Thursday, July 1, 2010

कुश और नाटक भारत की तक़दीर, पढ़िये नवोन्मेष महोत्सव-२०१० भाग-१

जिंदगी का मेरा सब से बड़ा अनुभव जो रहा है वो ये कि मेरे सारे अच्छे और बुरे सपने अचानक सच हो जाते हैं। और दोनो में ही मेरे ज़ुबान पर बस एक वाक्य रहता है कि "अरे ये कैसे हो गया।"
ऐसा ही एक स्वप्न था ये नवोन्मेष महोत्सव

मुझे याद है २५ अगस्त की वो तारीख जिस दिन विजित ने इस संस्था के लिये एक नाम पूछा था और मैने कहा था नवोन्मेष। इस के लिये जब प्रथम कार्यक्षेत्र चुनने की बात हुई तो हम दोनो ने चुना सिद्धार्थनगर, जो कि दिसंबर १९८९ में स्थापित ऐसा जनपद है जिसका शहरीकरण तो तेजी से हो रहा है मगर कला एवं संस्कृति की प्रगति वैसी नही है जैसी हमारे अनुसार होनी चाहिये थी।

कलाकार और कलप्रेमी हर जगह होते है, ये हमें अच्छी तरह पता था। बस ज़रूरत थी उन्हे खोज के एक दूसरे तक पहुँचाने की।

विजित ने निश्चय किया कि वो सुदूर ग्रामीण इलाकों से २० बच्चों को चुन कर उनके अंदर की नाट्य प्रतिभा को बाहर लायेगा। मुझे उसका ये निश्चय अत्यधिक चुनौतीपूर्ण मगर ईमानदार और कला के प्रति समर्पित लगा।

इसी बीच जनवरी की किसी तारीख को मन में आया कि क्यों ना सिद्धार्थनगर में उसी समय एक कवि सम्मेलन का आयोजन भी कर लें। विचार के साथ ही मोबाईल की बटन दब गयी गुरु जी से संपर्क करने को। क्योंकि मुझे सिर्फ विचार करना था उस विचार का निष्पादन गुरु जी के अतिरिक्त कोई कर ही नही सकता था मेरे लिये। गुरुजी ने एक बार भी मुझे हतोत्साहित नही किया और कहा "हाँ कर लो ना।"

और उस विचार के आने और पूर्ण निष्पादन के मध्य कितनी कितनी बाधाएं आईं ये तो मैं और मेरे प्रियजन ही जानते हैं।

सीहोर में आयोजित कविसम्मेलन में जा कर मुझे और विजित को एक ले आउट तैयार कर लेना था। विजित की नाट्य कार्यशाला को ७ मई से शुरु हो जाना था़ मगर इसी बीच बड़े भईया अचानक वेंटीलेटर पर ऐसे गिरे कि फिर उठे नही। ये था वो बुरा स्वप्न जो अचानक सच हो गया था और मेरी ज़ुबान पर वाक्य था "अरे ये कैसे हो गया"

बहुत बड़ा झटका था मेरे और परिवार के लिये। विजित की कार्यशाला ७ की जगह १७ मई को शुरु हुई। मैने कवि सम्मेलन को रद्द कराने का निश्चय कर लिया। उस समय तो कोई कुछ नही बोला मगर फिर परिवार के लोगों और गुरु जी ने समझाया कि सिद्धार्थनगर और अन्य जनपदों में इस कार्यक्रम के पोस्टर लग चुके हैं और ऐसे में कार्यक्रम को रद्द करने का मतलब संस्था की पहली ही छवि खराब करना है।

तैयारियाँ शुरु हो गईं। हमें अपने पहले प्रदर्शन में किसी भी प्रकार की कमी नही छोड़नी थी।
पहला काम था बीस बच्चों कि स्थान देने वाली एक तगड़ी स्क्रिप्ट। लोग कई थे मगर मैं अपने निजी अनुभवों पर काम करना चाहत थी। इसके लिये मुझे जो नाम पर सब से अधिक विश्वसनीय लगा वो था कुश। कुश मेरा वो मित्र है जो बात करते समय जितना बेतकल्लुफ और मजाकिया रहता है। रचनाओं में उतना ही संजीदा रहता है।

