अरे नही भाई....! अभी शादी निपटी थोड़े ना है बिटिया की। वो तो २७ नवंबर को है। इतने पहले से छुट्टी ले ली है कि आप लोगों को पता लग सके कि हम बिटिया की शादी ऐसे ही नही कर ले रहे, हमें भी टेशन है। लड़की की शादी कोई आसान बात थोड़े ना है। हाँ ऽऽऽऽऽ नही तो। अफिलहाल तो जल्दी से आई हूँ क्योंकि तलब लगी थी ब्लॉग की। लीजिये झट से सुनिये हमारी टीन एज पार करते ही लिखी गई किसी जमाने की ये कविता-
कल फिर करना इंतज़ार है उस मनचाहे दिलवर का,
जिसकी आँखें ढूँढ़ ना पाई, रस्ता कभी मेरे घर का।
कल फिर सुबह सुबह ही धो आएंगे अपने दरवाजे,
कल फिर रख आएंगे कलशे दरवाजे पर भरवा के,
कल फिर महक उठेगा आँगन फूलों से मेरे घर का
कल फिर हर आहट पे लगेगा, लो वो आया, अब आया,
कल फिर यूँ ही ये शक होगा द्वार किसी ने खटकाया,
कल फिर शायद खुला रहेगा दरवाजा मेरे दर का।
कल फिर कुछ चीजें ढूँढ़ेगे अपना दिल बहलाने की,
कल फिर होंगी असफल कोशिश अपना समय बिताने की,
कल फिर पत्थर दिल रोकेगा रस्ता नैना निर्झर का
बीता जाता कल्प है तेरा कल क्यों कर ना आता है,
कल के इंतज़ार में मेरा पल पल कल्प1 सा जाता है
कलप कलप के बीता मेरा कल्प कल्प इक इक पल का
कल फिर करना इंतज़ार है उस मनचाहे दिलवर का,
जिसकी आँखें ढूँढ़ ना पाई, रस्ता कभी मेरे घर का।
कल फिर सुबह सुबह ही धो आएंगे अपने दरवाजे,
कल फिर रख आएंगे कलशे दरवाजे पर भरवा के,
कल फिर महक उठेगा आँगन फूलों से मेरे घर का
कल फिर हर आहट पे लगेगा, लो वो आया, अब आया,
कल फिर यूँ ही ये शक होगा द्वार किसी ने खटकाया,
कल फिर शायद खुला रहेगा दरवाजा मेरे दर का।
कल फिर कुछ चीजें ढूँढ़ेगे अपना दिल बहलाने की,
कल फिर होंगी असफल कोशिश अपना समय बिताने की,
कल फिर पत्थर दिल रोकेगा रस्ता नैना निर्झर का
बीता जाता कल्प है तेरा कल क्यों कर ना आता है,
कल के इंतज़ार में मेरा पल पल कल्प1 सा जाता है
कलप कलप के बीता मेरा कल्प कल्प इक इक पल का
(१७..०८.१९९६, दिन शनिवार, रात्रि ९.३० बजे (एक फटी हुई डायरी के अनुसार)
1 शास्त्रों के अनुसार चारों युग को मिला कर बनी अवधि को कल्प कहते हैं, है जिसके बाद प्रलय आती है।
(दिसंबर -२०१२ में आने वाली है ना :) )
चलिये फिर मिलूँगी शायद बिटिया की शादी के ही दिन आप लोग आशीष देने अवश्य आइयेगा............
1 शास्त्रों के अनुसार चारों युग को मिला कर बनी अवधि को कल्प कहते हैं, है जिसके बाद प्रलय आती है।
(दिसंबर -२०१२ में आने वाली है ना :) )
चलिये फिर मिलूँगी शायद बिटिया की शादी के ही दिन आप लोग आशीष देने अवश्य आइयेगा............
33 comments:
सब लोग तुकबंदियों से ही शुरुआत करते है क्या ?? अपना भी कुछ ऐसा ही लिखना होता था.. वैसे उम्र के दौर के हिसाब से तो बढ़िया ही लिखा है..
और हाँ रिस्की लाईफ में वैसे ही इस कदर जी रहे है.. कि प्रलय तो फिर भी छोटी लगती है..
