Thursday, June 11, 2009

हृदय गवाक्ष की दूसरी वर्षगाँठ और आप सब को शुक्रिया




जी हाँ आज ही है वो दिन जो २ साल पहले इस अद्भुत ब्लॉग विश्व में लाया। जब आई थी तो नही पता था कि जिंदगी का सब से बड़ा फितूर, जुनून बन जायेगा ये काम। वो दुनिया जो मुझे सब से अधिक सुकून देती है। वो जगह जहाँ मुझे खुद जैसे कई सनकी मिल जाते हैं। जहाँ मेरा कहना दूसरे समझते हैं और दूसरों का कहना मैं।

शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया..! मनीष जी आपका हर बार शुक्रिया, जब जब महसूस की इस जगत में आने की खुशी तब तब आपको धन्यवाद दिया। ये खुशकिस्मती थी मेरी कि आर्कुट जैसी विवादित जगह जो व्यक्ति मुझे सब से पहले मिला, उसे मित्रता का विस्तार और सीमाएं दोनो ही बहुत अच्छी तह से मालूम थे। मेरा ब्लॉग बन गया और पहली पोस्ट पड़ गई, तब तक नही पता था मुझे कि ये ब्लागजगत आपरेशन होता कैसे है ? शुरुआत में उन्होने ही किया बहुत कुछ।

मनीष जी ने बहुत अच्छी तरह समझाया था कि शुरुआत में शून्य टिप्पणियाँ पाने से निराश मत होना और मैं इसके लिये पूरी तरह तैयार थी। मगर यहाँ ऐसी खुशकिस्मती थी कि मेरी पोस्ट पर पहली टिप्पणी माननीय महावीर प्रसाद जी की आई। मेरे लिये एक ही टिप्पणी १० टिप्पणी के बराबार थी। खैर जैसा मैं लिख रही थी उस हिसाब से या तो मेरी उम्मीदे बहुत ज्यादा नही थीं या फिर लोग मेरे लड़खड़ाने पर सधने के लिये तालियाँ अधिक बजा रहा थे। मगर मैं संतुष्ट थी। शुरुआत मे ही मैथिली जी, जैसे लोगो का उत्साह वर्द्धक साथ देख कर लिखते जाने की चाह बनी रही।

मन के चोर को हमेशा से ये भी लगता था कि कहीं मेरी कमजोरियाँ जान कर लोग यूँ ही सहानुभूति में वाह वाह न करने लगें इसी गरज से शुरुआत में बहुत दिनो तक अपनी फोटो भी नही लगायी थी। क्योंकि अपनी सत्यता ना ही मैं छुपाना चाह रही थी और न ही जताना। मगर खुशी हुई कि लोगो ने मुझको बाद में मेरी कलम को पहले जाना। जैसा कि मैं चाहती थी। मैं उसी को पहचान बनाना चाहती थी अपनी। फोटो तो तब लगायी जब मनीष जी से मुलाकात हुई और उन्होने मेरे विषय में लिखा। तब तक तो बहुत लोग मिल चुके थे।

मैथिली जी की टिप्पणियाँ, सारथी जी का चिट्ठाजगत के लिये मेरी कविता का ब्लॉग की शैशवावस्था मे ही चुनाव शायद पानी देता रहा।

समीर जी, जिनकी टिप्पणी हर जगह मिल जाती थी, उनको मेरे ब्लॉग तक आने में ३ महीने लगे और ज़ाहिर है मन बहुत खुश हुआ। हाँ लेकिन ये भी सच है कि जिनके विचारों का इन्तज़ार था, उन्हे कभी किसी तरह मेल या टिप्पणी या अन्य आकर्षण द्वारा आमंत्रित नही किया। आने के बाद ज़रूर बताया कि आपकी प्रतीक्षा बहुत दिनो से थी।

उन्ही लोगो में एक हैं राकेश खण्डेलवाल जी। जिनकी प्रतीक्षा पूरे ८ माह तक करनी पड़ी। उनकी कविताओं का रिदम अधिकतर जुबान पर चढ़ जाता था। मगर अकसर सोचती कि क्या मेरी कोई भी कविता ऐसी नही है जो राकेश जी को पसंद आती हो। उस विषय में तो मैं विस्तार से लिख ही चुकी हूँ पोस्ट में।

