Tuesday, September 11, 2007

संदीप की पुण्य तिथि पर

आज तुम्हारी पुण्यतिथि पर मैं अपनी डायरी की जगह इस झरोंखे पर तुमसे बात कर रही हूँ क्योंकि मुझे अभिव्यक्ति के लिये एक और कोना मिल गया है, जहाँ मैने कुछ अपने भी बनाये हैं, और चाहती हूँ कि तुम भी उनसे मिलो!

ये गाना सुनो

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कुछ याद आया... नहीं तुम्हे कहाँ कुछ याद रहता है.... तुम तो बस आपको तो याद होगा ना... कह कर छूट जाते हो..लेकिन मैं...मुझे तो सब याद रहता है..... हाँ मुझे दिखने लगा है वो लॉन जहाँ मैं तुम्हारी तरफ पीठ कर के नाराज़ हो कर बैठी हूँ...... आज फिर झगड़ा.... कितना समझाया, ये सब मत किया करो...लेकिन सुना कभी.... हर जगह से शिकायत....और मेरे सामने आते ही ऐसे सीधे बन जाते हो जैसे कुछ जानते ही नही जैसे दुनिया का सबसे भोला भाला व्यक्ति.....नहीं करनी मुझे तुमसे बात...! और तुम

"मौसी...मौसी इधर देखिये तो, मेरी गलती नही थी" कह कर बुला रहे हो।
"वो तो कभी नही होती"

"इस बार सच में नही थी।"

"चलो आज एक बात clear हुई ना..कि पिछली बार थी, पिछली बार भी तो तुम यही कह रहे थे।"

"च् आप तो बातों में फँसा लेती हैं।....... मौसी.... अब नही होगी ऐसी गलती....pl.....इस बार माफ कर
दीजिये"

और मैं चुप, जबकि मुझे भी पता है कि अभी तुम मना लोगे, जब तक बुलवा नही लोगे तब तक हिलोगे नही, लेकिन अपना विरोध भी तो मुझे दर्ज़ करना है....! और तब तक पीछे से मेज के तबले के साथ आवाज आती है....

"आवारा हवा का झोंका हूँ, आ निकला हूँ, पल दो पल के लिये,
तुम आज तो पत्थर बरसा लो, कल रोओगे मुझ पागल के लिये।"

मैं अब भी तटस्थ, मन में सोचते हुए, कि नया नाटक......!

और फिर आवाज आवाज आती है....

" दौलत ना कोई ताज़महल छोड़ जाएंगे, हम अपनी यादगार गज़ल छोड़ जाएंगे,
तुम आज चाहे जितनी हमरी हँसी उड़ाओ, रोता हुआ लेकिन तुम्हे कल छोड़ जाएंगे"

और तुम सच में मुझे रोता हुआ छोड़ गए...मुझसे बदला ले रहे हो तुम मेरी नाराज़गी से इतने नाराज़
और फिर आवाज आती है,


“पहचान अपनी दूर तलक छोड़ जाऊँगा,
खामोशियों की मौत गँवारा नही मुझे, शीशा हूँ टूट कर भी खनक छोड़ जाऊँगा।“

हाँ सच कहा तुम्हारे टूटने की खनक बहुत दूर तक गई और मुझे तो अपने साथ तोड़ ही गई!

और फिर मुस्कुराते हुए आती है तुम्हारी आवाज़

“फूल के साथ साथ गुलशन में सोचता हूँ बबूल भी होंगे,
क्या हुआ उसने बेवफाई की, उसके अपने उसूल भी होंगे।“

धत् हँसी है कि रुक ही नही रही, इस दुष्टता पर, लाख चाहने पर भी होंठ पर आई जा रही है, और तुम्हें तो बस शायद इसी का इंतज़ार था, पीछे से उठ के सीधे मेरे बगल में...

