पेड़ों के काधों पे झुकी हुई बदली।
अनछुई छुअन से सिहर गई पगली।।
तन कर खड़े हैं तरू, पहल पहले वो करे,
बदली ने झुक के कहा, अहं भला क्या करें ?
तुम से मिले, मिल के झुके नैन अपने,
झुकना तो सीख लिया, उसी दिन से हमने,
ये लो मैं झुकी पिया, शर्त धरो अगली।
अनछुई छुअन से सिहर गई पगली।।
तेरे लिए घिरी पिया, तेरे लिए बरसी,
तुझे देख हरसी पिया, तेरे लिए तरसी।
तेरे पीत-पात रूपी गात नही देख सकी,
सरिता,सर,सागर भरे, इतना आँख बरसी,
तुझे देख मैं जो हँसी, नाम मिला बिजली।
अनछुई छुअन से सिहर गई पगली।।
11 comments:
very nice piece of poetry
बहुत ही नाजुक कविता है...
@Vijendra S. Vij बहुत बहुत धन्यवाद विजेन्द्र जी!
@बेनाम प्रोत्साहित करने वाले का नाम भी पता होता तो और अच्छा लगता, फिर भी धन्यवाद
समर्पण की भावना को अभिव्यक्ती देती सुन्दर रचना.
आपकी काव्यात्मक सोच की दाद देनी पड़ेगी। इस कविता की ये पंक्तियाँ खास तौर पर पसंद आयीं ।
तेरे लिए घिरी पिया, तेरे लिए बरसी,
तुझे देख हरसी पिया, तेरे लिए तरसी।
तेरे पीत-पात रूपी गात नही देख सकी,
सरिता,सर,सागर भरे, इतना आँख बरसी,
तुझे देख मैं जो हँसी, नाम मिला बिजली।
अनछुई छुअन से सिहर गई पगली।।
बहुत सुंदर और कोमल रचना है। प्रभावपूर्ण सुंदर भावों से भरी कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
@विनोद पाराशर कविता के भावों को इतनी खूबसूरती के साथ समझने के लिये धन्यवाद
@manish ji n महावीर जी! आप दोनो की टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहती है मुझे। धन्यवाद !
Sunder Kavita...
धन्यवाद अमित जी !
vaise mere liye likhna itna mushkil nahi hai. lekin tumhare liye ...... bas shabd hi nahi mil rahe.....
Mujhko tha ek guman ki mujhme hai ek adaa
Dekhi teri adaa to mujhe sochna pada.
vaise mere liye likhna itna mushkil nahi hai. lekin tumhare liye ...... bas shabd hi nahi mil rahe.....
Mujhko tha ek guman ki mujhme hai ek adaa
Dekhi teri adaa to mujhe sochna pada.
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