सबकी तरह मैं भी माँ से कहानियाँ सुनते बड़ी हुई। उन कहानियों के विषय अधिकतर देशभक्ति के हुआ करते थे। राणा प्रताप का राष्ट्र प्रेम से मौत तक समझौता ना करना। उनकी बच्ची का कहना
वो कौन शत्रु है जिसने,
हम सब को वनवास दिया है
एक छोटी सी पैनी सी तलवार मुझे भी दे दो
क्षण मुझको रण करने दो, मैं उसको मार भगाऊँ।
भगत सिंह का बंदूकें बोना, आजाद का कपड़ों की गठरी में बारूद बाँध कर धोबी के रूप में अंग्रेजों को धता बताना, दुर्गा भाभी का मेम बनना, सब मैने माँ से ही सुना।
वीर रस की कविताएं यूँ भी जल्दी याद होती और खाली मन में ओज भरती तो भी देशभक्ति का संचार होता। फिर टीन एज में जब पुरानी शहीद देखी तब तो विश्वास ही हो गया कि मैं पिछले जन्म में कोई क्रांतिकारी गुट की ही थी। तभी तो ये देशभक्त दिमाग से नही उतरते।
युवावस्था में आया कारगिल। जब टी०वी० पर दिखते शहीदों के माता पिता को भरी आँखों को छलकने से पूरी ताकत से रोकते हुए यह कहते देखती कि हम रो के अपने बेटे की शहादत को कलंकित नही करेंगे। और कई दिनो तक अपनी आँखें नम रहतीं। जाने क्यों फौजी अच्छे ही लगते थे। ऐसा लगता था कि जीने का शऊर इन्हे ही आता है
इसी तारतम्य में देखा नाम मेजर गौतम राजरिशी का असल में कुछ भी खास नही लगा पहली बार क्योंकि जाने कितने मेजर हैं यहाँ लखनऊ में और कुछ लोगो से मिलना हुआ तो लगा कि बस नाम को मेजर और देश के लिए जज्बे से कोसो दूर। देश के लिये कुछ करने का जज़्बा नही, बस फौजी होने का रुतबा..! सो बस एक नये ब्लॉगर जिसका वास्ता गुरुकुल से है ऐसा ही कुछ सामान्य भाव आया। फिर लगा कि जो पोस्ट लगाई जाती हैं वे कुछ खास होती हैं, तो ब्लॉग पर लगातार जाना और भाने पर कमेंट करना ये रीत बन गई।कुछ अखरा तब जब एक टिप्पणी आई कंचन जी आपसे शिकायत है कि आप टिप्पणी रोमन में करती हैं।
अजीब आदमी है ज्यादा टिप्पणियाँ ना करने वाली मैं इन्हे टिप्पणी कर देती हूँ यही बहुत नही है क्या? खैर शालीनता का लबादा ओढ़ कुछ जवाब दिय कि अगर देवनागरी में टिप्पणी करूँ तो शायद बिलकुल टिप्पणियाँ कर ही ना पाऊँ।
एक अतुकांत कविता वर्षा वन आने के बाद कुछ अधिक प्रभावित हुई इस ब्लॉगर से और इनकी पोस्टों का इंतज़ार रहने लगा।
मगर खास तो तब हुआ जब २६/११ की घटना हुई। सबकी तरह मेरे मन भी आक्रोश और कुछ ना कर पाने की पीड़ा थी।कितने निर्दोष असहाय मारे जा रहे थे। इसी बीच संदीप उन्नीकृष्णन का जाना देख देख अजीब सा मन होता। दुःख और आक्रोश के मिश्रित भाव आते।
तभी राजरिशी जी की पोस्ट आती है उन्नीकृष्णन पर। पढ़ा कि कमांडो ट्रेनिंग साथ साथ की थी दोनो ने।
ओह तो इन्होने कमांडो ट्रेनिंग कर रखी है। यानी नाम के लिये फौजी नही हैं लड़ने वाले फौजी हैं। इस के बाद एक अलग सम्मान हो गया मन में इनके लिये।
जब जब ये क़लम सरहदों के, फौज के, देश के विषय में लिखती कुछ अलग सा हो जाता मन। मन में आता कि एक लंबा खत लिखूँ इस आभासी अजनबी को। कमेंट लिखने में प्रयोग हृदयतल की सीमा और गहरी होती गई और इसी मार्च माह के उस दिन जब पोस्ट में पढ़ा कि ये काश्मीर को शोभित करने आखिर पहुँच गये, उस दिन खुद को रोक ना पाई और एक खत लिख ही दिया
गौतम जी !