" एक बात पता है,
ये आइने जो तुम्हे कम पसंद करते हैं,
इनको मालुम है, तुम्हे हम पसंद करते हैं।"

अब भला किसे हँसी ना आ जायेगी वो व्यक्ति जो कभी बड़ा भाई बन जाता है, कभी बेटा और कभी सबसे अच्छा दोस्त वो कुछ भी कर के आया हो बाहर मेरे पास तो यही रूप लेकर आया है, और दुनियाँ भर का दुलार लियेमुँह से निकलता है

" अच्छा हटो यहाँ से तुम मुझे आँसू के शिवा दे दे भी क्या सकते हो?"

और तुम पूरी अदा के साथ जवाब देते हो

"खुशबू नही सही रंगत न सही, फिर भी है वफा का नज़राना,
सेहरा से चुरा के लाया हूँ, दो फूल तेरे आँचल के लिये।"

और मैं उसी सेहरा के फूल से खुश थी, लेकिन कहाँ...वो फूल भी तो छिन गया मुझसे.....!

"जिंदगी भर के लिये रूठ के जाने वाले मैं अभी तक तेरी तस्वीर लिये बैठी हूँ।

तुम बहुत बुरे थे, लेकिन मैं अब तक तुम्हे नही भूल पाई, और प्रार्थना करती हूँ ईश्वर से कि वो तुम्हे मेरी नज़र से देखे, नाराज़ हो, बिगड़े, लेकिन अंत में अपना सारा स्नेह देते हुए तुम्हें क्षमा कर दे.....!

मेरा आशीर्वाद

16 comments:

Rachna Singh said...

agar yae satya haen toh tum dhanay ho
agar yae kahani hae toh tum bahut achcha likhtee
kya likhu behan meri man bhar aaya

अनिल रघुराज said...

आपकी बातों ने कुछ अपने हमेशा-हमेशा के लिए बिछुड़ों की याद दिला दी। याद भी ऐसी कि दिल को गीली कर गई और फिर उसे पूरी ताकत से ऐसा निचोड़ा कि आंखों से आंसू निकल आए। ईश्वर संदीप की आत्मा को शांति दे और मेरे अपनो को भी।

Udan Tashtari said...

आपने तो दफ्तर में रुला दिया.

सच, अपनों के बिछुडने का गम...ईश्वर संदीप की आत्मा को शांति दे और उस पर अपना सारा प्यार लुटा दे, यही कामना है.

Manish Kumar said...

बड़ी भावभीनी श्रृद्धांजलि दी है आपने अपने मित्र के लिए। ईश्वर आपके मन में स्नेह की ये ज्योत प्रज्जवलित रखे।

कंचन सिंह चौहान said...

आप सब का धन्यवाद जो मेरी भावनाओ में मेरे साथ बहे और मेरे साथ संदीप को श्रद्धांजलि दी! और क्या कहूँ ? बस यूँ ही मेरे सुख दुःख में साथ रहियेगा हौंसला मिलता है।

Sharma ,Amit said...

बहुत ही भाव भीनी श्रृद्धांजलि दी आप ने ! चाहे कोई भी रूप हो, अपने से दूर जाता अपना हमेशा ही दुःख देकर ही जाता है ! हमारी भी श्रृद्धांजलि संदीप को !

Sharma ,Amit said...

बहुत ही भाव भीनी श्रृद्धांजलि दी आप ने ! चाहे कोई भी रूप हो, अपने से दूर जाता अपना हमेशा ही दुःख देकर ही जाता है ! हमारी भी श्रृद्धांजलि संदीप को !

राज यादव said...

अपनी वफ़ा के साथ ही ,उनके जफ़ा का ज़िक्र।
कांटों से लिख रहे है ,कली पर किसी का नाम। ।

आशु निकल आये !!!! कितना दरद है ...भगवान संदीप को शांति दे ।

Unknown said...

किसी को याद करते वक्त भावुक हो जाना लाजिमी है। जो चला गया वह कभी वापस तो नहीं आ सकता लेकिन उससे जुड़ी यादें, उससे जुड़ी बातें हमें हर पल उसकी याद दिलाती रहती हैं। संदीप को याद करने का आपका यह शायराना अंदाज बेहद पसंद आया।

aarsee said...

