खाना जल्दी से बना के रख देना है। वर्ना किचेन में ही आ के बैठ जायेगा। और एक बार बात शुरू होगी तो खतम ही नही होगी। फिर दीदी गुस्सा होंगी। किचेन में ही बैठकी जम जाती है तुम्हारी।
वो खाना बना कर बाहर बराम्दे मे ऐसी जगह बैठी है, जहाँ से सड़क के मोड़ की शुरुआत दिखाई देती है। कोई आता है, तो वहीं से दिख जाता है।
ऊपर से सब के साथ बातचीत में मशगूल दिखती वो अंदर से वहीं है, जहाँ मोड़ शुरू होता है।
इंतज़ार अब गुस्से में बदल गया है। वो अपनी डायरी ले कर ज़ीने पर बैठ जाती है। कुछ लिखने
" कोई दूर जाये, तो क्या कीजिये,
ना पहलू में आये, तो क्या कीजिये...!!"
गेट पर कुछ हलचल है शायद वो आ गया। वो कान उटेर लेती है। हुह, वो क्यों आयेगा ? राहुल है। दीदी आवाज़ देती हैं। राहुल आया है। वो अपनी डायरी के साथ, अनमने मन से बैठक में आ जाती है। राहुल पूछता है "डायरी में क्या है?"
वो उसी अनमने मन से डायरी बढ़ा देती है।
"अरे कितना अच्छा लिखती है आप ? कैसे लिख लेती है इतना अच्छा ? किसके लिये लिखा है ?"
"किसी के लिये नही। बस लिख दिया। सहेलियों के अनुभव हैं।"
"अच्छा ?? कभी मेरी तरफ से भी लिखियेगा प्लीज़।"
"हम्म्म.. लिखूँगी। तुम अपने बारे में बताना। फिर लिखूँगी।"
" रेत की तरह बंद मुट्ठी से भींचने पर भी फिसल जाते हैं,
जान क्यों हम में वो जुम्बिश ही नही, हमसे रिश्ते ना संभल पाते है
ओहो, कितना अच्छी लाइन है, नोट कर लूँ... "
"कर लो"
गेट फिर खटकता है। काले शीशे के पार दिखता है कि वो आ गया। गुस्सा दोगुना,चौगुना हो गया है मन के अंदर। वो इग्नोर करना चाहती है उसे और ये भी शो करना चाहती है कि उसे कुछ फील ही नही हुआ, वो देर से आये या जल्दी ?
घर में घुसते ही क्लोज़ अप का प्रचार करती उसकी मुस्कान चमकती है। राहुल से वो हाथ मिलाता है। राहुल उससे कहता है " तुमने तो सब पहले से ही पढ़ा होगा यार। कितना अच्छा लिखती है ये ?"
वो बदले में उसकी तरफ देख कर मुस्कुराता है। लड़की का रुख राहुल की तरफ है। वो उसे जानबूझ कर ज्यादा तवज्जो देने लगी है। "नोट कर लिया तुमने?"
"जी..! और भी देख लूँ।"
" हाँ! हाँ! शौक से। घर ले जाना चाहो तो ले कर चले जाओ। नोट कर के वापस कर देना।"
" अरे नही नही मैं यही देखता हूँ
आज मन बेचैन बरा, क्या तुमने याद किया
अरे इस पर तो तुमने "यस" लिख दिया है" वो लड़के से पूछता है।
वो फिर मुस्कुरा कर उस की तरफ देखते हुए कहता है " हम्म्म..मुझे लगा कि मुझे ही याद कर के लिखा होगा इन्होने, तो मैने जवाब दे दिया 'यस' "
वो उसे इग्नोर करती हुई कहती है। "ये देखो, ये आज ही लिखी है
कोई दूर जाये तो क्या कीजिये,
ना पहलू में आये तो क्या कीजिये,
वो जिसके लिये दिल तड़फता रहे,
वो नज़रें चुराये तो क्या कीजिये।"
वो कुछ राहुल की तरफ खिसक जाती है। उसे पता है कि तीर जहाँ चलाया गया था, वहीं पहुँचा है। दोनो ही समझ रहे हैं कि दोनो क्या कर रहे हैं ? वो ऐसा इस लिये कर रही है कि उसे पता है कि अगले को ये अच्छा नही लग रहा और अगला समझ भी रहा है कि वो ऐसा बस इसीलिये कर रही है कि वो अपनी नाराज़गी इसी तरह जता रही है, फिर भी उसे अच्छा नही लग रहा।
वो घर में सब को वहीं बैठकी में इकट्ठा कर लेता है। सब उसे बहुत मानते हैं। फिर कहता है "चलो कुछ खेलते हैं।"
" हाँ हाँ भईया।" नेहा चिल्लाती है।
"क्या खेलेंगे ?" राहुल कहता है।
"कैचिंग फिंगर" वो सजेस्ट करता है।
" नही कैंचिंग फिंगर नही।" वो विरोध करती है।
"क्यों ?"