शादी जल्दी निपटाओ फिर दूर शेड्यूल बनाते है..
आपकी इस कविता ने ही मुझे अपनी,विटिया की शादी के बाद मेरे को भी ऐसा ही लगता है,और आपकी बिटिया के सुखी दामपत्य जीवन के लिये शुभकानाये ।
उम्र के उस दौर में सभी ऐसी ही रचनाएँ रचते हैं...थोडी ख़ुशी थोडा गम...टाईप...आपने बहुत अच्छा लिखा है...याने प्रतिभा आपमें बचपन से ही है...:))
आप एक साल पहले ही प्रलय ला रहीं हैं...प्रलय तो दिसम्बर दो हज़ार बारह में आने वाली है...तब तक..." मस्त राम बन के ज़िन्दगी के दिन गुजार दे...."
{पुनःश्च : शादी किसकी है?}
नीरज
आपकी कविता मुझे गीत लगी
एक सम्पूर्ण गीत जो किसी सुर में ढला हुआ है. हिन्दी में ग़ज़ल के आम होने से पहले सब ख़ास कवि आपके इस गीत सी ही रचनाएँ किया करते थे, वे मुझे पसंद भी बहुत आती थी. अब भी है.
बिटिया की शादी उल्लास से कीजिये, मेरी शुभकामनाएं जीवन सुखमय हो.
बहुत बहुत लाजवाब !!! कलप कलप कर कल्प बिताना .....वाह !!! लाजवाब लिखा है तुमने....
जब मैं ग्रेजुएशन में थी हमारे छात्रावास में संग साथ की लड़कियों में लगभाग साठ सत्तर प्रतिशत लड़कियों के प्रेम प्रसंग हिलोरें मारते हुए चल रहे थे और मजेदार यह कि उनमे से अधिकाँश लड़किया अपने प्रेम पत्र मुझसे लिख्वातीं थीं,जो कि कठोरता से इसमें विशवास करती थी की माँ बाप काना लूल्हा जैसा भी साथ लगा देंगे उसीसे प्रेम कर लूंगी....
यह गीत पढ़ उन दिनों की याद आ गयी.....और चेहरे पर भरी पूरी मुस्कान बिछ गयी....
मोबाइल बंद रखा है क्या तुमने ????
वाह, बहुत खूब। इस तरह के गीतों से मन झूम उठता है। इस तरह के गीतों को किसी खास उम्र से जोड़ना ज़रूरी है क्या। नीचे की पंक्तियां देखिए। ये तो सब उम्र के लिए है -
कल फिर सुबह सुबह ही धो आएंगे अपने दरवाजे,
कल फिर रख आएंगे कलशे दरवाजे पर भरवा के,
कल फिर महक उठेगा आँगन फूलों से मेरे घर का
BITIYA KI SHAADI ..... BAHUT HI MUSHKIL KAAM HAI BAHAN JI YE TO ... WESE BHI JAB AAP SHAADI KI TAIYAARI ME GAYEE THI JAB BHI PUCHHO TO KUCHH KHATE HUYE BHI MILTE THE KABHI MUNGFALI UBLI HUI TO KABHI CHATANI KE SATH... MAJE KAR RAHE HO AUR KAHTE HO KE MUSHKIL HAI .... KHUB DHUM DHAAM SE SHAADI SE HONE WAALI HAI HAMAARI MANGAL KAMANAA AUR SHUBKAMANAYEN BITIYA RAANI KE SATH HAI ...
AB AATE HAI AAPKI RACHANAA KE PAS ... HAAN TO ISKE PAS BAITH CHUKAA HUN AUR SOCH RAHAA HUN KE MERI UMRA KYA HAI KYA MAIN IS UMRA SE PAAR UTAR GAYAA HUN KE ABHI AANI BAAKI HAI ... AGAR AISA HAI TO MAINE IS TARAH KI KOI TUK BANDI KUN NAHI LAGAYEEE... KYA BAAT HAI KAMAAL KAR DIYAA HAI AAPEN TO... HUZOORE AALAA...
BADHAAYEE JI ....
