Friday, September 11, 2009

अपील एक माँ की


ज़रा सोचिये....! एक बार अपनी जिंदगी पर नज़र डालिये...! आपकी जिंदगी में भी कोई ना कोई तो ऐसा होगा ही ना जो हर मंदिर में जा कर आपके लिये प्रार्थना करता होगा, हर दरगाह पर आपके लिये धागा बाँधता होगा, हर मज़ार पर आपकी लंबी उम्र के लिये चराग जलाता होगा। दुनिया के सारे व्रत सारे टोटके इस उम्मीद पर कर रखे होंगे कि एक दिन सारी तपस्या रंग लायेगी, हर दुआ काम आयेगी और आप उन रास्तो को छोड़ कर लौट आयेंगे उस जिंदगी की तरफ जहाँ हर पल एक खटका सा नही लगा होगा....!

फिर उस रिश्ते का चाहे जो नाम हो... वो आपकी माँ हो, पिता हों, भाई हो, बहन हो, पत्नी हो, दोस्त हो या कोई भी पवित्र सा प्यारा सा रिश्ता....! कोई ना कोई तो होगा ही ना आपके जीवन में भी, जो चाहता होगा कि आप चलें तो आपके सिर पर कड़ी धूप भी न हो...! और आप..?? आप भी तो चाहते होंगे कि उसे धूप भी छुए तो शीतल बन कर। आप भी तो चाहे दुनिया के लिये कितने ही कठोर क्यों न हों, एक शख़्स है जिसका नाम आते ही कुछ भीग जाता है आपके अंदर। ज़रा गंभीरता से उसके बारे में सोच कर देखिये ना। आप जानते हैं....?? जब आप जेल में होते हैं ना, तो वो अपना बिस्तर ज़मीन पर डाल लेता है, क्योंकि वो सुख उसके लिये किसी काम का नही, जो आपको ना मिल रहा हो। वो जानता है, कि आप बहुत बुरे आदमी हैं, लेकिन फिर भी आप उसके लिये दुनिया में सबसे खास शख़्स हैं। वो आपकी हर हक़ीकत जानता है, लेकिन फिर भी वो आपके हर झूठे वादे को हक़ीकत ही मानता है। वो जानता है कि आपकी किसी भी बात का विश्वास नही करना चाहिये, लेकिन वो चाहता आपकी हर बात पर विश्वास करना। वो जानता है कि वो भ्रमों मे जी रहा है, लेकिन उसने मान लिया है कि उसका ये भ्रम कभी नही टूटेगा.....

आप जानते हैं ? कि जब जब आप अपना वादा तोड़ते हैं, उसका दिल तिड़ते हैं, उसका विश्वास तोड़ते हैं, तो वो भी अपने आप में टूट जाता है,लेकिन फिर से वो जुड़ने की कोशिश करता है हर बार..! नई उम्मीद जोड़ कर, आपके वादों से फिर से जुड़ कर, अपने टूटे विश्वास जोड़ कर, अपना दिल संभालता है, लेकिन उस दिन, जिस दिन उसका वो भरम टूटता है,जिसके लिये उसने मान रखा है कि कभी नही टूटेगा, उस दिन वो बिखर जाता है...बिलकुल बिखर जाता है। और आप जानते हैं ना..टूटी चीज जुड़ सकती है, बिखरी चीज कहाँ...?? फिर वो जुड़ने की स्थिति में होता ही नही और सम्हल पाता ही नही

हाँ, हाँ पता है मुझे...! पता है आपको मौत से डर नही लगता। मौत तो एक दिन सबको आनी है। तो क्या होगा ..? कल ना सही आज सही, लकिन सोचिये ज़रा मेरे जैसे उस शख़्स के बारे में, जिसे आप रोज़ मरने के लिये छोड़ जाते हैं। जिसके एक आँसू पर आप खून बहा सकते हैं, वो जिंदगी भर खून के आँसू रोता रह जाता है।

कोई भी शख़्स बुरा नही बनना चाहता, परिस्थितियाँ उसे बुरा बना देती हैं। आप भी शायद खुशी से किसी निर्दोष का घर ना उजाड़ते हों।...हाथ तो आपके भी काँपते ही होंगे, मन तो आपका भी मसोसता ही होगा....!

