पता नही मौसम का असर है या माहौल का कुछ लिखा नही जाता आजकल या फिर सोचा ही नही जाता होगा....! मशीनी जिंदगी क्या सोचे..?? जब सोचती भी है तो बस पुराना सोचती है। तब ऐसा था..अब ऐसा है..! तब ऐसा क्यूँ था..?? अब ऐसा क्यूँ है..?? अतीतजीवी हो गई हूँ शायद। लीजिये उसी अतीत की एक कविता सुनिये। बस यूँ ही लिखी हुई नागफनी सी.. जिधर चाहा बाँहें फैला दी...! जिसे भी चुभे इन्हे फर्क नही पड़ता। और सब से ज्यादा तो ये अपने बाग को ही चुभती हैं। जो इन्हे सँवार भी नही सकता और उखाड़ भी नही सकता.....!
तुम जैसा एक मीत ढूढ़ना चाहा तो मैने सौ बार,
हर प्रयास निष्फल पर निकला,
बैठ गया मन बस थक हार
धीमी गति हमारी लख कर डरते हैं सब संग चलने से,
कौन तुम्हारी तरह पकड़ कर हाथ चले मंजिल की ओर,
जहाँ नही मिलता कोई दो शब्द खुशी के कहने को,
कौन तुम्हारी तरह भला पोंछे भीगे नयनो के कोर
हाथ बढ़े अब भी फैले हैं, आँखों मे आँसू अम्बार
कोई नही तुम्हारे जैसा, देख लिया हमने संसार
अवगुन का तालाब मात्र हैं, हम सारी दुनिया की नज़र में
तुम ने झूठ बताया हमको, कि हम हैं मीठा सोता
तुमने करी इबादत तो वो खुद को खुदा समझ बैठा,
जो था दुनिया की नज़रों रस्ते का पत्थर छोटा,
तुम सा कौन पुजारी होगा, जो ले कर पत्थर अंजान
बिना तराशे ही मंदिर में , दे दे देवों का स्थान
तुम जैसा एक मीत ढूढ़ना चाहा तो मैने सौ बार,
हर प्रयास निष्फल पर निकला,
बैठ गया मन बस थक हार
धीमी गति हमारी लख कर डरते हैं सब संग चलने से,
कौन तुम्हारी तरह पकड़ कर हाथ चले मंजिल की ओर,
जहाँ नही मिलता कोई दो शब्द खुशी के कहने को,
कौन तुम्हारी तरह भला पोंछे भीगे नयनो के कोर
हाथ बढ़े अब भी फैले हैं, आँखों मे आँसू अम्बार
कोई नही तुम्हारे जैसा, देख लिया हमने संसार
अवगुन का तालाब मात्र हैं, हम सारी दुनिया की नज़र में
तुम ने झूठ बताया हमको, कि हम हैं मीठा सोता
तुमने करी इबादत तो वो खुद को खुदा समझ बैठा,
जो था दुनिया की नज़रों रस्ते का पत्थर छोटा,
तुम सा कौन पुजारी होगा, जो ले कर पत्थर अंजान
बिना तराशे ही मंदिर में , दे दे देवों का स्थान
चित्र साभार : कुश चैट :)
43 comments:
BAHOT HI SADHI HUI BAAT KAHI HAI AAPNE KAVITAA ME... SUNDAR KHAYAALAAT AUR UTNE HI SUNDAR SHABDON SE BANI KHUBSURAT SI KAVITAA... DHERO BADHAAYEE AAPKO
ARSH
कंचन हृदय से निकले बोल ऐसे ही मधुर होते हैं। बहुत ही मधुर रचना है। पत्थर एक बार देव बन जाएँ तो देवत्व नहीं छोड़ सकते चाहकर भी नहीं।
घुघूती बासूती
कंचन जी बधाई...बहुत भावपूर्ण रचना...