ARSH
बहुत अच्छी लगी कविता। जल्दी से वापिस आ जाओ।
घुघूती बासूती
कविता के भाव अच्छे हैं। बिटिया की शादी पर हमारी ढेरों शुभकामनाएं।
टटकापन कविता के सौंदर्य को बढ़ा रहा है । कभी कभी अनगढ़ प्रतिमा भी सुंदर लगती है । और जो नीरज जी ने कहा कि क्यों प्रलय की तारीख को एक साल पीछे खींच रही हो ।
हृदयस्पर्शी रचना ......दिल को छू गयी ......पहली पंक्ति ही बहुत कुछ व्यान कर जाती है .............एक ऐसी रचना जिसमे भावो का समन्दर है !
फिर भी बेहतर है भाई....अपुन तो ऐसे लिखते थे के बाद में लोगो को ये कहते "अबे तेरी समझ नहीं आएगी ...आधुनिक कविता है ..इस आधुनिक कविता की ओट . हमने बहुत ली . आदर्श भी झोली भर भर के लिए फिरते थे ..बाद में पता चला . उस उम्र में ऐसे एपिडेमिक होते है.....खैर कविता [पर हम कुछ नहीं कहेगे....
पहले तो बाबू,
इस २०११ को दिसम्बर २०१२ करो....
अरे, जो दिसम्बर २०१२ टक की मेरी plaanings हैं , तुमने तो उन सब पे ही पानी फेर दिया....
कविता बड़ी अच्छी लगी...
उस वक्त हम कुछ नहीं लिख पाते थे.... ( लेटर्स को छोड़ के )
कलप! कल्प! पल!
आखरी लाइन धरा सी वजनी
शब्द कितने मासूम और अर्थ भयंकर !
बीता जाता कल्प है तेरा कल क्यों कर ना आता है,
कल के इंतज़ार में मेरा पल पल कल्प1 सा जाता है
कलप कलप के बीता मेरा कल्प कल्प इक इक पल का
kal aanachahiyewasa hi sunhara jiska aap etni betaabi se entizar ker rehi hai ..asha jagati kavita hamesha etne gehre avsaad mein hi kyu janam leti hai.....yehi kavita ki vishstta hai ....
beti ki shaadi per mubaarak
bulaooge to chale bhi aayenge ashish dene...
बीता जाता कल्प है तेरा कल क्यों कर ना आता है,
कल के इंतज़ार में मेरा पल पल कल्प सा जाता है
कलप कलप के बीता मेरा कल्प कल्प इक इक पल का..
कितनी कल्पना आपने उस समय की.. यह दिखता है.
बहरहाल... मेरी शुभकानाएं स्वीकारें !!!
96 ki baat to samajh aayi par kavita ki prernasrot ke bare bhi kuch bataiye :)
आप सब का धन्यवाद जिन्होने भूल सुधार करवाई... सुधार कर लिया...! फिर उनका जिन्होने झेल कर प्रशंसा भी की और उनका भी जिन्होने अपरोक्ष रूप से ये भी बताया कि जो भी है ठीक के अलावा कह भी क्या सकते हैं हम ...?? :)
कुश तुम दूर का शेड्यूल तो बनाओ हम शादी छोड़ कर आ जायेंगे।
नीरज जी २७ नवंबर को मेरी भांजी की शादी है मेरी बड़ी प्यारी बेटी है वो.....!
रंजना दी मोबाइल तो आन ही है दीदी के घर नेटवर्क नही पकड़ता कभी कभी
अर्श तुम बस अपनी प्रोफाइल की उम्र को बीस साल बने रहने दो, फिर किसकी मज़ाल जो तुम्हारी टीन एज को गया कह सके.... :)
मनीष जी राज की बातें पब्लिकली पूँछना अच्छे मित्रों की निशानी नही है :) :)
ये हर फटी हुई डायरियां मासूम इश्क का इजहार लिये क्यूं खुलती हैं?
सतरह अगस्त छियानवें...मैं कहां था उन दिनों? ह्म्म्म्म एक ट्रेनिंग एकेडमी में रगड़े खा रहा था, जब तुम इतनी खूबसूरत कविता बुन रही था...
वाह!