लेकिन मैं ये भी जानती हूँ कि दुनिया का कोई काम आपके लिये कठिन नही है, तो ये काम इतना कठिन क्यों..??? ये काम जिसका वास्ता दूसरों से नही बल्कि आपके अपनो की खुशी से है।

मैं आपको उनका वास्ता नही देती जिन्हे आप किन्ही कारणों से कष्ट देते हैं। जिनका जीवन आपने जीने काबिल नही रखा। जिन्हे कई बार आप ऐसे मोड़ पर छोड़ आते हैं, कि आप जैसा एक और शख़्स अपने को, अपनों को और दुनिया को तबाह करने को तैयार हो जाता है।

मैं तो वास्ता देती हूँ आपको उनका जिन्हे आप हमेशा खुश देखना चाहते हैं। जिनके आँसू आप जैसे पत्थर को भी रुला देते हैं। आप चाहे खुद पे गोलियाँ झेल लें लेकिन उसके पैर में काँटा भी चुभे तो दर्द आपको होता है...! उसके आँसू पर आप अपना खून बहा देना चाहते है...! उसकी हँसी के लिये आप खजाने लुटा देना चाहते हैं...! मैं उन लोगों का वास्ता देती हूँ आपको। उन्हे मेरी तरह अकेला मत छोड़िये... दुनिया के लिये आप एक शख्स होंगे, लेकिन एक शख़्स के लिये आप सारी दुनियाँ हैं। उस शख्स की दुनिया मत सूनी कीजिये। आपके बाद जीना वो चाहता नही और मर वो पाता नही। मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, मुझे वो आख़िरी शख्स बन जाने दीजिये। अब किसी और को ये दुख झेलने के लिये मात छोड़ जाइये आप....! ये दुःख सहा नही जाता... ये दुःख कहा नही जाता...!!!!!


नोट : बहुत पहले एक कहानी लिखी थी....! ११ साल पहले...! कहानी क्या लघु उपन्यास था। मेरे दिल के बहुत करीब....! मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट था वो...! कभी कोई छपने को भेजने के लिये कहता भी तो मैं नही देती। मुझे उस पर फिल्म बनानी थी। या फिर जेलों में जा कर प्ले करवाना था। और कहानी के अंत में ये मोनोलॉग नायक की माँ से बुलवाना था। मैने तो बहुत हिफाज़त से रखा था उसे.....जाने कैसे मेरी शेल्फ में अब नही है वो...! मैने कहाँ कहाँ नही ढूँढ़ा...! मन्नत भी मानी...मगर मैं जिस के लिये मन्नत मान लूँ, वो तो पक्का नही पूरा होना है। ये मानी बात है। हँसी तो तब आई जब किसी ने मुझसे कहा कि अगर कोई चीज खो जाये तो दुपट्टे में गाँठ बाँध कर छोड़ दो..चीज मिल जायेगी। मैने अपने प्रिय सूट को छोड़ ही दिया तब तक के लिये जब तक वो मिल ना जाये...! थोड़े दिन बाद ढूँढ़ा तो वो दुपट्टा ही गायब था, जिस में गाँठ डाली थी....!
आज जब लिखने बैठी तो कई बार लगा कि इस वाक्य को बदल दूँ तो ज्यादा असर पड़ेगा...मगर फिर हिम्मत नही हुई। ये तब की बात है जब मैं सिर्फ अपने लिये लिखती थी....!

42 comments:

Vinay said...

आपकी लेखनी का जादू चल ही जाता है
---
तकनीक दृष्टा

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मगर यह सब इन्सान के हाथ में कहाँ है? सुन्दर लेख !

Mishra Pankaj said...

सही कह रही है कंचन जी हर आदमी टूटने के बाद जुडने की कोशेश करता है

ओम आर्य said...