कहा था ना कि आपको पढ़ते ही मन होता है, कि एक लंबी मेल लिखने बैठ जाऊँ आपको....! आज की पोस्ट पढ़ने के बाद नही रोक पाई खुद को।
एक जमाना था .... कारगिल युद्ध तक। जब मन होता था कि काश..! मेरे घर से कोई युद्ध के लिये जाता, वीर क्षत्राणियों की तरह तिलक लगा कर भेजती मैं, हाथ में बंदूक दे कर, आखों की कोरों पर आये आसुओं को ज़ब्त करते हुए कहती " विजयी हो कर लौटना, हमारी चिंता मत करना, देश की उन बहनों की चिंता करना, जिनकी अस्मत तुम्हारे हाथ है। उन दुश्मन मेमेनों पर सिंह की तरह टूटना....! उस भारत भूमि को दूसरों के हाथ में मत जाने देना जिस की संस्कृति सब से पुरानी है।"
हाँ तब जब कारगिल युद्ध हुआ था मैने अपने सबसे प्यारे दोस्त और मेरी नज़र सबसे खूबसूरत और वीर भतीजे 'लवली' से कहा था कि तुम लड़ने चले जाओ। उसका दोस्त मेरा मुँह बोला भाई था और दोस्त की बहन इसकी मुँह बोली बहन। उस बहन ने छूटते ही क्रोध से कहा था "अरे क्या बात करती हो, दुनिया भर में मेरा ही भाई मिला है शहीद होने को।" मैने गंभीरता से मुस्कुराते हुए कहा था " जो शहीद होते हैं, वो भी किसी के भाई होते हैं...!"
२३ २४ साल की वो उम्र शायद सिर्फ भावुकता वाली थी। जब मैने कारगिल राखियाँ भेजी थीं और एक दूर के रिश्ते के भाई ने लौटती डाक से कहा था कि "मुझे अपनी नौकरी के १६ सालो में इतनी भावुक चिट्ठी कोई नही मिली। मुझे विश्वास हो गया कि तेरी राखी के आगे दुश्मनो की गोली मेरा कुछ नही बिगाड़ पायेगी" और लौटते समय सारे दोस्त मेरे घर पर मुझसे मिलने आये थे, उस अंजान बहन से जिस ने राखी भेज कर उनकी सलामती की दुआ की थी।
मगर अब जीवन के इस मोड़ पर शायद भावनाएं अब कोरी नही रह गईं, दुनिया के बहुत से स्वार्थी रंग इस पर चढ़ गए। तभी तो एक अंजान व्यक्ति जिस से न मेरी मुलाकात है, ना बात..बस कुछ नज़्मों का रिश्ता, उस के ट्रांसफर विषय में जब से सुना था तब से मन में आशंका थी कि कहीं जम्मू मे तो पोस्टिंग नही मिल रही और आज जब आपकी पोस्ट पढ़ी,तो कहने की तो बात नही मगर आँसू यूँ निकलने लगे जैसे लवली की ही पोस्टिंग वहाँ हो गई हो। जितने कमेंट पढ़ रही थी भावुकता उतनी ही बढ़ रही थी। मन हुआ कि झट तनया को गोद ले कर कहूँ "पापा जब तक नही आते, तब तक बुआ से सारी जिद करना"
सच गंगोत्री की गंगा, कानपुर आते आते कितनी मिट्टी साथ ले आती है। कुछ भी पहले सा साफ नही रह जाता? वो उम्र कितनी भोली थी जब किसी को भी कोई संबोधन देते हिचक नही होती थी। मगर आज हो तो रही है, फिर भी कहूँगी..कि पता नही आप मुझसे एक दो साल बड़े हैं या छोटे या फिर हम उम्र...! मगर जो मेरी रक्षा में वहाँ खड़ा है, वो रक्षक मेरा वीर ही होगा। जाने क्यों एक छोटी बहन सा भावुक हो कर कहने को मन हो रहा है " जल्दी आना भईया, मैं इंतज़ार करूँगी। अपना ध्यान रखना और मेरा भी।"
कभी लखनऊ से निकलना हो तो ज़रूर मिलने आइयेगा। साथ में भाभी जी और तनया रहें तो और भी अच्छा.....!
