तो २६ तारीख का आरंभ सुबह के पौने चार बजे से होता है। वैसे दिन का अंत भी २६ को ही रात २.०० बजे हुआ था, जब विजित और जीजाजी ने किसी का दरवाजा रात के १ बजे खटखटा के कहा "ज़रा अपना जनरेटर दे दें। बाज़ार में किराये पर मिल नही रहा सहालग के कारण और हमारे यहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रमो में हिस्सा लेने आये कई मेहमान हैं।"
तब कहीं हम सब सो सके। अनूप जी और कुश ने ऐलान कर दिया था कि "यूँ भी हम तुम्हे ब्लॉग जगत पर ही नही झेल पाते, वहीं पर बिना पढ़े टिपिया देते हैं तो यहाँ तुम्हे सुनने का टॉर्चर कैसे झेलेंगे।"
तब कहीं हम सब सो सके। अनूप जी और कुश ने ऐलान कर दिया था कि "यूँ भी हम तुम्हे ब्लॉग जगत पर ही नही झेल पाते, वहीं पर बिना पढ़े टिपिया देते हैं तो यहाँ तुम्हे सुनने का टॉर्चर कैसे झेलेंगे।"
खैर सुबह पौने चार बजे वीर जी को बस्ती जाना था। कुश और अनूप जी को छोड़ने और गुरू जी तथा अन्य कवियों को लेने।
और ये दिन था मेरी जिंदगी का एक बहुत विशेष दिन जिस दिन की कल्पना मैं मन में करती तो थी पर किसी से कहती नही थी। और इस दिन की शुरुआत इतने अच्छे और सभी अपनों के बीच होगी मैने सोचा नही था।
गुरू जी, नुसरत दीदी, मोनिका हठीला दी और रमेश यादव जी होटल पहुँचे। मुझे खबरें मिल रहीं थीं। होटल की व्यवस्था अच्छी नही थी उस समय। जबकि ये वहाँ का टॉप होटल था। मैं शर्मिंदा हो रही थी, खासकर नुसरत दी और मोनिका दी के लिये।
दिन में १२ बजे के लगभग अर्श आया और शायद दो बजे के इर्द गिर्द सर्वत ज़माल जी।
सर्वत जी का भी बड़ा योगदान था इस कवि सम्मेलन में। तैयारियाँ तथा फंड इत्यादि के संबंध में उन्होने मुझे बहुत सपोर्ट किया था। मेरे विशेष आग्रह पर ही उन्होने सिद्धार्थनगर आना स्वीकार किया था और अपने व्यस्ततम कार्यक्रम से समय निकाल कर आये भी।
सर्वत जी ने ही मेरे लिये पवन सिंह जी से बात की, जो कि गोरखपुर में एसडीएम हैं। पवन सिंह जी स्वयं तो मसूरी जाने वाले थे परंतु फिर भी सिद्धार्थनगर स्तर पर उनका विशेष सहयोग रहा।
वो पल भी आज ही आया जिसके लिये मैं हमेशा सोचती कि क्या रिऐक्शन होगा मेरा। गुरू जी से मिलना। मैं समझ ही नही पा रही थी कि क्या करूँ। पैर छू लूँ या हाथ पकड़ लूँ या बस चुपचाप खड़ी देखती रहूँ?
गुरू जी और सभी लोग घर पर भोजन करने आये तो मैने भी दर्शन किये।
दिन बहुत सारे तनावों मे गुज़रा। सब मेरे कारण परेशान थे, ये बात अब गुरूर दिलाती है पर उस समय आँसू ला रही थी। कुमार जी के आने की भी खबरों के उतार चढ़ाव मिल रहे थे। रास्त खराब था, लखनऊ से सिद्धार्थनगर तक का।
मगर शाम होते होते सभी समस्याओं का समाधान हुआ। sigh of relief baught a crucial headache with itself. मुझे लग रहा था कि मेरी बीमारी मुझ पर हावी होने वाली है, मगर दोनो दीदियों ने काउंसलिंग कर तुरंत दवा खिलाई और स्थिति सामान्य ओर बढ़ी।
कुमार जी से पहली मुलाकात शाम ७.३० बजे हुई, जब उन्होने कहा "खुश रहिये, हमेशा खुश रहिये। देखिये हम तो बस आप के लिये यहाँ आ गये। पंकज जी ने मुझसे कहा मेरी बहन के लिये सिद्धार्थनगर चलना है, तो मैने कहा आपकी बहन मेरी बहन और आ गया।"
गुरू जी ने कहा "ये बहुत डरी है।" तो वहीं कुमार जी ने आत्मविश्वास के साथ कहा " चिंता मत करिये। आपका प्रोग्राम हिट होगा, पूरी तरह हिट।" और इस आत्मविश्वास से कही बात ने असर दिखाया रात के १२ बजे। कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा हुई।
कार्यक्रम का संचालन गुरू जी के हाथ में था।
शुरूआत मोनिका दीदी की सुरीली सरस्वती वंदना "प्यार दे दुलार दे, माँ तू सद्विचार दे" से हुई।
आगाज़ गुरुकुल टीम जिसे गूगल टीम का नाम मिल चुका था के विमोचन से हुआ।
वीनस जो कि अपने पर्फार्मेंस पर विशेष ध्यान दे रहा है ने अपनी गज़ल
"ना मुकदमा, ना कचहरी उसके मेरे बीच में,
फिर भी खाई एक गहरी, तेरे मेरे बीच में।"
फिर भी खाई एक गहरी, तेरे मेरे बीच में।"