यूनुस जी तो खैर सभी के लिये हाजिर रहते हैं। जब भी किसी गीत की आवश्यकता पड़ी, वो हाजिर और फिर गायब।

इसी बीच ब्लॉग बनने के तीन माह के भीतर ही गुरू जी की क्लासेज़ शुरू हो गईं, जो मेरे लिये गज़ल को समझने के लिये तो लाभकारी रही ही, साथ ही साथ वहाँ से बहुत से लोग जुड़े। मीनाक्षी दी वही मिलीं मुझे।

पता नही कब इतने लोगो से जुड़ती चली गई। डॉ‍ साहब, पारुल और मीत जी जाने कब आये और उनकी हर रचना मन को छुई।



पारुल का लिखा सब कुछ लगता जैसे अपने मन का। मिली तो सखी बन गई। ये तो बाद में पता चला कि पहले भी कुश जैसे कई लोग उन्हे इस नाम से पुकार चुके हैं। सोचती हूँ कि अब संघमित्रा कहा करूँ उन्हे :)

डॉ० अनुराग को जब जाना तो एक बहुत पारदर्शी शख्स को पाया। व्यस्तता के दौरों में जब जब उन्हे लगा कि आज इस भावुक लड़की को भावनाओं ने शायद ज्यादा परेशान किया हो, तब तब मैने अपने मोबाईल पर उनका नंबर डिसप्ले होते पाया। शुक्रिया अनुराग जी..!


राकेश को तो खैर इस से बाहर ही रखूँगी, क्योंकि वो ब्लॉग से नही मिला, बल्कि मैने ही उसे ब्लॉग जगत से मिलवाया.....! पर ये बताना चाहूँगी कि आभासी जगत से मिला ये रिश्ता भी अद्भुत ही है मेरे लिये।



समीर जी के कानपुर आने पर जब उनसे मिलने गई, अनूप जी के घर तो पता चला हम तो यूँ ही इन आदि चिट्ठाकार से डर रहे हैं, वो तो बहुत ही जल्दी दूसरों से घुलमिल जाने वाले लोगों में हैं। दोबारा जब वो लखनऊ आये तो दीदी के घर फिर मुलाकात हुई उनसे। लोग यूँ ही डरते हैं उनकी खिंचाई से। मैने ध्यान दिया कि उनकी खिंचाई का शिकार अधिकतर उनके समवयस्क मित्र ही होते हैं, हम जैसे कनिष्ठ चिट्ठाकारों को वे केवल उत्साहित करते हैं और अपनी बातों को सलीके से कहने का जो तरीका उनके पास है वो मुझे बहुत पसंद आता है।

किसी तरही मुशायरे में पहली बार जब गौतम राजरिषी जी को पढ़ा, तो कुछ खिंचाव सा महसूस किया, तुरंत अपनी ब्लाग लिस्ट में स्थान दिया उन्हे। फिर २६/११ की घटना के दौरान महसूस किया कि वे सिर्फ मेजर ही नही एक सच्चे देशभक्त भी हैं। रासो कालीन काव्य और घर में वीरता की गाथाएं सुनकर बड़ी तमन्ना थी कि घर का कोई भाई/बेटा हो जिसे तिलक लगा कर युद्ध में भेजूँ। मगर जब गौतम जी की काश्मीर में पोस्टिंग की बात सुनी तो ना जाने क्यों कुछ दहशत सी हुई और लगा कि या तो मैं अब सपनो की दुनिया से बाहर आ चुकी हूँ या सपने और हकीकत में बहुत फर्क़ होता है। ये सब बातें जब एक मेल में मेजर साहब को लिखीं तो उस दिन ब्लॉगजगत ने एक सच्चे वीर को मेरा वीर बनाया। शुक्रिया ब्लॉग विश्व..!