विजित ने कुश से बात की औ‌र कुश ने हमें स्क्रिप्ट दी नाटक "भारत की तकदीर" की।

निदेशन का जिम्मा खुद विजित ने अपने मित्र रोहित सिंह के सहनिदेशन में संभाला।


सच है कि मुझे अपने उस २२ साल के भांजे की प्रतिभा पर शक हुआ और मैने किसी मँजे हाथ को बुलाने का आग्रह किया उससे। मगर उसने कहा " मौसी मुझे पर भरोसा रखिये।"


दूसरा और कठिन काम था कविसम्मेलन का। कठिन इसलिये कि इस के लिये हमें अधिक और मँजे लोग चाहिये थे जो कि कवि सम्मेलन को जमा सकें और सिद्धार्थनगर की जनता को असल कवि सम्मेलन का चस्का लगवा सकें। साथ ही ज़रूरत थी निधि की जो एक नवोदित संस्था के लिये सिद्धार्थनगर जनपद के प्रशासन और व्यक्तिगत संस्थानों से निकालना टेढ़ी खीर था जो कि खैर अंत तक बना ही रहा।

गुरुकुल के अपने भाइयों पर तो भरोसा था ही मुझे मगर कुछ नाम ऐसे भी चाहिये थे जो मंच के लिये नये ना हों। खैर उसमें मुझे तो कुछ करना नही था। मैने सारा ज़िम्मा गुरु जी पर छोड़ दिया था। गुरु जी ने मुझे बताया कि उन्होने मोनिका हठीला जी, नुसरत जी और रमेश यादव जी से बात कर ली है बाकि "एक नाम जो तुम कह दो मैं उसे बुला दूँ।" मुझे लगा कि अच्छा समय है वरदान माँगने के लिये और मैने झट से कहा "गुरूजी जिससे कवि सम्मेलन की बात करो वो कुमार विश्वास का नाम सबसे पहले लेता है। क्या वो आ सकेंगे ?"

अब गुरू जी क्या करते उन्होने कहा " आ तो जायेंगे, मगर वो भारत में हैं कहाँ अभी।" कुमार जी उस समय अमेरिका गये हुए थे। और संजोग देखिये कि जब हमें लिस्ट फाइनल करनी हुई उसी दिन कुमार जी का फोन गुरु जी के पास आ गया अपनी वापसी खबर के साथ।


गुरु जी ने किससे क्या कहा मुझे नही पता। बस ये पता है कि सभी मंचीय कवि उस छोटे से जनपद में आने के लिये तैयार थे।

कार्यक्रम के ठीक १२ दिन पहले छोटी दीदी ने भी ऐसा बड़ा झटका दिया कि जिंदगी १ हफ्ते के लिेये तो ठहर ही गई। खैर वहाँ तो स्थिति संभल गई। जिन जिन मित्रों को मैने आशंकाओं से दुःखी किया था उनके लिये सूचना है कि स्थिति खतरे के बाहर है।

तो अब शुरु करती हूँ दास्तान ए नवोन्मेष महोत्सव :-

कथा का आरंभ २५ जून से होता है जिसमें श्रीमान कुश वैष्णव द्वारा लिखे गये नाटक "भारत की तकदीर" का मंचन और जनपद स्तरीय मीडिया सम्मान समारोह का आयोजन होना था।
श्रीमान कुश चूँकि पहली बार उत्तर प्रदेश का भ्रमण करने निकले थे अतः कुछ डरे सहमे से थे इसके लिये उन्होने खुर्राट शहर कानपुर के खुर्राट ब्लॉगर श्रीमान अनूप शुक्ला उर्फ फुरसतिया की शरण ली और प्रदेश की राजधानी से उनका साथ कर सिद्धार्थनगर जनपद की ओर प्रस्थान किया।
सिद्धार्थनगर की जनता को पिछले पंद्रह साल से मैने मौसी कहला कहला कर बहुत त्रस्त किया है। पूरे जनपद को मुझसे बदला लेने के लिये सही दिन मिल गया था। रात्रिकालीन बेला से ही विद्युत् कर्मचारियों ने वो हाथ खींचा कि इन्वर्टर इत्यादि सब के पसीने छूट गये साथ देने में और उन्होने चिढ़ कर हमारे पसीने निकलवाने शुरु कर दिये।

११ बजे श्रीमान कुश और श्रीमान अनूप जी पहुँचे हमारे घर हमने उन्हे पसीने की ठंडक से खूब ठंडा रख कर उनका भव्य स्वागत किया।