"कल फिर कुछ चीजें ढूँढ़ेगे अपना दिल बहलाने की,
कल फिर होंगी असफल कोशिश अपना समय बिताने की,कल फिर पत्थर दिल रोकेगा रस्ता नैना निर्झर का"....ये पंक्तियां दिल को छू गयी हैं और तुम्हारा लिखने का अंदाज भी।
...और "कल्प" से वास्ता करवाने का शुक्रिया अनुजा, मेरी वोकेबलरी मेम इजाफ़ा....थैंक्यु!
bahut dino bad ek man ko chhune wali kavya mili.bahut bahut dhanyabad
Nahi ji koi pralay nahi aayi
20-12 ham dekh kar aaye hain
kal ki chinta mein kyu khud ko pareshaan kare
zindgi aaj hai aaj ko jiyo
hans kar khul kar
bahut achha geet hai
Bahot khoobsurat andaz..pahli baar padha aapko..ab padhte rahenge...waise bhi aap bhi to hamare shahar-e-lucknow ki hain.
Beti ki shadi ki advance me badhai.
~~rishu~~
फटी हुई डायरीयों में कंचन जी खजाने मिल जाते है। और आपकी ये रचना किसी खजाने से कम नही।
कल फिर करना इंतज़ार है उस मनचाहे दिलवर का,
जिसकी आँखें ढूँढ़ ना पाई, रस्ता कभी मेरे घर का।
अति सुन्दर।
अरे अभी तो आप बिटिया लगती हो फिर ये किस बिटिया की शादी है? क्या इतनी बडी बिटिया हो गयी? बहुत मुश्किल काम है ये। कविता लाजवाब है। ये बिटिया का मामू अर्श क्या कह रहा है? बहुत उस्ताद है तुकबन्दी नहीं की सीधे बहर मे आ गया । छुपा रुस्तम है तुम्हारा भाई। अब पुरानी डायरी का अगला पन्ना कब खुलेगा? इन्तज़ार रहेगा मगर पहले बिटिया को विदा कर लोबहुत बहुत आशीर्वाद बिटिया के और तुम्हारे लिये । देखना रोना मत ----
अरे दीदी! मुझे आज पता चला कि आप तो उस ज़माने से लोगों को कविता सुना-सुना कर पका रहीं हैं जब मैं कवियों को गालियां दिया करता था कि ये कविता ना लिखते तो हमें वो पढ़नी भी नहीं पड़ती.. :P
वैसे बढ़िया कविता है, मानो कोई गीत खुद उड़कर कहीं चली जा रही हो.. :)
तारीफ भी तो कर देनी चाहिए ना, कहीं दीदी गुस्सा हो गई तो? :D
ओह! ये लाइलाज रोग काफ़ी पहले से पाले बैठी हैं आप! कविता का रोग तो सुना है मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ता। कविता अच्छी लगी और लगनी भी थी क्योंकि ये भाव मुझे वैसे ही पसंद है। डायरी के बाकी पन्ने भी बांचिये।
कल फिर का इंतजार सम्पूर्णता को पाए।
रोज रोज आप यूँ ही लिखें रचनाएं।
स्वीकारें मेरी ढेरो शुभकामनाएँ।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
man bauraye,har sawan par us sawan ki baat aur thi...
solah sawan ka sanchay tha, ya man ne bandhi kahin dor thi...
Hota hai di !!!
main bhi ab apni puraani dairy dhundhataa hun dekhunga us din kya kar rahaa tha... fir aata hun jawaab dene ... :) :):)
arsh
बिटिया को बहुत-बहुत आशीर्वाद
वाह!लाजवाब !!
पहले तो घर पर मनाए जा रहे उत्सव की बधाई और शुभकामनाएं...बिटिया को ढेर सा आशीर्वाद....इतने पहले से इतना अच्छा लिख लेते थे...सच दिल से लिखा सुन्दर ही होता है....
नमस्ते दीदी,
ये फटी डायरी जो सबसे छुपा के रखी गयी थी, उस वक़्त की मासूमियत का आइना है और वो खूबसूरत ख्याल जो बहुत कुछ कहना और करना चाहते हैं.
बंद अच्छे हैं, मगर तीसरा बंद सभी पर भरी पड़ रहा है.
जल्द ही आइये शादी से और कुछ नए या फिर पुराने मोती से मिलवाइए,
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