नित्य समय की आग में जलना, नित्य सिद्ध सच्चा होना है। माँ ने दिया नाम जब कंचन, मुझको और खरा होना है...!
Monday, August 9, 2010
पलट के लौट भी आओ, ये कोई बात नही-एक ड्राफ्ट
हर चीज़ का अपना अलग आनंद है। इस बुखार का भी। खासकर तब जब ये वीक एण्ड में आया हो और बुखार का आनंद लेने के साथ जबर्दस्ती एक छुट्टी ज़ाया होने का दुःख ना साल रहा हो।
हरारत भरी देह....हलका सा सिर में भारी पन... कुछ तेज साँस.. अनुनासिक स्वर... नाड़ियों में धमक बढ़ी हुई... अँधेरे कमरे में अपनी धड़कनें स्वयं सुनना.. कुछ मित्रों से आँखें बंद किये ही बतियाना... कुल मिला कर बहुत दिनो बाद फुरसत... खुद के लिये..!
ऐसे में खरास भरी आवाज़ के धीमे स्वर खुद को भले लगते हैं।
लोगो को गलतफहमी है कि संगीत विषय लेने के साथ ही आवाज़ अच्छी होना एक दूसरे का पर्याय हैं। ऐसा शायद कुछ नही..! मैं अपनी लय के उतार चढ़ाव से कतई आश्वस्त नही रहती। इसीलिये कभी भी अपनी आवाज़ पोस्ट करने की हिम्मत नही की...!
मगर आज जब सब कुछ ड्राफ्ट ही है... बिना मतले... बिना अरूज़... बिना तकीतई के मीटर पर चढ़ी ये गज़ल जो अभी बस ड्राफ्ट ही है... ये भी नही निश्चित कि शेर में लमहे डालूँ या शमा... आइनों की दाद या दाद आइनों की..... तो सोचा ये ड्राफ्टेड आवाज़ भी डाल दूँ
हमें हमारे हवाले, जो तुमने छोड़ा है,
पलट के लौट भी आओ, ये कोई बात नही।
वो शम्मा, जिससे हमारी हयात रोशन थी,
उसी से हमको जलाओ, ये कोई बात नही।
खता हमारी बताओ, सज़ा की बात करो,
खमोशियों से सताओ, ये कोई बात नही।
तुम्हारे दम पे, सफर आसमाँ का साधा है,
कि साथ तुम ही ना आओ, ये कोई बात नही।
ज़माने बीत गये, दाद आइनों की मिले,
नज़र ना अब भी उठाओ ये कोई बात नही।
निशान रात के, जैसे हैं खूबसूरत हैं,
इन्हें भी दाग बताओ, ये कोई बात नही।
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33 comments:
ज़माने बीत गये, दाद आइनों की मिले,
नज़र ना अब भी उठाओ ये कोई बात नही।
....... waah .
waah, waah,jab tak hindi ki type nahi hai
वाह !! वाह !!
dimaag kaam nai kar rahaa kya likhun... dam ful rahe hain tumhare gaate huye aakhiri she'r ko... tabiyat kharaab hai magar jis khubsurati se adaayagi di hai natmastak hun... fir se aata hun
arsh
wo shamma jisse hmaari hyaat raushan thi
usi se hm ko jalaao
ye koi baat nahi
lajwaab sher ...
aur . . .
Arsh ki baato se sehmat hooN
टीवी पर "रहना है तेरे दिल में" देख रहा था...शायद ये छठी बार देख रहा हूँ इस फिल्म को। मैडी{फिल्म का नायक} की दीवानगी और तुम्हारी कसक भारी आवाज में गाये शेरों का मिक्सचर....उफ़्फ़्फ़्फ़!!!
ड्राफ्ट देखने गुरूजी तो शायद न आये यहाँ, लेकिन मुझे सरसरी तौर पर मुकम्मल लग रही है ग़ज़ल...अब इस बेमतले को ग़ज़ल कहने की जुर्रत करूं तो।
आखिरी शेर लाजवाब बुना है। करोड़ों दाद कबूल फरमाओ, बहना..!
तनिक कनफुजिया गया हूं वैसे कि हासिले-ग़ज़ल शेर तीसरा वाला हुआ कि आखिरी वाला?
बेहद उम्दा रचना .........शुभकामनाएं !
जो कहन दिल से निकली हो उसमें मतला मीटर रदीफ़ काफिये नहीं देखे जाते...दिल किसी बंधन में बंध कर नहीं गाता...गाता है जब उसे गाना होता है...तुम्हारी ये रचना हर लिहाज़ से दिलकश है...इसे नियम कायदे मत समझाओ...बस गाओ...लेकिन बुखार में नहीं...हँसते खेलते हुए...तुहारे जल्द ठीक होने की दुआ कर रहा हूँ...आमीन..
नीरज
ज़माने बीत गये, दाद आइनों की मिले,
नज़र ना अब भी उठाओ ये कोई बात नही।
हुम.म....म.... अच्छा लगता है ये रूमानी अंदाज भी....बेलौस सा .....कुछ कुछ शिकायती ....
