Wednesday, April 16, 2008

उड़न तश्तरी का फुरसतिया पड़ाव हृदय गवाक्ष पर

पिछले दिनों जिंदगी बड़ी भागदौड़ की रही, इसी कारण अप्रैल बीत रहा है कोई पोस्ट भी नही भेज पाई... ३१ मार्च को कानपुर से लौटने के बाद स्वजनो की आवाजाही में सोमवार से शुक्रवार आ गाया शनिवार को जब आराम करने के लिये फोन आफ किया तो आन करने पर पता चला कि इतनी ही देर में कानपुर में भाभी हॉस्पिटलाईज़्ड हो गईं और आईसीयू में रखी गईं हैं...२४ घंटे का समय कैसे कटा ये तो हम और ईश्वर ही जानते हैं। सोमवार से स्थिति नियंत्रण में तो आई !

इन्ही परिस्थितियों में समीर जी का मेल प्राप्त हुआ कि वे १०-११ को लखनऊ तथा १२-१३ को कानपुर में रहेंगे...!
समीर जी से मिलने का अवसर छोड़ने का तो कोई विकल्प हो नही सकता था, हाँ कानपुर लखनऊ मे किस जगह मिलना है ये विकल्प थे..तो चूँकि हमें कनपुर जाना ही था तो हमने वहीं पर मिलना उचित समझा..! ३.०० बजे दोपहर मे जब हम कानपुर के जाम से जूझते किदवई नगर के अपने घर पहुँचे तो तुरंत कल्याणपुर जहाँ समीर जी अपनी बहन के घर रुके थे वहाँ जाने की हिम्मत नही हुई, समीर जी से हमने पूँछा कि शाम का क्या कार्यक्रम है तो उन्होने बताया कि उन्हे शाम को अनूप जी के घर जाना है, तो मुझे लगा कि वहीं पहुँचना अधिक उचित रहेगा। मैने तुरंत अनूप जी को फोन मिलाया और अता पता पूँछा।

भाभी अस्पताल में ही थी.भईया ने मुझसे कहा था कि कोई ड्राइवर ले लो और भतीजे के साथ चली जाओ..तो मैने कहा ठीक है लेकिन तुम चलते मैं अधिक आश्वस्त रहती..तो भईया खुद ही आए।



शाम को भईया के साथ ढूँढ़ते ढाढ़ते लगभग ७.४५ पर जब अनूप जी के घर पहुँची तो पता चला कि साधना भाभी बस निकलने ही वाली हैं, सो हमने जल्दी जल्दी उनके और बहन जी के दर्शन किये भाभी जी ने फिर मिलने का वादा करते हुए जो भारतीय शैली में हाथ जोड़ कर चलने की इजाजत माँगी तो हम उन्हे मना ना कर सके (वैसे पता था कि इजाज़त देने में ही इज्जत है :)) परंतु इतनी ही देर में उनकी सहज छवि मन पर छा चुकी थी।








सुमन भाभी से भी इसी बीच परिचय हो चुका था। बैठक के हर कोने से उनकी रचनात्मकता झाँक रही थी। सामने की मेज पर उनकी पाक कला फैली हुई थी। हम उन्हे बिना बताये ही उनकी भूरि भूरि प्रशंसा किये जा रहे थे।
अगली बारी थी सुमन भाभी की बड़ी बहन निरुपमा अशोक से परिचित होने की, वे लखीमपुर इण्टर कॉलेज में प्रधानाचार्या हैं एवम् हिंदी में गहन रुचि के साथ विद्वता भी रखती हैं..बातों बातों मे पता चला कि वे लखनऊ में हमारी पड़ोसन भी हैं।


अब मेहफिल थोड़ा रंग में आ चुकी थी बातें करने में कोई पीछे नही, शिवाय अनूप जी के हमे लग रहा है कि वे मन ही मन रिपोर्ट बनाने में लगे थे और एक एक बात का लेखा जोखा रख रहे थे कि कब कौन सी बात किसके मुँह से निकल रही है। समीर जी, निरुपमा दी, भइया और मैं मुखर चर्चा में लगे थे बातें ब्लॉग की भी हुईं...हम सब ने अपने कई अनुभव बाँटे कई शेर भी कहे गये।

भईया ने जब कहा कि

मेरे बच्चे मेरी मुफलिसी से वाक़िफ हैं,मेरे बच्चों को खिलौने नही अच्छे लगते।
तो अनूप जी ने मिराज़ फैजाबादी के शब्दों मे ने जवाब दिया कि

मुझे थकने नही देता ज़रूरत का पहाड़,मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नही होने देते।

साथ और दे मारे..!