सुना कर युवाओं की तालियाँ बटोरी। उसका एक शेर जो मुझे विशेष पसंद है
"गर चलूँगा तो पहुँच ही जाऊँगा मैं शाम तक
बस खड़ी है एक दुपहरी तेरे मेरे बीच में।
फिर बुलाया गया प्रकाश सिंह अर्श को। जिसका शेर
"हलक़ में अपनी ज़ुबान रखता हूँ,
मैं चुप हूँ कि तेरा मान रखता हूँ।
मेरी बुलंदियों से तू भी रश्क कर,
मैं ठोकर में अपने आसमान रखता हूँ।"
ये वो शेर था जिस पर फिर से युवाओं ने जम कर तालियाँ बजाईं।
अपनी ग़ज़लों से पत्र पत्रिकाओं में, अपनी लगन से गुरू जी के दिल में और अपने स्नेही व्यवहार से गुरुकुल से ब्लॉगजगत तक अपना स्थान बना लेने वाले गौतम राजरिशी (वीर जी) को जब बुलाया गया तो उन्होने
ना समझो बुझ चुकी है आग गर शोला न दिखता है
दबी होती है चिंगारी धुँआ जब तक भी होता है।
के बुलंद शेर से आगाज़ किया और विजित को तथा नवोन्मेष टीम को समर्पित करते हुए शेर कहा
चलो चलते रहो पहचान रुकने से नही बनती,
बहे दरिया तो पानी पत्थरों पर नाम लिखता है।
उन्होने चार गज़ले सुनाई और सारी ही ग़ज़लों की विशेष प्रशंसा हुई।
फिर मेरा नंबर था। मैने जो किया सो किया। मुझे वाक़ई कुछ याद नही। मगर वो बात जिस बात ने सुकूँ दिया वो थी कि बाद में नुसरत जी ने बताया कि "जितनी देर आप मंच पर थीं, आपके भईया भावुक होते रहे।" गौतम भईया ने बताया " तू मंच पर जितनी देर रही दीदी लोग सेंटियाई रहीं।" दीदी ने बताया "तुम्हारा पर्फार्मेंस शुरू होते ही तुम्हारे वीर जी ने मोबाईल आन कर के तुम्हारे बगल में रख दिया था। शायद संजीता को सुना रहे थे तुम्हे।" विश्वास साहब ने कहा "मैने तुम्हारे मिसरे नोट किये हैं, बहुत अच्छा कहा।" और दूसरे दिन गुरू जी ने जो कहा, जो किया वो गूँगे का गुण है, धीरे धीरे स्वाद ले रहीं हूँ मिठास अब तक मुँह में घुली हुई है।
और ये लो वीर जी एक के जवाब में दो दो फोटू ले आई हूँ गुरू जी के स्नेह से निहारते हुए.... जलन अब जा के कुछ शांत हुई ।
अब बारी थी वरिष्ठों की। मोनिका दी... बाद में भी और अब तक प्रशंसा सुन रही हूँ उनकी। उनको जनता की नब्ज़ की अच्छी पकड़ है।
बंद पलकें ना खुलें लब ना हिलें बात ना हो,
इससे अच्छा है, कभी कोई मुलाकात ना हो।
और बेगाना कोई अपना बना कर चला गया।
उनकी स्वरों पर अच्छी पकड़ है। और देखिये ना दोनो ही अखबारों ने उनकी ही फोटो लगायी है।
नुसरत जी.... अहा..क्या सुरीली, क्या नाजुक सी आवाज़ बख़्शी है ऊपर वाले ने उन्हे। बाँसुरी कहूँ या सितार...! उनका अंदाज़ ....
क्यों मेरा दर्द सहते रहते हो,
कुछ पुराना लिया दिया है क्या?
हर कोई देखता है हैरत से,
तुमने सबको बता दिया है क्या
दिल बहुत *मुज़महिल सा है नुसरत,
तुमने कुछ कह कहा दिया है क्या ?
*मुज़महिल- बुझा बुझा
और फिर
सँवर रहा है वज़ूद मेरा, बदल रहा है मिजाज़ मेरा,
है मेरे दिल पर मेरी हुक़ूमत, है मेरी मर्जी पे राज़ मेरा।
महिला जागृति पर उनकी इस नज़्म ने आगे की पंक्ति में बैठी महिलाओं को भाव विभोर कर दिया। सुना है पाक़िस्तान में ये गज़ल बहुत सराही गयी है।
आज़म खाँ की पंक्तियाँ
मुहब्बत की नुमाइश हो रही है,
मगर ज़ेहनों में साज़िश हो रही हैं।
फलक़ तू सतह अपनी बढ़ा ले,
मुझे उड़ने की ख्वाहिश हो रही है।
दर्शकों द्वारा विशेष सराही गईं।
और फिर रमेश जी के मधुर गीत, जिनमें
ये पीला बासंतिया चाँद, संघर्षों का ये दिया चाँद,
चंदा ने कभी रातें पी ली, रातों ने कभी पी लिया चाँद
गीत ने मुझे फुरसतिया जी की याद दिला दी। याद आया कि समीर जी के आने पर उनके घर की मेहफिल में ये गीत उनकी पत्नी द्वारा सुनाया गया था और जहाँ तक मुझे याद है कि उनके विवाह में इस गीत का विशेष योगदान है।
इसके बाद माइक डॉ० कुमार विश्वास ने संभाला और आमंत्रित किया हमारे गुरुवर को। जिन्होने कहा
बड़ी छोटी गुज़ारिश है महोदय।
फक़त रोटी की ख्वाहिश है महोदय
समुंदर, ताल नदियाँ आप रख लो,
हमारे पास बारिश है महोदय।
सुनाई और संचालन के साथ साथ ग़ज़ल में भी अपने सिद्ध हस्त का प्रदर्शन कर दिया।