"नही ना।"
"अरे मौसी प्लीज़...!" बच्चे बोलते हैं।
" अरे दूसरा कोई गेम खेल लेते हैं ना..कैरम ??"
"नही मौसी, कैचिंग फिंगर..प्लीज़"
उफ् वोट उसकी तरफ ज्यादा पड़ रहे हैं। उसे पता है कि कैचिंग फिंगर गेम के बाद क्या होना है। वो अभी अपनी उँगली जानबूझ कर पकड़वा देगा, फिर उसे जो कहा जायेगा कर देगा और फिर जब उसे उँगली पकड़ने का मौका मिलेगा, तो चाहे वो जितना जतन कर ले, उसकी ही उँगली पकड़ी जायेगी और तब वो क्या करने को कहेगा, उसे ये भी पता है।
गेम शुरू। जैसा जैसा उसने सोचा था, वैसा वैसा होता जाता है। उसकी उँगली हाथ में आ गई है। हेऽऽऽऽऽऽऽऽऽ का शोर मच चुका है।
"हम्म्म्म...आप वो गाना गाईये..हमें तुमसे प्यार कितना।"
"नही, ये गाना तो नही गाऊँगी, दूसरा कोई बोलो।"
"अरे, यही गाना है। आपकी मर्जी से हो तो फिर कौन सा गेम?"
" मुझे याद नही है।"
"मैं याद दिला दूँगा, वैसे भी सेकंड स्टैंजा गाना है।"
"सेकंड स्टैंजा ??? वो तो बिलकुल नही याद।"
" हम याद दिला देंगे। आप शुरू तो करिये।"
" अरे गाती तो रहती हो, नौटंकी क्यों कर रही हो?" दीदी खीझ कर बोलती हैं।
वो शुरू करती है।
हमें तुमसे प्यार कितना,
ये हम नही जानते, मगर जी नही सकते तुम्हारे बिना!
वो आँखें बंद कर लेता है।
वो थोड़ा ठिठक कर दूसरा अंतरा शुरू करती है
तुम्हे कोई और देखे तो जलता है दिल
वो मुस्कुरा कर दोहराता है
तुम्हे कोई और देखे तो जलता है दिल
बड़ी मुश्किलों से संभलता है दिल,
वो साथ साथ गाता है,
वो मुस्कुरा कर चुप हो जाती है।
वो अकेले गाता रहता है
क्या क्या जतन करते हैं, तुम्हे क्या पता ऽऽऽ
ये दिल बेकरार कितना, ये हम नही जानते,
मगर जी नही सकते, तुम्हारे बिना।
वो साथ में फिर शुरू करती है। उसके हरा देने वाले इस अंदाज़ से वो कितनी खुश हो गई है। मेहफिल जमा है। सब एक दूसरे को जाने क्या क्या करने को कह रहे हैं। गुस्सा जाने कहाँ चला गया। मनाने का ये अंदाज़ किसी और के पास नही है।
दोपहर ढलने को है, मगर गर्मी की दोपहर शाम तक भी कहाँ ढलती है। वो चलने को होता है। वो आवाज़ देते हुए कहती है "शाम को आ जाना, तुम्हारा जनमदिन है।"
"मेरा जनम दिन ?"