खुदा हाफिज़
आपकी
कंचन
रोज उत्सुकता से मेल चेक करने के परिणाम में तीन दिन बाद जवाब आया
कंचन तुम,
स्नेहाशिष !
तुम मुझसे छोटी हो और फिर तुमने "वीर" तो कहा ही है.....ये रूलाने वाली आदत जो है ना तुम्हारी, एकदम गलत है वो भी एक फौजी को रूलाती हो...लोग क्या कहेंगे !!!
पता है ब्लौग पर आते ही तुम संग कुछ जुड़ गया था ये रिश्ता....तुम्हारे शब्दों को देख कर लगा कि कुछ है जो खिंचता है मुझे....
देखो फिर से रो पड़ा हूँ....
कश्मीर के इस सुदूर कोने में बैठा, इस इंटरनेट को शुक्रिया अदा करता हूँ....इससे पहले भी दो पोस्टिंग काट चुका हूँ किंतु ये सुविधा पहले नहीं थी...
जिंदगी थोड़ी सी कठिन जरूर है मगर मजा आता है, सच पूछो तो....
हाँ शादी हो गयी है और फिर तनया एक साल की हो गयी है तो उस वजह से कुछ भावुक अवश्य हो जाता हूँ कभी-कभी...
लखनऊ आने का अब तो बहाना ढ़ूंढ़ना पड़ेगा अपनी इस अलबेली बहना की खातिर...
"कंचन" रहो हमेशा अनवरत...
तुम्हारा वीर
-गौतम
और फिर जाने कब ऐसा हुआ कि लगा ही नही कि ये शख्स आभासी दुनिया का हिस्सा है। जो बाते कभी किसी को नही कही होगी वो भी जाने किस तरह बताती चली जाती हूँ, इस जादुई रिश्ते को। बात का हेलो कहते ही समझदारी जाने कहाँ चली जाती है और मैं एकदम से छोटी हो जाती हूँ। ऐसा लगता है कि शायद बहुत दिनों का साथ है।
कितनी बार पानी को अचानक चट्टान बनते और पत्थर को पिघलते देखा।
जब गोली खाई तब तो सबने जाना मगर इससे ज्यादा भयंकर दिन जिन्हे वो खुद कभी बयाँ नही करेंगे और मुझे करने नही देंगे। ७२ घंटे लागातार बारिश और एक चट्टान की आड़ में हथियार लिये बैठा एक फौजी शायर क्या करता होगा उन घंटों के मिनटों और मिनटों के सेकण्डों में। कभी एक बहन की तरह सोच के देखियेगा। लिहाफ के अंदर तड़ तड़ बूँदे चेहरे को तीखी लगने लगती हैं।
कल्पना और हक़ीकत में बड़ा अंतर होता है। आप मुझे कमजोर कह सकते हैं, मैं हूँ भी। कल्पना में फौजी की बहन बनना जितना बहादुरी का काम लगता था, उतनी ही कमजोरी से हर बार बस एक बात निकलती है "अपना खयाल रखना।"
लगा ही नही कि मिली नही हूँ अपने वीर से मगर उस दिन सारे दिन जुबाँ पर ये गीत रहा जो शीर्षक में है....! गली में आज चाँद निकला
वो दिन ही कुछ ऐसा था....
आज आप के जन्मदिन पर आप को बताना चाहती हूँ कि आप जैसे लोगो को जिंदगी में पाने के बाद ईश्वर से नज़र मिला के शिकायत नही की जा सकती.... और ये भी कि कभी कभी अपनी फीलिंग्स न जताना, फीलिंग सही मायने में रखना बताता है... और ये भी कि एक सच्चे और अच्छे भाई के सारे गुण हैं आप में (अवगुण भी).... और ये भी कि आप को वीर के रूप में पाना मुझ को गौरवान्वित करता है... इस गौरव को बनाए रखना... अपना ख़याल रखना
आपकी प्रेमिकाओं को ढूँढ़ने निकली तो पता चला सब इंगेज हो चुकी हैं। कुछ कुछ इनकी शक्ल-ओ-सूरत मिल रही थी तो आपको केक खिलाने के लिये इन्हे ही पकड़ लाई
LONG LIVE DEAR BRO..... MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY
46 comments:
आपकी पोस्ट दिल को छू गई। बेहद पसंद आई। हमारी तरफ़ से भी मेजर साहब कॊ बधाई और शुभकामनाएं।
क्षमा... कुछ सेटिंग करते हुए समीर जी का कमेंट डिलीट हो गया था। इनबॉक्स से फिर चस्पा कर रही हूँ....!