और अब आये रौनक ए मेहफिल डॉ० कुमार विश्वास। जनता ने असीम उत्साह के साथ उनका स्वागत किया। कुमार जी के लिेये पूर्वाग्रह यूँ भी चलता ही है। कुछ मित्र शायद पहले से ही भरे बैठे थे, राजू श्रीवास्तव की तरह। एक निवेदन से नाराज़ हो गये और मुट्ठी भर लोगों ने लामबंद हो कर बहिष्कार करने की कोशिश की तो जनता ने उन्ही का बहिष्कार कर दिया। जनता एकजुट हो कर खड़ी हो गई और तालियाँ बजा कर कुमार जी से कहा " जो जाता है उसे जाने दें, आप जारी रखें।"
और फिर शुरू हुआ वो जादुई पाठ जो २ घंटे लगातार चलता रहा। कुमार जी ने खड़े होते ही कहा "आज मैं सिर्फ कविताएं सुनाऊँगा।" और ढेरों ढेर कविताएं। ना कुमार जी रुके ना श्रोताओं की तालियाँ।
उस डगर पर मुझे वो छोड़ गया,
कब्र आई है घर नही आया।
वो जो कहता था जान दे दूँगा,
जान दे दी पर नही आया।
रोज़ हम उससे मिन्नते करते
रोज़ वो वायदा भी करता था।
रोज़ हम सबसे यही कहते थे,
उसको आना था पर नही आया।
अब बताईये इस साधारण सी बात पर कौन नही तालियाँ बजायेगा।
खुद से भी मिल ना सको, इतने पास मत होना,
इश्क़ तो करना मगर देवदास मत होना,
देखना, चाहना, माँगना या खो देना,
ये सारे खेल हैं इनमें उदास मत होना।
बस्ती बस्ती घोर उदासी, पर्वत पर्वत खाली पन,
मन हीरा बेमोल बिक गया, घिस घिस रीता तन चंदन,
इस धरती से उस अंबर तक दो ही बात गज़ब की है,
एक तो तेरा भोला पन है, एक मेरा दीवानापन।
सब अपने दिल के राजा हैं, सबकी कोई कहानी है,
भले प्रकाशित हो ना हो पर, सबकी प्रेम कहानी है,
बहुत सरल है पता लगाना, किसने कितना दर्द सहा,
जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुरानी है।
मै भाव सूची उन भावों की, जो बिके सदा ही बिन तोले,भले प्रकाशित हो ना हो पर, सबकी प्रेम कहानी है,
बहुत सरल है पता लगाना, किसने कितना दर्द सहा,
जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुरानी है।
तन्हाई हूँ हर उस खत की, जो पढ़ा गया है बिन बोले
हर आँसू को हर पत्थर तक, पहुँचाने की लाचार हूक,
मैं सहज अर्थ उन शब्दों का जो सुने गये हैं बिन बोले।
जो कभी नही बरसा खुल कर हर उस बादल का पानी,
लवकुश की पीर बिना बाँची, सीता की राम कहानी हूँ।
जिनके सपनो के ताजमहल, बनने के पहले टूट गये,
जिन हाथों में दो हाथ कभी आने के पहले टूट गये,
धरती पर उनके खोने और पाने की अजब कहानी है,
किस्मत की देवी मान गये, पर प्रणय देवता रूठ गये,
मैं मैली चादर वाले उस कबिरा की अमृतवाणी हूँ
कुछ कहते हैं मैं तीखा हूँ, अपने ज़ख्मो को खुद पीकर,
कुछ कहते हैं मैं हँसता हूँ अंदर अंदर आँसू पीकर
कुछ कहते हैं मैं हूँ विरोध से उपजी एक खुद्दार विजय,
कुछ कहते हैं मै रचता हूँ खुद में मर कर खुद में जी कर
लेकिन मैं हर चतुराई की सोची समझी नादानी हूँ।
ये एक बानगी है। और फिर ढेरों ढेर मुक्तक। कुछ गज़लें और वो गीत तिरंगा
शोहरत ना अता करना मौला, दौलत ना अता करना मौला,
बस इतना अता करना चाहे, ज़न्नत ना अता करना मौला
शम्म-ए-वतन की लौ पर जब क़ुर्बान पतंगा हो,
होंठो पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।
कह कर जब बैठे तो जनता ने शोर मचा मचा कर फिर से वापस बुला लिया, वो पगली लड़की गीत सुनाने के लिये। जाने कौन कौन सी परिस्थितियों के गान के बाद कथन
तब उस पगली लड़की के बिन जीना दुश्वारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिना मरना भी भारी लगता है।
अब भी सब कुछ ज़ुबान पर है।
गौतम राजरिशी जी की पोस्ट पर ढेरों प्रतिक्रियाएं आईं। तटस्थ और निरपेक्ष मूल्यांकन ना करने के आरोप भी। मगर हम क्या करें जो हमने उस दिन देखा सुना, उसे मात्र इसलिये ग़लत ठहरा दें क्योंकि लोग कहते हैं कि ऐसा नही होता। कैसे मान जायें हम कि कुमार विश्वास मात्र दो मुक्तको के वीडियों की प्रसिद्धि का भाग्य खेल मात्र हैं, जब हमने वो दोनो मुक्तक कई कई बार के जनता आग्रह पर सुने। कुमार जी ने वायदा किया था कि वो आज सब नया सुनायेंगे। पर जनता ही नही भूलती भ्रमर और कुमुदिनी को तो कोई क्या करे ?