बेहतरीन ग़ज़ल। ये अशआर कुछ खास पसंद आए।
वो शम्मा, जिससे हमारी हयात रोशन थी,
उन्हीं से हमको जलाओ, ये कोई बात नही।
खता हमारी बताओ, सज़ा की बात करो,
खमोशियों से सताओ, ये कोई बात नही।
गाते वक़्त आईनों की दाद गाया है पर यहाँ उलट लिख गया है । उसे दुरुस्त कर लें।
आशा है ये बुखार सोमवार तक आपको अपनी गिरफ़्त से मुक्त कर देगा।
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत अच्छी लगी गज़ल...बस!! जाने क्यूँ प्लेयर चल नहीं रहा. फिर कोशिश करते हैं.
अब चल गया प्लेयर..बढ़िया गाया. बधाई.
गज़ल के बारे मे कुछ जानती नहीं सोचा आवाज ही सुन लूं....सुबह से कोशिश जारी है प्लेयर नहीं चल रहा.....
निशान रात के, जैसे हैं खूबसूरत हैं,
इन्हें भी दाग बताओ, ये कोई बात नही।
कमाल
धमाल
बेमिसाल
कंचन जी आज आपके ब्लाग पर आना हुआ पुरकशिस लिखती हैं आप। संवेदना भी खुब है और शिल्प भी दमदार। अब आपको पढना जारी रहेगा आपको।
कभी समय निकाल कर शेष फिर पर पधारना..हो सके कुछ कतरने आपको पंसद आएं।
उम्दा लेखन के लिए बधाई!!
डा.अजीत
शेष फिर
www.shesh-fir.blogspot.com
मंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
सुन नहीं पा रही हूँ। फिर फिर प्रयास होगा।
ग़जल व उर्दु समझती कम हूँ परन्तु जितनी समझ आ रही है अच्छी व मधुर लगी।
घुघूती बासूती
@मनीष जी अभी ड्राफ्ट है न तो निर्धारित नही किया कि क्या रखूँगी। गाते समय दोनो गाया है। लम्हे औेर शमा में भी अभी कंफ्यूज़न ही था, इसलिये वो दोनो ही गाया है।
प्रस्तावना में लिखा भी है ना,...
ये भी नही निश्चित कि शेर में लमहे डालूँ या शमा... आइनों की दाद या दाद आइनों की.....
@अर्चना जी आप अपना ई मेल पता दें तो मैं एमपी३ भेज दूँ।
@संगीता स्वरूप जी इस पोस्ट को आज के चर्चामंच पर स्थान मिल चुका है।
तुम्हारी आवाज़ ने तुम्हारे शब्दों को चांदनी में नहलाया है आधी रात के एकांत में यह कमरे में चारों और गूंज रही है...
धन्यवाद कंचन जी ,
मेरा ई मेल पता- archanachaoji@gmail.com
और ब्लॉग पता- archanachaoji.blogspot.com
आभार !!!
पता नहीं कनेक्शन की प्रॉब्लम है या कुछ और. थोड़ी देर बजके बंद हो जा रहा है.
और कैसा है ये कहने की जरुरत है क्या?
very nice.....
लगा , एक आठ साला बाला का कंठस्वर सुन रही हूँ...लेकिन शेर...उफ़ !!!
जियो...
समय पर दावा खाओ,इलाज कराओ और स्वस्थ होवो...जल्दी से..
neera ji ka comment mera bhi
aur mp3 bhejne ke liye mail id aa gaya hoga ...
वाह कंचन वाह! सुन भी लिया मैंने।
घुघूती बासूती
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/241.html
वो शम्मा,जिस से हमारी हयात रौशन थी
उसी से हम को जलाओ ये कोई बात नहीं
तुम्हारे दम पे सफ़र आसमां का साधा था
कि साथ तुम ही न आओ ये कोई बात नहीं
बहुत ख़ूब!कंचन जी
माशा अल्लाह!
ज़माने बीत गये, दाद आइनों की मिले,
नज़र ना अब भी उठाओ ये कोई बात नही।
वो शम्मा,जिस से हमारी हयात रौशन थी
उसी से हम को जलाओ ये कोई बात नहीं
वाह कंचन बिमारी मे भी इतनी खूबसूरत प्रस्तुति? बधाई दिल को छू गक़्यी तुम्हारी पोस्ट। आशीर्वाद जल्दी से ठीक हो कर और गज़लें सुनाओ।
खता हमारी बताओ, सज़ा की बात करो,
खमोशियों से सताओ, ये कोई बात नही।
:))
तुम्हारे दम पे, सफर आसमाँ का साधा है,
कि साथ तुम ही ना आओ, ये कोई बात नही।
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां, दिल को छूते शब्द सुन्दर ।
निशान रात के, जैसे हैं खूबसूरत हैं,
इन्हें भी दाग बताओ, ये कोई बात नही।
waah kanchan ji kya baat hai ..... behad khubsoorat kavita
खता हमारी बताओ, सज़ा की बात करो,
खमोशियों से सताओ, ये कोई बात नही।
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