किसी खूबसूरत परों वाली चिड़िया को
चुगाओ हीरे के दाने,
पिलाओ झरनों का पानी,
उसके लिये बनाओ,
सोने का एक विशाल महल,
जड़ो,
शीशे के दरवाजे खड़कियाँ
सजाओ उसमें,
जन्नत के फूल, कलियाँ, हरियाली।
और उसके उड़ने के लिये आसमान
तुम करो निर्धारित
चुगाओ हीरे के दाने,
पिलाओ झरनों का पानी,
उसके लिये बनाओ,
सोने का एक विशाल महल,
जड़ो,
शीशे के दरवाजे खड़कियाँ
सजाओ उसमें,
जन्नत के फूल, कलियाँ, हरियाली।
और उसके उड़ने के लिये आसमान
तुम करो निर्धारित
ये प्यार नहीं है।
30 comments:
यक़ीनन...हरेक के पास है एक जंजीर .कही सोने की.. कही पीतल की.......
हाँ ये प्यार नहीं...अँधा व स्वार्थी मोह है!
कंचन! कितनी गहरी और कड़वी सच्चाई उगल दी इतने कम शब्दों में... पच नहीं रही...
प्यार है उन्मुक्तता मे,
प्यार है स्वीकार्य मे,
प्यार है बंधन मे कभी,
गर स्वतंत्रता हो तार मे..
bahut achi kavita he bhai saheb
प्यार है बंधन मे कभी,
गर स्वतंत्रता हो तार मे..
http://kavyawani.blogspot.com
shekhar kumawat
और उसके उड़ने के लिये आसमान
तुम करो निर्धारित
ये प्यार नहीं है।
do hi panktiyon me kadva sach byaan kar diya aapne
@कृष्णा जी। इनबाक्स में आपका कमेंट
कुछ समझ नही आया देख कर खुशी हुई। सत्य बात बोलने वाले भले लगते हैं। आपका प्रोफाइल देख कर लगा कि आपने अपना ब्लॉग शायद सच बोलने के लिये बनाया होगा इसीलिये विशेष परिचय से परे है।
मगर आपके कमेंट डिलीट करने से कष्ट हुआ।
आलोचना जिसे स्वीकार्य ना हो, वो रचनाकार नही।
डिलीट होने के बावजूद स्पष्ट विचार देने का धन्यवाद।
Pyaar nahi ye atyachaar...
chhat ke bahane karagaar...
ओह सोच पूर्ण रचना ....
हाँ सच ही तो है वो प्यार कैसे हो सकता है !
और उसके उड़ने के लिये आसमान
तुम करो निर्धारित
ये प्यार नहीं है।
आसमान का निर्धारण कोई और करे क्यों (चाहे कितना विस्तृत क्यों न हो)
ये प्यार नहीं है ... नही है ....
इक सच को बखूबी कह दिया आपने।
सही और सुन्दर कविता है।
घुघूती बासूती
रचना बेहद पसंद आई।
कविता भीतर कहीं छू गयी ....
सचमुच ये प्यार तो नहीं ही है। वैसे कई बार यूं भी होता है कि प्यार का बंधन उस निर्धारित आसमान को खुशी-खुशी पूरा जहान मानने को विवश कर देता है।
उसी विवशता को स्वर देती ये छोटी कविता, जो तनिक विस्तार माँगती थी...है।
बहुत खूब ........
रचना ने तो लाजवाब कर दिया
जन्मों पुराणी बात को जिस तरह आपने कहा आज बोलती बंद है
एक अलग बात कहानी थी आपकी पोस्ट मेरे ब्लोग्लिस्ट में अपडेट नहीं हो रही शायद अन्य की लिस्ट में भी ना हो रही हो
कृपया देखे ...
प्रकाश प्राखी भाई भी इस समय इसी समस्या से परेशान हैं मै तो ब्लोग्वानी से लिंक पा कर आ गया
ये कविता खूबसूरत तो है ही, सामान्य अर्थ के अलावा एक और आयाम भी खुलता है इसमें। प्यार क्या है ये कहना तो शायद शब्दों में संभव ही नहीं है। हां, प्यार क्या नहीं है ये जरूर बताया जा सकता है। सच कहूं तो ये कविता "नेति नेति" की व्याख्या है। हां, गौतम जी की बात ठीक लगती है, थोड़ा और विस्तार.......
ye bhi to hai ki kuch bandhan, jaane anjaane, aise mil jaate hain jo hamein jeevan bhar sath lekar chalna hota hai...
अभी तक जितने प्यार के मायने जानता हूँ उसमे से तो कोई नहीं है मगर
हो सकता है कोई एक पहलू प्यार का ये भी हो शायद शायद जिसे
पोशेसिवनेस कहूँ एक अदद तक .... प्यार के पहलू का कोई एक रूप मुझे कभी कभी दिखता है ...
माँ का बचपन में बच्चों का प्यार शायद इसके बेहद करीब है छुटपन तक ...
पाबंदियां होती हैं... फिर भी मैं भी यही मानता हूँ के शायद इसे प्यार नहीं कहेंगे ...
दोनों गुरु भाईयों की बात पर सहमती जताते हुए विस्तार की जरुरत तो है मगर
रचना मुझे मुक्कमिल लग रही है ....
आसमान निर्धारण वाली बात से अभी तक ठिठका हुआ हूँ... :)
आपका
अर्श
cute and thoughtful..
कंचन दीदी आपने इसे, अकविता का लेबेल अगर दे ही रखा है तो इसे थोडा और विस्तार दीजिये.
खड़कियां को खिड़कियाँ कर दीजिये,
बहुत ही खूबसूरती से आपने एक तल्ख़ हकीकत से रूबरू करवाया है....प्यार में सीमाओं का निर्धारण नहीं होना चाहिए ...और जहाँ निर्धारण हो जाये...या निर्धारण की कोशिश की जाये......वह प्यार नहीं हो सकता.....
काश ....
प्यार की भी कोई निश्चित परिभाषा होती
लेकिन
आपके इस महत्वपूर्ण काव्य ने
प्यार के असीम-असीम अनंत आकाश का विस्तार
सब के मन तक पहुंचाने का
पावन कार्य किया है
....... .... ....... ...... ....
हीरे मोतियों से जड़ा हो
पिंजरा तो पिंजरा है
भावपूर्ण रचना के लिए
अभिवादन स्वीकारें
बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से बुनी हुई इस छोटी से रचना का असीमित फलक स्तब्ध कर गया. आपने उस मानसिकता को आईना दिखा दिया जिस पर मुंह खोलने तक की जुर्रत ५०% आबादी नहीं कर रही है.
अगली पोस्ट का इंतजार है.
सच !!!
कविता पूरी है ! कविता की अंतिम तीन पंक्तियाँ (हरे रंग वाली) पर्याप्त हैं कविता की सम्पूर्णता के लिए !
प्रविष्टि का आभार ।
नेति नेति न क्ररियेजी! बताइये क्या है प्यार!
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