उस सड़क छाप बैद्य ने जब जाने कौन कौन सी दवा बता कर कहा था कि ये ६ महीने में दौड़ने लगेगी तो मैने रो कर विरोध किया था कि "मुझे तमाशा मत बनाओ, ये कुछ नही कर पायेगा।" और उन्होने समझा के कहा था। " बच्ची पता तो हमें भी है कि ये कुछ नही कर पायेगा पर बस इस लिये खा लो कि रात को जब हम सोये तो ये सोच कर नींद ना उड़े कि शायद वो बैद्य सही कह रहा हो...."
उन फक़ीर से जब उन्होने कहा था " बाबाजी मैं बादशाह-ए-हिंदुस्तान हो जाऊँ मगर जैसे मोर अपने पैर की तरफ देख कर खुश नही रह सकता उसी तरह जब तक ये खुश नही रहती मैं खुश नही रह सकता। बाबा जी इसे इज्जत की रोटी ......" और आँसुओं ने उनका वाक्य पूरा नही होने दिया था।
उस दिन मैं बहुत रोई थी। मुझे लगा कि मेरे वो भईया जो ४०० लोगो के हुज़ूम के बीच दहाड़ के कहते हैं कि "मै निहत्था खड़ा हूँ आपके सामने जिसे जो करना हो करे। मैं भाग नही रहा.....!! मेरी माँ ने शेर पैदा किया है।" जिसके ऊपर गोली चल जाती है और वो शाम को मेरे रोने पर कहते है " ये देखो बस छिला है।" वो मेरे कारण यूँ किसी के सामने ऐसे बिलख रहे हैं। मैं शायद लोगो को रुला ही सकती हूँ।
और एक साल के अंदर ही जब मैने उन्हे बताया कि मेरा सेलेक्शन हो गया है तो फिर वैसे ही आँसू बह चले उनकी आँख से ...... बार बार वो कहते जा रहे थे " बेटा हम तुम्हे बहुत चाहते हैं।" और मैं बार बार जवाब दे रही थी " हम जानते हैं भईया "
तब जब सबको लगा कि ये नही जा पायेगी इतनी दूर अकेले। तब वो साथ खड़े हुए और कहा मैं तुम्हे ले के चलूँगा।
आप ने ही तो बताय था मुझे कितनी ही गज़लो के मानी.... सुनाये थे कितने सूफी गीत.....
सबके साजन साँझ भये लौटे घर की ओर
लेकिन तुम्हरी आज तलक साँझ भई ना भोर
मोरे रो रो के बहि गये नयनवा
बलम हाय॥तुम तो होई गये गुलरी के फुलवा.....
आज एक माह हो गया
नोटः अनुराग जी कि पोस्ट को जाने कितनी बार देखा और खुद पॉज़ हुई ....... और बार बार सुना हिमांशु जी का ये गीत.... मेरे सामने जो था उसमे राम और लखन की भुमिका बदल गई थी। लखन की गोद मे राम और असहाय लखन का कथन हाय दईया करूँ का उपाय विरन तन राखे बदे
37 comments:
bhavnapradhan lekh...aankhein nam kar di...chitr bahut kuch keh gaye...bahut saari yaadein samete hai aapki post
पहले शब्दों के चित्र और फिर चित्रों के शब्द....
मार्मिक प्रस्तुति भावनाओं की......
कुंवर जी,
पढ़ कर बहुत दुःख और अफ़सोस हुआ ..इश्वर उनकी आत्मा को शांति और आपको हिम्मत प्रदान करे ,यही दुआ है हमारी
हमारी भी हार्दिक श्रद्धांजलि......! कंचन जी भगवान आपको साहस दे...मुझे इस बारे में शरवत जी ने बताया था.....!
मार्मिक प्रस्तुति भावनाओं की
कंचन, इतनी हिम्मत कहाँ से लाये ?
कैसे लिख पाई हो अभी यही सोच नहीं पा रहा.