नीरज
बेहद भावपुर्ण रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
कंचन जी आपकी रचना मन के भावों को व्यक्त करती सी है बहुत ही भावपूंर्ण रचना है। बधाई।
कंचन जी कविता वही होती है जो मन के भावों को ठीक प्रकार से व्यक्त कर दे और इस मायने में आपकी ये कविता सफल है । सही है ये कि इन दिनो में गर्मी का मौसम है और कविता के हिसाब से ये मौसम ठीक नहीं होता । जब तक कि गर्मी की रात में आंगन में पड़ी खटिया पर अधलेटे होकर न लिखा जाये । किन्तु चिंता न करें । वर्षा आ रही है । कविता के लिये सबसे अच्छा मौसम ।
मन की भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है..........
दिल में जो बात उठती है.....उन बातों को भाव में पिरो कर लिखना ही कवी मन है.........और आपने इतने कोमल और सीधे से अपने विचार लिखे हैं...............की सीधे दिल में उतर जाते हैं...........
मन को कोमल भाव और पीडा को सार्थकता से अभिव्यक्ति दी है तुमने इन पंक्तियों में...,.
सहज सुन्दर कविता...
bhaav rachna ka marm hai...
sunder rachana ---- good
एक बेहद भावपूर्ण सहज रचना!!
नागफनी सा विस्तार तो कहीं लगा नहीं, एक कोमलता सी है.
तुम्हे जानने वाले को ये पढ़कर अचरज नहीं होगा .....भावुक लड़की !
bhavnaon se bhari hui ek behtreen rachna
हमारा अतीत ....जो हमेशा हमारी परछाई बनकर चला करता है ...
दिल और दिमाग़ की तहों मे दबा ज़रूर रहता है मगर जब तब
उन तहों से बाहर आकर झाँक लिया करता है ...जब कहता है
ये कुछ कानो मे तो कविता बन जाती है....
धीमी गति हमारी लख कर सब डरते हैं संग चलने से
कौन तुम्हारी तरह पकड़ कर हाथ चले मंज़िल की ओर
भावनाओं से भारी पंक्तिया , जो दिल को छू गयीं....
behtareen.....bahut umda
कन्चन जी बहुत ही मन्भावन मन से निकली .
जैसे बिना तराशे अन्गढ पत्थर भी भाव्ना के आवेग मे देव हो जाते हैन वैसे ही, जैसा कि सुबीर जी ने कहा,मन से निकली अभिव्यक्ति की तरलता छन्दोन और काव्य व्याकरण से परे हो तब भी मन छूने का सामर्थ्य रखती है .
सुन्दर !
भावनाएँ चुभती भी है तो एक मीठा सा एहसास जगा जाती हैं...कविता तो भावपूर्ण है ही....उस पर भूमिका भी मन को मोह गई ...
sundar ati sundar. kavita mai bahut hi marm hai.
Wah..
अगर बार-बार बुलाये अतीत... तो इसका मतलब मेरी समझ से यह है कि कुछ सृजनात्मक रचे जाने की व्यग्रता है और यह आपकी अभिव्यक्ति बता भी रही है.
उम्दा और स्तरीय !!
तुमने करी इबादत तो वो खुद को खुदा सम बैठा,
जो था दुनिया की नज़रों रस्ते का पत्थर छोटा,
तुम सा कौन पुजारी होगा, जो ले कर पत्थर अंजान
बिना तराशे ही मंदिर में , दे दे देवों का स्थान
ये पंक्तियाँ खास तौर पर पसंद आईं इस कविता में..
जब व्यक्ति की भावनाओं में हिलोल उठता है तो ही कविता जन्म लेती है। इसलिए चाह कर भी ये लिखी नहीं जा पाती।
कंचन जी,
आपकी कविता पढता हूँ तो लगता है आपने जब ये कविता लिखी होगी तो जरूर आप ने एकबारगी लिखा होगा सोच कर लिखना तो असंभव है
बहुत सुन्दर भाव
दिल को छूते शब्द
वीनस केसरी
कंचन तुम,
सोचता हूँ, तुम्हें डांट लगाऊँ...फिर रुक जाता हूँ। जाने कैसे शब्दों से {चाहे अतीत के शब्दों से ही } एक दुख की लकीर खींच देती हो तुम जो यहाँ तक-इस्स सुदूर दुर्गम टीले तक पहुँच आती है।
"कौ नही तुम्हारे जैसा, देख लिया हमने संसार"
इस अद्भुत मिस्रे को रचने वाली अनुजा को नमन !