किशोर जी से परिचय शीघ्र ही हुआ मगर उनकी लेखन क्षमता के कारण विशेष स्थान बना उनका।

और अब तो पूरा काफिला है। रिश्तों से भरा पूरा परिवार। पंकज जी, महावीर जी, खण्डेलवाल जी, मोद्गिल जी जैसे गुरुवर.....! गौतम जी जैसे अग्रज। राकेश, पुनीत, अर्श जैसे अनुज। लावण्या दी, मीनाक्षी दी, घुघूती दी, जैसी बड़ी बहने। अनुराग जी, मनीष जी और कुश जैसे सच्चे मित्र। पारुल सी सखी। अनूप जी, समीर जी, सुशील छौक्कर जी, नीरज जी, रविकांत जी, रवीन्द्र रंजन जी, अजित जी, किशोर जी जैसे और बहुत बहुत बहुत से शुभचिंतक। मैं अभिभूत हूँ।

धीमी गति के बावजूद जो साथ सबका मिला उसका क्या कहूँ। सोचा था कि १०० वीं पोस्ट और दूसरा जनमदिन एक साथ मनाऊँगी लेकिन कहाँ..?? मेरी कलम (की बोर्ड) कभी मेरे अनुसार चली हो तब ना। इसका जब मन होता है तब चलती है। लेकिन जब भी चली आप तब ही आ गये उत्साह बढ़ाने। आप सब का शुक्रिया..! और अनुरोध यूँ ही साथ निभाते रहियेगा।

आज फिर से कहती हूँ कि जो कुछ लिखा सिर्फ अपने मन के कहने से लिखा। आपको पसंद आया या यूँ ही उत्साह बढ़ाया, सब आपका बड़प्पन था। कभी भी विवादित लिखने की गरज से विवादित नही लिखा लेकिन अफसोस कि जब नर नारी समन्वय और गाँधी जी जैसे विषयों पर थोड़ा विवादित लिखना पड़ा जनता ने हिट किया। समझ में आया कि हर फिल्म रिलीज के पहले बैन्ड क्यों होती है।
और हाँ भाव आने के मुश्किल से ४ मिनट के अंदर लिखी गई इस कविता को जैसा रिस्पांस मिला वो मेरे लिये आश्चर्यजनक था।

खुशी इस बात की भी हुई लोगो ने इस योग्य समझा कि मेरी आलोचना या विवेचना की जाये। मित्रों को जब कुछ नही पसंद आया तो खुल कर लिखा और मैने उन्हे अपने सच्चे मित्रों में शामिल किया। जब सही आलोचना होती है तब खुशी होती है। मगर जब बिना पढ़े ही कोई विचार दिया जाता है (फिर चाहे तारीफ हो या निंदा) तो कष्ट होता है।

अपना एक विचार और देना चाहूँगी कि ब्लॉग जगत में समस्या टिप्पणियाँ देने की नही उचित टिप्पणियाँ देने की हो गई है। आप से गुजारिश है कि जब भी आये अपने खुले विचारो के साथ आयें।

हाँ ये भी कहना है कि विरोध का मतलब झगड़ा और गलत भाषा का प्रयोग नही है। हम शब्दों के ही खेल तो कर रहे हैं, इन्हे संयमित रखना हमारे अपने वश में है, जरूरी नही कि अपनी बात लड़ कर ही कही जाये।

तो फिर से आप सब का शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया....!

48 comments:

अनूप शुक्ल said...

अब हमारा मुंह न खुलवाओ। हम जब से पढ़े हैं तब से भरे हैं बधाई देने के लिये। दो साल पूरा करने के लिये बधाई।

बधाई देने आयें पाठकों के लिये कंचन के बारे में लिखी पोस्ट! अन्य होंगे चरण हारे

पंकज सुबीर said...

बधाई हो बधाई आखिर कार हमारी सीनियर हैं आप ब्‍लागिंग में । सभी को सूचना कि मिठाई खिलाने के डर से कंचन अपने बारे में एक महत्‍वपूर्ण सूचना छुपा गईं हैं जिसको आप सब http://www.subeerin.blogspot.com/ यहां पर जाकर पढ़ सकते हैं । उसके बाद हम जोर शोर से आपके स्‍वर में स्‍वर मिला कर मिठाई की मांग करेंगें ।

संजय बेंगाणी said...

बधाई स्वीकारें.

कंचन सिंह चौहान said...