तस्वीरें देखी जैसे अपने ही घर का एल्बम हाथ में आ गया हो.
अजीब लगता है किसी शेर को यूँ बेबस देखना...नलियों ...ओक्सीज़न के पंप से जूझना......दिन यूँ गुजारना जैसे शाम कोई नयी बात लेकर आएगी....एक नयी उम्मीद ....पिछले चार दिनों से एक छोटे बच्चे को बटोर रेफरेंस देख रहा हूँ .जो मुझे यूँ मुस्करा देखता है .....यूँ पैर हवा में चलता है ...ठीक वैसे ही जैसे दस महीने का आर्यन मेरे घर लौटने पर चलाता था .रोज उसके कमरे की तरफ कदम बढ़ाते हुए .मन को मजबूत करता हूँ के अपने इमोशन पर कंट्रोल रखूँगा .....रोज भूल जाता हूँ.....epidermolysis bullosa है उसे .जहाँ खेलने पर चोट लगेगी .वहां एक फफोला पड़ेगा .....उसकी मुस्कान इतनी प्यारी है ...के ......
पर जिंदगी है ..इसके कई कोने ....सब जगह अलग अलग पार्ट है .अदा करने होते है ....अपना असल तो कही पीछे ...ओर पीछे जा रहा है.........
जानता था कही तुम्हारे इमोशन निकलेगे .....ये भी जानता हूँ के लिखते वक़्त भी ओर शायद दोबारा पोस्ट करते वक़्त भी एक दो बार आँखे गीली की होगी......इमोशनल फूल जो ठहरी .... ........इस ज़माने में पैदा हुई हो..........रोना बिसूरना भी तो उसी दिल में डिफेक्ट है .पर उसका कोई इलाज़ नहीं बताता ......पर सुनो ये वक़्त है न..बड़ी अजीब शै है ........बेआवाज़ कदम धरता है
हिम्मत तो नहीं हो रही के कुछ कहूँ , बस इस शे'र दिल इंसान को नाम आँखों से श्रधांजलि अर्पित करता हूँ . सलाम करता हूँ इनको , और आपकी दिलेरी को के आप लिख सखिन ... रुला देती हो यार ,... ये भी जानता हूँ के लिखते वक्त खुद कितना रोई होगी ! कितने अंशुं टपके होंगे...
कुछ और लिख पाने की हिम्मत नहीं है मेरे में ...
अर्श
कभी कभी तसवीरें वो काम कर जाती हैं जो शब्द नहीं कर पाते। उनका व्यक्तित्व उनकी यादें आपके जीवन में हमेसा प्रेरणास्रोत बन कर मार्ग दिखाति रहें यही मनोकामना है।
एक बहन अपने भाई के इंतकाल पर श्रद्धांजलि व्यक्त करती है अपने पोस्ट पर और इन मोहतरमा पलक जी को जूनियर ब्लौगर एसोसियेशन के सेलेब्रेशन में आनंद लेने के लिये आमंत्रित करना सूझता है...बस अपने पोस्ट का प्रचार करना सूझता है।
माफ करना कंचन, इस बीते महीने की बीती व्यथा और इस पोस्ट पे बहुत कुछ कहने के लिये मुश्किल से तैयार हुआ मन अपनी इस पलक मैडम की कविता का आमंत्रण देखकर इतना क्षुब्ध हुआ है कि कुछ नहीं कहा जा रहा...
कंचन जी
शब्द नहीं है मेरे पास ना इतना हौसला की आप से कुछ कह सकूं, एक एक तस्वीर में दीखता सामीप्य आपकी पीड़ा का अंदाज़ दे जाता है
@वीर जी ! आप जब टिप्पणी दे रहे होंगे तब मैं शायद पलक जी की टिप्पणी डिलीट कर रही होऊँगी। इन संवेदनशील लोगों को इग्नोर करना ही ठीक है bro...! आप ही कहते हैं ना..cool it..just cool it out...!