यही तो एक विषय है जहाँ सभी मौन हो जाते हैं।और जब चुप्पी टूटती है तो अश्रुबाँध भी टूट जाता है।

ज़िंदगी मैं भी मुसाफ़िर हूँ तेरी कश्ती का
तू जहाँ मुझसे कहेगी उतर जाऊँगा

खैर ! दर्शन तो सभी जानते हैं-पर अभी क्या काम आयेगा। आदमी मजबूत है,पर इतना भी नहीं।

कंचन सिंह चौहान said...

अमित जी, राजा जी,रवीन्द्र जी और प्रभाकर जी मैं क्या कहूँ, फिर से यही कहूँगी कि पिछले ५ सालों से इस दिन मंदिर जाती थी, अनाथालय जाती थी और पता नही क्या क्या करती थी लेकिन संतुष्टि नही मिलती थी, लेकिन इस बार जब मेरी प्रार्थना में आप भी शामिल हुए तो बहुत संतुष्टि मिली।

राजा जी ज़िक्र तो सिर्फ वफाओं का ही हुआ है, चाहे अपनी, चाहे उनकी। हाँ कलियों की दास्ताँ काँटों से लिखने जैसा तो हो ही जाता है ये प्रकरण।

रवीन्द्र जी कुछ लोग आँखों से ओझल जरूर हो जाते हैं, लेकिन जिंदगी से कभी नही जाते, संदीप मेरे लिये उनमें ही है। मैं उसे वापस बुलाने की तो तब सोंचूँ जब मन को ये समझा सकूँ कि वो चला गया है।

प्रभाकर जी मेरी भावना को मेरे स्तर तक समझने के लिये धन्यवाद.... मैं मजबूत हूँ, पर इतनी भी नही।

पंकज सुबीर said...

कंचन जी आपकी टिप्‍पणी मिली आप का स्‍वागत है कक्षा में आपका पोस्‍ट भी पढ़ा आपने संदीप जी के बारे में भवभीनी बात कही है । दिल को छू लेने वाली बात है । मेरे भी एक कवि मित्र जो हर साल मेरे जन्‍मदिन पर सबसे पेहले हार तथा मिठाई के साथ्‍ज्ञ मुझे बधाई देते थे उन्‍होने पिछले दिनों आत्‍महत्‍या कर ली उनके बगैर मेरा जन्‍मदिन 11 अक्‍टूबर कैसा होगा में कल्‍पना भी नहीं कर सकता ।

36solutions said...

धन्‍यवाद कंजन जी,

सुन्‍दर ब्‍लाग, दिल को छू लेने वाला संस्‍मरण

महावीर said...

मर्म को छू गई ये दास्ताने-गम!
बहुत ही अच्छा लिखा है।
पढ़ कर शायद कोई पत्थर-दिल ही होगा जिसकी आंखें नम ना हो जाएं।
संदीप का मस्तिष्क में एक चित्र सा खिंच गया है। दो अशाअर याद आगएः
आज अश्कों का तार टूट गया
रिश्ता-ए-इंतज़ार टूट गया
रोये रह रह कर हिचकियां लेकर
साज़े-ग़म बार बार टूट गया।

ईश्वर संदीप को शांति दे!

मीनाक्षी said...

ओह...आपकी यही पोस्ट तो दिल को उदासी के गहरे सागर में डुबो गई और बस आँसू बह निकले. इसी कारण हमसे आपका लिंक खो गया था...
दिल में गहरे तक उतर जाने वाली लेखनी ... शुभकामनाएँ

Unknown said...

मुझको उम्र भर नफरत सी रही अश्कों से
मेरे ख्वाबों को तुम अश्कों में भिगोते क्यूँ हो
जो मेरी तरहा जिया करते हैं कब मरते हैं
थक गया हूँ, मुझे सो लेने दो रोते क्यूँ हो"