प्रिय चि. कँचन
कविता अभिव्यक्ति है -
नागफनी हो या अमर बेल
अपनी ही है ना ?
ये चित्र बताऊँ,
उषा मँगेशकर जी ने,
लतादी की रेकार्ड
"प्रेम, भक्ति, मुक्ति " के लिये
खुद पेन्ट किया है...
और उसी रेकोर्ड के सारे गीत,
मेरे पूज्य पापा जी ने लिखे हैँ - सोचा बतला दूँ -
मेरा जालघर भी अवश्य देखना
पसँद आयेगा :)
स ~ स्नेह,
- लावण्या
स्मृतियों के वातायन से कई उम्मीदें यदा कदा चमकती दिखाई दे जाती हैं
एक कविता के साथ कई पल जुड़े रहते हैं वे कभी पुराने नहीं होते, जैसे ये कविता
प्रेम और विशवास की बाहों को नागफनी सा क्यों कहा है आपने?
वैसे अगर अतीत में इतनी सुन्दर कविताएं छिपी हुई हैं तो बुरा नहीं है अतीतवादी होना भी..
सुन्दर भावपूर्ण कविता.. बस टंकण में एक दो मत्राए इधर उधर लगीं.
तुम सा कौन पुजारी होगा, जो ले कर पत्थर अंजान
बिना तराशे ही मंदिर में , दे दे देवों का स्थान
ऐसा मीत पाने वाले सौभाग्यशाली को और क्या चाहिए कंचन जी ? बहुत भावपूर्ण रचना है ,मन की गहराईयों से उठी हूक पाठक को भी उसी ज़मीन पर खींच ले जाती है जहाँ से कविता जन्मी है !बहुत सुन्दर !
घुघूती दी..! आप मुझे नास्तिक बना देंगी ...!:)
गुरु जी..! पहले तो ये जी शब्द जितनी जल्दी हो सकें हटा लें। जिससे कि हम पाप भागी होने से जितना शीघ्र हो बच सकें :) और ये जो आँगन और चारपाई और अधलेटा....! ये सब मिले तब तो कविता खुद ही हो जाये। मगर मिले कहाँ। दो कमरे के घर में जो आँगन है उस से तो पड़ोसी का बाथरूम अटैच है :) और अधलेटे से लिखने में डर है कि वो पागल ना घोषित कर दें। :) अम्मा के घर में कबी ये सब था..मगर अब वहाँ भी दीवारें बड़ी हो गई हैं, आँगन छोटे मगर कई।
अनुराग जीआपके कमेंट मुझ भावुक लड़की को और भावुक कर देते हैं।
वीनस जी सही कहा..सोच कर लिखना मेरे लिये तो असंभव ही है।
गौतम वीर जी..! आप तो ना बस कंचन तुम ही लिख के छोड़ दो, तो भी नेह उमड़ आता है। ये जो रिश्ता है न वीर और अनुजा का, इसमें यूँ भी डाँटने का मन ज्यादा होता है। तूने खाना खा लिया, तो भी डाँट..तूने खाना नही खाया तो भी डाँट :) इन डाँटों पर तो रिसर्च हो चुकी है मेरी। बड़ा आनंद है इनमें।मगर अनुजा को डाँटना तक ही ठीक है। The word नमन doesn't suit to this relation :)
लावण्या दी सही कहा..कुश ने जब ये तसवीर भेजी थी तब लता मंगेशकर और टी० सिरीज दोनो लिखा था इस चित्र पर। फिर उन्होने ही इसे संपादित कर के भेजा। ये कृति ऊषा मंगेशकर की है और गीत पूजनीय पिता जी ने लिखे हैं ये जानना अद्भुत आनंदमयी है।
पुनीत मैने गलतियाँ सुधार ली हैं।
ऐसा मीत पाने वाले सौभाग्यशाली को और क्या चाहिए कंचन जी ? आप बिलकुल सही कहते हैं त्रिवेदी जी....! मैं माँग भी कहाँ रही हूँ..! बस ऐसे मीत के खो जाने का शोक ही कर रही हूँ।