हम ने भी सुना था बहुत कुछ कुमार जी के बारे में मगर जब दिख ये रहा था कि वो मुझसे स्नेह से पूछ रहे थे "क्या खिलायेगी लड़की आज मुझे ?" अर्श की चुटकी ले रहे थे प्रेम कहानियों पर। गौतम भईया से कह रहे थे " गौतम अगर मैं प्रधानमंत्री बना तो तुम्हारे गुरूजी को वित्तमंत्री बनाऊँगा। पचास रूपये का काम पाँच रुपये में करवा लेते हैं।" इतनी सहजता से सब से वार्ता करने वाले शख़्स को कैसे अहंवादी बता दें ? क्या कह दें कि हमने जो देखा सुना वो सच नही है, इसलिये क्योंकि दूसरों ने कभी ये रूप नही दे़खा।
मैं खुद जानती हूँ कि उस सिद्धार्थनगर के वरिष्ठजनों ने उन्हे कितनी बार बुलाया है और वो नही आये। वो सारे वरिष्ठ जन स्वतंत्र है कुमार जी के खिलाफ खड़े होने को, मगर मैं कैसे खड़ी होऊँ, जबकि मुझ जैसी अदना लड़की के कहने पर वो उतनी दूर चले आये और कैसे चले आये ये भी जानती हूँ मैं।
और फिर वो रात के तीसरे पहर के कुछ पहले से आरंभ हुई और भोर तक चली बैठक...
मैं ही नही पूरा घर सम्मोहित था। दीदी, भईया, भाभी सब बैठे थे दालान में। कुमार जी ने कितनी किताबों से, कितने शायरों, कवियों, लेखकों के कितने शेर, कविताएं उद्धरण सुनाये। कुछ हिसाब नही उसका। उन्होने खुद कहा ये आज की संध्या थी ही साहित्य के नाम। पूरे चाँद की रात और कुमार जी पूरे मूड में।
आलोचक कुमार जी की आलोचना करें या हमारी मुग्ध स्थिति की। हमने जो पाया, उसे हमेशा की तरह बाँट रहे हैं आपसे। मै पिछले तीन महीने से गमों के दौर से गुज़र रही थी, मैने तब भी आप से साझा किया। आज खुश हूँ तो फिर से साझा कर रही हूँ।
सिलसिला ए शुक्रिया
और अब लाखों लाख बार धन्यवाद देने का मन हो रहा है, इस आनंद के पीछे जुड़े लोगों को। माँ शारदा तु्म्हे प्रथम धन्यवाद ! तुमने ही सारे संजोग रचे।
धन्यवाद इस ब्लॉग जगत का, जिसने मिलाया गुरू जी आपसे। धन्यवाद गुरू जी आपका। मुझे शिष्या के साथ बहन बनाया और गुरू की तरह बड़प्पन ना दिखा कर अग्रज की तरह सहारा दिया। मुझे उनसे मिलाया जिन तक मैँ कभी पहुँच ही नही सकती थी। धन्यवाद मेरे गुरु भाईयों को। वीर जी तुम्हें। ४८ घंटे में तुम २ घंटे सोये। वक्त पड़ने पर भारतीय सेना का ये मेजर बहन की प्रतिष्ठा के लिये किस हद तक झुका, वो मुझे आपका ॠणी बना गया। अर्श थोड़ी सी डाँट के बाद धन्यवाद तुम्हे भी। देर से आये मगर जब से जब तक रहे समर्पित रहे। सर्वत जी आपको। नुसरत दी, मोनिका दी, रमेश जी और आज़म जी कार्यक्रम को पारिवारिक समारोह का नाम देने और समस्याओं की उपेक्षा करने हेतु। कुश तुम्हे एक अच्छे मित्र की भूमिका निभाने हेतु और अनूप जी आपको हमें पहले दिन झेलने और दूसरे दिन ना झेलने हेतु। सर्वत जी और पवन जी को विशेष सहयोग देने हेतु
सिद्धार्थनगर के प्रेम को जिसने ये दुस्साहस करने की शक्ति दी।
और फिर अपने ही परिवार के हर एक सदस्य को जिसने हर बेवक़ूफी पर साथ दिया और प्रोत्साहन भी.....
और अंत में माँगूगी आशीर्वाद अपने इस बच्चे विजित के लिये, जिसने अच्छे अंक और अच्छा कालेज पाने के बाद भी एम०बी०ए० की पढ़ाई इस लिये छोड़ दी क्योंकि मेरे दीदी जीजाजी अकेले थे घर पर और मेट्रोपॉलिटन शहर के स्थान पर चुना अपना विकासशील जिला कार्यक्षेत्र बनाने को।
इसके ईमानदार प्रयासों को आपका स्नेह और आशीष चाहिये
49 comments:
toooooooooooo good but very lenghty post
क्या कहू समझ के बाहर है ...........यह लगा मैं खुद भी वहाँ था .........काश कि मैं भी वहाँ होता !
आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ओर शुभकामनाएं !
क्या कहूँ कंचन...मन के भाव शब्द में ढल नहीं पा रहे...ढल सकते भी नहीं क्यूँ की शब्दों की अपनी एक सीमा होती है...नमन है गुरूजी के प्रयास को सभी के द्वारा प्रदर्शित निश्छल प्रेम को...ये सबसे प्रेम की अमूल्य निधि जो तुमने पायी है किसी बिरले को ही मिला करती है...विजित जैसे बच्चे भी लाखों में एक होते हैं...इश्वर से प्रार्थना है के वो खूब तरक्की करे और जीवन में जो चाहे वो पाए.... इतना पढ़ देखने के बाद, अब डी.वी.डी. का इंतज़ार और असहनीय हो गया है...
खुश रहो
नीरज
मैं तो भूल ही गई थी कि मैं यह सब कम्प्यूटर पर देख पढ़ रही हूँ। मुझे लगा मैं भी तुम्हारे साथ थी। अपने अनुभवों को इस तरह हमसे साँझा करने जैसे कि वे हमारे ही हों, के लिए आभार।
घुघूती बासूती
बहुत सजीव विवरण...लगा ही नहीं कि वहाँ नहीं हैं. आनन्द आ गया प्ढ़कर और चित्र देख कर.
बहुत सजीव और सुंदर विवरण !
