वो कहता था कि "रोने के बाद आँखें और अच्छी लगने लगती हैं आपकी।"
मैं कहती थी "इसीलिये तो वही काम करते हो जिससे मैं बस रोती ही रहूँ।"
वो बहुत दूर चला गया, मैं हर बार रोने के बाद खुद से ही कहती "तुमने जानबूझ कर ऐसा किया, तुम्हे मैं रोती ही अच्छी लगती थी....!" पता था कि वो यही कहीं है, कि वो सुन कर शरारत के साथ मुस्कुरा रहा होगा....!
मित्रता दिवस पर अमरेंद्र जी के फेसबुक पर गुलज़ार की ये लाइने पढ़ कर दिमाग में हलचल बढ़ गई
तुम्हारी खुश्क-सी आँखे भली नहीं लगती,
वो सारी चीजें जो तुमको रुलाएं भेजी हैं।
पूरी गज़ल भी उन्ही के सौजन्य से लिख देती हूँ। उल्लेखनीय ये भी है कि उन्होने पवन जी की पोस्ट से इसे जाना।
गुलों को सुनना ज़रा तुम, सदायें भेजी हैं।
गुलों के हाथ बहुत सी, दुआएं भेजी हैं।
जो अफताब कभी भी गुरूब नहीं होता,
हमारा दिल है, इसी कि शुआयें भेजी हैं।
तुम्हारी खुश्क-सी आँखे भली नहीं लगती,
वो सारी चीजें जो तुमको रुलाएं भेजी हैं।
सियाह रंग, चमकती हुई किनारी है,
पहन लो अच्छी लगेंगी, घटायें भेजी हैं।
तुम्हारे ख्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं,
सज़ाएँ भेज दो, हमने खताएं भेजी हैं।
मैं कहती थी "इसीलिये तो वही काम करते हो जिससे मैं बस रोती ही रहूँ।"
वो बहुत दूर चला गया, मैं हर बार रोने के बाद खुद से ही कहती "तुमने जानबूझ कर ऐसा किया, तुम्हे मैं रोती ही अच्छी लगती थी....!" पता था कि वो यही कहीं है, कि वो सुन कर शरारत के साथ मुस्कुरा रहा होगा....!
मित्रता दिवस पर अमरेंद्र जी के फेसबुक पर गुलज़ार की ये लाइने पढ़ कर दिमाग में हलचल बढ़ गई
तुम्हारी खुश्क-सी आँखे भली नहीं लगती,
वो सारी चीजें जो तुमको रुलाएं भेजी हैं।
पूरी गज़ल भी उन्ही के सौजन्य से लिख देती हूँ। उल्लेखनीय ये भी है कि उन्होने पवन जी की पोस्ट से इसे जाना।
गुलों को सुनना ज़रा तुम, सदायें भेजी हैं।
गुलों के हाथ बहुत सी, दुआएं भेजी हैं।
जो अफताब कभी भी गुरूब नहीं होता,
हमारा दिल है, इसी कि शुआयें भेजी हैं।
तुम्हारी खुश्क-सी आँखे भली नहीं लगती,
वो सारी चीजें जो तुमको रुलाएं भेजी हैं।
सियाह रंग, चमकती हुई किनारी है,
पहन लो अच्छी लगेंगी, घटायें भेजी हैं।
तुम्हारे ख्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं,
सज़ाएँ भेज दो, हमने खताएं भेजी हैं।
36 comments:
अच्छी पोस्ट बहुत बहुत बधाई
दुबारा पढता हूँ !
GULJAR JI KI BAAT HI AUR HAI,KITNA BEHTAREEN ANDAZ HAI LIKHNE KA, BAHUT DHANYWAD.
कुछ बदलने सा लगता है गुलज़ार को पढ़ते हुए...
badhai .itni achchhi post ke liye .........gulzar ki liye kuchh kahana suraj ko roshni dikhana hua.
"तुमने जानबूझ कर ऐसा किया, तुम्हे मैं रोती ही अच्छी लगती थी....
"जिस की आँखों में कटी थी सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है"
baat gulzar ki :)
सियाह रंग, चमकती हुई किनारी है,
पहन लो अच्छी लगेंगी, घटायें भेजी हैं।
वाह वाह वाह कंचन...वाह...बेजोड़...