उस शख्स की दुनिया मत सूनी कीजिये। आपके बाद जीना वो चाहता नही और मर वो पाता नही। मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, मुझे वो आख़िरी शख्स बन जाने दीजिये। अब किसी और को ये दुख झेलने के लिये मात छोड़ जाइये आप....! .............sach batau to aapaki lekhani ko sala our aapake in bhawanao ko jo chand shbdo se man ko bhinga rahe hai.......shukriya

पारुल "पुखराज" said...

दुप्पटे में गांठ बाँध लो तो चीज़ मिल जाती है ...बात तो सच्ची है कंचन ये ..आजमाई हुई

शायदा said...

mein awak hoon..! bahut gehra aur hila dene wala hai ye. suit aur dupatte ki baat ko aur vistar do..

रंजना said...

सचमुच यह करूँ पुकार यदि उनतक पहुँचाया जाय जिनके हाथ सहज रूप में किसी के खून से रंग जाने के लिए उठ जाया करते हैं......तो यह बेअसर नहीं रहेगा.....

बहुत ही लाजवाब लिखा है तुमने.....

संगीता पुरी said...

पोस्‍ट पढती हुई खो गयी आपके लेखन में .. पर अंत में आपके ड्रीम प्रोजेक्‍ट का खो जाने का सुनकर मन दुखी हुआ .. पर चिंता न करें .. आगे उससे भी अच्‍छी लिख लेंगी आप .. शुभकामनाएं !!

Abhishek Ojha said...

जो दुपट्टा इस्तेमाल नहीं करते उनके लिए भी कोई तरकीब है क्या? आपकी पोस्ट पर अक्सर निशब्द हो जाता हूँ. आज कुछ पूछने को तो मिला.

Bhawna Kukreti said...

nisahab hoon..........

रंजू भाटिया said...

दुप्पटे में लगी अब भी कई गांठे मिल जाती है ..बहुत गहरा खो देने वाला लिखती है आप कंचन ..

सुशील छौक्कर said...

आपका लिखा पढता हूँ और उस लेखनी के साथ बहता हुआ चला जाता हूँ। फिर जब किनारा आता है तो सोचता हूँ ये क्यों आ गया। आपकी लेखनी में कुछ अलग सा अहसास होता है। ये गाँठ वाली बात जी को छू गई।

Dipti said...

बहुत अच्छा और भावनापूर्ण लिखा है आपने...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जब् भी रचनाकार अपने लिए लिखता है
तब मन से
सच्ची सच्ची बातें ही
निकल कर आतीं है -
- आपका
आजका ये आलेख भी
वैसा ही भावपूर्ण लगा
स्नेह सहीत,
- लावण्या

"अर्श" said...

इस लेख ने एक अलग तरीके से मुझे उलझन में उलझाये रखा ... क्या हकीकत में इसे बेबसी कहते है दिल से मजबूर , फोटो अलग ही सन्देश दे रहा है हलाकि लेखन को संबोधित तो कर रहा मगर निचे हरी रंग में कथन अलग है ,... क्या दुपट्टे में गाँठ बंधने से ऐसा होता के खोया चीज मिल जाए... तो सोचता हूँ के मुझे कितनी गांठें लगानी होगी कितने ही दुप्पटे में ... आपके ड्रीम प्रोजेक्ट पूरा नहीं होने कोई ख़ास वजह तो नहीं दिख रहे आप कर सकती है ... गुजारीश अब ये है के अपने साथ साथ हमारे लिए भी लिखा करें...

जाते जाते वो कह गया मुझसे
दूर माने जुदा नहीं होता..

ये दर्पण ने कहा है ...

मगर मैं इसे सही मानता हूँ... शायद आप भी ...

अर्श

गौतम राजऋषि said...

कब से चुपचाप बैठा हूँ इस पन्ने पर। सोचता हूँ कितना संयोग है ये कि आज ही इतने दिनों बाद मैंने जब अपने ब्लौग पे पोस्ट लगायी, तो लगा कि पृष्ठ-भूमि माँ की इस अपील से जुड़ी हुई हो कहीं-न-कहीं।

अभिषेक ओझा के सवाल को मैं भी दोहराता हूँ।

इस ड्रीम-प्रोजेक्ट के बारे में पहले ही कह चुका हूँ तुमसे कि क्या करना है तुम्हें। just do it!!!!