मज़ा आ गया पढ़ कर ,हर कवि की रचनाओं के अंश दे कर आप ने चार चांद लगा लिए अपनी इस रचना में,
एक सफल कार्यक्रम के लिए बधाई हो
साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजनों या यूं कहा जाये कि हर तरह के रचनाधर्मी कार्य में विरोध के स्वर उभरते ही रहते हैं. इसने अधिकांश फौरी आयोजन से जुड़े न होकर पूर्वाग्रहों से उपजे हुआ करते हैं. ये छिटपुट विरोध या असहमतियां देशकाल की सीमाओं से भी परे हुआ करती हैं यानि जहाँ भी कोई रचनात्मक आयोजन होगा इस तरह की खबरें सुनी जाती रहेंगी. हमारे यहाँ एक लम्बी परंपरा रही है, जिसे जानते ही नहीं उसके समर्थन या विरोध में खड़े हो जाने की. इन सब बातों पर ध्यान न दिया जाये तो बेहतर है.
सिद्धार्थनगर नया शहर बनने को उत्सुक है और इस आयोजन ने उसके भाल पर सांस्कृतिक-साहित्यिक मोरपंख लगाया है. मैं कवियों, लेखकों, नाट्यकर्मियों के व्यक्तिगत जीवन से इतर इस बात से अधिक प्रभावित हूँ कि इतने रचनाकारों को जमा कैसे किया जाये ? कैसे उनके लिए सुविधाजनक प्रबंध किये जाएँ... कितना कठिन है. मेरे लिए इतने सारे सुंदर नामों में से एक भी नाम अपरिचित नहीं था. सोचिये कैसे संभव हुआ ये कि जिनसे मेरा संवाद नहीं है वे भी मेरे लिए अपरिचित या पहली बार सुने हुए नाम नहीं हैं. कंचन सिंह चौहान अपने आप में एक मुखपत्र है जो इस तरह के आत्मीय सम्बंधों का कारखाना है.
अब किस किस का नाम लूं मैं ... यही हालात है... आप सब बहुत बधाई के पात्र है. ऐसे आयोजन बच्चों के खेल नहीं वरन जिस संस्कृति की बुनियाद पर समाज खड़ा रहता है ये उसकी नीव की ईंट हैं.
सिद्धार्थनगर अमर रहे, आपका यश बढ़ता जाये.
बहुत से प्रोग्राम्ज़ की रिपोर्ट पढी है लेकिन इस जैसी विस्तृत् और रोचक सामग्री कहीं नही मिली। गुरुकुल का साथ और सभी इतने विदुवान लोग वाह इसके लिये सब को बधाई। और आशा करती हूँ अगली बार दर्श्कों मे मैं भी हूँगी। शुभकामनायें आशीर्वाद । कुमार विश्वास ,सुबीर जी वीनस जमाल भाई व अन्य सभी को बधाई
सिद्धार्थनगर के इस कार्यक्रम पर कई रिपोर्टें आ रही हैं....सभी ब्लोगर ने बहुत खूबसूरत तरीके से प्रस्तुति दी है. आपकी यह प्रस्तुति इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसमें आपने सभी रचनाकारों को उद्दृत करते हुए उनकी रचनाओं का भी ज़िक्र किया है.
आपने मुझे भी इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग में शामिल किया, शुक्रगुजार हूँ!
....सर्वत भाई का आग्रह वस्तुत: एक आदेश ही था जिसे मैं इनकार नहीं कर सकता था.....हां कार्यक्रम में न रह पाने का अफ़सोस ज़रूर रहा. नवोन्मेष संस्था और इससे जुड़े हर व्यक्ति को बधाई ....आपको आपकी मेहनत और हिम्मत की दाद दूंगा.
बहुत मेहनत ओर भावुक होने से बचने की असफल कोशिश करती एक पोस्ट है ...रेदर कहूं सारी रिपोर्टिंग है......निसंदेह आपका स्नेह ओर व्यक्तित्व ही है जो इतने सारे लोगो को एक साथ जोड़ पाया ....अर्श ओर वीनस नगीने है......पंकज जी साधुवाद के पात्र है ....आपके प्रति उनका स्नेह प्रशंसनीय है .
माँ सरस्वती शारदा के साथ हर गुरुजनों का,
हर भाई का आशिष पानेवाली बिटिया
" कंचन "
ही होती है !! जीते रहो ..खूब प्रगति करो !
हमें आपके आयोजन का विस्तृत विवरण
व तस्वीरें देख
आत्मीयता से भरी, इस साहित्यिक संध्या,
कविता मंदाकिनी के दर्शन करवाने के लिए
तुम्हे बहुत बहुत बधाईयाँ व आशिष
बहुत स्नेह सहीत,
- लावण्यादी
Lavanya Shah
[ from Cincinnati, OHIO U.S.A.]
kisi kavisammelan kii isase achhi riporting padhne ko mili ho yad nahin.
अच्छी रिपोर्टिंग .. अच्छा संयोजन .. रिपोर्टिंग जिसमें कोई अखबारी रिपोर्टिंग नहीं बल्कि आत्मीयता भी है .. यह आत्मीयता सम्माननीय है ! .. छोटी जगह पर साहित्यिक हलचल होना अपने आपमें काबिलेतारीफ है .. !
रौनके-महफ़िल कोई भी हो पर वहाँ पर कुछ प्राण और मन ऐसे जरूर रहे होंगे जो अपनी मानवीय ( महनीय भी ) उपस्थिति से प्रयोजन को सत्वपूर्ण बना रहे होंगे , उनके श्रम , धैर्य , ,,, आदि में अपनी सदभावनाएँ व्यक्त करता हूँ ..!