Udan Tashtari has left a new comment on your post "गली में आज चाँद निकला":
मेजर को जन्म दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
भावनात्मक पोस्ट!
तुम तो भैया अपना ये संस्मरण लिखने का अंदाज पेटेंट करा लो। क्या गजब का लिखती हो!जाने कौन सा साफ़्टवेयर इस्तेमाल करती हो कि इस तरह की हर पोस्ट से लगता है ग्लिसरीन निकलती रहती है। जरा सा असावधान हुये नहीं कि
आंखों से सप्लाई शुरू!
गौतम राजरिशी एक बेहतरीन इंसान हैं। उनके बारे में यह सब पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
गौतम राजरिशी को जन्मदिन मुबारक! देर-सबेर सब चलता है।
आभासी जगत में भाई बहन मुश्किल से ही बन पाते हैं , बहिन कहना आसान होता है निभान बेहद मुश्किल , गौतम जैसे स्वच्छ और सरल ह्रदय आज के समय में दुर्लभ हैं , लगा कि इस चट्टान ह्रदय के भीतर बेहद नरम और हंसमुख दिल है , इसका ध्यान रखना कंचन !
तुम्हारे इस अजेय भाई को जन्मदिन की हार्दिक बधाई !
बधाई बहुत शुभकमनाएं !
गौतम राजरिशी, सबके दिल में जगह रखते हैं और आप उन सब में भाग्यशाली हैं.
गौतम जी को उनकी पोस्ट पर बधाई दे चुकी हूँ, लेकिन आज यह पोस्ट अनदेखी रह जाती तो बहुत नुकसान होता। आपकी पोस्ट के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। जो वीर हमारी रक्षा को सीमाओं पर खड़े हैं उनको यदि तुम जैसी बहने मिल जाए तो फिर वे हँसते-हँसते गोली खाने में भी नहीं चूकेंगे। श्रेष्ठ पोस्ट के लिए बधाई।
gautam ji ko janamdin ki hardik badhayi aur aapko bhi ..........aapke jaisi bahan jis bhai ki hogi use kyun na fakra hoga.
Bhavuk abhiyakiti...kuchh log aur kuchh riste sabse alag hot hai....
दोनो भाई बहिन का प्यार देख कर आँखें खुशी से नम हो गयी। कौन कहता है कि ये आभासी दुनिया है।यहां तो रिश्ते और भी अधिक फलते फूलते और परिपक्क्व होते है< गौतम को जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनायें। एक एक टुकडा केक का दोनो भाई बहिन मेरी तरफ से भी खा लेना। दोनो को आशीर्वाद
बधाई बहुत शुभकमनाएं !
क्या कहूँ.....इस आभासी दुनिया में ज्यादा यकीन नहीं रखता ..पर तुम .गौतम...मनीष जैसे लोग इस दुनिया के उतना ही असल होने का यकीन दिलाते हो जितनी ये दिखती है ....वर्ना अक्सर असल में कई बड़े लोगो को सफ्हो से जुदा पाया है ...ऐसे ही बने रहो.....
Touchwood....
पोस्ट लिखने का अंदाज हमेशा की तरह बांधने वाला है। बधाई।
सेटिंग्स करते वक्त कमेंट डिलीट हो गया वो भी समीर जी का। इत्ती बड़ी गलती? जरा संभलकर जी :)
शुक्रिया इस प्यारे से गीत वाले शीर्षक का...जो इस पोस्ट तक खींच लाई ....और यहाँ आकर तो बस आँखें ही नम करा गयी ये पोस्ट....इतनी सुन्दरता और ईमानदारी से भावनाओं को व्यक्त करने की कला कम लोगों में होती है..
गौतम भी कम भाग्यशाली नहीं कंचन..जो इतनी प्यारी सी बहन उन्हें मिली है...एक बार फिर उन्हें जन्मदिन पर ढेरों दुआएं.
आज पहली बार बिना पोस्ट पढ़े टिपण्णी छोड़ रहा हूँ क्योंकि ये तो मालूम है क्या लिखा है मगर किस खूबसूरती से लिखा है ये वक़्त मिलते ही पढूंगा.
