११ अगस्त था हमारे आफिस में हिंदी कार्यशाला का दिन, जिस की प्रतीक्षा आफिस में तो लोगो को बेसब्री से होती है, मगर मेरे लिये बहुत थकावट भरा कार्यक्रम हो जाता है। पूरे दिन की भागदौड़ के बाद जब कार्यशाला खतम हुई तो सोचा कि एक सरसरी निगाह मेल पर डालती हुई चलूँ। चेक करती हूँ तो पाती हूँ कि १४ मई को की गई मेरी पोस्ट सुनो आतंकवादियों पर कोई कमेंट आया है। कमेंट रोमन में था जिसे मैं देवनागरी में लिख रही हूँ
"आपके माध्यम से मुझे अपनी कविता पढ़ने का अवसर मिला, मैं नही जानता था कि नासिरा जी ने अपने उपन्यास में मेरी अधिकार काविता उद्धृत की है। आपका आभारी हूँ। नासिरा जी से मेरे पारिवारिक संबंध रहे हैं। उनके दोनो बच्चे मेरे विद्यार्थी भी रहे हैं। उनका भी धन्यवाद..! जिन पाठकों ने कविता की प्रशंसा की है उनका भी धन्यवाद।
अशोक लव, ०८.०८.०८, ashok_lav1@yahoo.co.in"
आपने जिसकी कविता पसंद की हो वो ही आपकी पोस्ट पर कमेंट कर रहा हो तो आप समझ ही सकते हैं कि क्या अनुभूति होती है उस वक्त। लेकिन मुझे तुरंत घर निकलना था।
दूसरे दिन मैने अशोक जी को मेल से लंबा सा धन्यवाद दिया और खत-ओ-क़िताबत का सिलसिला चल पड़ा।
कविता,लघुकथा,पत्रकारिता एवं शिक्षा जगत से से संबंधित अनेकानेक पुस्तको के प्रकाशन से धन्य अशोक जी को मैने सुझाव दिया कि उन्हे अब ब्लॉग दुनिया को भी आजमाना चाहिये...! और वो मेरि बात मान गये....! अब जानिये अशोक लव के शिखरों से आगे जाने के इरादे खुद अशोक लव के माध्यम से...! मैं होती कौन हूँ सूरज को दिया दिखाने वाली...!
"आपके माध्यम से मुझे अपनी कविता पढ़ने का अवसर मिला, मैं नही जानता था कि नासिरा जी ने अपने उपन्यास में मेरी अधिकार काविता उद्धृत की है। आपका आभारी हूँ। नासिरा जी से मेरे पारिवारिक संबंध रहे हैं। उनके दोनो बच्चे मेरे विद्यार्थी भी रहे हैं। उनका भी धन्यवाद..! जिन पाठकों ने कविता की प्रशंसा की है उनका भी धन्यवाद।
अशोक लव, ०८.०८.०८, ashok_lav1@yahoo.co.in"
आपने जिसकी कविता पसंद की हो वो ही आपकी पोस्ट पर कमेंट कर रहा हो तो आप समझ ही सकते हैं कि क्या अनुभूति होती है उस वक्त। लेकिन मुझे तुरंत घर निकलना था।
दूसरे दिन मैने अशोक जी को मेल से लंबा सा धन्यवाद दिया और खत-ओ-क़िताबत का सिलसिला चल पड़ा।
कविता,लघुकथा,पत्रकारिता एवं शिक्षा जगत से से संबंधित अनेकानेक पुस्तको के प्रकाशन से धन्य अशोक जी को मैने सुझाव दिया कि उन्हे अब ब्लॉग दुनिया को भी आजमाना चाहिये...! और वो मेरि बात मान गये....! अब जानिये अशोक लव के शिखरों से आगे जाने के इरादे खुद अशोक लव के माध्यम से...! मैं होती कौन हूँ सूरज को दिया दिखाने वाली...!
9 comments:
anubhaw shere kiye.....
jaankaari bhi di....
achcha laga
धन्यवाद आप का ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तित्व की रचनाएँ पढ़वाने के लिए....
नीरज
वो तो ठीक है मोहतरमा ....आपने क्यों सारे ऑफिस का भार अपने सर पे लिया हुआ है ?
जी सही कहा आपने बेहद खुशी होती है जब हम किसी के बारे में लिखते हैं और वो खुद आपसे मुखातिब हो जाता है।
ये तो अच्छी बात है मैंने तो पिछली पोस्ट भी नहीं पढ़ी थी... आज सब पता चला. अशोक जी का ब्लॉग भी देख के आता हूँ.
आप ने बिल्कुल ठीक किया.
अशोक जी बहुत बढ़िया कवि एवं लघुकथाकार है.
आपकी प्रेरणा को नमन..
अरे आश्चर्य है की हमने आपकी ये पोस्ट कैसे नही पढ़ी थी। खैर आज पढ़ ली।
KANCHAN JEE
____________
13 MARCH KO EK KAVITA LIKHEE THEE _"EK KAVITA APNE LIYE "..KAVITA HAI--
CHALO EK KAVITA APNE LIYE LIKHEI.N
BAHUT DINO.N SE APNE-AAP SE BAATCHEET NAHI.N KEE
APNAA HAAL-CHAAL NAHI.N POOCHHAA
BAS DOOSAROON KEE ICHCHHAAYO.N KO POORAA KARTE-KARTE
APNAA HEE HAAL POOCHHANAA YAAD NAHI.N RAHAA.
LAGTAA HAI SAB THEEK HEE HAI
KYONKI KUCHH KHAAS NAHI.N HAI.
KISEE NE MUJHASE MERE BARE MEI.N NAHI.N POOCHHAA
SAB VYASAT HAIN
APNEE-APNEE DUNIYA MEI.N MASAT HAI.N
HAM UNKEE DUNIYA MEI.N GHOOMATE-GHOOMATE
APNEE HEE GALIYAA.N BHOOL GAYE
CHALEIN AAJ APNE MAN KEE GALIYO.N MEI.N GHOOMAA LEI.N
AUR KOI NAHI.N POOCHHATAA
SVAYAM HEE APNAA HAAL-CHAAL POOCHH LEIN.
--ASHOK LAV
AAJ HRIDYA GVAKSH KO PARHKAR YEH KAVITA ......
..is kavita ke arth apne badal diye hain.
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