नित्य समय की आग में जलना, नित्य सिद्ध सच्चा होना है। माँ ने दिया नाम जब कंचन, मुझको और खरा होना है...!
Wednesday, April 8, 2009
गीत बंदिनी के - भाग २
बात निकली है, तो फिर दूर तलक पहुँची है....!
अब देखिये ना मुफलिस जी की पसंद के दो गीतों को ले कर चली बात जब मेरे तक पहुँची तो मैने उसमें दो गीत और बढ़ाने की सोच ली और जब मैने आप लोगो के साथ पहले दो गीत बाँटे तो आप लोगो ने दो गीत और याद दिला दिये।
पहला गीत याद दिलाया हमारे गज़ल गुरु श्री पंकज सुबीर जी ने। गुरु की बात तो यूँ भी टाली नही जा सकती। फिर वाक़ई मुझे भी ये याद आया कि सूप चलाते हुए गाये गये इस गीत की खास अदा वही थी। याद आया गाँव मे रखा एक बड़ा सा लट्ठा जो सी-सॉ की तरह प्रयोग होता था धान कूटने के लिये। और माँ बताती है कि जब ये कूटने,पीसने,बीनने,पछोरने का काम होता था तो गाँव की महिलाए इकट्ठी हो कर गीत गाती रहती थी। जिससे काम भी हो जाता था और मनोरंजन भी। इसीलिये तो हमारे लोक संगीत में रोज की छोटी संवेदानाओं से ले कर हँसी मजाक तक मिल जाते हैं।
तो पहले सुनते हैं यही गीत जिसे लिखा है शैलेंद्र ने और आवाज़ है अपनी आशा जी की जो इस तरह के मस्त गीतों को और भी जीवंत कर देती हैं।
दो नैनन के मिलन को दो नैना अकुलाये
जब नैना हो सामने तो नैना झुक जायें
ओ पंछी प्यारे, साँझ सकारे
बोले तू कौन सी बोली
बता रे बोले तू कौन स बोली
मैं तो पंछी पिंजरे की मैना
पंख मेरे बेकार
बीच हमारे सात रे सागर
(कैसे चलूँ उस पार) -2
ओ पंछी प्यारे, साँझ सकारे
बोले तू कौन सी बोली
बता रे बोले तू कौन स बोली
फागुन महिना फूली बगिया
आम झरे अमराई
मैं खिड़की से छुप छुप देखूँ
रितु बसंत की आई
ओ पंछी प्यारे, साँझ सकारे
बोले तू कौन सी बोली
बता रे बोले तू कौन स बोली
दूसरा गीत याद दिलाने की आभारी हूँ मैं राज सिंह जी की जिसने मेरी पिछली पोस्ट पर ये टिप्पणी लिखी थी
"बंदिनी जैसी परिपूर्ण फिल्म मुश्किल से कहीं और है। बिमल दा उसके अतिम दौर में बेड पर ही थे और मौत से जूझ रहे थे। फिर भी यह फिल्म मन पर अटल है। इसके सभी गाने मील के पत्थर हैं और फिल्म विधा के हिसाब से सिचुएशन पर सौ प्रतिशत सही।
इसके सभी गीतों की चर्चा और उन्हे सुनने का आग्रह हो चुका है, बस एक गीत को छोड़ कर
"मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे
जनमभुमि के काम आया मैं बडे भाग्य हैं मेरे।"
ये मन्ना डे ने गाया था शैलेंद्र जी का लिखा, एक क्रांतिकारी फाँसी के फंदे की तरफ बढ़ते हुए गा रहा है।
इस के साथ और भी एक घटना जुड़ी है। उसी साल के फिल्म फेयर अवार्ड के जलसे की। उसी साल गुमराह भी रिलीज़ हुई थी। उसी के गाने "चलो एक बार फिर से अजनबी.... " को सर्वश्रेष्ठ गीत फिल्मफेयर अवार्ड मिला "साहिर लुधियानवी" को। साहिर ने कहा कि " उन्हे खुशी होती, लेकिन इस साल नही ! इस साल इसका हक़ सिर्फ मत रो माता को हो सकता है"...... और शैलेन्द्र को भरे हाल में गले लगा प्रतीक चिह्न थमा दिया था। ऐसे थे वो लोग।
राज जी की रोमन टिप्पणी जस की तस देवनागरी में आपके सम्मुख है। इसके आगे लिखने को और रह ही क्या जाता है। तो बस सुनिये
मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे
जनमभुमि के काम आया मैं बडे भाग्य हैं मेरे
मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे
मत रो
ओऽऽऽऽ हँस कर मुझको आज विदा कर
जनम सफल हो मेरा
ओऽऽऽऽ हँस कर मुझको आज विदा कर
जनम सफल हो मेरा
रोता जग में आया हँसता चला ये बालक तेरा
मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे
