होने की कामना करती हूँ।
इक तन्हा तकिये पर आँखें मलता है एक सवेरा
मीलों दूर कहीं छत पर इक सूनी शाम टहलती है
वाह ! बेहद प्यारी लगी ये पंक्तियाँ !
कितने सुंदर होते हैं कई रिश्ते...
चन्दन की तरह महकते हैं जंगल में...
शब्दों के पानी से
गिसा है चन्दन...
कंचन कलम ने...
प्रिय कंचन बेटे,
जीती रहो ..
खुश रहो और इसी तरह ,
भारत माँ के सच्चे सपूतों से
परिचित करवाती रहो
सौ. संजीता जी ,
कमलेश भाई तथा
वीर मेजर सूरी तथा
उनकी प्यारी पत्नी पल्लवी सभी ,
हमारे अपने हो गए .........
ये राजनेता लोग कब ,
आम जनता की तरफ देखेंगें ?
और , हीम्मत रखिये,
अब वो दिन दूर नहीं
जब् दुश्मन हार कर,
हथियार फेंक देगा --
भारत माता की जय --
भारत माता के वीर सपूतों की जय
सादर, स स्नेह,
- लावण्या
मुझे बराबर के बेड वाले मेजर के बारे में जानकार जाने क्यों ऐसा लग रहा है के गौतम अगर ब्लोगेर साथी नहीं होता तो...?
दिल की बात कहने वाला शाएर नहीं होता तो....?
तो हम शायद उस से वैसे ही महरूम रह जाते जैसे अब तक कमलेश से थे....
सोच के भी डर लग रहा है के क्या हम गौतम के सच में नजदीक नहीं होते..?
इस ख़याल से भी घबराहट हो रही है...
एक बात उस बड्डी को भी कहने का मन था...(वो भी सच है के उसी झूठ से कुछ देर को तसल्ली हुई थी )
"माँ" की गलत कसम हम जैसों के लिए ना खाया करे...
बात मुल्क की है तो शौक से खाओ झूठी कसमें...
बाद में कई दिन तक सोचते रहे हम...
बायें हाथ की छोटी ऊँगली ..बस,,..
जाने कैसा लगे ..मेरा कहना... .
संजीटा की हिम्मत के बारे में पढा तो कंचन चुंगा की बात सही लगने लगी...
क्या हम इतिहास में ऐसी ही वीरांगनाओं के बारे में पढ़ते हैं...
हाँ
बेटा....
हमने इतिहास में लक्ष्मी बाई..दुर्गा भाभी के बारे में पढा है..
आने वाली पीढी के लिए संजीटा और पल्लवी जैसे नाम भी जुड़ गए हैं...
चलो बच्चे...
फौजियों की बीवी की ना का मतलब ना ही होगा...
पर तुम ट्राई करते रहना ...
और कहीं पा जाओ तो हम सब के ब्लॉग पे डालना वो कवितायें...
एक और बात...
के हम गौतम ..संजीत...पिहू...
के साथ साथ और भी कुछ सोचते हैं...
बस... कुछ नहीं कहना इस पोस्ट पर ! लौट के दुबारा आया तो शायद कुछ कहूं.
kya wakai mera shabdoon ka sansar bahut bada hai?
Yaha aaiya hoon subah se kai baar kuch na kuch kehne ke liye par....
.....
ya to bahut kuch hai kehne ko ....
...ya kuch bhi nahi !!
Phir ser aata hoon dekhoon ki kuch likh paaon !!
...mujhe lagta hai nahi!
Arsh bhai, Manu ji, Miss naina....
...Aur aap.
jab manu ji ne kaha tha 23 Sept ko do do janm din mana rahein hai...
...choti ungli main lagi thi goli !!
'Maa kasam'....
...choti ungli aur ICU.
Haan par wo Nakli note , poore 500 rupiye main chala (Maa kasam ki chandi ki line jo thi usmein)
!!!!!
हम आते हैं, पढ़ते हैं चले जाते हैं....फिर आते हैं, पढ़ते हैं चले जाते हैं...आज फिर आये हैं, पढ़े भी हैं...लेकिन अभी तक हम वो शब्द, वो वाक्य, वो भावः, वो सन्देश नहीं जुटा पाए हैं जो हम कहना चाहते हैं....
और.... एक बार फिर आज हम ऐसे ही जा रहे हैं....बिना कुछ कहे....!!
कंचन जी नमस्कार
आपकी कृपा टिप्पणी प्राप्त हुई. अभिभूत हूं. आपकी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं करूंगा क्योंकि वह पढने के बाद कुछ कहने लायक नहीं रहंने देती. भाई गौतम ठीक हैं हमारे लिये यही सबसे बडी बात है. जो हमारे बीच नहीं हैं उनकी सोचकर ही कलेजा मुंह को आता है.. उम्मीद है आगे भी मुलाकात होगी.
कंचन ,
बहुत गहरा लिखा तुमने ....'तुमने ' इसलिए कह रही हूँ की अगर गौतम की बहन हो तो मेरी भी बहन जैसी ही हो .....संजीता की तस्वीर बहुत ही प्यारी है ....इतनी भोली और प्यारी स्त्री में इतना सयानापन और ये हिम्मत ....??
सीना गर्व से फूला जा रहा है इस देश को समर्पित जोड़ी के लिए ...करवा चौथ ऐसी ही जोडियों के लिए बना है ...और ऐसी ही स्त्रियों की दुआ से पतियों उम्र बढती है ....इसके लिए रस्म निभाने की जरुरत नहीं होती बस दिल की सदा ही काफी होती है .....!!
मेजर कमलेश जी को भी सलाम .....!!
शहीद मेजर सूरी को श्रद्धासुमन ....पल्लवी जी को धैर्यवान और साहसी बनाए ....!!
( कुछ नई बातें आपकी पोस्ट इंगित करती हैं जो दिल दहला देने वाली है ....ये मनु जी छोटी उंगली की बात क्या कर रहे हैं ...?? )
आपकी पोस्ट ने निःशब्द कर दिया-----पढ़ते पढ़ते आंखें नम हो गयीं----पर सीना गर्व से फ़ूल उठा।
पूनम
चलो 'गौतम', वहीं पर जो चमन वीरान है तुम बिन
अभी भी चाह वादी को है खूं की सुर्खियों वाली
कंचन जी,कल आपका ब्लॉग पढ़ा तो आँखें नम हो गयी ,संस्मरण हो या कविता आपकी बात सीधी दिल से उतरकर पाठक के मन में उतर जाती है !आपकी संवेदना और संजीता जी के हौसले को सश्रद्ध नमन !
मेजर कमलेश जी और गौतम जी के अदम्य साहस को प्रणाम ,ईश्वर से कामना है दौनों अति शीघ्र पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करें !
आपके संस्मरण पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि हम भी वहीँ कहीं उपस्थित हैं !
इस पोस्ट को कई बार पढ़ा ..हर बार प्रतिक्रिया में निशब्द था...आज जब एक नई पोस्ट आ गयी है तो लिख पा रहा हूँ कि यह पोस्ट पोस्ट या रचना नहीं है...उससे कहीं बढ़कर है..कुछ जज्बातों को शब्दों से नहीं बताया जा सकता क्योंकि शब्द भावों की असली ऊँचाइयों को छू भी नहीं पाएंगे..
इस पोस्ट पर देर से आने के लिए माफी चाहता हूँ. पढ़कर बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद और शुभकामनाएं!
ऐसे ही भट्क रहा हूं पोस्ट-दर-पोस्ट..तो यहां आ गया...घटना को याद करने
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