रविकांत पाण्डेय said...

दुपट्टे में गांठ बांधने का तो नहीं पता पर, इस पोस्ट ने मन के किसी कोने में बंधी कई गांठें खोल दी हैं...बहुत पहले भिक्षाटन करते एक योगी को गाते सुना था...पता नहीं योगियों के गीतों में कौन सा आकर्षण होता है, मैं रोक नहीं पाता अपने को...खैर, ऐसी मान्यता है कि योगी एकबार अपनी मां से भिक्षा लेने जरूर आता है, तभी उसका योग पूर्णता को प्राप्त होता है। ऐसे में उस योगी का ये गाना-

सुगनवा वन में बोलत होइहें, अमवा की डार हो
ललनवा हमरो आई हो जईतन, बनके भिखार हो


और उस मां की याद में योगी के आंखों में आंसू आ जाता।.....अब ये भी संयोग है, अभी थोड़ी देर पहले एक निर्गुन सुन रहा था-

हित-मीत सब उठत-बैठत, भाई-बंधु परिवार
सासु ननदिया मुख से ना बोले, कोई ना जमानतकार
सुनो री सखी,सैंया को ले गये थानेदार


फ़िर रिश्तों के बारे में ही सोच रहा था कि आपकी ये पोस्ट दिखी। और भी कुछ याद आ रहा है पर शायद लिख न पाऊं....

Udan Tashtari said...

पोस्ट अपने साथ बहा ले गई..और आपका ड्रीम प्रोजेक्ट...उसका खो जाना अखरा....काश!! वो मिल जाये..भले दुप्पटे के साथ का सूट भी खो जाये.

vikram7 said...

कोई भी शख़्स बुरा नही बनना चाहता, परिस्थितियाँ उसे बुरा बना देती हैं।
बहुत सही

Manish Kumar said...

सुंदर, भावनात्मक, दिल को छूने वाला !

Mithilesh dubey said...

बहुत ही लाजवाब लिखा है ........

दिगम्बर नासवा said...

AAPKI BHAAV POORN LEKHI SE NIKLI LAJAWAAB KAHAAI ... DIL KO CHOO GAYEE KANCHANA JI ...

neera said...

ऐसा लगता है कलम नहीं तुम्हारी धरकने लिखती हैं ..

Gaurav Misra said...

Koshish kariye apne us laghu upanyaas ko dobaara aakaar dene ki...bahut sunder aur bhaav vihval kar dene waali rachna..

mehek said...

kho gaye lekh mein padhte padhe,sunder post.

Anonymous said...

दुपट्टे की गांठों से चीज़ें मिलें तो हमें बाहर से कपड़ा आयात करना पड़ जाएगा- अरे दुपट्टे बनाने के लिए। बाक़ी आपके ड्रीम प्रोजेक्ट के खोने का काफ़ी दु:ख है। लेकिन ख़ुशी इस बात की है जब कोई ख़ास चीज़ दिल के क़रीब होती है तो वो फिर से काग़ज़ पर उतारी जा सकती है। उम्मीद करते हैं कि आप अपने प्रोजेक्ट पर एक बार काम करने के बारे में सोचेंगी। शुभकामनाएं।

निर्मला कपिला said...

पढ कर मन मे एक अजीब सी अनुभूति जन्म ले रही है ये सिर्फ एक आलेख नहीं है संवेदनाओं का संसार है। कितनी अजीब बात है कि हम अपनों खुशी के लिये भी कितने असमर्थ से हो जाते हैं ासल मे हम दिखावा करते हैं असमर्थता का हम स्वार्थी हो जाते हैं ये बात दिल को छू गयी

दुनिया के लिये आप एक शख्स होंगे, लेकिन एक शख़्स के लिये आप सारी दुनियाँ हैं। उस शख्स की दुनिया मत सूनी कीजिये।