पता नही क्या संजोग हैं कि पिछली बार जब गवाक्ष का जन्म दिन था तब मेरी गुरू का निधन हो गया था और इस बार जन्मदिन के एक दिन पहले जहाँ मुझे ये सूचना मिली कि तरही मुशायरा में मेरे शेर को प्राण जी द्वारा अव्वल घोषित किया गया है, वहीं ओम व्यास ओम जी की गंभीर हालत और स्नेही वीर जी के तीन साथियों की शहादत की भी खबर लगी। एक लंबा विश्लेषण था इसलिये ये पोस्ट तो मैने पहले ही लिख के शेड्यूल्ड कर दी थी, मगर कुछ और खुशखबरी देने की हिम्मत नही पड़ी, इन दुखों को सुनने के बाद...!

और ये तो आपका ही आशीर्वाद है गुरुजी, वरना मैं तो बता ही चुकी हूँ कि मैने तो उस गज़ल को मीटर पर भी नही कसा था। एकलव्य ने जब मूर्ति से शिक्षा पा ली तो आप तो मूर्तरूप में हमें अनुग्रहीत कर रहे हैं।

के सी said...

इधर तरही मुशायरा का परिणाम कल देख रहा था पंकज जी के ब्लॉग पर, आज मालूम हुआ कि दो साल हो गए ब्लॉग लिखते हुए फिर इससे भी बड़ी बात कि कितना बड़ा दिल है जिसमे इतने नेक इंसान समाये हुए हैं, अब ये भी सोचता हूँ कि आप को बधाई दूं या खुद को ? मैं जिसे रोजनामचा समझता हूँ उसके सफ़े इस पोस्ट जैसे ही होते होंगे...
कंचन जी, आपको बधाई उन सब को भी जो आपको पढ़ते हैं !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जाल-जगत पर दो साल पूरे करने पर बधाई।

पंकज सुबीर said...

जीवन सुख दुख का इक संगम है
दुख थोड़ा जियादा है सुख थोड़ा कम है
जब कहीं हम तेज़ धूप में घिर जाते हैं तो छांव का एक छोटा सा टुकड़ा भी हमें धूप से लड़ने का साहस प्रदान करता है । जीवन में हमें कड़ी धूप जियादह मिलती है और छांव के टुकड़े कम मिलते हैं । किन्‍तु यदि हम छांव ही छांव में चलें तो फिर मज़ा ही क्‍या होगा जीने का । जब जब जो जो मिले उसका सम्‍मान करने की आदत डालना होगा ।

दिगम्बर नासवा said...

सुंदर चर्चा करी है आपने..............ब्लॉगिंग की दूसरी वर्षगाँठ पर बधाई.........आप ऐसे ही लिखती रहें

Manish Kumar said...

मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि ब्लाग जगत से आपने ऐसे मित्र पाए जो आपकी लेखन क्षमता को परखने और परिमार्जित करने का माद्दा रखते हैं। अपनी खुशी के लिए लिखना बहुत जरूरी है क्योंकि वही संतोष आपको विकट परिस्थितियों में भी इस तरह के लेखन के लिए उकसाता है। और यह भी तय है कि जो बात दिल से लिखी जाए वो किसी ना किसी पाठक का दिल अवश्य जीतेगी़।
ब्लॉग जगत में आप ऐसी अनेक वर्षगाँठ मनाएँ इन्हीं शुभकामनाओं के साथ !

Rachna Singh said...

badhaaii keep writing

Alpana Verma said...

baht bahut badhayee Kanchan Ji,aagey bhi aise hi safaltyen paati rahen.

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत बहुत बधाई दो वर्ष सफलतापूर्वक पूरे करने के लिए

siddheshwar singh said...

हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया में सफलतापूर्वक दो साल पूरा करने पर बधाई !

रंजू भाटिया said...

बधाई बहुत बहुत आपकी कलम यूँ ही लिखती रहे ..

मीनाक्षी said...

कंचन की कंचन सी कलम सुनहरी आभा बिखेरती रहे...यही कामना है...गवाक्ष का जन्मदिन मुबारक... सुबीरजी का ब्लॉग खुल नही रहा....वहाँ की बधाई भी यहीं.... :)

Ankit said...

नमस्कार कंचन जी
आपको बहुत बहुत बधाइयाँ

सुशील छौक्कर said...