"हम्म्म आ जाना।"
" वाह हमारा जनम दिन और हमें ही नही पता। कितने साल के हो जायेंगे हम"
" बीस"
"आप?"
"इक्कीस..क्या खो गया था, तुम्हारा । जो बड़े बेचैन थे।
" अरे वो... क्या बतायें? जिसके पास मिल जायेगा ना। उसे हम अबकी तो मारे बिना छोड़ेंगे नही। हम ये जानते हैं। बहुत गुस्सा आ रहा है। हमें जान से ज्यादा प्यारा सामान था वो।"
"अच्छा ऐसा क्या था"
" अब क्या बतायें ? अगर मिल जाता तो दिखाते भी
वो मुस्कुरा देती है, वो चला जाता है।
शाम को उसने चाट बनाई है। बैठकी के लोगों को बुला भेजा है दस पंद्रह लोगो के बीच एक टी पार्टी, उसने खुद अरेंज किया है सब। सबसे पहले उसने उसे टीका लगाया। फिर उसकी पसंदीदा मिठाई सोहनपापड़ी खिलायी। लड़के ने उसके पैर छू लिये। आँखों में कुछ पानी सा तैर गया।
"खूब खुश रहो। अपना लक्ष्य प्राप्त करो।" कहते हुए उसने गिफ्ट बढ़ा दिया।
" क्या है इसमें?"
"खोलो"
वो खोलता है। उसकी आँखें चमक जाती हैं।
" यही ढूँढ़ रहे थे, उस दिन ?"
"आपको कैसे मिला?"
" जिसने चुराया था, उसी से खरीदा।"
वो एक डायरी थी, जिसमें जन्म दिन का गिफ्ट पाने वाले ने, जन्म दिन का गिफ्ट देने वाले के ही बारे में लिख रखा था पूरी डायरी में। और एक एलबम जिसमें गिफ्ट देने वाली की गुम हो गई फोटुएं थीं।
वो अपनी चोरी पकड़े जाने पर शरमा जाता है। वो हँस के पूछती है, "चोरी की चीज चोरी में चली गई थी , तो इतना नाराज़ क्यों थे।"
वो झेंप जाता है। " अरे मौसी....!"
डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था " for kanchan mausi, V.V.I.P."
जाने कब का मिलना .. जाने कौन कौन सी बातें ... जाने कौन कौन सी नाराज़गी .. जाने कौन कौन सी खुशी दर्ज़ थी उस डायरी में। तब वो रिश्ता दो साल का ही था बस...!
बाद के पाँच सालों में और जाने क्या क्या लिखा गया होगा ? और अगर कभी किसी के हाथ पड़ी होगी, तो एक अपराधी की डायरी के नाम से जानी गई होगी।"
मैने बीसवें साल में उसका जनम दिन मनाना शुरू किया था....! वो खुद सिर्फ पाँच जनमदिन और मनाया पाया.... उस ठहरे पल को बीते आज ठीक चौदह साल हो गये...! मेरे हाथ है में पहले अंतरे की ये पंक्तियाँ...
हमें इंतज़ार कितना ये हम नही जानते,
मगर ............................................
जी तो रही ही हूँ...............
वो खाना बना कर बाहर बराम्दे मे ऐसी जगह बैठी है, जहाँ से सड़क के मोड़ की शुरुआत दिखाई देती है। कोई आता है, तो वहीं से दिख जाता है।
ऊपर से सब के साथ बातचीत में मशगूल दिखती वो अंदर से वहीं है, जहाँ मोड़ शुरू होता है।
इंतज़ार अब गुस्से में बदल गया है। वो अपनी डायरी ले कर ज़ीने पर बैठ जाती है। कुछ लिखने
" कोई दूर जाये, तो क्या कीजिये,
ना पहलू में आये, तो क्या कीजिये...!!"
