कल रात के दो बजे एक विचार आ रहा था कि ऐसा तो नही है कि जिंदगी में खुशियाँ नही है, लेकिन टुकड़ों टुकड़ों में हैं, फिर मन में आया कि पैच वर्क कर लो आज कल तो एंटीक का फैशन है... और फिर विचार आया कि हाँ सही भी तो है जिंदगी भी तो कहीं इधर कहीं उधर फटी सी है, और कविता ने जन्म ले लिया, दो लाइनें बन गईं, पास पड़े मोबाईल में सेव किया और आज सुबह आफिस आने के बाद पहला काम कि उन लाइनो को कविता का रूप दिया, कंप्यूटर ही.... जैसा बना वैसा आपके सामने है
जगह जगह से फटी एक जिंदगी पाई, और पैबंद लगाने को टुकड़े टुकड़े खुशी।
कोई काँधा नही जो ज़ब्त करता आँसू मेरे, ज़ब्त कर लेती है उनको ये मेरी झूठी हँसी।
प्यार जिनसे करो वो साथ नही चल पाते, साथ जिनके चलो वो प्यार नही कर पाते,
चाँद रूमानी हो और साथ थोड़ी धूप भी हो, ऐसी उम्मीद तो होती हैं खयाली बातें।
प्यार का मोज़दा बस दर्द भरेगा दिल में, ऐसे हालात कहाँ दे सके हैं सिर्फ खुशी।
रात भर जागती आँखें कहें अँधेरों से, कभी कहना नही बातें मेरी सवेरों से,
तुम्हारे सामने धोती हूँ आँख अश्कों से, तब कहीं होती हैं काबिल ज़रा सवेरों के।
खुदकुशी रोज रात शख्स कोई करता है, ये उजाले अगर जानें तो उड़ाएंगे हँसी ।
हर एक संग के पीछे कोई झरना होगा, अपनी इस सोच को अब मुझको बदलना होगा,
तोड़ते रह गए पत्थर औ मिले पत्थर बस, बह गया कितना लहू, अब तो ठहरना होगा।
अब मगर जायें कहाँ, जाएं भी तो कैसे हम, इसी पत्थर में मेरे प्यार की मूरत है बसी।
13 comments:
bahut he sunder
प्यार जिनसे करो वो साथ नही चल पाते, साथ जिनके चलो वो प्यार नही कर पाते,
बहुत गहरी बात कही आपने... अत्यंत सुंदर रचना के लिए बधाई..
priya kanchan,tumari pichhli post per comment nahi kar payii thii..itni khuubsurti se baat kahi hai tumney ki ph no hota to ph kar ke badhaayi deti...aaj ki rachna bhi behad sahaj bhaavabhivyakti hai...badhaayiyaan
रात भर कुछ आवारा ख्याल मेरे बिस्तर पे मंडराते रहे ....सुबह उठा तो एक नज्म मेरे सिरहाने सो रही थी.... कंचन जी जल्दी सो जाया कीजिये या ऐसा करिये देर रात कागज कलम अपने पास रखा करे............
पैबन्दों से जड़ी हुई जो सम्बन्धों की झीनी चूनर
कितनी देर छांह दे पाये, शायद कोई नहीं जानता
और उलझनों में जो डूबीं हुईं चाहते हैं सच हो लें
केवल यह सपना रहता है, हो पाये सच ! नहीं मानता
भावों और शब्दों के बहुत खूबसूरत पैबन्द लगे....शुभकामनाएँ
Sahaj sunder bhaav liye kavita pasand aayee
likhtee rahiye Kanchanji
sneh,
L
बहुत ही गूढ़ अर्थों वाली कविता है।
aapki kavitaon se kuch alag sa andaaz laga.
is bhavnatmak rachna ke liye badhai
kya kahen, us ehsas ke lie...
hum kho jate hai jise padhkar,
kai lamhat ke lie..
वाकई एंटीक
---योगेन्द्र मौदगिल
तुम्हारे सामने धोती हूँ आँख अश्कों से, तब कहीं होती हैं काबिल ज़रा सवेरों के।
क्या बात है
बेहद खूबसूरत
इस एंटीक पैच-वर्क को मैं शौल की जगह ओढ़ कर ले जा रहा हूँ अपने संग वादी में आने वाली सर्दी से मुकाबले के लिये...
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