गौतम भैय्या जन्मदिवस की अनगिनत शुभकामनायें..........................................
कंचन जी पहली बार आपका लिखा आज पढ़ा ..ब्लोगवाणी पर टिपण्णी ली लिस्ट में इस गीत की पंक्ति देख रहा नहीं गया ..और सच जानिए आज ये पोस्ट नहीं पड़ती तो बहुत दुःख होता ...कमाल की लेखन शैली है आपकी शुरू से आखिर तक बाँध कर रखती है ...आँखें धुंधली थीं पर पढना छोड़ने का मन नहीं कर रहा था...सो जैसे तेसे आँखें पोंछ पूरा पढ़ गई...hats off to u and your वीर ..खुदा करे की ये जज्बा कायम रहे ...जन्म दिन की ढेर सारी बधाई आप दोनों को.
आपने गौतम जी के जन्मदिन पर एक प्यारा सुन्दर तौहफा दिया। सच गौतम जी एक शानदार प्यारे इंसान है। और इस प्यार के हकदार भी। और जिन भावों के साथ और सुन्दर शब्दों से आपने लिखा है, सच दिल को छूता है। और एक अच्छा प्यारा इंसान ही ऐसा लिख सकता है।
जो किशोरजी ने कहा वही कहना चाहूंगी ..
आभासी दुनिया में विश्वास दिलाने के लिए दोनों का शुक्रिया ..
भरपूर लिखा है इस संस्मरण में जो आज गौतम जी के जन्मदिन पर हमें उनसे सीधे जोड़ रहा है.
शुक्रिया आपका,शुभकामनाएं-बधाई मेजर साब.
इंजॉय!
Dil ko chu lene wali bhavanao se bahrpur hai aapki yah post gazab ka likhati hai aap...aapne yah sabit kar diya ki yah abhasi duniya bhi sarthak rishte de sakati ha.
Gautamji ko bahut bahut badhai aur aapko dhanywaad!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
गौतम से मुलाकात होने का श्रेय कंचन को ही जाता है। वैसे मेरी तो उनसे बस दो मुलाकातें हुई हैं पर उसमें उनके व्यक्तित्व के अलग अलग रंगों के बारे में झांकने का अवसर मिला है। गौतम ब्लॉग पर आपके जन्मदिन यूँ ही मनते रहें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
हाँ आपके यहाँ रश्क वाली बात जरुर है , गुरु जी के यहाँ नहीं ... अगर आप
दोनों चाहते तो मैं भी वहाँ हो सकता था मगर नहीं मैं तो आपका भाई नहीं हूँ ना
ये पर्शियालिटी क्यूँ मेरे साथ , जब मेरे से मिले थे तो इतने , ऐसे फोटो क्यूँ नहीं खिचवा बोलो
लड़ने का हक़ तो बनता ही है ना ... गौतम भाई से तो ज्यादा ही खफा हूँ उन्होंने बताया नहीं के वो लखनऊ जा रहे हैं ये तो सही नहीं है यार ....
खैर... पोस्ट पढ़ा और आँख का कोर भीग गया .... जन्म दिन की बधाई ...
सबसे मिल तो लेता मनीष जी से भी .... :(
अर्श
एकदम कंचन जी स्टाईल की पोस्ट है :)
हमेशा की तरह दिल को छू गयी और पढ़ कर रोमांचित हूँ
गौतम जी को एक बार फिर से जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामना
वीनस केशरी
जिस भावुक मन से तुमने यह पोस्ट लिखा है, भाव का संचार सहज ही ह्रदय तक हो आया है....
गौतम को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं और आशीर्वाद...
कुछ लोग ऐसे होते ही हैं जिन्हें अनदेखे भी अपनापन अनुभूत होता है.....तुम्हारी बात भली प्रकार इसलिए समझ सकती हूँ की मेरे मन में भी अनायास और स्वतः ही ऐसे ही भाव उठे हैं......
पढने के बाद यहाँ तक तो बस इसलिए आया था कि देख पाऊं ऐसी पोस्ट पर लोग कैसे और क्या टिपण्णी कर लेते हैं !