सबसे पहले तो बहुत बहुत ......बधाई। पहली बधाई ब्लोग की दूसरी सालगिरह के लिए और दूसरी बधाई आपके शेर को चुने जाने के लिए। जब काफी देर से आपको टाक पर देखा तो समझ गया पोस्ट आऐगी आज। आप ऐसे ही बेहतरीन लिखती रहे और हम पढते रहे।

नीरज गोस्वामी said...

दूसरी वर्ष गांठ की बहुत बहुत शुभकामनाएं...कंचन जी इश्वर से प्रार्थना है की "गवाक्ष" साल दर साल यूँ ही चलता रहे...और हाँ गुरुदेव के तरही मुशायरे में आपकी ग़ज़ल और खास कर हासिले मुशायरा शेर पढ़ कर इतनी ख़ुशी हुई की बता नहीं सकता...आप बहुत प्रतिभाशाली हैं...ग़ज़लें लिखा कीजिये...घबराया मत कीजिये...लिखिए गुरूजी को दिखाईये और बस पोस्ट कीजिये...
एक बार फिर ढेरों बधाईयाँ...
नीरज

डॉ .अनुराग said...

अमूमन ऐसी पोस्टो पर असहज होता हूँ.....क्या कहूँ बधाई दूँ या तारीफ के दो शब्द कहूँ...कभी किसी ने कहा था ....प्रशंसा से किसी को भी जीता जा सकता है ओर आलोचना से किसी को भी हारा....
हम सब जानते है पर कभी कभी व्यव्हार में चूक जाते है ......इतना ही कहूँगा ...कभी स्वस्थ आलोचना हो उसे भी खुले दिल से लेना ...ये सोचकर मत लिखना की पढने वाले क्या कहेगे ....बस मन से लिखना ...जैसी हो वैसी बनी रहना ...


'कुछ लोग लिखते है ज़िंदगी की बाते
शेर लिखने वाले सब शायर नही होते'

रविकांत पाण्डेय said...

जिस तरह से आपने सफ़र के हर राही को याद किया है, मुझे शिवमंगल सिंह सुमन जी की कविता याद आ गई-

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंजिल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएं-बाएं सुख-दु:ख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

बहुत-बहुत बधाई आपको परमात्मा आपको हर मोड़ पर अनमोल खुशियों से नवाजे, यही कामना है।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत हार्दिक बधाई स्वीकार करें. शुभकामनाएं.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत हार्दिक बधाई स्वीकार करें. शुभकामनाएं.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत हार्दिक बधाई स्वीकार करें. शुभकामनाएं.

रामराम.

Vinay said...

जानकर अत्यन्त हर्ष हुआ, शुभकामनाएँ

Yunus Khan said...

हम्‍म । मुबारक हो कंचन । बहुत सारी मिठाईयां ड्यू हो गयीं हैं तुम्‍हारी ओर से ।

ललितमोहन त्रिवेदी said...

कंचन जी ,ब्लॉग जगत में दो वर्ष पूरे होने पर बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें ! ईश्वर करे आप सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहें !

"अर्श" said...

गवाक्ष को इस दुसरे साल गिरह पे दिल से ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ... जिस तरह का परिवार आपको मिला ब्लॉग जगत में वो मुमकिन है सभी को नहीं मिलता और उस परिवार में मैं भी शामिल हूँ इस बात से ही मैं हर्षित हूँ... मुझे भी एक गुरु बहन मिल गयी है इस ब्लोगिंग के जरिये ... वेसे मैंने आज तक कक्षा में आपकी शिकायत गुरु जी से नहीं करी मगर आज कल आप मेरे ऊपर गुराते हो ही मेरी सारी आइस क्रीम भी खा जाते हो और चोकोलेट्स भी .... वेसे आज आपके घर आकर इस वर्षगाँठ की मिथायेयाँ खा कर दिल को बहोत खुसी हुई ... हा हा हा .... कक्षा में हासिल शे'र के लिए पहले भी मुबारक बाद दे चुका मगर इस मिठाई के लिए एक बार फिर से दिए जाता हूँ नहीं तो कल जाके मुझे बक्शो गे नहीं मैं जानता हूँ....हा हा हा ..सभी बड़ों का आर्शीवाद मिलता रहे आपको और हम भाई बहनों का प्यार सजीव रहे यही अल्लाह मियाँ से दुया करता हूँ....