मत रो
धूल मेरी जिस जगह तेरी मिट्टी से मिल जायेगी
होऽऽऽऽऽ
धूल मेरी जिस जगह तेरी मिट्टी से मिल जायेगी
सौ सौ लाल गुलाबों की फुलबगिया लायेगी
मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे
मत रो
कल मै नही रहूँगा लेकिन जब होगा अँधियारा
होऽऽऽऽऽ
कल मै नही रहूँगा लेकिन जब होगा अँधियारा
तारों में तू देखेगी हँसता एक नया सितारा
मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे
मत रो
फिर जनमूगा उस दिन जब आजाद बहेगी गंगा
होऽऽऽऽऽ
फिर जनमूगा उस दिन जब आजाद बहेगी गंगा
उन्नत भाल हिमालय पर जब लहरायेगा तिरंगा
मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे
मत रो
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19 comments:
सुन्दर गीत सुन्दर पोस्ट...........पुरानी यादें ताजा हो गयीं
हूं आनंद आ गया गीत का सुनकर । एक कार्यक्रम आता है विविध भारती पर आपकी फरमाइशें । उसी प्रकार ये कंचन भारती की आपकी फरमाइशें कार्यक्रम हैं । तो अब प्रती क्षा है बर्मन दादा के गीत की ।
बार बार सुन कर भी बार बार सुनने को जी चाहता है... सुबीरजी की तरह हम भी बर्मन दादा के गीत की फरमाईश करने वाले थे.. इंतज़ार है..
बहुत ही खूबसूरत और नायाब गीत हैं. बहुत धन्यवाद.
मन-भावन गीतों और मधुर संगीत की महफिल में
आज फिर हाज़िर हुआ हूँ ......
मन्ना दा का गया हुआ गीत एक-दम आंदोलित कर गया
बात क्या ...जो पलकों के कोनों पर जरा चमक न उभर के आये तो ....?!?
दोनों गीत अपनी जगह पर बे-मिसाल हैं
और....
आपकी मेहनत, लगन और निष्ठा पर आपको अभिवादन ...!!
इजाज़त दीजिये कि एक और भूले-बिसरे नायाब गीत ki फरमाईश कर सकूं
---मुफलिस---
kanchan jee bahut bahut dhanyavad. 'muflis' jee ki tippanee me to sab aa hee gaya hai . bakee kee farmaishen jaldee sunne ko milengee yahee ummeed hai .
एक अलग मूड में सुनने वाले गीत है.....
मेरा इस फिल्म का पसंदीदा गीत बर्मन दा वाला है मेरे साजन हैं उस पार। उसे सुनने और गाने में सबसे ज्यादा आनंद आता है। राज जी द्वारा दी गई जानकारी से नई बात पता चली।
kanchan ji, kuch geet aise hote hain ki aap khud se jod lete hai. pahle bhag men jo geet aapne pesh kiya hai, use main is tarah leta tha- ki apna to rang aisa hai ki raat men aise hin chhipne men koi dikkat hin nahi hai.
वाह आंनद आ गया जी। जी खुश हो गया।
बंदिनी से जुड़ी कई यादें उभर आयी कंचन...शुक्रिया, मेरे पापा की पसंदिदा फ़िल्मों में से एक
Behad sunder Geet sunvaye Kanchan aapne ..bahut aabhaar -
इतना सुंदर गीत के साथ ही साथ सुंदर पोस्ट भी ... बहुत अच्छा लगा।
bahut sundar prastuti.....
बढीया
मैं खिड़की से छुप छुप देखूँ
रितु बसंत की आई
बिल्कुल आनंदमय कर दिया आपने शुक्रिया
कंचन जी ! भाग २ बहुत अच्छा लगा लेकिन " अब के बरस भेज भैया को बाबुल ......." के बिना कुछ अधूरापन सा महसूस हुआ !
जब इस गीत की धुन सचिन दा ने शैलेन्द्र जी को सुनाई तो वही रिकॉर्डिग रूम में गीतकार और संगीतकार गले लिपटकर खूब रोये थे ! यहीं पर आकर गीत सार्थक हो जाता है ! नमन है ऐसी भावभीनी संवेदना को !
बहुत ही बढ़िया गीत सुनवाया कंचन दी!
''मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे''
राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत गीत और मन्नाडे की आवाज। इससे जुड़ा वाकया भी अच्छा लगा, पुरस्कार समारोह वाला।
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