यह पढ़कर मुझ जैसे को अच्छा ही लगा कि कुछ लोग वहाँ भी अपनी बात रख रहे थे , वे भले ही 'मुट्ठी भर' थे , संभव हो उनके वैयक्तिक पूर्वाग्रह हों, पर जाने क्यों उनमें मुझे अमरेन्द्र-स्वर जैसा भी कोई दिख रहा है , अपने उस मित्र के लिए किसी का एक शेर निवेदित करना चाहता हूँ ( काश वह भी अंतर्जाल पर मेरा दुसरुहा होता ! ) ---
'' एक तिनका हकीर हूँ लेकिन
मैं हवाओं का रुख बताता हूँ ! ''
सब अपना ही सच कहते हैं , कहना भी चाहिए , मैंने अपना कहा और आपने अपना !.. आपकी व्यक्तिगत इमानदारी , निष्ठा , श्रम , स्मरण-शक्ति सबको मेरा नमन ! आप स्वस्थ रहें , सानंद रहें ! आभार !
bahut hi badhiya reporting, shuru se aakhir tak pura padha, aapki reporting ko man na padega, baki kumar vishwas sahab to ultimate hai hi, kumudini aur bhramar wale vivad ke baad bhi.
kanchan ji aur subeer ji, jald hi mai koi na koi mauka dhundhta hu ki kumar vishwas saheb ko raipur chhttisgarh bula saku, iske liye aap logo ki madad chahiye hogi mujhe.........asha hai ki nirash nahi karenge...
ham to wahaan the hi nahin gudiyaa...
par tune..tere chhote bade baahiyon ne sambhaal liya sab..
sab ko pyar aur aasheerwaad...
bye betaa...
good night..
अमरेंद्र जी आप का सम्मान है हमारी नज़रों में। कम से कम बात जाने बिना खुद को उन लोगों में शामिल मत करें जिन्हे मंच का शऊर भी नही था। मेरा अपना कार्यक्रम था। मैने फोटो नही लगाई कवियों के बगल में धुँआ छोड़ते उस हक़ीर तिनके की।
आप उत्साह में हैं या उत्तेजना में, पर इस तरह अपने को हलका मत कीजिये। आपको नही मालूम कि विवाद की जड़ क्या थी और प्रतिक्रिया के स्तर क्या थे ?
आपको ये भी नही मालूम कि वो मुट्ठी भर लोग कुमार साहब को २ साल से किसी भी रेट पर बुलाने की ज़िद कर रहे हैं और मंच के पीछे ले जा कर कितनी बार अनुरोध कर रहे थे कुमार जी को अपना मेहमान बनाने की।
सभागार में बैठी महिलाओं की तनिक चिंता ना कर फूहड़ गाली देने वाले उस शख्स में यदि आप अपनी झलक देख रहे हैं, तो मेरे मन से एक हिंदी के सच्चे समपर्पित सिपाही और अवधी के प्रतिनिधि की छवि गिरा रहे हैं।
आप आक्रोश में है। अच्छा होगा कि दिमाग को थोड़ा ठंढा कर, तब बहस आगे बढ़ाएं।
कंचन जी ,
ऐसा मत कहिये , आक्रोश - उत्तेजना नहीं है , अभी 'एक असैनिक व्यथा ...''( gautam ji's post ) पर टीप कर आया हूँ आप चाहें तो इसे प्रमाण के रूप में देखिये कि मेरा दिमाग सही काम कर रहा है ---
'' अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी said...9 July 2010 1:20 AM
पहले गया सन्दर्भों से अवगत हुआ .. पनिहारिन की बात से असहमत हूँ .. सामान्यीकरण ठीक नहीं .. कंचन जी संवेदनशील लेखन करती हैं , किसी को 'वैयक्तिक राजनीति' से चटपट जोड़ देना कदापि ठीक नहीं जबकि वह भी जानते हैं कि राजनीति का क्या अर्थ है , ( उनकी टीप में 'राजनीति' किसी उदार अर्थ में नहीं आयी है ) .. समस्याएं कहाँ नहीं हैं , फ़ौजी कैम्प में इसी दुनिया से लोग जाते हैं , व्यक्तिगत सीमाएं सबकी होती हैं , कुछ के दोष को सम्पूर्ण समूह पर नहीं थोप सकते , न तो दिल्ली में हो रहे बलात्कार को सम्पूर्ण दिल्लीवालों पर थोप सकते हैं और न ही मणिपुर में मनोरमा के साथ हुए दुष्कर्म को सम्पूर्ण फौजियों पर !
कविता एक पीड़ा की प्रक्रिया में निःसृत है , इसलिए उसका एक प्रवाह है , अनगढ़पन का प्रवाह , प्रवाह तो सहज आता ही है , यह वहीं टूटता ( या देखने की मांग करता है ) जब सायास कविता बनायी जाती है ! ऐसा तो यहाँ नहीं है ! अच्छा लगा पढ़कर ! वेदना की विवृति सृजना के मूल में है ! करुण-स्पर्श की साहित्यिक पीठिका !
कल ही पढ़कर टीप देता पर 'रुचिका' को प्रति-टीप देने में मन दुखी सा हो गया और लौट गया ! आज टीप सका ! आपको पुनः आभार ! ''
--- मैंने विकल्पात्मक-आशावादिता की वजह से उनमें किसी एक के अमरेन्द्र होने की बात की , अगर सब वैसे ही थे जैसा आपने बताया तो मैं उन सबसे अपने को अलग करता हूँ ! आपको दुःख पहुंचा हो तो क्षमा चाहूँगा !
सादर -
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
मगर बात क्या हो गयी जनाब...?
उस रात की महफ़िल को इतने सँक्षेप और सुँदर शब्दों में समेट दिया आपने..
अर्श और वीनस प्रभावित कर गये, मन ठीक से भरा भी नहीं, और अँतिम पैराग्राफ़ आ गया ।
अनूप जी के किरदार से आपने सहज और जोरदार तरीके से मौज़ ली है !
धन्यवाद तो मुझे भी उन्हें देना है, रायबरेली न आ पाने के लिये..