मुश्किलें राह भूल जाएंगी,तुम मेरे साथ में चलो तो सही।

तो भइया ने भी दे मारा

अब कसम है तुमको रोक लो अपने आँसू,मेरी आँखों मे न आ जाएं तुम्हारे आँसू।

और समीर जी को समर्पित करते हुए कहा

आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा,ऐ जाने वाले तू याद बहुत आयेगा।

मैने जब बताया कि गज़ल सुनने में भइया लोगों के साथ अथराइज़्ड होने के लिये मुझे

एक आशिक ने रात पिछली पहर,अपने महबूब के न आने पर,

कर दिये ताज़महल के टुकड़े,आब-ए-जमुना में फेंक कर पत्थर।

का व्याख्या सहित अर्थ बताना पड़ा था और शुरआती दौर में मैने जब अपने भईया से पूँछा कि चारागर का मतलब क्या होता है तो उनके बैद्य बताने पर हमने सुना बैल और समझ भी लिया कि चारा खाने के कारण ही उसे ऐसा कहा जाता है लेकिन जब वो मिसरों पर फिट न बैठे तो हम हैरान हो जाते थे, अनूप जी कहाँ पीछे रहने वाले थे उन्होने भी तुरंत अपने अनुभव बँटाये और बताया कि एक बार किसी के कविता याद कराने के अनुरोध पर उसे जब कन्हैया लाल जी की कविता

अजब सी छटपटाहट,घुटन,कसकन ,

है असह पीङासमझ लो

साधना की अवधि पूरी है

अरे घबरा न मन

चुपचाप सहता जा

सृजन में दर्द का होना जरूरी है.

याद कराई और दूसरे दिन उससे सुनाने को कहा था तो उसने कविता तुरंत सुना दी कि

अजब सी छटपटाहट,घुटन,कसकन,

है असह पीङा

समझ लोसाधना की अवधि पूरी है

अरे घबरा न मन

चुपचाप सहता जा

सूजन में दर्द का होना जरूरी है.

तो कमरा ठहाकों से गूँज गया


इसी बीच मैने सुमन भाभी से पूँछ लिया कि एक सफल ब्लॉगर की पत्नी के रूप में वे खुद कहाँ देखती हैं और दिल की बाते जो जुबाँ पर आईं तो अनूप जी को तो बस कहीं भागने का मौका ही नही मिल पा रहा था, हम तो भाभी जी की हाँ में हाँ मिलाए पड़े थे, समीर जी की भी कुछ नही चल रही थी वो भी इसी खेमे आ गये और मंजूर किया की ब्लॉगिंग के चक्कर में पत्नियों पर एक अलग प्रकार का अत्याचार हो रहा है..इसके खिलाफ जन जागरण की आवश्यकता है। भाभी जी को मैने आश्वस्त किया कि उनकी आवाज़ ब्लॉगर्स तक पहुँचाई जायेगी। भाभी जी का सुझाव है कि हम सभ ब्लॉगर्स अपने इस नशे के लिये घंटे सुनिश्चित करें और सुनिश्चित घंटों के इधर उधर ये कार्य न करें।

अब तक राजीव जैन जी भी मेहफिल में शामिल हो चुके थे, लेकिन मेरे सामने उन्होने बस इतना कहा कि अब वे ब्लॉगर नही रहे, बाकी वे मंद मंद मुस्कान ही परोसते रहे सो हम उनके विषय में अधिक नही बता सकते
यहाँ हम इन बातो पर चर्चा कर रहे थे उधर हॉस्पिटल में भाभी इस ब्लॉगर मीट का दर्द झेल रही थी, तो हम माता जी से मिलने घर के अंदर गए और उनसे चलने की इजाज़त ली और ढेरों यादे ले कर अपने घर वापस आ गए।

सारे चित्र समीर जी के कैमरे से साभार, यूँ मनीष जी के चिट्ठे पर फोटो के कारण मेरे बागी तेवर देख कर अनूप जी काफी डरे हुए थे, बार बार कह रहे थे कि कंचन अपनी फोटो का प्रिंट आउट निकाल कर देख लो हमने अपनी तरफ से कोई कमी नही छोड़ी है. लेकिन भगवान के क्रिएशन में कुछ कर नही पाए,..:)


मेहफिल यूँ सजी



हम तो बस हाथ मलते रह गए



अधिक चित्र एवं सजीव वर्णन के लिये यहाँ देखें

बातें बहुत थी, कुछ अधिक ही खिंच गईं, झेल लीजियेगा

17 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

आपकी ब्‍लागर मीट रिपोर्ट काफी अच्‍छी लगी, बधाई

काकेश said...

दो रपट तो फुरसतिया जी की इस्टाइल में पढ़ लिये थे अब आपकी स्टाईल में भी पढ़ी अच्छा लगा.वहाँ कमेंटियाये नहीं कसर यहाँ उतार रहे हैं...

शेरबाजी मस्त रही...

ये अपने राजीव टंडन जी राजींव जैन कब से हो गये. ;-)

Arun Arora said...

चलो अच्छा हुआ सारे शायर थे ,मिल जुल कर सुन सुना लिये ,वरना सामान्य आदमी तो कपडे फ़ाडने वाली हालत मे पहुच जाता,कौन झेलता है इतने शायरो को :)

mamta said...