कितनी सही और सुनदर बात है आपका ये आलेख सब के लिये उपयोगी है। पिछले भी कुछ पोस्ट पढे सत्ब्ध हूँ अपकी कलम पर बहुत सुन्दर बधाई और शुभकामनायें ।

Anonymous said...

gautam ke aalawa ek aapka hi post hai jo padhna mein nahi bhoolti..per comment karne ki himmat nahi pari , per aaj jab ye padha to mujhe hairani hui ki kaise hum ek doosre se itne aalag hote hain fir v bhawanayen bilkul ek hoti hain ..jo hamare kareebi hote hai unke liye hum aisa hi to sochte hain...khas kar ek maa ka apne bachhon ke liye...aapse bahut kuchh seekhti hoon mein...

Anonymous said...

gautam ke aalawa ek aapka hi post hai jo mein padhna nahi bhoolti...per comment likhne ki himmat nahi pari kavi.. aaj jab ye padha to laga hum kitne ek doosre se aalag hote hain per bhawanaye bilkul ek hoti hai hamari.. jo v kareeb hote hain hamare hum unke liye aisa hi to sochte hai ...kahas kar maa apne bachhon ke liye.

aapse bahut kuchh seekhti hoon mein...

naina

गौतम राजऋषि said...

फिर से आया था इस अपील को गुनने...और तुम समझ सकती हो कि ये आना कितना सार्थक हो गया।

पहले रवि की टिप्पणी और फिर नैना जी की बातें...

डिम्पल मल्होत्रा said...

ये दुःख सहा नही जाता... ये दुःख कहा नही जाता...!!!!!mujhe shabad nahi milte ke kya kahu aap etna achha kaise likh leti hai...kmaal likhti hai pad ke sochne pe majboor ho jati hun...or kuchh pal moun ho jati hun....

ललितमोहन त्रिवेदी said...

११ साल पहले .....अपने लिए लेखन ही वास्तविक लेखन होता है कंचनजी जो काल की परिधि से भी बाहर होता है ! भावभीने शब्दों के प्रवाह में इतनी अकुलाहट और कलेजा चीर देने वाली व्याकुलता को कागज़ पर उकेरना बहुत सहज नहीं होता है और इसमें आपके कौशल को देखकर चकित हूँ ! " समुझत बनइ न जाय बखानी " , रचना की प्रशंसा के लिए बहुत शब्द नहीं हैं मेरे पास !

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अक्सर हम सोचते कुछ हैं और हो कुछ जाता है, यही हमारी रचनाओं के साथ भी होता है। इस मामले में आपकी रचना हृदय को झंकृत करने में सक्षम है। हार्दिक बधाई।
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आपको जानकर खुशी होगी कि आज उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, डीएम आवास के बगल, हजरतगंज में हिन्दी संस्थान द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक "हिन्दी में पटकथा लेखन" का 3.30 बजे विमोचन है। आपको यदि समय मिलें, तो अवश्य आएं। लखनउ के कई ब्लॉगर वहां पर इकटठे हो रहे हैं, इसी बहाने एक छोटी सी ब्लॉगर्स मीट भी करने की प्लानिंग हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
Mo- 9935923334
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

कंचन सिंह चौहान said...

बी०ए० फाइनल के बाद एम०ए० की पढ़ाई रेगुलर के बाबज़ूद कुछ प्राइवेट जैसी थी...! खाली समय था। कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर..मगर मेरे इस शैतान दिमाग ने मुझे कभी खाली नही रहने दिया..! जिंदगी में इर्द गिर्द बहुत कुछ ऐसा हो रहा था जिसे मैं अपनी कल्पनाओं का मिश्रण दे कर काग़ज़ पर उतारना चाह रही थी। कविता के दो रफ पन्नो की तरह नही था ये...! इसके लिये ढेर सारे पन्ने चाहिये थे। माँ से एक नये रजिस्टर की माँग करने का मतलबा था, पूरा ब्यौरा देना...! अब सोंचती हूँ कि वो मना तो ना करती शायद...! लेकिन तब हिम्मत नही थी। भईया की रैक में सफाई के बाद फेंके गये पीले पड़ गये, कोने से दीमक खाये गये फुलस्केप पेपरो को उठा कर उसमे दर्ज़ किया था उस ज्वार को...! फिर नौकरी लगने पर एक रजिस्टर पर पुनर्लेखन किया.. वर्तनी सही की..!

