Saturday, April 19, 2008

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?

२४ अगस्त २००२ को अनंतपुर के कार्यालय में लिखी गई ये कविता इसके बारे में क्या कहूँ...बस गहन तनाव की व्युत्पत्ति थी ये...!



मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?आज भी तुम और तुम ही हो मेरी हर प्रार्थना में,

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ तुमको हर पल याद करना आज भी आदत है मेरी,

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ आज भी तेरी डगर पर ही लगी है नज़र मेरी,

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ कि तुम्हारी वो हँसी अब तक न भूली नज़र मेरी।

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ आज भी हर लड़खड़ाहट ढूढ़ती है हाथ तेरा,
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ तुम गए तो जिंदगी में छा गया है बस अंधेरा..!

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ भीड़ में इतनी, अकेलापन डरा देता है मुझको,
और घबरा कर बढ़ा देती हूँ मैं ये हाथ मेरा,
काश तुम इसको पकड़ लो और सहारा दे के बोलो,
"मै तो हूँ न साथ तेरे क्या करेगा ये अँधेरा ?"

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ , कि अचानक दिल है करता भाग कर तुमको पकड़ लूँ,
अपने सिर की कसम दे के तेरे कदमों को जकड़ लूँ।
सामने तुझको बिठाकर ,
तेरे हाथों को पकड़ कर,
फूट कर मैं खूब रो लूँ
इतने दिन से मेरे दिल ने,
दाग जितने खुद में पाले,
आँसुओ में सभी धो लूँ

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ कि महज उन्माद ही तो प्यार का मतलब नही है,
नेह का ही एक पहलू ही तो ये विषाद भी है...!

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ कि महज तुम में नही है नेह की ये भावना,
बस ढिंढोरा पीटने का अर्थ है क्या चाहना....?
आरती और शंख के संग तुम बुलाते देव को हो,
मौन मंत्रों को मगर कहते नही क्या साधना..?

मैं तुम्हें कैसे बताऊँ....?और बताऊँ भी तो क्यों...?
क्यों भला शबदों की दासी बने मेरी भावना..?

मैं तुम्हे क्यों कर बताऊँ और भला कैसे बताऊँ
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ ....? मैं तुम्हे कैसे बताऊँ ....?

12 comments:

mamta said...

सुंदर और भावनात्मक प्रस्तुति।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा भाव हैं, बधाई!!

मीनाक्षी said...

शब्दों के भाव...आवाज़ में उतर आए. कविता जितनी भावप्रधान आवाज़ में वैसी ही भावुकता.... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

Manas Path said...

आपका तो फ़ांट ही नही दिख रहा. टिप्पणी कैसे करूं मैडम.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेहद भाव प्रणव काव्य की मधुर सँयत अभिव्यक्ति बहुत पसण्द आयी कँचन जी
बधाई ! इसी तरह खुले मन से लिखती रहिये...
स स्नेह आशिष
-लावण्या

Manish Kumar said...

वाह, बहुत सुंदर...बेहद पसंद आई ये कविता..

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ कि महज उन्माद ही तो प्यार का मतलब नही है,
नेह का ही एक पहलू ही तो ये विषाद भी है...!

मैं तुम्हे कैसे बताऊँ ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ कि महज तुम में नही है नेह की ये भावना,
बस ढिंढोरा पीटने का अर्थ है क्या चाहना....?
आरती और शंख के संग तुम बुलाते देव को हो,
मौन मंत्रों को मगर कहते नही क्या साधना..?


क्या बात है ! मन को छू गए ये भाव

पहली बार पॉडकास्टिंग के लिए हार्दिक बधाई। अच्छा लगा
इस बार साथ में कुछ Background Noise भी आती दिख रही है। अगली बार ध्यान दें कि ये किस वजह से है।

डॉ .अनुराग said...

puri kavita me dikh raha hai aapne kisi khas shan me behad imandari se likhi hai...बस ढिंढोरा पीटने का अर्थ है क्या चाहना....?
आरती और शंख के संग तुम बुलाते देव को हो,
मौन मंत्रों को मगर कहते नही क्या साधना..?
nahi janta us vaqt ye gussa tha ya dukh...par maine kabhi nahi mana ki ishvar ne apne pas koi prayer ka paiman rakha hai...ek bat aor isi khyaal par kai dino se ek nazm aas pas ghoom rahi hai bas panne par nahi utar pa rahi....par mujhe koi gussa nahi....
isliye mohtarma...nisankoch ishvar se muskra ke bate kijeye...
agli bar koi muskarari rachna milegi...isi ummed se....

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर। पाडकास्टिंग के लिये बधाई!

Anonymous said...

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राकेश जैन said...

dard hi dard hai, nahi hai to bas tu...
tu hota to bas hota tu hi tu, dard nahi hota...

kahun kaise , maun hi rah jaun to behtar..
tu sunta to sunane ka zayka hota...

राकेश जैन said...

dard hi dard hai, nahi hai to bas tu...
tu hota to bas hota tu hi tu, dard nahi hota...

kahun kaise , maun hi rah jaun to behtar..
tu sunta to sunane ka zayka hota...

गौतम राजऋषि said...

मौन-मंत्र
मौन अराधिका

....सोचता हूँ वो पत्थर कैसा होगा?