गौतम भइया सहरसा से और वीनस इलाहाबाद से पूर्व में ही प्रस्थान कर चुके थे। गौतम भइया की ट्रेन थोड़ी देर से आई वीनस की थोड़ी पहले। इसलिेय दोनो को एकदूसरे का साथ मिल गया और दोनो ही ने सिद्धार्थनगर की धरती पर साथ साथ कदम रखा। १ बजे तक गौतम भइया और वीनस भी सिद्धार्थनगर में थे।
हम सब जब मिले तो भूल गये कि कि घर में कोई और भी है। अनूप जी के अनुसार लाइट "नाइस" टिप्पणी की तरह झलक दिखा कर चली जा रही थी और कुश के अनुसार गौतम भईया और वीनस मॉडरेशन की टिप्पणियों की तरह बड़ी देर में प्रकट हुए।
खैर हम चारों को इकट्ठा देख जाने क्यों लाइट आ गयी और कम से कम इन सब यात्रा से आये बंदों को पसीने के बाद पानी से भी स्नान करने का मौका मिला।
हमने सोचा कि इतनी दूर से आये हैं तो खाना भी खिला दें तो खाना खिलाया।
और कुछ देर अपनी अपनी रचनाएं भी झिलायीं ( चूँकि कल कोई सुनेगा या नही इसका कोई भरोसा नही था।)







अब वक़्त आ गया था नाटक भारत की तक़दीर के मंचन का। हमने गौतम भईया, वीनस और कुश को आडिटेरियम भेज कर अपनी अस्थाई प्लास्टिक सर्जरी की जिससे लोग असली शक्ल समझ ना पाये और पहुँच गये भारत की तक़दीर देखने।


सिद्धार्थनगर का मुख्यालय ही अभी बहुत अधिक विकसित नही हुआ है़, उसमें अविकसित गाँवों से लिये गये २० ग्रामीण बच्चों को पॉलिश कर जो अभिनय क्षमता निकलवाई गई थी, उसकी सभी ने भूरि भूरि प्रशंसा की और प्रशंसनीय थी कुश की स्क्रिप्ट जिसने बीसों बच्चों के साथ न्याय किया। नाटक समाज में फैली भिन्न भिन्न कुरीतियों पर था। जिसे भारत की तकदीर मिटाना चाहती थी। तक़दीर बनी बच्चियों ने बहुत ही उम्दा अभिनय कर के पूरे डेढ़ घंटे आडिटोरियम को तालियों से गुँजाये रखा। तकदीर का कथन " मैं..? मैं भारत की तक़दीर हूँ। मैं बदलना चाहती हूँ।" रोंगटे खड़े कर देता था।






अनूप जी को तो कुश की प्रस्तुति इतनी पसंद आई कि उन्होने एक बार पलक झपकाये बिना पूरा मंचन देखा
तो ये था घटना क्रम २५ जून के नाट्य कार्यक्रम का अगली किश्त में पढ़िये कहानी २६ जून के कवि सम्मेलन की... तब तक के लिये....



क्रमशः

39 comments:

शिवम् मिश्रा said...

बहुत बढ़िया रिपोर्ट ..............बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

अनूप शुक्ल said...

जानदार रिपोर्ट। शानदार बयान। आखिरी फोटो तो गजब की है। क्या बढिया पोज है।

सिद्धार्थनगर जाना और वापस आना अद्भुत अनुभव रहा। नाटक के बाद बच्चे जिस तरह से इस बात को सोचकर देर तक रोते रहे कि अब नाटक खत्म हो गया वह अविस्मरणीय है।

पारुल "पुखराज" said...

देख,सुन,पढ़ के जी खुश हो गया ..प्रयास होते रहें ..सफलताएँ मिलती रहें

डॉ .अनुराग said...

रिपोर्टिंग का तो क्या कहे.तस्वीरे ओर विडियो एक दम धांसू है .......हो सकता है दो चार लोग तुम पर मान हानि का दावा ठोक दे...वकील तैयार रखो.....

Unknown said...

डॉ अनुराग जी से सहमत हूं…

वैसे मैंने, कुश से अर्ज़ किया है कि स्क्रिप्ट की एक कॉपी भेजें, हम भी तो पढ़ें…

Abhishek Ojha said...

आखिरी तस्वीर में अनूपजी की तन्मयता तो कमाल की है :)

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा, जानना और पढ़ना...कवि सम्मेलन वाली किश्त का इन्तजार है.

sonal said...