कंचन जी बहुत बढ़िया अंदाज मे आपने ब्लॉगर मिलन लिखा । मजा आ गया पढ़कर।
और अब आपकी भाभी कैसी है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अभूतपूर्व शायरी के साथ ये मिलन वर्णन भाया !
-- लावण्या

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया विवरण, शुक्रिया!

नीरज गोस्वामी said...

कंचन जी
सीधे सच्चे और सरल ब्लोगेर्स से (?) मिलने में कैसा आनंद आया होगा इसका अंदाजा हो गया हमको. आप ने बहुत ही अलग अंदाज़ में इस गोष्टी का वर्णन किया है और जो शेर इसमें डाले हैं वो बेमिसाल हैं. हम को इसे पढ़ कर लगा जैसे ये सब हमारे सामने ही हुआ है. आनंद आ गया.
नीरज

ghughutibasuti said...

जानकारी देने का अन्दाज बढ़िया है । पढ़ने में मजा आया ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन रिपोर्ट..अब आप और फुरसतिया जी इतनी उम्दा रिपोर्ट पेश कर चुके उस यादगार शाम की कि हमारे पास तो अब कहने को कुछ रहा ही नहीं बस उन सुनहरी यादों के सिवा.

और हाँ, यह नीरज भाई जो कह रहे हैं कि सीधे सच्चे और सरल ब्लोगेर्स से (?) -वो मेरे लिये है.

लिख इसलिये दिया ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये. बाकी तो आप समझ गई ही थीं कि मेरे लिये कहा है. :)

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया रपट है।
अनूप जी को तो बस कहीं भागने का मौका ही नही मिल पा रहा था।
रास्ता अभी भी कहां मिल रहा है।
मेरे बागी तेवर देख कर अनूप जी काफी डरे हुए थे
स्वाभाविक बात है डरना। :)

Manish Kumar said...

मुझे थकने नही देता ज़रूरत का पहाड़,
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नही होने देते।
क्या शेर है।
बेहद अच्छी रपट बनाई आपने। खासकर शेर की सवाल जवाबी और शब्दों के हेर फेर के प्रसंग मज़ेदार लगे।

pritima vats said...

आपका ब्लाग मैं पढ़ नहीं हूं. परंतु पढने की बड़ी तमन्ना है। यदि फाण्ट का कुछ हो सकता है तो प्लीज कुछ कीजिए।

डॉ .अनुराग said...

सोच ही रहा की किसी काम मे अटकी होंगी आप तभी इस ब्लॉग पे कई दिनों से कोई ख्याल नही आया ...मैंने तो मजाक मे कहा था पर लगता है ये उड़न तश्तरी वाकई भारत भ्रमण पे निकली थी...आप दोनों की मुलाकात का किस्सा भी उतना ही दिलचस्प है ,जितने आप दोनों..........चलिए जीवन के यही हलके फुल्के पल...आगे ओर कुछ तश्तारिया भेजेगे.....

कंचन सिंह चौहान said...

महाशक्ति जी, लावण्या जी, संजीत जी,घुघूती जी नीरज जी आप सब का धन्यवाद...!

काकेश जी सर्वप्रथम आपका स्वागत..! फिर आपको सच्ची बताएं, ये राजीव जी के चुप रहने से हम इतना फ्रस्टेटिया गये थे कि क्या कहें..बस उसी में कुछ होस हवास नही रहा..और कुछ का कुछ लिख दिये

अरुण जी कभी दिल्ली आये तो इस बात का खयाल रखेंगे कि कहीं मुँह से कोई शेर न निकल जाये, वर्ना.....!

ममता जी अब भाभी ठीक हैं और मैं उनके सामने ही बैठ कर टिपिया रही हूँ

समीर जी चलिये आप ही खुश हो लीजिये..!

अनूप जी...! ये डर बरकरार रखियेगा

प्रीतिमा जी फांट का कुछ हो सके तो आप ही सलाह दीजिये।

अनुराग जी मेरे ब्लॉग पर गतो छोड़िये मैं तो परेशान थी कि आप के खयाल मैं आज कल नही पढ़ पा रही हूँ, जल्द ही आती हूँ।

मीनाक्षी said...

मेरे भी बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते... :) बहुत बढ़िया वर्णन...

Unknown said...

अरे इतना कुछ हो गया और मैं अभी तक इस सबसे वंचित रहा, अफसोस! वैसे बधाई हो आपको। साथ ही हम यह भी बता दें कि हम फिर लौट आए हैं अपनी बे-सिर पैर की रचनाओं से आपको बोर करने के लिए।

गौतम राजऋषि said...

हा! हा!!
इतनी पुरानी रिपोर्ट को अभी पढ़ रहा हूँ और तुम्हारी शैली इतनी मजेदार है कि इतने दिनों बाद भी सब किछ सजीव हो उठा है मानो...

कुछ बहुत ही अच्छे शेर सुनने को मिल गये इसी बहाने!