गेट पर कुछ हलचल है शायद वो आ गया। वो कान उटेर लेती है। हुह, वो क्यों आयेगा ? राहुल है। दीदी आवाज़ देती हैं। राहुल आया है। वो अपनी डायरी के साथ, अनमने मन से बैठक में आ जाती है। राहुल पूछता है "डायरी में क्या है?"
वो उसी अनमने मन से डायरी बढ़ा देती है।
"अरे कितना अच्छा लिखती है आप ? कैसे लिख लेती है इतना अच्छा ? किसके लिये लिखा है ?"
"किसी के लिये नही। बस लिख दिया। सहेलियों के अनुभव हैं।"
"अच्छा ?? कभी मेरी तरफ से भी लिखियेगा प्लीज़।"
"हम्म्म.. लिखूँगी। तुम अपने बारे में बताना। फिर लिखूँगी।"
" रेत की तरह बंद मुट्ठी से भींचने पर भी फिसल जाते हैं,
जान क्यों हम में वो जुम्बिश ही नही, हमसे रिश्ते ना संभल पाते है
ओहो, कितना अच्छी लाइन है, नोट कर लूँ... "
"कर लो"
गेट फिर खटकता है। काले शीशे के पार दिखता है कि वो आ गया। गुस्सा दोगुना,चौगुना हो गया है मन के अंदर। वो इग्नोर करना चाहती है उसे और ये भी शो करना चाहती है कि उसे कुछ फील ही नही हुआ, वो देर से आये या जल्दी ?
घर में घुसते ही क्लोज़ अप का प्रचार करती उसकी मुस्कान चमकती है। राहुल से वो हाथ मिलाता है। राहुल उससे कहता है " तुमने तो सब पहले से ही पढ़ा होगा यार। कितना अच्छा लिखती है ये ?"
वो बदले में उसकी तरफ देख कर मुस्कुराता है। लड़की का रुख राहुल की तरफ है। वो उसे जानबूझ कर ज्यादा तवज्जो देने लगी है। "नोट कर लिया तुमने?"
"जी..! और भी देख लूँ।"
" हाँ! हाँ! शौक से। घर ले जाना चाहो तो ले कर चले जाओ। नोट कर के वापस कर देना।"
" अरे नही नही मैं यही देखता हूँ
आज मन बेचैन बरा, क्या तुमने याद किया
अरे इस पर तो तुमने "यस" लिख दिया है" वो लड़के से पूछता है।
वो फिर मुस्कुरा कर उस की तरफ देखते हुए कहता है " हम्म्म..मुझे लगा कि मुझे ही याद कर के लिखा होगा इन्होने, तो मैने जवाब दे दिया 'यस' "
वो उसे इग्नोर करती हुई कहती है। "ये देखो, ये आज ही लिखी है
कोई दूर जाये तो क्या कीजिये,
ना पहलू में आये तो क्या कीजिये,
वो जिसके लिये दिल तड़फता रहे,
वो नज़रें चुराये तो क्या कीजिये।"
वो कुछ राहुल की तरफ खिसक जाती है। उसे पता है कि तीर जहाँ चलाया गया था, वहीं पहुँचा है। दोनो ही समझ रहे हैं कि दोनो क्या कर रहे हैं ? वो ऐसा इस लिये कर रही है कि उसे पता है कि अगले को ये अच्छा नही लग रहा और अगला समझ भी रहा है कि वो ऐसा बस इसीलिये कर रही है कि वो अपनी नाराज़गी इसी तरह जता रही है, फिर भी उसे अच्छा नही लग रहा।
वो घर में सब को वहीं बैठकी में इकट्ठा कर लेता है। सब उसे बहुत मानते हैं। फिर कहता है "चलो कुछ खेलते हैं।"
" हाँ हाँ भईया।" नेहा चिल्लाती है।
"क्या खेलेंगे ?" राहुल कहता है।
"कैचिंग फिंगर" वो सजेस्ट करता है।
" नही कैंचिंग फिंगर नही।" वो विरोध करती है।
"क्यों ?"