कंचन जी अगली किश्त का इंतज़ार बेहद रोचक ..विवरण

दीपक 'मशाल' said...

बढ़िया.. बधाई भी. लगता है आप चारों को देख लाईट भी अनामी टिप्पणियों की तरह बमबारी कर बैठी होगी.. :)

निर्मला कपिला said...

प्रोग्राम कितना च्छा होगा ये तो पहले ही सुबीर जी की पोस्ट और अर्श की पोस्ट से पता चल गया था। मगर आज और भी विस्तार से पता चला है। सभी प्रतिभागियों और आयोजकों को बहुत बहुत बधाई मगर अनुराग जी की तरह हम भी अगली बार दावा करने वाले हैं समझ लो। शानदार प्रयास इस संस्था के लिये भी शुभकामनायें।

Sanjeet Tripathi said...

bahut,bahut aur bahut hi badhiya report,itni achchhi ki aakhir me anoop ji ki photo dekh kar aur unki taleenta ko sochkar dil khush ho gaya
;)

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

जबरदस्त रिपोर्टिग है आपकी.. और वारा जाऊ कुश के नाटक पर जिसे देखने के लिये फ़ुरसतिया जी ने पलक तक न उठायी.. ओ सोरी.. न झुकायी :)

just joking.... पढकर ऎसा लगा जैसे मै भी आप लोगो के बीच ही कही था.. वही सोते हुये शायद :)

neera said...

लम्बे अरसे बाद यहाँ खुशियाँ नज़र आई हैं ... पढ़ कर दुगुनी चौगनी हो गई हैं...

डा० अमर कुमार said...


बज़रिये कुश, मैं अपरोक्ष रूप से सम्मिलित ही रहा,
अगली कड़ी का इँतज़ार है ।

नीरज गोस्वामी said...

"जहाँ चाह वहां राह" उक्ति को शत प्रतिशत चरितार्थ किया है आप सब के भागीरथ प्रयासों ने...बहुत बहुत बधाई...मुझे दुःख है के वीनस के बार बार किये गए आग्रह के बावजूद भी मैं अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों की वजह से चाह कर भी सिद्धार्थ नगर नहीं जा पाया. खैर वो सुबह कभी तो आएगी जब आप सब लोगों के साथ का सुयोग मुझे भी मिलेगा.
कुश बहुत प्रतिभाशाली है ये उसे देख कर नहीं पढ़ कर लगता है :)), मैं उस से दो बार जयपुर में मिला हूँ और उसे जितना जाना हूँ उस से लगता है के उसमें प्रतिभा का ज्वालामुखी है जो जब फटेगा सबको अपने आगोश में ले लेगा. अभी जो उसमें से निकल रहा है वो धुआं मात्र है...लावे की अभी प्रतीक्षा है...उसने अपने उच्चस्तरीय मोबाईल केमरे का प्रयोग करके आप और प्रिय गौतम की ग़ज़लें तो सुनवा दीं लेकिन पीछे याने बैक-ग्राउंड में जलतरंग जरा जोर से बजा कर अपने पार्श्व संगीतकार होने का मुगालता भी पाल लिया. :))
इस कार्यक्रम की सफलता के पीछे आप सबकी मेहनत, गुरुकुल के साथियों का प्यार और गुरुदेव का आशीर्वाद साफ़ नज़र आ रहा है.
कवि सम्मलेन की सी.डी. अगर तुमने मुझे नहीं भेजी तो फिर देखना सबके सामने तुम्हारे कान पकड़ने चला आऊंगा....:))
अगली कड़ी की प्रतीक्षा बहुत बढ़ गयी है...अधिक देर ना करना और हाँ पोस्ट प्रकाशित होने पर सूचना जरूर दे देना.
नीरज

राम त्यागी said...

बहुत अच्छा लगा पढकर और फोटुआ भी मस्त रहे , अनूप जी का फोटो झकास है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चित्रों के साथ अच्छी रिपोर्ट

सुशील छौक्कर said...

वो हो तो इसलिए कुश भाई यहाँ गए थे। सुन्दर फोटो, बेहतरीन विवरण। अच्छी प्रस्तुति। और हाँ नाटक की स्किर्प्ट कौन पढवाऐगा

के सी said...

