Friday, November 28, 2008

हर तरफ ज़ुल्म है, बेबसी है, सहमा सहमा सा हर आदमी है





शोक नही आक्रोश सही...कुछ है जो मन में दो दिन से उथल पुथल मचाये है...आक्रोश भी कह सकते हैं, लेकिन जब आक्रोश कहीं निकलेगा नही तो शोक तो जन्म लेगा ही। और आक्रोश निकालें कहाँ..इस ब्लॉग पर ....! क्या फर्क पड़ता है ...???? हम नेताओं को गालियाँ दे लें..आतंकवाद को कोस लें... किसी धर्म को कोस लें या धर्मनिरपेक्षता की बात कर लें। क्या फर्क़ पड़ता है...?? कौन हमारा ब्लॉग पढ़ेगा..?? कौन बदल जायेगा..??? हम कर भी क्या सकते है..??? शिवाय घरों में बोलने के और ब्लॉग में भड़ास निकालने के...!!!! लेकिन करें भी तो क्या...अपनी डायरी से भी ना कहें तो किस से कहें..???

सच बहुत दुःख होता है, ऐसा जीवन पा के जिसमें आप अंदर ही अंदर कुढ़ सकते हैं बस...!

शोक नही मनाएं तो करें क्या...??? वो शख्स जिसने हमारे सामने शपथ ली कि एक एक को जिंदा या मुर्दा खतम कर के आयेंगे... वो कुछ क्षणों बाद हमारे सामने ही खतम दिखाई देता है...! वो पत्नी, वो बच्चे.. जो ये सब देख रहे थे टी०वी० पर उन्होने कैसे झेला होगा...!!!! श्रद्धांजली... अश्रुपूर्ण श्रद्धाजली..!!!!








बस कुछ कहने को असमर्थ....! मन में यही गीत आ रहा है...!!!! ये गीत जो जब जब मैं बहुत निराश होती हूँ तो मन को सांत्वना से भरता है..! जब कुछ नही रह जाता हाथ में, तब ये प्रार्थना ही तो आती है मन में...!

नेट आज बहुत स्लो होने के कारण गीत अटैच्ड नही हो पा रहा....! शब्दो में मेरी प्रार्थना..!



इतनी शक्ति हमें देना दाता.,
मन का विश्वास कमजोर ना।
हम चलें नेक रस्ते पे हम से
भूल कर भी कोई भूल हो ना।

हर तरफ ज़ुल्म है, बेबसी है,
सहमा सहमा सा हर आदमी है
पाप का बोझ बढ़ता ही जाये,
जाने कैसे ये धरती थमी है,
बोझ ममता से तू ये उठा ले,
तेरी रचना का ही अंत हो ना।

हम अंधेरे में हैं रोशनी में दे,
खो न दें खुद को ही दुश्मनी से,
हम सज़ा पायें अपने किये की,
मौत भी हो तो सह लें खुशी से,
कल जो गुज़रा है, फिर से न गुज़रे
आने वाला वो कल ऐसा हो ना।

8 comments:

Abhishek Ojha said...

:(

नीरज गोस्वामी said...

हम लोग जिन्दा हैं तो सिर्फ़ ऐसे चंद लोगों की वजह से ही वरना मरने में क्या कसर बाकी है? देश इनका सम्मान करे न करे लेकिन हर भारत वासी दिल से इनके प्रति कृतज्ञ है और रहेगा...
नीरज

कुश said...

जिनके बोलने से कुछ बदल नही सकता.. वे तो बोल रहे है.. पर जिन्हे बोलना चाहिए वे सब खामोश है..

दिनेशराय द्विवेदी said...

खुद को बदलना होगा, पहले इन्सान, फिर भारतीय फिर कुछ और होना होगा। देश युद्ध में है और तब तक रहेगा जब तक आतंकवाद अंतिम रूप से परास्त नहीं हो जाता है। सतर्क रहना होगा और करना होगा। हम खुद बदलें फिर अपना आस पास बदलें।

डॉ .अनुराग said...

इन शहीदों का बलिदान अमूल्य है ,अभी अभी ख़बर मिली है N.S.G के एक मेजर ओर हवलदार भी शहीद हुए है .. ...इस बलिदान ओर घटना को न भूले यही हमारी श्रदांजली होगी इन्हे .....इस देश में एकजुटता ओर शाहस की इस लौ को जलाए रखे .

रविकांत पाण्डेय said...

तबाही का ये मंजर किसी भी हृदय को व्यथित करने के लिये काफ़ी है। मर्मांतक पीड़ा के इन क्षणों में प्रभु के सहारे की कामना स्वाभाविक है। सवाल सिर्फ़ मुंबई और देश का नहीं है, वस्तुतः हिंसा पाशविक प्रवृत्ति है अतः कहीं भी हो, निंदनीय है। शोक और आक्रोश की लौ न बुझने पाये.....

पारुल "पुखराज" said...

कल जो गुज़रा है, फिर से न गुज़रे
आने वाला वो कल ऐसा हो ना।

Manish Kumar said...

hum sab ke dil mein kuch aisi hi bhavnayein umad rahi hain