Monday, October 6, 2008

नेता हमारे

कुछ मित्रों ने शिकायत की कि मैं लोगो को दुखी अधिक करती हूँ, ईश्वर की दया है कि मुझे मित्र सच्चे मिले हैं।
खैर सोच मैं भी यही रही थी और अनूप जी से चर्चा भी की थी कि मेरे गवाक्ष से भीगी बयारें अधिक निकलती हैं, जाने क्यों ऐसा हो ही जाता जबकि व्यक्तिगत रूप से सिर्फ मित्रों को रुलाना ही मेरा उद्देश्य बिलकुल नही है, लेकिन फिर भी गलत तो है ही, यूँ ही मैं महीने मे कहीं एक बार कुछ लिखती हूँ और वो भी ऐसा ....! खैर मैं बातें भले जॉली मूड में कर लूँ, लाख चाहते हुए भी हास्य रचनाए नही लिख पाती, तो अपनी नही दूसरे की वाणी से माहौल हल्का करने की सोची
मेरे परिवार में कविता के कीड़े लगभग सभी के अंदर पाये जाते हैं, ये अलग बात है कि अधिकर सुषुप्ता अवस्था में रहते हैं और एक विशेष काल में शायद ये कुछ दिनो के लिये ऐक्टिवेट होते हैं। ऐसे ही एक समय में मेरे भांजे विपुल (बड़ी दीदी का बेटा) ने जो कि अब ज़ी बिज़नेस मे है ने भी एक कविता लिखी थी।



इस वर्ष अपने जन्म की रजत जयंती मनाने वाला मेरा ये भांजा मुझे अपने सभी बच्चों में सबसे गंभीर और समझदार लगता है। (विपुल पढ़े तो शातिर विशेषण भी जोड़ ले)। तो ये संक्रमण काल इनके जीवन के १६-१७ वर्ष की अवस्था में आया था। कई कविताएं लिखी बालक ने उस समय। मेरी दीदी कें बच्चों मे प्रमुख विशेषता ये है कि ये लोग अपनी पहली कविता तब लिखते हैं जब घर छोड़ के दूसरे शहर में जाते हैं :) तो विपुल ने भी पहली कविता लिखी
(विपुल और मै)
पूरे कर लें सबके सपने, हम से दूर हुए सब अपने

खैर वो सारी कविताएं तो वो अपने साथ ही ले गया लेकिन आज एक फाईल में उसकी यह व्यंग्य कविता मिल गई, तो मन हुआ कि आप सब के साथ बाँट ली जाये। तो लीजिये पढ़िये





हमें गर्व है कि आप नेता हमारे हैं,
आप जैसे लोग आदर्श हमारे हैं।

कहीं हवाला का बवाला कहीं तोपों का घोटाला,
किसी ने तो जानवरों का चारा ही खा डाला।
हैं अरबों मगर तन पे धोती कुरता है डाला,
ये भरते हैं झोली अपनी, निकाल के देश का दीवाला
प्रजातंत्र को इन्होने, राजतंत्र बना डाला,
खुद हटे तो गद्दी पत्नी को बिठा डाला।
शिक्षा मंत्री को शिक्षा का कोई ज्ञान नही है,
रक्षा मंत्री के शरीर में जैसे जान नही है।
स्वास्थ्य मंत्री खुद अपने स्वास्थ्य से परेशान हैं,
बाकी मंत्रियों का करने लायक नही गुणगान है।
आप ही ने द हमें विश्व में एक नई पहचान है,
भ्रष्टाचार मे अव्वल हमारा भारत देश महान है।
अनफॉर्च्यूनेटली ये दुर्भाग्य हमारा है,
कि आप पर ही देश का दारोमदार सारा है।

कहते हैं विद्वान ये जनता का दोष सारा है,
ना जाने क्यों इन्हें भ्रष्ट नेता ही प्यारा है।
निश्चय ही हमारे पास विकल्प कई सारे हैं,
पर क्या करें यहाँ रंगे सियार सारे हैं।
इसीलिये देते हैं वोट उन्हे जो भ्रष्ट नजदीक हमारे हैं।