"नही ना।"
"अरे मौसी प्लीज़...!" बच्चे बोलते हैं।
" अरे दूसरा कोई गेम खेल लेते हैं ना..कैरम ??"
"नही मौसी, कैचिंग फिंगर..प्लीज़"
उफ् वोट उसकी तरफ ज्यादा पड़ रहे हैं। उसे पता है कि कैचिंग फिंगर गेम के बाद क्या होना है। वो अभी अपनी उँगली जानबूझ कर पकड़वा देगा, फिर उसे जो कहा जायेगा कर देगा और फिर जब उसे उँगली पकड़ने का मौका मिलेगा, तो चाहे वो जितना जतन कर ले, उसकी ही उँगली पकड़ी जायेगी और तब वो क्या करने को कहेगा, उसे ये भी पता है।
गेम शुरू। जैसा जैसा उसने सोचा था, वैसा वैसा होता जाता है। उसकी उँगली हाथ में आ गई है। हेऽऽऽऽऽऽऽऽऽ का शोर मच चुका है।
"हम्म्म्म...आप वो गाना गाईये..हमें तुमसे प्यार कितना।"
"नही, ये गाना तो नही गाऊँगी, दूसरा कोई बोलो।"
"अरे, यही गाना है। आपकी मर्जी से हो तो फिर कौन सा गेम?"
" मुझे याद नही है।"
"मैं याद दिला दूँगा, वैसे भी सेकंड स्टैंजा गाना है।"
"सेकंड स्टैंजा ??? वो तो बिलकुल नही याद।"
" हम याद दिला देंगे। आप शुरू तो करिये।"
" अरे गाती तो रहती हो, नौटंकी क्यों कर रही हो?" दीदी खीझ कर बोलती हैं।
वो शुरू करती है।
हमें तुमसे प्यार कितना,
ये हम नही जानते, मगर जी नही सकते तुम्हारे बिना!
वो आँखें बंद कर लेता है।
वो थोड़ा ठिठक कर दूसरा अंतरा शुरू करती है
तुम्हे कोई और देखे तो जलता है दिल
वो मुस्कुरा कर दोहराता है
तुम्हे कोई और देखे तो जलता है दिल
बड़ी मुश्किलों से संभलता है दिल,
वो साथ साथ गाता है,
वो मुस्कुरा कर चुप हो जाती है।
वो अकेले गाता रहता है
क्या क्या जतन करते हैं, तुम्हे क्या पता ऽऽऽ
ये दिल बेकरार कितना, ये हम नही जानते,
मगर जी नही सकते, तुम्हारे बिना।
वो साथ में फिर शुरू करती है। उसके हरा देने वाले इस अंदाज़ से वो कितनी खुश हो गई है। मेहफिल जमा है। सब एक दूसरे को जाने क्या क्या करने को कह रहे हैं। गुस्सा जाने कहाँ चला गया। मनाने का ये अंदाज़ किसी और के पास नही है।
दोपहर ढलने को है, मगर गर्मी की दोपहर शाम तक भी कहाँ ढलती है। वो चलने को होता है। वो आवाज़ देते हुए कहती है "शाम को आ जाना, तुम्हारा जनमदिन है।"
"मेरा जनम दिन ?"
"हम्म्म आ जाना।"
" वाह हमारा जनम दिन और हमें ही नही पता। कितने साल के हो जायेंगे हम"
" बीस"
"आप?"