बहुत बढ़िया, अब अगले भाग की प्रतीक्षा है.

Ankit said...

पहले तो आपको और इस कार्यक्रम से जुड़े हुए लोगों को ढेर सारी बधाई

विजित को शुभकामनायें

मेरे नहीं आने का मुझे अफ़सोस तो रहेगा ही मगर वो रहना भी चाहिए अगले कार्यक्रम में ज़रूर आने के लिए
कला और साहित्य का बीज ऐसी जगह पहुंचा जहाँ इससे पहले इस के हिसाब से ज्यादा कुछ नहीं हुआ है, ये सुनकर और पढ़कर अच्छा लगा...............आपकी इस कोशिश को सलाम

वीनस और गौतम भैय्या ने जल्दी पहुंचकर अर्श के लिए आपकी डांठ कि मुहर मुकम्मल कर दी, बेचारा बहुत डरा हुआ था......................

कुश तो लाजवाब है, वाकई वो ज्वालामुखी है और शांत है अभी भी. मेरी कुश भाई और आप से darkhwast है कि नाटक के स्क्रिप्ट पढवाए. अनूप जी की फोटो लाजवाब है जिसने भी ली होगी उसके नाम का वार्रांत निकल गया होगा.

अब अगले अंक का इंतज़ार है, जिसका खूबसूरत ट्रेलर इस अंक में दिख गया है गुरु जी के रूप में, उनके मार्गदर्शन के बिना इस कार्यक्रम कि सफलता अधूरी ही है.

वीनस केसरी said...

मैं तो सोच सोच कर हैरान हूँ कि आपको एक एक बात याद कैसे हैं

फिर सोचता हूँ कि हो भी क्यों ना, जब कोई ख़्वाब सच होने जा रहा हो, तो एक एक पल दिल दिमाग में कैद हो जाता है

बहुत बढ़िया पोस्ट
अनूप जी की जय हो :)

वीनस केसरी said...

"भारत की तकदीर"

मैंने वहाँ भी कहा था और फिर कहता हूँ कि नाटक के लिए मैंने जितना सोच रखा था उससे ४ गुना ज्यादा देखने और महसूस् करने को मिला

बच्चों ने बहुत बहुत बढ़िया अभिनय किया

और नाटक समाप्त होने के बाद, जो उन लोगों ने रोना शुरू किया बाप रे,
नाटक के सुन्दर ढंग से मंचित होने की खुशी, विछोह का गम पीछे के कमरे का दृष् इतना मार्मिक था कि क्या कहूँ

दीदी आपको, नवोन्मेष संस्था विजित भैया और कुश भैया को बहुत बहुत बधाई

shikha varshney said...

ये चित्रमयी रिपोर्ट तो बहुत अच्छी है..

siddheshwar singh said...

* देर से यहाँ आने के लिए क्षमा !
**इतना सार्थक आयोजन !
एक ही बात कहूँगा -
"ज्यों बड़री अँखियाँ निरख आँखिन को सुख होत !"

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अफ़सोस कि वहाँ हम न जा सके। सिद्धार्थनगर में मैं तीन साल तक कार्यरत रहा हूँ। सबकुछ देखा सुना सा महसूस कर रहा हूँ, क्योंकि आपकी रिपोर्ट कमाल की है। अनूप जी को शाबासी देकर आपलोग आगे के लिए भी ऐसे नजारे को दावत दे रहे हैं। :)दिलचस्प।

गौतम राजऋषि said...

तुममें एक जबरदस्त रिपोर्टर बनने के समस्त गुण और अवयव हैं...कैसे एक-एक बात याद रख लेती हो।

लाजवाब रपट। अगली किश्तों का बेसब्री से इंतजार है।...और इतनी मौडेस्ट भी न बनो, इस नवोन्मेष को यथार्थ रूप में लाने में जितना तुम्हारा योगदान रहा है, उतना और किसी का नहीं। मुझे याद है वो दिन जब नवोन्मेष के नामकरण की चर्चा हो रही थी। फोन द्वारा मैं भी तो शामिल था उस उपलक्ष्य ्पर...

Manish Kumar said...

बड़ा अच्छा विवरण रहा ये सुंदर चित्र और वीडिओ के साथ...

दिगम्बर नासवा said...