पर मैं दूँगा नहीं ( सारा आभार तो मैंने यहीं उड़ेल दिया )
धन्य हो गयी थी वो गौतम बुद्ध की पावन माटी जब इन महान कवियों के पवित्र चरण सिद्धार्थनगर में पड़े . निश्चित रूप से वो हमारे लिए किसी बंद आँख से देखे स्वप्न के पूरे होने जैसा ही था. मैं शत शत नमन करता हूँ डा. कुमार विश्वास की इस अद्वितीय स्मरण छमता को और मंच पर उनके कविता पाठ की विविधता को ,उस रात उस दो घंटे की प्रस्तुति ने ये दर्शा दिया की डा.कुमार विश्वास बनाना कोई किस्मत का खेल नहीं बल्कि एक बहुत लम्बी और बारीक प्रक्रिया है . बहुत बहुत धन्यवाद गुरु जी का जिनके प्रयास से ही ये सब कुछ संभव हो सका . नुसरत मेहँदी जी , मोनिका हठीला जी ,रमेश यादव जी ,सर्वत जमाल जी ,आजम खां जी , वीनस जी, अर्श जी , इन सभी लोगो के हम सिद्धार्थनगर वासी हमेशा कर्ज़दार रहेंगे . और भाई major साहब(वीर जी )की अदाओं के तो हम कायल हो गए है . और मौसी आपके लिए इश्वर से हमेशा यही प्रार्थना करूंगा की सफलता आपके यू ही कदम चूमती रहे. (आप सबका विजित )
अक्सर होता है की लोग बहुत ज्यादा का अनुमान लगा लेते हैं और कम मिलता है तो दुःख होता है और अनुमान से ज्यादा मिलाने पर सुखद आश्चर्य |
मैं सिद्धार्थ नगर के दो दिवसीय नवोन्मेष महोत्सव के लिए जितना सोच कर घर से चला था उससे कई गुना ज्यादा तो मुझे पहले दिन ही देखने सुनने और महसूस करने को मिल गया
और दूसरे दिन की तो बात ही क्या करू
आपकी रिपोर्टिंग जानदार, शानदार च ईमानदार है
नवोन्मेष संस्था का पहला कार्यक्रम बेमिसाल संपन्न हुआ भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाए
पहले सोचा था आपकी पोस्ट के हिसाब से एक बड़ा सा कमेन्ट दूंगा, मगर वो कमेन्ट एक छोटी पोस्ट के बाराबर हो सकता है इस लिए अपने ख्याल को मुल्तवी कर दिया :)
कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आपने जो दिन रात एक किये उस जज्बे को सलाम
और हाँ,, पोस्ट के लिए आपने जो दिन रात एक किया है उसके लिए भी एक जोरदार सैल्यूट :)
आपकी पोस्ट पर अक्सर टिपण्णी करने को कुछ नहीं होता... आज की पोस्ट भी बीच में लगा की सेंटी हो ही गयी... की संभल गयी :)
एक दो लिनें पढ़कर सोच रहा हूँ कि कैसे सोच ली जाती हैं ऐसी बातें ! कुमार विश्वास 'कवी-कम-सेलिब्रिटी' हैं. अब कुछ लोग मेरे उपमा के आगे ज्यादा जोड़ देते हैं तो 'कवी कम सेलिब्रिटी ज्यादा' हो जाता है :)
विडिओ की कमी खल रही है.
ek kavi sammelan par aisa lekh hamne to nahi padha.....Beautiful presentation & Vishwas sir... He is just awesome.....Kaash! ham bhi wahan hote :-)
From: अर्श
To: kanchan_chouhan2002@yahoo.com
Sent: Sat, 10 July, 2010 11:44:38 AM
Subject: [हृदय गवाक्ष] New comment on डॉ० कुमार विश्वास, गुरू जी और कवि सम्मेलन, नवोन्मे....
"अर्श" has left a new comment on your post "डॉ० कुमार विश्वास, गुरू जी और कवि सम्मेलन, नवोन्मे...":
इस पोस्ट के बारे में क्या लिखूं यार समझ नहीं आता मुझे ऊपर से तुम सेंटिया देती हो फटाक से ! खैर ये बहनें ऐसी होती हैं ये जान गया , सिद्धार्थ नगर पहुंचना उफ्फ्फ्फ़ तुम्हारी डांट से तो एक बार लगा यार पतली गली से निकल लूँ बस्ति से ही, फिर कहा नहीं यार वरना घर पहुँच जाएगी पिटाई करने के लिए साथ में कुछ फौजी लोग और कुछ ..... कुछ ...
हा हा हा ...
सच में ये दुर्लभ संयोग ही कहूँगा के पहुँच गया और सभी लोगों से मुलाकात हो गयी वहाँ पर, वहां के लोग कितने अछे हैं ये वहां जा कर पता लगा ,डांट कहाँ गुम हो गयी पता ही नहीं चला , लज़ीज़ खाने के साथ मिठास हर तरफ दौड़ने लगी सबसे बेहतर आम परोसे जाने का जो सलीका था मुझे खाने से ज्यादा बेहतर लगा ...
फिर तुमसे मिलना तुम्हे मनाना ... सब कुछ कमाल ....
उस एक अज़ीम शाम ने जैसे अलग ही फेहरिश्त में ला खडा कर दिया हो ! सच कहूँ तो ये सब बस गुरु जी, विजित और तुम्हारा किया धरा है ...
लोगों के आने की जो उथल पुथल रही वो भी सवरण भुलाया नहीं जा सकता ....
जीतनी अछि कवितायेँ पढ़ी गयी उस खालिस कवि सम्मलेन में खुद कविओं के लिए अचम्भे की बात थी सभी बरबस इसी बात पर फिक्रमंद थे के शुद्ध रूप से कवितायें आज के समय में लोग नहीं पढ़ते बस चुटकुले , और लतीफों से काम तमाम अपने अपने घर को लौट जाते हैं! मगर गुरु जी सच कहते हैं के आप जो कुछ भी परोसेंगे वही तो लोग स्वाद चखेंगे , और ये बात पूरी तरह सच है !