"इक्कीस..क्या खो गया था, तुम्हारा । जो बड़े बेचैन थे।
" अरे वो... क्या बतायें? जिसके पास मिल जायेगा ना। उसे हम अबकी तो मारे बिना छोड़ेंगे नही। हम ये जानते हैं। बहुत गुस्सा आ रहा है। हमें जान से ज्यादा प्यारा सामान था वो।"
"अच्छा ऐसा क्या था"
" अब क्या बतायें ? अगर मिल जाता तो दिखाते भी
वो मुस्कुरा देती है, वो चला जाता है।
शाम को उसने चाट बनाई है। बैठकी के लोगों को बुला भेजा है दस पंद्रह लोगो के बीच एक टी पार्टी, उसने खुद अरेंज किया है सब। सबसे पहले उसने उसे टीका लगाया। फिर उसकी पसंदीदा मिठाई सोहनपापड़ी खिलायी। लड़के ने उसके पैर छू लिये। आँखों में कुछ पानी सा तैर गया।
"खूब खुश रहो। अपना लक्ष्य प्राप्त करो।" कहते हुए उसने गिफ्ट बढ़ा दिया।
" क्या है इसमें?"
"खोलो"
वो खोलता है। उसकी आँखें चमक जाती हैं।
" यही ढूँढ़ रहे थे, उस दिन ?"
"आपको कैसे मिला?"
" जिसने चुराया था, उसी से खरीदा।"
वो एक डायरी थी, जिसमें जन्म दिन का गिफ्ट पाने वाले ने, जन्म दिन का गिफ्ट देने वाले के ही बारे में लिख रखा था पूरी डायरी में। और एक एलबम जिसमें गिफ्ट देने वाली की गुम हो गई फोटुएं थीं।
वो अपनी चोरी पकड़े जाने पर शरमा जाता है। वो हँस के पूछती है, "चोरी की चीज चोरी में चली गई थी , तो इतना नाराज़ क्यों थे।"
वो झेंप जाता है। " अरे मौसी....!"
डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था " for kanchan mausi, V.V.I.P."
जाने कब का मिलना .. जाने कौन कौन सी बातें ... जाने कौन कौन सी नाराज़गी .. जाने कौन कौन सी खुशी दर्ज़ थी उस डायरी में। तब वो रिश्ता दो साल का ही था बस...!
बाद के पाँच सालों में और जाने क्या क्या लिखा गया होगा ? और अगर कभी किसी के हाथ पड़ी होगी, तो एक अपराधी की डायरी के नाम से जानी गई होगी।"
मैने बीसवें साल में उसका जनम दिन मनाना शुरू किया था....! वो खुद सिर्फ पाँच जनमदिन और मनाया पाया.... उस ठहरे पल को बीते आज ठीक चौदह साल हो गये...! मेरे हाथ है में पहले अंतरे की ये पंक्तियाँ...
हमें इंतज़ार कितना ये हम नही जानते,
मगर ............................................
जी तो रही ही हूँ...............
39 comments:
मुबारक़…
मैने बीसवें साल में उसका जनम दिन मनाना शुरू किया था....! वो खुद सिर्फ पाँच जनमदिन और मनाया पाया.... उस ठहरे पल को बीते आज ठीक चौदह साल हो गये...! मेरे हाथ है में पहले अंतरे की ये पंक्तियाँ...
हमें इंतज़ार कितना ये हम नही जानते,
मगर ............................
मार्मिक प्रस्तुति ...
oh ohhhhhh
thahre hue paani me pathar na maar bawre : hulchul si much jayegi.
di, aap itna aacha kaise likh leti hain.
मुकम्मल कहानी, किस पत्रिका में छपने भेज रही हो इसे ?
एक भी हैं अनेक भी आदम
एक चेहरे में कितने चेहरे है -gulzar
.
.
.
क्या कहूँ ?
भावुक कर देती है आपकी लेखनी...
...
कहते है गुजरा वक़्त नहीं लौटता..कई बार रेशे-रेशे हमारे वजूद में उतार जाता है यादें बन के...
मुझे हमेशा से लगता रहा है कि अपने अनुभव अपने जिये हुए अनमोल पलों को एक लेखक सबसे अनुपम अंदाज़ में प्रस्तुत कर सकता है। ये पोस्ट उस की गवाही है। बेहतरीन दिल को छूता संस्मरण !
बहुत ही अच्छा संस्मरण..... :)
दुआ है ये शब्द वहां तक पहुंचे...