यदि आप बनना नेता चाहते हैं,
तो हम आपको इसके कायदे कानून बताते हैं।
आपका अपना नही कोई उसूल होना चाहिये,
नेतागिरी का ये पहला रूल होना चाहिये।
जब ज़रूरत हो तो रोना और मुस्कुराना चाहिये,
दूसरे नियम में हर नेता को एक अभिनेता होना चाहिये।
लोक कल्याण के लिये हमेशा आगे आना चाहिये,
तीसरे नियम में लोगो के लिये जेल जाना चाहिये।
चौथे नियम में भी माहिर होना चाहिये,
रंग बदलने में गिरगिट को मात देना चाहिये।
पाँचवे नियम का भी पालन करना बहुत ज़रूरी है,
खाई हुई थाली में छेद करना नेता की मजबूरी है।
पर इतने से ही आप नेता नही बनते हैं
जब तक कि छठी शर्त को आप पूरा नही करते हैं।
नेता की आवाज़ का हाई सॉउण्ड होना चाहिये,
उसका जबर्दस्त क्रिमिनल बैक ग्राउण्ड होना चाहिये।
इसके अलावा भी अपनाने पड़ते हथकण्डे बहुत सारे हैं,
कुछ तो इसके लिये रहते जिंदगी भर कुँवारे हैं।
अब यदि आप में विद्वमान ये गुण सारे हैं,
तो आप भविष्य के सफल नेता हमारे हैं।

11 comments:

Unknown said...

bahut badiya ji

पंकज सुबीर said...

चलिये आपने कम से कम आज तो एक हास्‍य कविता लगाई । ये सच है कि आपके ब्‍लाग पर भीगी बयारें ही अधिक चलती हैं । मगर ये भी सच है कि आपके ब्‍लाग पर अच्‍छी कवितायें भी मिलती हैं । राकेश जी पर आपको एक पोस्‍ट लगाना है याद रहे ।

डॉ .अनुराग said...

अच्छी लगी ये भोली सी कविता .....रहा आपके उदास होने का सवाल......हमारा आस पास हमारे बस में नही है ,ओर हमारी सम्वेंदना उसे कैसे देखती है ...यही नजरिया हमारी सोच बनाता है ...कुछ लोग किसी बड़ी बात को भी दिल पर नही लेते ओर कुछ लोग .....छोटी सी चीज़ में भी दुनिया समेट लेते है
पर याद रखो हँसी भी इस जीवन का ही हिस्सा है ,है ना

गौतम राजऋषि said...

...क्या बात है कवियत्री मौसी का कवी भांजा.
बहुत सुंदर.पूत के पांव पालने में

Manish Kumar said...

अच्छी तरह नेता बनने की अनिवार्यताओं को समेटा है विपुल ने। मज़ेदार लगा।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेटे विपुल को बधाई व शाबाशी और आप दोनोँ की तस्वीर बडी प्यारी है :)
-लावण्या

Udan Tashtari said...

ये हुई न बात हमारी कंचन की..नया रंग दिखा गई..क्या बात है!! हमें मालूम था तुम वैसी नहीं हो सिर्फ..बीच बीच में यह पुट लाती रह. अच्छा लगेगा हमें और सबको!!!

admin said...

आपका अपना नही कोई उसूल होना चाहिये,
नेतागिरी का ये पहला रूल होना चाहिये।

सही कहा आपने। असली नेता की यह पहला और श्रेष्‍ठतम गुण होता है। व्‍यंग्‍य में धार है, बधाई।

rakhshanda said...

बिल्कुल नया अंदाज़ कंचन जी, और इतने प्यारे अंदाज़ से आपने अपनी बात राखी है की आपकी मासूमियत पर प्यार आता है...

रविकांत पाण्डेय said...

कंचन जी, जीवन के सभी रंगों का अपना महत्त्व है पर ये जो भींगी बयारें हैं इनका असर देर तक कायम रहता है। व्यंग्य कविता पसंद आई। और ये अच्छी बात है कि आपके आसपास काव्यप्रेमी मौजूद हैं। आपकी बदौलत हमें उनकी कृतियों से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा।

Anonymous said...

बढिया कीटाणु हैं। खाद-पानी मिलता रहे।