लगभग १० माह..... और गवाक्ष के कपाट खुले ही नही.....इस वर्ष की शुरुआत के बाद चौथाई से अधिक वर्ष भी बीत गया.... बस इसलिये कि खिड़कियाँ खोलूँ, तो शायद कुछ ताज़ी हवा मिले, कुछ राहत हो दम घुटते माहौल से....
जाते हुए चैत को विदा देते हुए....
चुवत अन्हरवे अजोर ओ रामा, चईत महिनवा,
अमवा मउरि गईलें, नेहिया बउरि गईले,
देहिया टुटेला पोरे पोर हो रामा,
चईत महिनवा...
चुवत अन्हरवे अजोर......
उड़ि उड़ि मनवा, छुएला असमनवा,
बन्हला पिरितिया के डोर हो रामा,
चईत महिनवा...
चुवत अन्हरवे अजोर......
अँखिया न फर धरे, निंदिया उचटि पड़े,
पगिया भईल लरकोर हो रामा,
चईत महिनवा...
जाते हुए चैत को विदा देते हुए....
चुवत अन्हरवे अजोर ओ रामा, चईत महिनवा,
अमवा मउरि गईलें, नेहिया बउरि गईले,
देहिया टुटेला पोरे पोर हो रामा,
चईत महिनवा...
चुवत अन्हरवे अजोर......
उड़ि उड़ि मनवा, छुएला असमनवा,
बन्हला पिरितिया के डोर हो रामा,
चईत महिनवा...
चुवत अन्हरवे अजोर......
अँखिया न फर धरे, निंदिया उचटि पड़े,
पगिया भईल लरकोर हो रामा,
चईत महिनवा...
6 comments:
ek doosri duniya me .....
क्या बात है। वाह !
इत्ते दिन तक लिखा नहीं! ताज्जुब!
अब लिखा अच्छा है। इतना भी अंतराल अच्छा नहीं। :)
Chaiti ki khoobsoorat bandish aur Aapka aagman Nav varsh men daunon hi shubh sanket hain . yun hi nirantarta banaae rakhiyega .
ज्यादा दिनों का अंतराल कलम पकड़ने ही नहीं देता। चाह चाह कर भी, उमग-उमग कर भी ठहराव टूटता ही नहीं।
भुक्तभोगी हूँ। ’तेज चलूँगा यदि सुस्ता लूँ थोड़ा’-यह सोचकर रुका था कुछ दिन, पर बाद में तो पाँव बढ़ते ही नहीं थे।
संगीत शायद गति दे! आभार।
I came to this blog and stayed here for hours. Kanchan you are so good I felt motivated by your wriitng. please write more.
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