Monday, January 21, 2008

पद्मश्री श्री के०पी० सक्सेना का फलीभूत आशीर्वाद

थोड़ी सी खुशी मिली है मुझे तो मुझे लग रहा है कि आप सब से बाँटी जाये..... खुशी ये है कि यूँ मैं शायद तब से कविता बनाती हूँ जब ये समझ ही नही थी कि ये कविता बन रही है....! खुद ही खेलते हुए गुनगुनाया करती थी, १९८२ में ६ साल की उम्र में जब बड़ी दीदी की शादी की तैयारियाँ हो रही थी और मै भी मगन थी उन्ही कल्पनाओं में तब उसी तरह गुनगुना ही रही थी कि....

मत रो दीदी, मत रो, दीदी जा ससुराल,
अम्मा भी छूँटेंगी, बाबू जी छूटेंगे, छूटेगा सारा परिवार,
दीदी जा ससुराल,
सास मिलेंगी, ससुर मिलेंगे, मिलेगा नया संसार,
दीदी जा ससुराल....

अपने में मगन जब मैने सिर उठाया तो देखा कि मेरी चारपाई के गिर्द खड़े भईया, अम्मा और बाबू जी सब बड़े ध्यान से मुझे देखत हुए मुस्कुरा रहे हैं..... तब मुझे पता चला कि ये कोई अनोखी चीज है जिससे घर में सब खुश होते है..और अम्मा ने मुझ ककहरा से थोड़ा ऊपर उठी लड़की से कहा कि इसे नोट कर लो....!

तो लिखती तो मैं तब से हूँ, लेकिन जाने क्यों कभी कोई रचना प्रकाशित नही होती..... कादम्बिनी, दैनिक जागरण, वनिता, सरिता सब जगह से कविताएं वापस ही गई.. खैर कुछ कमी होती होगी तभी आ जाती होंगी ये सोच कर मैने अब कहीं भी कुछ भेजना ही बंद कर दिया..!

इसी बीच चैटिंग और ई-मेल मित्रता को टाईमपास समझने वाली मैने जाने क्या सोच कर आरकुट पर अपना खाता खोल लिया और वहीं मिले मनीष जी, जिन्होने मुझे वो दुनिया दिखाई जहाँ मैं सब से अधिक संतुष्ट महसूस करती हूँ....! और सिलसिला बढ़ निकला...!

तो मेरी खुशी कि कहानी शुरू होती है अब.... ! जब पिछली ३० सितंबर को एक कार्यालय के निजी समरोह में मुझे सम्मानित करने के लिये बुलाया गया और जिनके द्वारा मुझे स्मृति चिह्न मिलना था वो थे पद्मश्री श्री के०पी० सक्सेना.... मेरे लिये बहुत बड़ी अनुभूति थी कि मैं उनसे देखूँगी......! दिन की शुरुआत तो बड़ी बुरी हुई थी तो मुझे कार्यालय से छुट्टी लेनी पड़ी..किसी तरह नियत स्थान पर लेट लतीफ पहुँची तो कार्यक्रम शुरू हो चुका था..! मैं चुपचाप अपनी सीट पर बैठ गई...और मुग्ध हो कर सक्सेना जी को सुनने लगी..! अपने ढेरों अनुभव हम सब से बँटाने के बाद उन्होने कहा कि आप सब अगर कुछ पूँछना चाहें तो पूँछ लें..! लोगो ने अपने प्रश्न शूरू किये और मैने सरस्वती मंत्र कि ऐसी शख्सियत से बात करने की हिम्मत जुटा सकूँ...और सारा साहस जोड़ कर मैने पहला शब्द कहा "सर"
तो जवाब मिला "आप मुझे या तो श्रीमान कहें या चाचा जी ! सर शब्द का प्रयोग न करें।"



लो अब क्या खाक बोल पाऊँगी मै, फिर भी खिसिया के अपनी बात शुरू की...." आज के दौर में नए कवि और लेखक कहाँ अपना स्थान बना पाएंगे? आपका समय था तब दिसंबर की सर्दी में लोग पूरी रात मधुशाला और नीरज़ को ठिठुरते हुए सुन लेते थे और हमारे समय में लोग कवि सम्मेलन टी०वी० पर आता हो तो भी चट से चैनेल चेंज कर देते हैं...ऐसे समय में हम जैसे लोग जिन्हे भूल से कविता करने की दीवानगी हो वो अपनी ऊर्जा कहाँ खपाएं.....!"
पहले शब्द ने जो छवि बिगाड़ी थी, लगा कि थोड़ा सा उससे निकली हूँ...! उन्होने बड़ी ममतामयी दृष्टि मुझ पर डाली और पूँछा