वेसे अगर मेरी बारी के समय वाली तस्वीर लगा देते गुरु जी की ,तो बात मानता ...
तुम अपने समय ज्यादा समय ले रहे थे इसलिए गुरु जी गुस्से में देख रहे होंगे के जल्दी करो पब्लिक बोर हो रही है ... हा हा हा हा
बस यही कहूँगा के धन्य है हम सभी की सिद्धार्थ नगर आप सभी के यहाँ मिले और रहे !
कुछ और बातें करनी है फिर से आता हूँ जाना नहीं कहीं ...
अर्श
Posted by "अर्श" to हृदय गवाक्ष at July 10, 2010 11:44 AM
वाकई ये शाम तो अविस्मरणीय बन गयी होगी आप के लिए। आप ने जो कुमार जी की कविताओं की एक झलक दिखलाई है उस के बाद अब हमारा मन भी उन्हें सुनने के लिए ललायित हो उठा है, पर अपने ऐसे नसीब कहां कि हम ऐसे किसी कवि सम्मेलन का आनंद उठा सकें।
भगवान करे ऐसे सुखद पल आप के जीवन में बार बार आयें। सुबीर जी को मेरा भी प्रणाम
इतने विस्तार से भी रपट हो सकती है । रमेश जी के गीत ये पीला बासंतिया चान्द को रीजनल कॉलेज भोपाल मे उनके ही मुख से सुना था । मैं उनसे सम्वाद करना चाहता हूँ क्या आप उनका फोन नम्बर मुहैय्या करवा सकती हैं ?
वो दोनों दिन और वो दोनों संध्या अब इस जिंदगी का एक खास हिस्सा बन कर रह गये हैं कभी न भूल पाने के लिये...
सिलसिला ए शुक्रिया ने आंखें नम कर दीं, बस यूं ही कि कभी-कभी रोने का कोई सबब नहीं होता...
:)
jaise binaa wajah muskuraane kaa bhi koi sabab nahin hotaa...
ap dono ko aapke ..
oooooooooooooofffffffffffffffffffff
jitnaa hi aasheerwaad...
aur usse jara zyaadaa pyaar.....
abhi call nahi kar sakoongaa mejor..
m u b a r a k b a a d .
हमारे सिद्धार्थनगर में ऐसा आयोजन ,आभार
सफल प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई।
आज अर्श जी के ब्लाग पर सिद्धार्थनगर के इस आयोजन की रपट पढ़ी और आपको जाना, फिर मनीष जी के ब्लाग से आपकी विस्तृत जानकारी मिली और फिर हृदय गवाक्ष पर मेरा आना हुआ, यहां तो पूरी महफिल जमी हुई थी जिसकी रौनक बखूबी आप से थी, बहुत-बहुत बधाई, आप यूं ही सदा हंसती-मुस्कराती रहें, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ ।
यादें ताजा करने आया था...और अब जा रहा हूँ मुस्कुराता हुआ :-)
आपके साथ ही थे हमे लगा वहां |बेहद आत्मीयता से भरी रिपोर्ट | आंखे नम हो गई |सभी को यथा योग्य प्रणाम ,नमस्ते ,स्नेह और अनेक आशीर्वाद |
कंचन जी,
आरजू चाँद सी निखर जाए।
जिंदगी रौशनी से भर जाए।
बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की,
जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--------
ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं |
janmdin ki bahut bahut badhai
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
उसने किया तो कुछ अच्छा किया होगा,
वो डरता बहुत है, खामियां हो न जाएँ कहीं..
mushayre me to nahi tha, par ye varnan bhi sajeev hai, really nice composed, you tube par suna aapko, prastuti umda thee par recording mutabik nahi hui shayad.
Meri bhi tamanna hai Dr. Kumar Vishwas se ek martaba milun, unke andar jazba hai jo sambal deta hai..
aap ke ayojan me wo bhi shamil hue ye bhi anokhi uplabdhi hai. mera kehne ka katai maksad nahi ki koi aur unke muafik nahi hai, par mere dil me unki alag see chhavi hai..bas yahi kah leejie
Bahut hi rochak aur chitramay programms kee shandaar jhalkiyon aur prastuti ke liye dhanyavaad.
Janamdin ki haardik shubhkamnayne.
किसी कार्यक्रम की इतनी विशद, संपूर्ण और भावमयी परिचर्चा इससे पहले नही पढ़ी...एक शहद सी मीठी और आत्मीयता की बारिश मे भीगी हुई पोस्ट..पढ़ कर ऐसा लगता है कि सभी अपने ही स्वजन एक साथ मिले हों..जिनमे तमाम विभिन्नताओं के बावजूद एक बात सार्वनिष्ठ है..स्नेह!!..और इतना स्नेहिल आतिथ्य मिलना भी भाग्य की बात होती है..
आपको जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ..
baho ot hi sunder tarike se kavi sammelan ke bare melikha gaya lekin garmi me tumhare bhai ka colour do guna black ho gaya hai ab lagatar cream se thoda fair karne ka prayas kar raha hoo, god blessme and help me.
bahut hi sajev chitran.. achha laga padhkar.. aapko bahut bahut badhai..
दोनों पोस्टों में पूरा विवरण पढ़ा....
लेकिन मन में भाव आ रहे हैं अभी,उन्हें शब्द कैसे दूं समझ नहीं पा रही...
क्षमा करो...कुछ कह न पाउंगी अभी...
bahut sundar or rochak kaarykrm thaa padkar aatmsantushti hui ,bahut achchhaa lagaa,
फ़ोटुओं के नीचे नाम भी लिख देते तो शायद ज़्यादा अच्छा रहता.
बहुत ही सजीव चित्रण। सहृदय आभार आपका
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