नीरज
गुलज़ार को मत पढवाया करो सुबह सुबह.....बारिश के दिनों में ....इन्फेकशियस है
बेह्द उम्दा।
ओह...लाजवाब...और कुछ कहाँ बचता है कहने लायक....
बहुत बहुत आभार दिन बनाने के लिए.....
सियाह रंग, चमकती हुई किनारी है,
पहन लो अच्छी लगेंगी, घटायें भेजी हैं।
-गुलज़ार...पढ़ो और डूब जाओ! यही होता है हर बार.
हर पंक्ति बेमिसाल, गहराई लिये हुये सुन्दर प्रस्तुति,आभार ।
लाजवाब चयन ..!
लाजवाब प्रस्तुति। हर शेर दिल को छूता हुया निकल गया। शुभकामनायें।
बेहतरीन, लाजवाब!
तुम्हीं कहती हो ना कई बार कि कुछ पोस्ट ऐसी होती हैं कि समझ में नहीं आता प्रतिक्रियास्वरूप क्या लिखा जाये...ये एक ऐसी ही पोस्ट है।
बड़ी देर से ठिठका रहा। हाँ, ये जरूर लगा कि जैसे पोस्ट अभी तो शुरू हुई थी और अभी खत्म हो गयी...अरे!!!
सज़ाएँ भेज दो, हमने खताएं भेजी हैं।
व्यस्त हैं। फ़िर भी देखो करते हैं कुछ इंतजाम। बाकी टिप्पणी गौतम राजरिशी की ही दोहराते हैं।
waah!
जिन चीजों ने एक जमाने में बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उनमें से एक चीज का नाम 'गुलजार की शायरी' भी है !
बहुत सुन्दर पोस्ट.
बस हाजिरी बजाने आया हूँ.. लगभग यहाँ मौजूद हर किसी की तरह..
कहने को कुछ नहीं है..
गुलजार की अलक्षित पंक्तियों को रखे जाने की आवश्यकता है आगे भी ! आगे मैं अनूप जी की उस टिप्पणी को दोहराता हूँ जिसमें गौतम जी की बात दुहराई गयी है ! आभार !
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
बेहतरीन और भावुक पंक्तियाँ ! शुभकामनायें !
exilent mam ....
mera blog dekhe ..
rubaroojai.blogspot.com
बारम्बार ये पोस्ट पढ़ चुका मगर वो शब्द नहीं ढूंढ़ पाया जो इसके लिए प्रयुक्त कर सकूँ इसके तारीफ़ के लिए... तमाम तरीके तलाश कर ली मैंने मगर नाकाम रहा .... जब भी सोचता हूँ उन आँखों के लिए तो यही कि आखिर दोनों चाहते क्या थे ... मगर जिसे वो रोई आखें पसंद थी वो भी सच में तो रुलाना नहीं चाहता होगा... अगर बात ये थी फिर उसे रोई आँखें क्यूँ पसंद थी उसकी ?..... सोच सोच कर उलझ रहा हूँ ... और फिर कुछ और सोचने कि धुन में खुद को ढलने कि कोशिश करता हूँ .... खैर...
अर्श
बेहतरीन ..और क्या कहें ।
Bahut hi umda post.....
Bahut hi umda post.....
bahut badhiyaa post....achha blog
तुमने ठीक कहा यह मौसम ही कुछ ऐसा है.. और उस पर गुलज़ार की शायरी ....
सज़ाएँ भेज दो, हमने खताएं भेजी हैं।
क्या बात है!
bahut sundar prastuti
बहुत सुन्दर प्रस्तुति........ रक्षाबंधन पर पर हार्दिक शुभकामनाये और बधाई....
betaa...
tu thek hai naa.....?
Didi aap kya likhti hai.....mai to kayal hu...........presentation is marvellous!...
bahut bhavnatmak post ke liye bahut bdahiya,aapke blog par achanak hi aaya ,sunder chitra aur samvedana se bhari kavitaye,anand aagaya.
sader
dr.bhoopendra singh
jeevansandarbh.blogspot.com
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