कंचन जी
अभी हाल ही में एक कहानी आपकी किसी पत्रिका में पढ़ी थी..... थोड़े ही अंतराल में दूसरी कहानी भी मिल गयी.... क्या बात है!!!!
कहानी दोनों ही प्यारी हैं.... सुबीर साहब के स्वर में मेरा सुर भी शामिल समझिये...." किस पत्रिका में छपने भेज रही हो इसे ? "
पढ़ कर एकदम स्तब्ध रह गए थे..कमेन्ट करने का सवाल ही पैदा नहीं था...
मगर पंकज जी, अनुराग जी, आतिश भाई और सिंह साहब के कमेन्ट देखकर हिम्मत पड़ी कमेन्ट देने की...
कहानी है तो बहुत अच्छी है..
संस्मरण है तो बहुत ..............
कहानी के माध्यम से मार्मिक भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......
आपको बहुत-बहुत आभार !
......
बहुत सुंदर लिखा है कंचन! जिन लोगों से शब्द और डायरी बांटने के रिश्ते होते हैं वो एक खुशबू की तरह आत्मा में बसे होते हैं यह संस्मरण उसका सबूत है...
सुना ग़म जुदाई का उठाते हैं लोग
जाने ज़िंदगी कैसे बिताते हैं लोग
दिन भी यहाँ तो लगे बरस के समान
...god bles u!!!
कहानी के माध्यम से मार्मिक भावों की बहुत अच्छी प्रभावी अभिव्यक्ति!
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
कहानी अपनी सी लगी उससे ज्यादा ये गीत,
Missing Somebody...
___________________________
हमें तुम से प्यार कितना, ये हम नहीं जानते
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना
हमें तुम से प्यार ...
सुना गम जुदाई का, उठाते हैं लोग
जाने ज़िंदगी कैसे, बिताते हैं लोग
दिन भी यहाँ तो लगे, बरस के समान
हमें इंतज़ार कितना, ये हम नहीं जानते
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना
हमें तुम से प्यार ...
तुम्हें कोई और देखे, तो जलता है दिल
बड़ी मुश्किलों से फिर, सम्भलता है दिल
क्या क्या जतन करतें हैं, तुम्हें क्या पता
ये दिल बेक़रार कितना, ये हम नहीं जानते
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना
हमें तुम से प्यार ...
साढ़े छह सौ कर रहे, चर्चा का अनुसरण |
सुप्तावस्था में पड़े, कुछ पाठक-उपकरण |
कुछ पाठक-उपकरण, आइये चर्चा पढ़िए |
खाली पड़ा स्थान, टिप्पणी अपनी करिए |
रविकर सच्चे दोस्त, काम आते हैं गाढे |
आऊँ हर हफ्ते, पड़े दिन साती-साढ़े ||
http://charchamanch.blogspot.com
कल 28/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
भावमय करती शब्द रचना ।
यादों के भावुक संसार को उकेरती अति भावप्रवण अभिव्यक्ति ....
m luving this...
bhut acha.
मार्मिक!
Please resume your writing.
Likhna kyun band kar diya...5 November ko request kiya tha...but koi response nahin..?
pahli baar aap ke blog par aaee, bahut acha lga, bahut hi umda likhti hai aap.....bdhaai....
come here from Malaysia =)
pyari si kahani!!
यादें ही तो है जो गाहे बगाहे हमें जोड़े रहती है ...
बहुत सुन्दर संस्मरण
फिर से पढ़ा,
और इस पोस्ट पर कमेन्ट कर सकने लायक शब्दों से फिर से खुद को कंगाल पाया :(
आपको नहीं लगता कि कुछ नया पोस्ट किये बहुत दिन हो गया ???
Thanks for writing in such an encouraging post. I had a glimpse of it and couldn’t stop reading till I finished. I have already bookmarked you.
The post is handsomely written. I have bookmarked you for keeping abreast with your new posts.
It is a pleasure going through your post. I have bookmarked you to check out new stuff from your side.
A very well-written post. I read and liked the post and have also bookmarked you. All the best for future endeavors.
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