"कभी अपनी कविता भेजी है कहीं"

"हूँ...पाँच बार भेज चुकी हूँ, हर बार वापस आ जाती है"

"मेरी कहानी २० बार वापस आई थी और तुम ५ बार में ही हार मान गई। फिर से अपनी कविताएं भेजो और मेरा आशीर्वाद है कि जब मैं अगले ३० सितंबर को तुम से मिलूँगा तो ५-6 पत्रिकाओं में तुम्हारी प्रकाशित हो चुकी होंगी। ये मेरा आशीर्वाद है़।" मैं चित्रलखित सी उन्हे देखती रही मेरी आँखों में आँसू आ रहे थे...मै धन्यवाद ही बोल सकी...!





उसके बाद अब तक सक्सेना जी से बात तो नही हुई लेकिन मैं एक नए उत्साह के साथ कविताएं फिर से भेजने का उपक्रम किया और ५ जनवरी,२००८ को मुझे सीनियर मीडिया पत्रिका से मेल आया कि मेरी कविता प्रकाशित हो रही है...!

छोटी ही सही लेकिन मेरे लिये बहुत बड़ी खुशी की बात थी ये..!ये मेरा बचपन का स्वप्न था..सक्सेना जी को फोन तब से मिला रही हूँ परंतु वो मिल नही पा रहें हैं....! मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से उन्हे धन्यवाद देना चाहूँगी और पूरा का पूरा श्रेय उनके आशीर्वाद को दूँगी।


नोटः बहुत देर से कोशिश कर रही हूँ स्कैन्ड कविता लगाने की लेकिन ११.३ एम० बी० की होने के कारण अटैच्ड नही हो रही है..विकास जी से परामर्श ले कर फिर संपादित कर दूँगी..फिलहाल आप इतना ही बाँटिये..!

11 comments:

annapurna said...

बहुत भावुकता से लिखा आपने। अच्छा लगा।

के पी सक्सेना के हम बहुत बड़े पंखे (फैन) है। उनका आशीर्वाद ज़रूर फलेगा।

शुभकामनाएं !

सस्नेह
अन्नपूर्णा

Abhishek Ojha said...

कविता छपने की बधाई !

anuradha srivastav said...

बधाई ......कविता भी पढवाती तो ज्यादा खुशी होती.

डॉ० अनिल चड्डा said...

कचन जी,

जिस दौर से आप गुजरी हैं, मैं भी उसी दौर से गुजर चुका हूं - सालों-साल ।पर मैंने हिम्मत नहीं हारी थी । अंतत: मुझे सफलता मिली और मेरी कविताएँ सरिता/मुक्ता इत्यादि में छपीं । पर अंत में पाया कि साहित्य की ये दुनिया राजनीति से भरपूर है । इसलिये मैंने छपने के लिये भेजना बंद कर दिया । मैं समझता हूं कविता मैं अपनी संतुष्टि के लिये लिखता हूँ । मुझे अंतत: ब्लाग का माधय्म मिल गया ।अब जो कुछ भी लिखता हूँ, ब्लाग पर पोस्ट कर देता हूँ । यदि आप जैसे किसी पढ़ने वाले को पसंद आये तो मन को सुकुन मिल जाता है ।

गरिमा said...

लो दीदी आपने बुलाया और मै चली आयी :)

कविता छपने के लिये ले लो ढ़ेरो बधाई
और बताओ कब खिलाओगी मिठाई :P

दीदी आजकल याहू पर जाना बन्द है, जी मेल आई डी है "ए वी ग्रुप @ जीमेल. कॉम "

अगर आप वहॉ आती होगी तो फिर मिलते हैं :)

Yunus Khan said...

मुबारक हो । के पी जी काफी वृद्ध लगे । बहुत दिनों बाद उनकी तस्‍वीर दिखी ।

पारुल "पुखराज" said...

bahut bahut badhaayi...hamari KANCHAN ko...kavita ka intzaar rahegaa.......