कंप्यूटर टाइपिंग सीखने के बाद सोचा था कि इसे टाइप कर लूँगी और उसके पहले ही वो गायब हो गई...!

पारुल कुछ मामलों में सारे आजमाये नुस्खे नाकाम हो जाते हैं..ये भी उनमें हैं..!


शायदा जी आप जैसे लोग जब कुछ कहते हैं तो असर दिनो तक रहता है। ये एक ऐसा मुद्दा है जिसे विस्तार दूँ तो मैं रोज़ लिख सकती हूँ...! मगर कब तक अपने साथ सबको दुखी करती रहूँ...!


रंजना दी ..! अगर आपकी बात में असर हो जाये और एक भी व्यक्ति इस अपील को सुनने के बाद अपने रास्ते बदल दे तो मैं अपना जन्म सार्थक मान लूँगी...! अभी तक तो जहाँ पहुँचानी चाही वहाँ कोई असर नही हुआ..!


अभिषेक जी एक नाकामयाब नुस्खे के लिये कोई तरक़ीब क्या निकालना या क्या ना निकालना..!


रंजू दी शायद ये गाँठे हम औरतें अधिक डाल कर बैठती हैं...!


अर्श दर्पण ने सही कहा है.....!
जाते जाते वो कह गया मुझसे
दूर माने जुदा नहीं होता.. .!

और इसी बहाने तुमने दर्पण की तरफ से भी टिप्पणी दे दी :)

वीर जी आपने ड्रीमप्रोजेक्ट के विषय में जो कहा...वो इतना आसाँ भी नही है...! अब जो होगा वो सब अलग होगा...! हर समय का अपना एक अलग मूड होता है....!

रविकांत जी क्या आप विश्वास करेंगे कि आपकी टिप्पणी मे जोगी गीत पढ़ कर मेरी आँख तुरंत नम हो गईं..! कसी चीज को दूसरे के स्तर पर जा कर इस तरह समझना...! आपकी बौद्धिक संवेदनशीलता का उदाहरण है।


समीर जी काश आपकी दुआ काम आ जाये...!

प्रबुद्ध जी आपने बड़ी तार्किक बात कही..लेकिन ये मन कोई तर्क मानता ही नही...!

निर्मला जी आपकी टिप्पणी बड़ी आत्मीय थी..! मन को छूने वाली..!


राज जी और त्रिवेदी जी..! आप दोनो से एक ही बात कहनी है..! मैं आप दोनो की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ और इस तरह खुले मन से जब आप मेरा मन रखते हैं, तो सब जानते हुए भी मैं खुश हो जाती हूँ...!

ज़ाकिर जी आना तो मैं भी चाहती थी...! लेकिन ठीक उसी समय कार्यालय में हिंदी दिवस समारोह है और हिंदी के पद से बँधे होने के कारण कोई एक्सक्यूज़ नही चलेगा आज का कार्यालय में..!


विनय जी, गोदियाल जी,पंकज जी,ओम जी, संगीता जी, भावना जी, सुशील जी, दीप्ति जी, लावण्या दी, विक्रम जी,मनीष जी, मिथिलेश जी, दिगंबर जी,नीरा जी, गौरव जी, महक जी.. आप सब को शुक्रिया के अलावा दूँ भी तो क्या


और अंत में नैना जी...! गौतम जी के बाद आप मुझे पढ़ती हैं, यही मेरे लिये सबसे प्रिय जानकारी है...! आप टिप्पणी दें या ना दें आती रहें..! मैं, गौतम जी और आप एक जगह साथ हैं ये अहसास ही बहुत है...!