प्रीति जी, वर्मा जी, अलीम जी, ओम जी...! आप सब पहली बार आये इस झरोंखे पर ...! आने का शुक्रिया एवं पुनः आने का आमंत्रण।
अर्श, नीरज जी, ताऊ जी, प्रीति जी, दिगम्बर जी, रंजना जी, विनय जी, समीर जी, अनिलकांत जी, रेनू जी, राज जी, मीनाक्षी जी. योगेन्द्र जी, सिद्धेश्वर जी, मनीष जी, किशोर जी आप सब की उत्साह वर्द्धक टप्पणियो का शुक्रिया
कंचन जी, कम से कम एक बात पर मेरी घोर असहमति है आपसे। वो ये कि इसे आपने अतीत की कविता कहा है...कुछ है जो समय के साथ पुराना हो जाता है लेकिन कुछ ऐसा भी है जो शाश्वत है और समय की सीमाओं से मुक्त है...अब ये पंक्तुइयां-
तुम सा कौन पुजारी होगा, जो ले कर पत्थर अंजान
बिना तराशे ही मंदिर में , दे दे देवों का स्थान
क्या ये कभी अतीत हो सकता है? ......
कभी पढ़ा था, देखें प्रेम का यह रूप-
सैकड़ों पाषाण में तू भी एक पाषाण होता
मैं न होती भावना तो तू कहां भगवान होता
और एक रूप जो आपने प्रस्तुत किया....बस इतना ही कह सकता हूं कि प्रेम तो इंद्रधनुष है जिसमें सभी रंग समाये हुये हैं और मुझे सारे ही प्रिय हैं.......
कंचन तुमशुक्रिया कहूँ क्या? सोचा पहले तुम्हारे ही टिप्पणी बक्से से इस बोल्ड वाली करामात का प्रयोग करूँ...
sincere thanx for everything sis
आप की संवेदनशीलबेहद प्रभावित करती है।
भगवान् और मीत दोनों की दुहाई इस साथ! बहूत अच्छी लगी...
kanchan ji , is kavita me aapne sabkuch kah diya hai aur mere paas shabd nahi hai ,aapki tareef ke liye ......
itni acchi aur sacchi kavita ke liye badhai ..
meri nayi kavita padhiyenga , aapke comments se mujhe khushi hongi ..
www.poemsofvijay.blogspot.com
अपने साथ बहा ले जाने वाली
अद्वितीय ,
अनुपम ,
अविस्मर्णीय...
भावुक रचना .
ढेर सी दुआओं के साथ . . .
---मुफलिस---
बहुत ही भावपूर्ण रचना। आनंद आ गया पढकर। ऐसे ही लिखती रहे आप।
तुम्हारा चिटठा आज क्यों देख? कुछ दिन पहले देख सका होता तो १०-११ मई को अयोध्या और १२-१३ को लखनऊ में था...चलो फिर कभी. छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते हैं... भावप्रवण रचना के लिए साधुवाद... सुविधा हो तो दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम देखना...जुड़ना.
Sundar bhav di, Kamaal hai.
kavita acchi lagi...aur uski bhoomika aur bhi acchi, dil ko chhoone wali,bilkul nishchal aur sacchi.
सुंदर भावों से परिपूर्ण रचना,
हमेशा यूं ही लिखते रहना,
ताकि मिल सके हमें भी,
जीने और लिखने की प्रेरणा.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
sach aapki kalam mein jaadu hai..
behd sundr bhavabhivykti.
behd sundr bhavabhivykti.
Today is good ill, isn't it?
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