Unknown said...

बधाई हो कंचन जी। ऐसा हर किसी के साथ होता है। रचनायें वापस आती हैं, इसका मतलब यह कतई नहीं कि वह रचना बेकार है, बल्कि हर अखबार या पत्रिका का अपना नेचर होता है। रचनायें चुनने का एक तरीका होता है। मैं एक टिप्स देना चाहूंगा जिसे अपनाकर मैं अपनी ढेर सारी रचनायें अच्छे पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करवा सका। ऐसा करें कि जिस पत्र या पत्रिका में आप रचना भेजना चाह रही हैं पहले उसकी रचनाओं को कुछ अंकों तक पढ़ें। आपको खुद ही पता चल जाएगा कि उसमें किस नेचर की रचनायें छपती हैं। इस तरह आप अपनी रचनाओं को वर्गीकृत कर लें और पत्र-पत्रिका के नेचर के हिसाब से प्रकाशनार्थ प्रेषित करें। मुझे उम्मीद है आपकी रचनायें अवश्य प्रकाशित होंगी। वह मैं इसलिये भी कह रहा हूं कि मैं खुद आपके लेखन से काफी प्रभावित हुआ। सच कहूं तो शुरू में मैं समझता था कि आप कोई बहुत ही वरिष्ठ लेखक होंगी। लेकिन इस उम्र में आप इतना अच्छा लिख रहीं तो यकीनन बधाई की पात्र हैं। एक बार फिर मुबारकबाद। केपी सक्सेना जी के साथ आपको देखकर बेहद अच्छा लगा।

Manish Kumar said...

बहुत बहुत बधाई !
काफी दिनों से इंतज़ार था इस वृत्तांत का। सीनियर इंडिया का वो अंक तो मेरे हाथ नहीं लग सका, पर इसने जरूर एक टॉनिक का काम किया है आपके लिए. आपका लेखन जैसा है उस हिसाब से ऍसी कई उपलब्धियाँ आपका इंतज़ार कर रहीं हैं। रवीन्द्र जी की सलाह को ध्यान में रखें और सतत लेखन करती रहें यहीं मेरी कामना है।

कंचन सिंह चौहान said...

अन्नपूर्णा जी एवं ओझा जी बहुत बहुत धन्यवाद

अनुराधा जी एवं पारुल जी कविता तो मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित ही हो चुकी है जिनके लिंक निम्नवत है... जब तक स्कैन्ड कविता नही आती तब तक इसी से काम चलाएं


http://kanchanc.blogspot.com/2007/06/blog-post_18.html
http://kanchanc.blogspot.com/2007/06/blog-post_19.html

अनिल जी आपका ब्लॉग हम लोगो के लिये अंजान नही है.... अक्सर वहाँ आना जाना होता रहता है...भले कोई सबूत न छोड़ा जाये।

मेरी प्यारी गरिमा तुम कहाँ खो गई थी....! मैने तुम्हे बहुत ढूढ़ा..और चलो खोज भी लिया!

हाँ यूनुस जी जिस तरह से उन्होने अपनी उम्र ७५ के लगभग बताई उसे देखते हुए कुछ अधिक वृद्ध अवश्य लग रहे है..लेकिन ५ जनवरी से आज २५ तक मैं उन्हें ढूढ़ नही पाई हूँ..तो समझ लीजिये कि कितनी ऊर्जा से काम कर रहे हैं अब तक।

रवीन्द्र जी आपके सुझाव पर ध्यान दूँगी..लेकिन पहले बाताया होता कि आपने क्या गलतफहमी पाल रखी है तो पोस्ट न पब्लिश करती भ्रम तो बरकार रहता.... ):p

मनीष जी पोस्ट आते आते बहुत सी बातें रह गईं या संपादित कर के पेश की गई, लेकिन सम्मानित होने के बाद आपको जो पहला मेल भेजा था वो बहुत ही natural था। इन सब चीजों में आपका मानसिक सहयोग बहुत काम आया...बहुत बहुत धन्यवाद

राकेश जैन said...

is me jo bhi likha wo mene nahi padha....kyun ki...meri aarzu apki tasveer dekhne ki thi jo puri hui..... main us chetna ka aavaran dekhna chahta tha jiske andar itni praval laun (Jyoti) hai....