Wednesday, May 13, 2015

अम्मा की अवधी कविता 'अवधि'



अम्मा की शादी 1953 में हुई थी. अम्मा उस समय अध्यापिका थीं और बाबूजी विद्यार्थी. शादी की प्रक्रिया कम रोचक नहीं. लेकिन फ़िलहाल बात दूसरी. वह यह कि शादी के 1 या दो महीने बाद अम्मा मायके आ गयीं और उसके एक या दो महीने बाद  उन्हें फिर से ससुराल जाना था. उस समय ससुराल वापस जाना कितना कष्टप्रद था, उस पीड़ा को अम्मा ने जिस तरह छन्दबद्ध किया वह देखिये:

अवधि के दिन अब निकट ही आय रहे,
सोचि, सोचि हरदम ही जिया घबरात है.
एक और चिंता बाटे, सबसे अलग होबे,
ओसे ज्यादा चिंता ओहि जेल की ही लाग है.
आदमी को कौन कहे, धूप हवा नाहिं मिले,
एक बंद कोठरी ही दुनियाँ हमार है.
सोचि-सोचि काम करी सबका डेरात रही,
तौन्यो पे लाग रहत एक-एक दोष है.
ईश्वर से बिनती हमार दिन रात यही,
छूटि जात वह जेल है.

1 comment:

PD said...

करुणामय!!