हिमांशु भाई के गीत वाली पोस्ट पर मैंने अपने कमेन्ट में आपका
जिक्र किया है ! वहाँ एक टीपकर्त्री की संवेदनशीलता से बावस्ता
हुआ था और यहाँ प्रविष्टि से !
ऐसी प्रविष्टियों को सिर्फ प्रविष्टि मानकर पढ़ना संभव नहीं हो पाता !
ये व्यक्ति-सत्य से जुडी होती हैं ! इन उद्गारों को मैं कभी भी वर्चुअल
नहीं बल्कि यथार्थ ही मानता हूँ ! पलक का फलक और है , जिसमें
वर्चुअल कर्मकांड ही सर्वस्व हैं , ऐसी स्थिति में गौतम भैया का
नाराज होना नाजायज नहीं ! पर ऐसे लोगों को अनदेखा करें और
इनके आधार पर हरसंभव अपनी अभिव्यक्ति को प्रभावित न होने दें !
हार्दिक श्रद्धांजलि ! ......... मौन !
खबर सुन कर कई दिन तक आपसे बात करने की हिम्मत नहीं कर पाया था
आज ये चित्र देख कर क्या कहूँ
बस एक बार फिर से खुद को बहुत बौना महसूस कर रहा हूँ
कहने को बहुत कुछ कह डालता हूँ
मगर रिश्तों की बात आती हैं तो कुछ कह ही नहीं पाता
पता नहीं कब सीखूंगा ....सीख भी पाउँगा या नहीं
मार्मिक ,,,चित्र खुद में यादें समेटे हुए है !!!
इस विकट दुख की घड़ी में हौसले की दुआ करता हूं।
ओह! मेरे बच्चे!
हार्दिक श्रद्धांजलि! आपके दुःख में हम सब आपके साथ हैं. नियति पर किसी का बस नहीं है.
कितना कुछ हो जाता है... सबकी खबर नहीं हो पाती... और जब खबर मिलती है तो कुछ कहते नहीं बनता...
मेरी श्रद्धांजलि इस टिप्पणी के माध्यम से.
कंचन जी आपकी हिम्मत औरों को भीं हौसला दे... यही दुआ है.
दुबारा लौट कर आया हूँ.. केवल यह कहने कि
जिस पर बीती वही समझेगा ! यह तो है केवल
" हृदयग्राही मर्म का एक अँतरँग चित्रण"
आप मेरे फ़ीडरीडर से अनायास ही बिछुड़ गयी थीं,
पुनः जोड़ने का उपक्रम करता हूँ ! नमस्ते !
यहीं पर आदमी मजबूर हो जाता है... आपके भैया सशरीर तो नहीं लेकिन आपके हृदय में अवश्य जीवित रहेंगे.. हमेशा...
कुछ कहते नहीं बन रहा ................आपके साथ हूँ .......हो सके तो इस दर्द को ही अपनी शक्ति बनाये !
कुछ ऐसा है जिसपर हमारा कोई बस नहीं बस प्रार्थना कर सकते है जाने वाले के लिए और जो पीछे रह जाते है उन्हे हिम्मत मिले...
kanchan ji....uparvala is dukh kee ghadee me aapko himmat de...bhaisahab ko shraddhanjali arpit kartee hu....
किसी आत्मीय के यूँ चले जाने की पीड़ा सिर्फ भुक्तभोगी ही समझ सकता है कंचन जी ! वक़्त की संजीवनी ही उस पर मरहम लगा पाती है ! ईश्वर उनकी आत्मा को शांति एवं आपको इस दुःख से उबरने का साहस प्रदान करे !
दी! दुःख बड़ा है. पर हिम्मत रखना..भैया कि आत्मशांति आपकी स्वाभिमान पूर्ण ज़िन्दगी कि इच्छा है, जैसा कि अपने लिखा है, उस सच को जीना, ताकि उनकी चेतना इस संसार के परिभ्रम से मुक्त हो सदगति मे यात्रा करें..