राकेश जैन said...

aur ye main, apki post ka har bar chhuta hua shakhs, jiska comment sabse baad me aata hai, vaise esa prachlan hai, ki jab mul krutikar sabka abhivadan aur abhinandan kar chuke to fir koi aur kuchh kahta nahi hai.... main na to abhinandan chahta hun, na abhivadan is liye kahe deta haun...

is rachna ka koi tod nahi hai..

kshama said...

Aapka likha har lafz dilme gahra utarata rahta hai..

डॉ .अनुराग said...

देर से आया कंचन .....उलझा हुआ था जिम्मेवारियों में ....पर तीन चार दिन पहले इत्तिफाक से फेस बुक पे मैंने ये लिख छोडा था ....किसी दोस्त का भेजा एस एम एस था
when you pray for others ,God listen to you and bless them .And sometimes when you are safe and happy remember that someone has prayed for you..............


अपने आप में ये काफी कुछ कह जाता है ....मेरा तो शुरू से मानना है ...हालात किसी आदमी की जिंदगी का रुख तय करने में अपना बहुत बड़ा हिस्सा रखते है ...अपनी आँखों से कितने लोगो को ..बनते बिगड़ते देखा है ....

Alpana Verma said...

-मन को छू गयीं आप की बातें.

-आप का ड्रीम प्रजेक्ट पूरा हो..आपकी खोयी कहानी [लघु उपन्यास] जल्द ही मिल जाये..
अब हम भी शुभकामना भेज रहे हैं तो असर करेगी.

के सी said...

इस कथांश को पढ़ते़ समय कई भाव साथ साथ चलते हैं
जिस दिन पोस्ट आई थी उसी दिन दो बार पढ़ चुका था फ़िर इन्टरनेट का गड़बड़ झाला मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है पहले ईवीडीओ बंद
हो गया अब ब्रोडबैंड भी बार बार डीसी होने लग गया तो आखिर गूगल रीडर से पेज को सेव किया और कुछ कमेंट लिखे.
पोस्ट में जो तस्वीर लगी है ?

आपके पास समय ज्यादा नहीं होता है अन्यथा उपन्यास हो सकता है.

प्रकाश पाखी said...

कंचन जी,
मैं गौतम भाई से सहमत हूँ...अपना सपना पूरा करना हो तो दो ही बाते करनी होती है...पहला तो या कि काम शुरू कर दो तुरंत...और दूसरा रुकना नहीं...मैंने भी किसी विद्वान से पूछा था कि अपना विचारा उपन्यास कैसे पूरा करूँ तो उसने बताया था कि उसका अंत सोच लो और उसके बाद जितना जल्दी हो लिखना शुरू कर दो..
आपकी लेखनी कि संवेदनाएं उसके शिल्प और प्रवाह को कहीं भी अवरुद्ध नहीं होने देगी...

Ankit said...

नमस्ते कंचन दीदी,
फुर्सत मिलते ही पड़ने बैठा इसको, हर lafz की adaygi बहुत khoobsurat है, मैं dua karoonga की जो खो गया है वो jald ही मिल जाये, abhishek ojha जी के prashn का jawab dena chahunga, roomal में ganth baadhi जा सकती है (ये कितनी kargar होगी ये वक़्त batayega).

दर्पण साह said...

kanchan ji aapki sacchi taarif na jaane kitne logon se sun chuka hoon?
'gautam sir', ' bhai arsh' 'Ankit safar (unko main personally nahi janta par unke blog main padha
) aur aap kitni samvedansheel hain wo aapki is post se bhi pata chal jaata hai...

...blog jagat aisi jagah hain jahan sacchi aur jhooti tarefon ka pata nahi chal paata ye to ap babli prakarn se jaan hi gayi hongi (babli prakaran main aapke diye links bhi padhe the :) )isliye yakeen nahi dila paaonga ki main aapke bare main kya feel karta hoon...
...bus is maun ko aap samajh lein !!
aapki koi nai post na miss kar paaon isliye blogroll main laga raha hoon !!
haan par comment dene lene se to ji bhar gaya ...
...aap itni samvedansheel hain samajh gayi hongi ki kyun!!