गौतम जी को मेरी तरफ से भी जन्मदिन की शुभकामनायें।
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आदरणीय कंचन जी,
"तुम तो भैया अपना ये संस्मरण लिखने का अंदाज पेटेंट करा लो। क्या गजब का लिखती हो!जाने कौन सा साफ़्टवेयर इस्तेमाल करती हो कि इस तरह की हर पोस्ट से लगता है ग्लिसरीन निकलती रहती है। जरा सा असावधान हुये नहीं कि
आंखों से सप्लाई शुरू!"
आदरणीय अनूप शुक्ल जी की उपरोक्त बात से पूरी तरह सहमत!
और हाँ, प्रिय गौतम को मेरी भी शुभकामनायें!
@ARSH, ladane ke to paryapt reason mere pas bhi hain!!!!aapko holi ke bad kanpur aanaa thaa vaade ke mutabik....ham to intezar hi karate rah gaye ki aap aayen to fir bahan ji ko bhi phone karun kyonki unhe sambhavatah 7 tak kanpur me hona tha...khair, jhagdaa baad me kar lenge abhi b'day ki mithaaee khate hain....
gautam ji ko janmadin bahut bahut mubarak ho
uffff ravi bhaaee ji aap bhi yahin par hain....
:):):)
arsh
पढते हुए कुछ शब्द उठे और गले में ही अटक गए,आँख का गीलापन भी उनको उतार नहीं पा रहा.
खुशकिस्मत हैं आप दीदी.
कंचन, बच्चे , तुम्हारी पोस्ट देखी थी 10th को ही, फोटो भी देखी थीं उस दिन, बहुत ही अच्छी लगी थीं. पर पोस्ट पढ़ी नहीं थी... इंतज़ार करती रही उस समय का जब तुम जितनी शिद्दत से लिखती हो उतनी शिद्दत से तुम्हें पढ़ सकने की मोहलत मिले समय से.
बहुत बहुत तेज़ बारिश हो रही है आज यहाँ... 10th को भी यही हाल था!
आज तुम्हे पढ़ा है पूरे मन से... क्या कहूँ ... जीती रहो तुम और तुम्हारे वीर जी... यूं ही बनी रहो...इससे अच्छी हो के कहाँ जाओगी...
सुनो ब्लॉग पे रुलाने का रिकार्ड बनाने का भी कोई पेटंट होता है क्या?... ले लो!
शार्दुला दी
वर्ष 1998 की बात है ये शायद...हाँ, जब पहली बार सुना था ये गाना। संजीता के कहने पर। उसी ने कैसेट भी खरीद कर दिया था। उन दिनों वाक-मैन पे कैसेट में सुना करता था...तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला...सोचा था कभी इसी शीर्षक को लेकर एक पोस्ट लिखूंगा। सोचता ही रह गया...
टिप्पणी में मि्ली इतनी सारी बधाईयाँ, इतनी सारी शुभकामनायें कहाँ रखूँ इन्हें जतन से।
बस एक "शुक्रिया" का लफ़्ज़ काफी होगा क्या हृदय-गवाक्ष के पाठकों को...?
प्रविष्टि की कहनी हर दम मूक करती है आपकी, मुग्ध, विभोर भी !
ब्लॉग की अनियमितता में भी यह गवाक्ष झाँकना जरूरी लगता है ! गौतम भाई के जन्मदिन की शुभकामना तो दे दी थी, पता नहीं था, असली संवेदना तो यहाँ निखरी, सजी है !
तरल किया इस प्रविष्टि ने ! गौतम जी को पुनः शुभकामनायें ।
बेटे कंचन ,
तुम सी बहना के ऐसे ही वीर गौतम राजरिशी से भाई होते हैं
जिन्हें देख पढ़ कर
मन और नयन दोनों भर आते हैं
..बहुत बढ़िया लिखा
फिर भी आप के बहादुर
भैया के प्रति जो असीम व
सात्विक स्नेह है
वह मंदिर के दीप की तरह
ओट में रखा हुआ सा लगा --
मेरे आशीर्वाद
आप दोनों के लिए
तथा चैत्र नवरात्र में
माँ भवानी रक्षा करें
ये मंगल कामनाएं भेज रही हूँ
गौतम भाई को साल गिरह पर
अनेकों शुभाषिश
जय हिंद !!
बहुत सबह सहित
- लावण्या
.....
tune to photo bhi daal rakhe hain..
kilsaane ke liye....
:(
:(
कंचन जी आपकी मेल आई दी चाहिए एक जरूरी मेल भेजनी है
या आप एक मेल venuskesari@gmail.com पर कर दें
चलो अब तुम खुश रहो...