रिपोर्टिंग ... चित्र ... वीडियो .... सब कुछ जबरदस्त है ... मज़ा आ गया पढ़ कर और सबको देख कर ... आभार और शुभकामनाएँ ....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

प्रिय बिटिया कंचन ,
अब किन किन बातों के लिए बधाई भेजूं ? ;-)
नवोन्मेष सुन्दर नाम - आपके प्रयास - काव्य पाठ, कुश भाई के बारे में पढ़ना, सिध्धार्थ्नगर के युवा पीढी द्वारा यह प्रयास , गौतम भाई को सुनवाने का यह अवसर , सारी तस्वीरें
और बढ़िया रिपोर्ट सब कुछ पढ़कर ,
बहुत प्रसन्नता हुई ..........
God Bless You & All your efforts
& all the wonderful people that i have mentioned too

-स - स्नेह आशिष
- लावण्या
[ from Cincinnati, OHIO, U.S.A. ]

विवेक रस्तोगी said...

बेहतरीन रिपोर्ट अगली कड़ी की प्रतीक्षा है, वीडियो दिख नहीं रहा है, अगर साथ में यूट्य़ूब की लिंक भी दे दें तो मजा आ जायेगा। नाटक और कविसम्मेलन का अगर वीडियो हो तो जरुर पोस्ट पर दीजियेगा, हम कोई रस छोड़ना नहीं चाहते।

कुश said...

कुश जी वाकई अद्भुत प्रतिभा के धनी है.. मेरा उनसे पहली बार परिचय तब हुआ था जब वो इस धरती पर अवतरित हुए थे.. तभी से उनके निर्मल स्वभाव का कायल हुए जा रहा हूँ मैं.. उनके लेखन को जितना जाना है मैंने बहुत उच्च कोटि का है.. कुश जी दिन ब दिन ऐसे ही तरक्की करे यही दुआ है..

एक दिन ऐसे ही चर्चा चर्चा में कुश जी से आपके बारे में पता चला.. आपको धन्यवाद् दे रहे थे इतना मान देने के लिए साथ ही बताया कि आप की स्मरण शक्ति कमाल की है.. और तो और आपके विलक्षण व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए बोले कि आपकी भावुकता आपकी कर्मठता पर कभी हावी नहीं होती.. आपके बारे में और भी बहुत सी बाते थी जो मैं यहाँ लिख नहीं रहा हूँ.. क्योंकि आपके भाई फौजी ठहरे पता नहीं कब कहा धर के ठुकाई कर डाले..

अंत में आपको और कुश जी दोनों को बहुत बहुत बधाई..

ghughutibasuti said...

कंचन, यह रिपोर्ट दोबारा पढ़ रही हूँ और मेरी टिप्पणी कहीं खो गई है। आप सबने मिलकर काम भी खूब किया और साथ साथ मिल बैठने का मजा भी लिया। इस सफल प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई।
घुघूती बासूती

manu said...

O beta...........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


ye to hamne ab dekhaa hai........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Anita kumar said...

वाह कंचन ये तो बहुत बढ़िया आयोजन रहा। कुश और अनूप जी से बातचीत में इस नाटक की खबर सुनी थी पर समझ न पाये थे कि ये कहां हो रहा है, और हमने उसे बहुत हल्के अंदाज में ले लिया था। अब पता चला कि ये तो बहुत फ़ोर्मल फ़ंकशन था।
लास्ट की फ़ोटो तो गजब की है…॥:)

अजय कुमार said...

हमारे सिद्धार्थनगर में ये सब आयोजन हुआ ,आभार ।

प्रवीण त्रिवेदी said...

इस सफल प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई।

सुशीला पुरी said...

ओह ! उन बच्चों का अभिनय मुझे भी देखना था ....कंचन जी ! उस समय मै वहीं बढ़नी शहर मे थी ...मेरी ससुराल इटवा और बढ़नी के बीच स्थित एक गाँव 'मदरहवा' मे है । आप सबने इतना खूबसूरत काम किया है कि अब आपसे मिलना पड़ेगा ।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

कार्यकम का रिपोर्ट पढकर अच्छा लगा ...
कई बेहतरीन शेर पढ़ने को मिले सो अलग ...

आपको जन्मदिन के मुबारकबाद देने चला आया था ...



_________________
www.indranil-sail.blogspot.com

meemaansha said...

kya bat hai... DI...padhkar dekhkar, aur sunkar bhauk ho gayi mai....bas aapke pas aane ko jee chaha.................a lot of luv u Di..