आपका
अर्श

गौतम राजऋषि said...

कंचन तुम

कंचन रहो- सदैव, सदैव !

Udan Tashtari said...

bahut bahut badhai..abhi shahar se bahar aaya hua hun to hindi suvidha aaz mili nahi...bas badhai dene chala aaya..varna phir 3 month nikal jaate. :)

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह कंचन... बधाई और बहुत बधाई...

महावीर said...

कहने को तो 'हृदय गवाक्ष' दो वर्ष ही हुए हैं किन्तु आरम्भ से ही हर पोस्ट में तुम्हारी सौन्दर्य-विधायिनी अद्भुत काव्य-कौशल और रचना-चातुर्य के लक्षण दिख जाते हैं. कितने ही विचित्र और विभिन्न बातों का संगुम्फन करके 'हृदय गवाक्ष बना है जो सराहनीय है.
ब्लॉगिंग की दूसरी वर्षगांठ पर बधाई.

वीनस केसरी said...

दो वर्ष का लंबा सफर सफलता पूर्वक पूरा करने के लिए हार्दिक बधाई
"सफलता पूर्वक" इस लिए क्योकि आपकी पोस्ट पढ़ कर लगता है आपने अपने ब्लॉग के नाम को सार्थक किया

तरही मुशायरे में भी आपने कमाल की गजल भेजी थी उसके लिए हार्दिक बधाई

वीनस केसरी

रंजना said...

Dheron badhaiyan kanchan...

Satat likhte raho...Mata sharde sada sahaay rahen tumhare kalam man mastishk aur vani par.

Sada khush raho..khoob khush.

Abhishek Ojha said...

बधाई जी ! ऐसे ही सालों साल लिखती रहे हम पढ़ते रहे !

Unknown said...

कंचन जी, सबसे पहले तो बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें। मुझे आने में देर हो गई क्योंकि आजकल टाइम शेड्यूल ऐसा है कि ब्लागिंग के लिए वक्त कम निकल पा रहा है। लेकिन देर-सबेर ही सही आपकी हरेक पोस्ट पढ़ता जरूर हूं। आपकी यह पोस्ट पढकर मुझे वो दिन याद आ रहा है जब मैं ब्लागिंग में नया-नया आया था। कोई तकनीकी दिक्कत होती थी तो मैं आपसे पूछता था और जैसे भी हो आप उसका समाधान बताती थीं। इस समाधान के पीछे मनीष जी का भी काफी योगदान होता था। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि जिन तीन लोगों से मुझे ब्लाग जगत में सबसे ज्यादा प्रोत्साहन और सहयोग मिला उनमें कंचन जी का नाम सबसे पहले शुमार होता है। ये मेरी ब्लाग सूची में देखा भी जा सकता है। मुझे याद है कि एक बार तो किसी जनाब ने मुझ पर आयडिया चोरी करने का आरोप लगा दिया था। उस आरोप से मैं इतना ज्यादा परेशान और दुखी हो गया कि ब्लागिंग छोड़ने का भी फैसला कर लिया। लेकिन कंचन जी की वजह से मुझे काफी बल मिला और मैं डटा रहा। आशियाने का सफर आज जो कुछ भी वो उनसे मिले बल की वजह से ही है। जहां तक कमजोरियां जानने की बात है तो मुझे भी काफी बाद में इसका पता चला। लेकिन जहां तक मैं जानता हूं इसी कमजोरी ने कंचन जी को ताकत दी है, विचार दिए हैं। भाषा दी है।
की-बोर्ड पर उंगलियां रुक ही नहीं रही हैं। अब बस करता हूं। कभी अलग से एक पोस्ट लिखूंगा कंचन जी पर। क्योंकि यहां ज्यादा जगह घेरना ठीक नहीं।
कंचन जी एक बार फिर बहुत-बहुत बधाई और साथ में शुक्रिया भी।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भारत के दूर सुदूर शहर मेँ रहती ये मेरी एक भावुक बिटिया जब भी लिखती है ह्र्दय के भीतर के भाव मुखरित हो जाते हैँ :)

२ वर्ष "ह्रदय गवाक्ष " के पूरे करने के लिये बहुत बहुत बधाई
और निरँतर बढिया लिखती रहो कि,
श्री पँकज सुबीर भाई और प्राण भाई साहब जैसे गुणीजनोँ की प्रशँसनीय बनो
ये शुभेच्छा भेज रही हूँ ..
सदा प्रसन्न रहो .
स्नेहाशिष सहित,
- लावण्या

उन्मुक्त said...