बस..एक बार फिर आया था तुम दोनों बहन भाई को देखने.....
पहले ज़रा सी चिढ मच गयी थी....वैसे..एक बात बताऊँ....
तुझ से उतना ज्यादा नहीं चिढ़ता मैं..
जितना और किसी से भी...
:)
अब ठीक हूँ....
:)
एकदम ठीक....
खुश रहो गुडिया रानी...
और ये सब तस्वीरिं लखनऊ कि ही हैं क्या....?
मेरी कल्पनाओं में तो लखनऊ ऐसा कभी भी नहीं था बच्चे...
हवेलिया...पुराने बाज़ार...तंग गलियाँ....और जाने क्या क्या...
ये तो लगता है जैसे दिल्ली ही हो..
Bahut dinon baad aapke blog pe aayi...kafee padha...aap aisa baandh leti hain,ki, ek aalekh/kavita padhke man bharta nahi!
गौतम राजरिशी साहब का व्यक्तित्व है ही इतना प्रभावशाली कि हर कोई इनका प्रशंसक हो उठता है.जन्म दिन पर गुरुदेव की पोस्ट पढ़कर फिर आपके बारे में और ज्यादा क्या कहा जावे.फिर आज आपकी पोस्ट पढ़ी तो लगा कि बहुत भाग्य शाली है गौतम भाई,जन्म दिन पर इतनी भावनाएं...बहुत भावनाएं सहेजी है आपने.सबसे महत्वपूर्ण है कि आभासी जगत में कितने लोग मेजर भाई को चाहते है...मैं भी बहुत प्रभावित हूँ उनसे...और उनका व्यक्तित्व ही एक पाठशाला की तरह है...जहाँ बहुत कुछ प्रेरणादायक और सीखने योग्य है...और गौर से देखे तो उनमे वे बाते आम तौर पर मौजूद है जो आज के दौर में दुर्लभ है.
नेट से दूर हूँ...कल आप के मेसेज का जवाब देरहा था कि आप ऑफ़ लाइन होगई...पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा...मिस ही करदी थी मैंने तो..
गौतम भाई को जन्म दिन कि शुभकामनाएं पहले दे दी थी अब उनकी ख़ुशी और दीर्घायु की कामना करता हूँ.
गली में आज चाँद निकला.........
कंचन दीदी, दरअसल ये चाँद तो हमारी गली में भी निकलने का वादा करके गया था..........क्यों गौतम भैय्या?
एक सहेजने वाली पोस्ट है ये, एक नाज़ुक सी पोस्ट जो ढेर सारे प्यार से भरी हुई है.
इनसे हम भी मिलने वाले थे दिल्ली में पुस्तक मेला के दौरान, पर इन्हें बुखार आ गया और एक दिन पहले ही यह भाग खड़े हुए... दर्पण और अपूर्व ने लुफ्त उठाया महफ़िल का.... हम फोन पर बातें कम करते हैं और दिल खोल कर खूब हँसते हैं.
ब्लॉग पर इनका इमानदार कमेन्ट बहुत भाता है मुझे
रही प्रेमिकाओं वाली बात तो भैया यहाँ बहुत बड़ा झोल है :)
एक ओरिजनल आदमी, ईमानदार और दोस्त भी, उत्साहित करने वाला भी और रास्ता बताने वाले भी.... शुक्रिया.
बहुत खूब!
संवेदनाओं का कोश !
kanchan ,main nishabd hoon .
is samay kuchh bhi likh pana sambhav nahin .
khush raho hamesha
इंटरनेट नें दुनिया को बहुत छोटी बना दिया है और फ़िर उसी छोटी दुनिया में ऐसे प्यारे रिश्ते निकल आते हैं जो सगों से भी करीब लगते हैं ।
गौतम से मिलना तो नहीं हुआ है लेकिन जितना भी जाना है , आप के पत्र से उस की पुष्टी ही होती है ।
आप के वीर को हमारी ओर से भी ढेर सारी शुभ कामनाएं ।
जिस भाई की कंचन जैसी बहन हो उसका दुनिया में कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता...गौतम को जनम दिवस की ढेरों शुभकामनाएं और तुम्हें ऐसा अद्भुत भाई पाने पर बधाई...तुम जैसे लोगों के होने के कारण ही ये दुनिया अभी तक खूबसूरत बनी हुई है...
नीरज
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