Thursday, October 25, 2007

माला मुखर्जी की दो कविताएं

ये कविताएं है मेरी सखी माला मुखर्जी की, माला मैम जिनके विषय में कुछ बोलने चलूँ तो विष्णु प्रभाकर की उपन्यास त्रयी के एक उपन्यास स्वप्नमयी की नायिका सामने आ जाती है, माला मैम बिलकुल सहज, जिन्होने बचपन को अभी अपने पास से जाने नही दिया है, (मैम मुझे क्षमा करें) क्योंकि मेरे लिये तो उनमे मातृत्व की भावना है..

कभी कभी ही लिखती हैं लेकिन जब लिखती हैं मन को छू जाता है। आपके लिये लाई हूँ उनकी दो कविताएं

आँसू


डोल रहे आँसू नयनों में, और अश्रु पर आशा,
मिट्टी के जीवन की, छौटी नपी तुली परिभाषा।

रंग नही होते आँसू के पर होते सतरंगी,
भाव रंग हैं अलग अलग, एकाकीपन के संगी।

शिलाखण्ड सा बिझ उठाए, हृदय अतीत की यादें,
मिले नेह का मेह तो बरसें नैनों की बरसातें।

फूलो पर शबनम है आँसू, सीपी में मोती भी आँसू,
मरीचिका का भ्रम भी आँसू, आँसू मन की भाषा।

सजल नयन में तैर रही है, जीवन की प्रत्याशा।।


मेरी गुड़िया


मेरी गुड़िया.....!
चाय का कप छू कर
चिल्ला उठती है,
और सारा घर सर पर उठा लेती है।
अपनी उँगलियाँ घर भर को दिखाती है,
दिन भर सबकी सहानुभूति बटोरती है।
पूरे दिन किसी काम को
हाथ भी नही लगाती है।

शाम को हाथ जलने का हर्जाना माँगती है,
पिता के कार में आइसक्रीम खाने जाती।
लौटती बार टैडी बियर और चिप्स लेकर आती है,
गर्म कप छू जाने भर से इतना शोर मचाती है।

मेरी गुड़िया ब्याही जाती है,
ससुराल में जलती सिगरेट,
और प्रेस से हर रोज दागी जाती है,
पर खामोश रहती है।
मेरी गुड़िया अब सयानी हो गई है,
दोनो कुलों की लाज बचाती है,
अस्सी प्रतशत जली अस्पताल पहुँचाई जाती है,
और विकृत कंठ से पूरे प्रकरण को महज़ हादसा बताती है
मेरी गुड़िया गर्म कप छू कर चिल्ला उठती थी,
और आज....
दहेज़ की चिता में जलकर,
सदा के लिये खामोश हो जाती है...


12 comments:

Ashish Maharishi said...

कविता अच्छी है लेकिन कब तक हम औरतों की आंखों में आंसू देखते रहेंगे...कब वो अपने आंसू को पोछ कर दो दो हाथ करने के लिए तैयार होंगी..कब ??

Atul Chauhan said...

रंग नही होते आँसू के पर होते सतरंगी,
भाव रंग हैं अलग अलग, एकाकीपन के संगी।
वाह!काबिले तारीफ लाईनें हैं। आंसुओं की भाषा का पहली बार इतना सजीव चित्रण पढा। कंचन जी,आपको इस सुन्दर रचना पेश करने के लिये,और आपकी सखा माला मैम को रचनात्मकता के लिये बधाई,मेरी तरफ से।

Udan Tashtari said...

दोनों ही कवितायें बहुत उम्दा है किन्तु दूसरी वाली अति मार्मिक-बहुत भावुक कर गई.

-माला मुखर्जी जी को साधुवाद जो इतनी सुन्दरता से इतना जटिल विषय उठाया और आपका आभार इस प्रस्तुति के लिये.

Divine India said...

बहुत ही उत्कृष्ट रचना है… प्रस्तुति के लिए आभार।

Anonymous said...

sabse pahle itni sari prashansa ke liye Aap sab ka dhnyabad karna chahungi par yeh bhi sach hai ki mai koi regular writer nahi hun jasi ki Kanchan. Par Han Bhawnao se Achuti bhi Nahi. Aap logo ki Hausla Aphzai se Ho sakta hai bhawishya men phir kabhi aisi himakat kar bainthu himmat mil rahi hai Jitni Tarif kanchan ke sath mil kar aap logo ne kar dali kya rachnayen itni achi thi bhi ya yun hi sochungi.KANCHAN ki kawitaon ki jabardast prashanshika hun Ishwar Kare use uska Muqammal Jahan mil jaye per kahin use uske bad kho na dun iska bhi dar hai. Ek bar phir aap sabhi ka dil se shukria ada karna chahungi. MALA MUKHERJEE

पंकज सुबीर said...

दूसरी वाली कविता अद्भुत है विशेषकर उसका अंत करुण है मैं उसको पढ़ने के बाद कुछ देर तक उसके प्रभाव में रहा । माला जी को बोलियेगा कि वे नियमित ही लिखें । समय तो हम निकाल ही सकते हैं सारी चीजों के लिये । उनकी दूसरी कविता ये ही बता रही है कि न लिख कर वे अपने पर नहीं बल्कि श्रोताओं पर अन्‍याय कर रहीं हैं ।
मेरी गुड़िया गर्म कप छू कर चिल्ला उठती थी,
और आज....
दहेज़ की चिता में जलकर,
सदा के लिये खामोश हो जाती है...


इन पंक्तिओं में कुछ है जो सीधे कहीं जा कर धंस जाता है । ब्‍लाग पर प्रशस्‍ति पत्र देखा अच्‍छा लगा पर ये तो सोमवार को लगने वाला था ना ।

Unknown said...

बहुत भी भावुक और मर्मिक अभिव्यक्ति है। माला जी को बधाई। उम्मीद करेंगे कि वो अब ज्यादा लिखेंगी, ताकि हम तक उनकी और भी रचनायें पहुंच सकें। बहुत अच्छा।

aarsee said...

कुछ font की दिक्कत है मैं पढ़ नही पाया
फिर कोशिश करुँगा

महावीर said...

दो मास से नेट पर ना आ सका। आज हृदय गवाक्ष देखा तो माला मुखर्जी की कविताएं पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा। आँसू में भाव तत्व और लयतत्व का
बड़ा ही सुंदर सामंजस्य है।
'मेरी गुड़िया' में दहेज की स्वार्थपरता से उत्पन्न हुई व्यथा और संघर्ष, जीवन में विकृत सामाजिक जीवन की कठोरताओं का यथार्थ चित्रण किया है। माला जी को इन मार्मिक रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई। हाँ, एक और बातः आगे भी ऐसे ही
लिखती रहो।
महावीर शर्मा

राकेश जैन said...

kaun sune sach ko, jeene me peer badi hai....


bitiya seekh gai thi sunna, chup dhar dheer hui hai....

bhaut hi achha hai...

पारुल "पुखराज" said...

dono hi kavitaaye bahut sundar bhaav liye...do teen baar padh chuki huun...malaa ji aur kanchan ji aabhaar

RISHTEY said...

apki rachna padhkar mai nishabd hoon.