दो साल पूरा करने में बधाई।

मैथिली गुप्त said...

बहुत बहुत बधाई कंचन जी, हम तो आपको हमेशा पढते रहे हैं, आपके ब्लाग की वर्षगांठ हम सब मिलकर इसी तरह मनाते रहें और आपके जीवन में सदा खुशियां ही भरी रहें, इन्ही कामनाओं के साथ

"मां ने नाम दिया जब कंचन, तुमको सदा खरा रहना है"

vandana gupta said...

badhayi sweekar karein aur apne bavon ko isi prakar abhivyakti deti rahein.

"MIRACLE" said...

meri aur se bhi badhiyi sweekar karein.aapki abhivyakti hamesha anupam hoti hai.

पुनीत ओमर said...

मेरा नाम भी होता तो... :)

sanjay vyas said...

badhai aur shubhkaamnaaen.aisi kai salgirahon ka saakshi banun yahi ichchha hai.

प्रकाश पाखी said...

कंचन जी,
कुछ एक बार आपकी टिप्पणियों से बड़ा हौसला मिला था.आपकी कविता गजब की सुन्दर होती है.और जब मैंने गुरदेव सुबीर जी का शिष्यत्व ग्रहण किया है उनके ब्लॉग पर आपको हासिल ऐ मुशायरा शेर पेश करने का पुरस्कार पाते देखा है उसकी बधाई तो मैं दे ही चुका हूँ अब आपके ब्लॉग के दो वर्ष पूरे होने की बधाई स्वीकार करें.
आपकी लेखनी के मुरीद है..
आपकी अगली पोस्ट का इन्तजार करेंगे...

प्रकाश पाखी said...

पुनश्च..
और हाँ,मैं यह तो बताना भूल गया की मैंने गुरूजी की पुरानी सारी पोस्ट पढ़ी है.आपका एडमिशन तो पहले तीन विद्यार्थियों में हुआ था...और आप अपने हाथ गुरूजी की छड़ी पाने के लिए खुले रखती थीं.हालांकि वह छड़ी आप को नहीं पड़ी...वैसे तो हम न्यू एडमिशन है..और सीनियर के बारे में टिप्पणी करने पर हमें भारी डांट खानी पड़ सकती है, पर उम्मीद करता हूँ कि दो वर्ष पूरे होने की ख़ुशी में आप मेरी गुस्ताखी माफ़ कर देंगीं .

Neha Dev said...

कंचन जी दो साल पूरे होने की बधाई
आपकी इस पोस्ट से कुछ नए लोगों के ब्लॉग तक पहुँची हूँ.
सब अच्छा लिखने वाले हैं विविधता पूर्ण है आपकी पसंद.

राकेश जैन said...

manzil ki taraf nikla,, rahon se razaa karke,
milte gaye hum rahi, rahh me chalte-2..badhaiya, 730 din ke safar par. aur sahsra varshon ke lie ye shbda yojna sanchit ho jaye, parhi jaye aur prerna bane, in duaon ke sath apka Anuj - Rakesh.

कुश said...

अब क्या कहे इस पर.. अलग से बधाई दे दू तो चलेगा... ?

रचना. said...

ओए!! मुझे भूल गयीं तुम?? :) मजाक कर रही हूं.:) मै कुछ अपने दुख मे ऐसी उलझी कि ब्लॊग पढने से दूर होती गयी.. फ़िर ी जब जब ब्लॊग जगत मे वपस झांकती हूम तो तुम्हारे " ह्रदय गवाक्ष" मे भी झांकरी हूं.. बहुत दिल से लिखती हो! कुछ साथीयों से मै भी मिल चुकी हूं, लेकिन जिन कुछ और लोगों से मिलने की दिली तमन्ना है उन्मे से एक तुम हो!
तुम्हे हार्दिक बधाई और अभिनन्दन! इसी तरह तुम सबका स्नेह पाती रहो, यही शुभकामना है!