मेरे पास ना तो इतना हौसला है, ना शब्द है और ना ही भाव..बस स्तब्ध हूँ.. और इतना ही कह पाऊंगा कि .. मैं शेर तो नहीं पर ..आपका ये भाई भी आपके साथ है.. आप बहुत हिम्मत वाली हैं.. नमन ! नमन ! नमन !
छ्लछला आयी हैं आँखें !
आपकी संवेदना आपको दृष्टि संपन्न बनाती है !
संवेदना की तीव्रता...आपकी तीव्र स्मृतियों का आश्रय लेती है !
वस्तुतः यही स्मृति आपकी उच्चतर चेतना की माँग है...
आप याद करती हैं...पूर्ण प्रेम का आग्रह साथ रहता है !
’क्षति’ को साथ लेकर जीने की गहराई है आपके पास ! वस्तुतः इस ’क्षति’ को महसूसना ...पूर्ण प्रेम के उत्तर-सा है !
वस्तुतः समूचे अस्तित्व के स्वीकार-सा है!
ऐसी गहरी प्रविष्टि को पढ़ कर कुछ भी कह-लिख पाना संभव नहीं ! सो यह ’कुछ भी’ कह देने का स्वभाव कुच कहवा गया !
श्रद्धांजलि !
हिमांशु जी द्वारा बज पर दिए गए लिंक के माध्यम से यहाँ तक आयी. पर नहीं मालूम था कि ये प्रविष्टि रुला देगी...
कंचन जी मैं पहले कभी इस ब्लॉग पर नहीं आयी पर आपको जानती हूँ... और ये भी जानती हूँ कि अपनों को खोने का दुःख क्या होता है क्योंकि चौदह साल की उम्र में माँ को, बाईस की उम्र में पिता सामान चाचा को, चौबीस की उम्र में प्राणों से प्यारी सहेली को और छब्बीस की उम्र में पिता को खो चुकी हूँ... हर बार फूट-फूटकर रोई हूँ... हर बार लगा कि टूट जाऊंगी, पर हर बार उन बिछड़े लोगों के प्रेम ने ही उबारा है, संबल दिया है. जो चले गए उनकी यादें, उनका प्रेम ही सहारा बनता है ऐसे समय में... आपके साथ आपके भैया का प्यार है, हमेशा रहेगा. आप बहुत दृढ़ हैं, ये आपको और दृढता देगा...
श्रद्धांजलि और नमन उस भाई को जिसकी बहन इतनी बहादुर है...
भगवान् भी न.....
बहुत दिन बाद आयी मगर आते ही दुखद समाचार मिलेगा सोचा नही था। भगवान के आगे किसी का जोर नही चलता फिर तुम तो बहादुर भाईयों की बहन हो। इश्वर उनकी आत्मा को शांति और आपको और सारे परिवार को हिम्मत प्रदान करे ।
क्या कहूँ कंचन, अपने भाई बहन के जाने का दुख असह्य ही होता है। फिर भी सहना सीखना पड़ता है। जो बात कुछ सांत्वना देती है वह यह है कि तुम्हारे भैया ने खुल कर अपना स्नेह तुम पर लुटाया और कुछ शेष नहीं रखा। धीरे धीरे उन्हें मुस्कराकर याद करना सीख जाओगी।
सस्नेह,
घुघूती बासूती
आपकी पोस्ट पर अक्सर कुछ कहते नहीं बनता .... !
aaj pichhali teeno post padhi. pata nahin kyon aapko padhte hi man door bhagane ko kartaa hai. shayad aapki samwednaon ka samna karne ka sahas nahin juta pata. khair bahut marmsparshi hain teenon post.
:(:(:(
Sundar Blog. Aur bhavsparsh lekhan Sundar sanjog.
कंचन दी, बहुत ही भावुक, हृदयस्पर्शी पोस्ट है।
आपकी हर पोस्ट पढ़कर आपकी लाइनें याद आती हैं।
जो रुलाएँ वे सारी चीजें भेजी हैं ...
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और बहन के दिल में भाई का प्यार अमर रहे।
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